रानी पद्मावती की जीवनी | Biography of Rani Padmavati in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. उसका जीवन चरित्र ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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रानी पद्मावती का जीवन उन महान् ऐतिहासिक महिलाओं में अत्यन्त आदर तथा सम्मान के साथ लिया जाता है, जिन्होंने राष्ट्रीय गौरव के साथ-साथ स्त्री जाति के सम्मान हेतु अपने प्राणों की आहुति दे दी । एक वीर, साहसी, स्वाभिमानी हिन्दू जाति की इस राजपूतानी महिला ने शत्रुओं के हाथों पड़ने की बजाय आग में जौहर कर लिया ।
2. उसका जीवन चरित्र:
पद्मावती सिंहलगढ़ के राजा गन्धर्वसेन की अत्यन्त रूपवती, गुणवती, शीलवती कन्या थी । पद्मावती के रूप-सौन्दर्य की ख्याति दूर-देशों तक जा पहुंची थी । युवावस्था में प्रवेश करते ही पद्मावती ने अपने मनोनुकूल वर प्राप्त करने के लिए अपने गुरु तथा सखा हीरामन तोते को भेजा ।
हीरामन पद्मावती के योग्य वर की तलाश में बहुत भटका । अन्त में उसे चित्तौड़गढ़ के राजा रत्नसेन ही पद्मावती के योग्य वर लगे । उसने राजा रत्नसेन से पद्मावती के रूप-सौन्दर्य और गुणों का कुछ इस तरह बखान किया कि राजा रत्नसेन सात दिनों तक मूर्च्छित पड़े रहे ।
पद्मावती को प्राप्त करने के लिए वे अपनी पटरानी नागमति को छोड़कर सिंहलगढ़ जा पहुंचे । सिंहलगढ़ का वैभव स्वर्ग को फीका कर देने वाला था । राजा रत्नसेन पद्मावती को ब्याहकर चित्तौड़गढ़ ले आये । पद्मावती वीर, प्रतापी राजा रत्नसेन को प्राप्त कर बहुत प्रसन्न थी ।
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उसी राज्य में राजा रत्नसेन से द्वेष रखने वाले राघव व चेतन नाम के दो दुष्ट व्यक्ति थे । उन्होंने अलाउद्दीन के राज्य में शरण लेकर पद्मावती के रूप-सौन्दर्य का बखान कर पद्मावती को प्राप्त करने के लिए दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन को चित्तौड़ पर चढ़ाई करने हेतु उकसाया ।
उनकी बातों में आकर अलाउद्दीन ने सरजा नामक दूत को राजा रत्नसेन के पास भेजा । रत्नसेन ने पद्मावती को उसके हवाले करने से युद्ध करना ज्यादा बेहतर माना । अलाउद्दीन ने पद्मावती को प्राप्त करने के लिए पांच माह तक चित्तौड़ का घेरा डाला । जब उसमें सफल नहीं हुआ, तो उसने छल-कपट का सहारा लेते हुए रत्नसेन के समक्ष मित्रता का प्रस्ताव रखा ।
रत्नसेन उस कपटी अलाउद्दीन के छलावे में आ गया । उसने इसी मित्रता के बहाने रानी पद्मावती के सौन्दर्य-दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की । राजपूत घराने की स्त्रियां पुरुषों के सामने पर्दा करती हैं । इस मर्यादा का ध्यान रखते हुए राजा रत्नसेन ने पद्मावती का प्रतिबिम्ब दर्पण में दिखाने हेतु सहमति व्यक्त की ।
पद्मावती के श्रीमुख को देखकर अलाउद्दीन अपने होशो-हवास खो बैठा । उसने पद्मावती को प्राप्त करने के लिए कपट रचा । राजा रत्नसेन अलाउद्दीन का आतिथ्य-सत्कार कर उसे विदाई देते हुए महल के बाहर तक आ गये थे ।
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अलाउद्दीन ने अपने छिपे हुए सैनिकों से राजा रत्नसेन को गिरफतार करने को कहा । राजा रत्नसेन को धोखे से कैद कर अलाउद्दीन उसे दिल्ली ले गया और उन्हें कारावास में डलवा दिया । अलाउद्दीन ने पद्मावती को प्राप्त करने के लिए कारागार में राजा रत्नसेन को कई तरह की यातनाएं दीं ।
चित्तौड़गढ़ में इस घटना से हाहाकार मच गया था । इधर अलाउद्दीन ने राजा रत्नसेन की मुक्ति हेतु यह शर्त रखी कि पद्मावती को पालकी में बिठाकर दिल्ली भेजा जाये और साथ में उसके सैनिकों के लिए महल की अन्य सुन्दरियां भी भेजी जायें । रानी पद्मावती और नागमति ने युद्ध हेतु अपने सैनिकों को तैयार किया ।
चित्तौड़गढ़ के दो किशोर वीर-गोरा और बादल-ने इस युद्ध का कुशल नेतृत्व करने की बीड़ा उठाया । उन दोनों की योजनानुसार पालकी में वे नारी वेश में पद्मावती व उसकी सखी बनकर बैठेंगे और अन्य सैनिक अस्त्र-शस्त्र लेकर दूसरी पालकियों में सुन्दरियों के वेश में बैठेंगे । इस तरह 1,600 से अधिक सैनिक 700 पालकियों में पद्मावती के साथ दिल्ली की ओर चल पड़े थे ।
यह घटना सन् 25 अगस्त, 1303 की ऐतिहासिक घटना मानी जाती है । अलाउद्दीन के साथ हुए युद्ध में राजपूत सैनिकों की हार हुई । गोरा और बादल दोनों ही बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । अनेक सैनिक रणक्षेत्र में खेत रहे । राजा रत्नसेन की अलाउद्दीन ने हत्या करवा दी । जब दोनों रानियों को यह सूचना मिली, तो उन्होंने अन्य 1,600 स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया ।
जब अलाउद्दीन वहां पहुंचा, तो उसे पद्मावती के स्थान पर उसकी राख मिली । अलाउद्दीन हाथ मलते रह गया । इस तरह चित्तौड़गढ़ अलाउद्दीन के पुत्र खिज़्र खां के सुपुर्द कर दिया गया और चित्तौड़गढ़ का नाम खिज्राबाद हो गया । अलाउद्दीन ने 30,000 नागरिकों का वध करवा डाला । राजमहल और भवनों को ध्वस्त कर डाला ।
3. उपसंहार:
रानी पद्मावती की यह जौहर गाथा भारतीय संस्कृति के उस चारित्रिक आदर्श की गाथा है, जो जीते-जी शत्रुओं के हाथों में पड़ने की बजाय अपने प्राणों का बलिदान देना श्रेयस्कर समझती है ।
रानी पद्मावती ने अलाउद्दीन की रानी तथा दिल्ली अधीश्वरी बनकर सुख विलासितापूर्ण जीवन जीने की बजाय आत्मस्वाभिमान से मरना उचित समझा । आज भी चित्तौड़गढ़ में रानी पद्मावती की इस बलिदानपूर्ण गौरवगाथा तथा चित्तौड़ के दोनों वीरों-गोरा और बादल-के गीत गाये जाते हैं ।