लुई पाश्चर की जीवनी । Biography of Louis Pasteur in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एव उपलथियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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19वीं शताब्दी के जिन महान वैज्ञानिकों ने निष्काम भाव से मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया, उनमें से एक थे-लुई पाश्चर । लुई पाश्चर ने अपनी महान् वैज्ञानिक खोजों के द्वारा बीमारी के दौरान घाव उत्पन्न होने की स्थिति में असहनीय पीड़ा होती है, उससे मुक्ति दिल एक बड़ी मानव सेवा ही की थी ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:
सुई पाश्चर का जन्म 27 दिसम्बर सन् 1822 को फ्रांस के डोल नामक स्थान में मजदूर परिवार में हुआ था । उनके चमड़े के साधारण व्यवसायी थे । उनके पिता की इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़-लिखकर कोई महान् आदमी बने ।
वे उसकी पढ़ाई के लिए कर्ज का बोझ भी उठाना चाहते थे । पिता के साथ काम में हाथ बंटाते हुए लुई ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए अरबोय की एक पाठशाला में प्रवेश ले लिया, किन्तु वहा अध्यापकों द्वारा पढ़ाई गयी विद्या उनकी समझ से बाहर थी ।
उन्हें मन्दबुद्धि और बुद्ध कहकर चिढाया जाता था । अध्यापकों की उपेक्षा से दुखी होकर लुई ने विद्यालयीन पढ़ाई तो छोड़ दी, किन्तु उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोवी, जिससे सारा संसार उन्हें बुद्ध नहीं, कुशाग्र बुद्धि मानकर सम्मानित करे ।
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पिता द्वारा जोर-जबरदस्ती करने पर वे उच्च शिक्षा हेतु पेरिस गये और वहीं पर वैसाको के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे । उनकी विशेष रुचि रसायन शास्त्र में थी । वे रसायन शास्त्र के विद्वान् डॉ॰ ड्यूमा से विशेष प्रभावित थे ।
इकोलनारमेल कॉलेज से उपाधि ग्रहण कर पाश्चर ने 26 वर्ष की अवस्था में रसायन की बजाय भौतिक विज्ञान पढ़ाना प्रारम्भ किया । बाधाओं को पार करते हुए वे विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गये । इस पद को स्वीकारने के बाद उन्होंने अनुसन्धान कार्य प्रारम्भ कर दिया ।
सबसे पहले अनुसन्धान करते हुए उन्होंने इमली के अस्ल से अंगूर का अग्ल बनाया । किन्तु उनकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण खोज ”विषैले जन्तुओं-पशुओं द्वारा काटे जाने पर उनके विष से मानव के जीवन की रक्षा करनी थी ।”
चाहे कुत्ते के काटने के बाद रेबीज का टीका बनाना हो या फिर किसी जख्म के सड़ने और उसमें कीड़े पड़ने पर अपने उपचार की विधि द्वारा उसकी सफल चिकित्सा करने का कार्य हो, लुई पाश्चर ने उन्हीं कार्यो गे अपने प्रयोगों द्वारा सफलता पायी ।
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रेशम के कीड़ों के रोग की रोकथाम के लिए उन्होंने 6 वर्षो तक इतने प्रयास किये कि वे स्वयं अस्वस्थ हो गये । पागल कुत्तों के काटे जाने पर मनुष्य के इलाज का टीका, हैजा, प्लेग आदि संक्रामक रोगों से रोकथाम के लिए उन्होंने विशेषत: कार्य किया । वह सचमुच एक महान् कार्य था ।
3. उपसंहार:
इस तरह लुई पाश्चर एक सामान्य मानव से महामानव बने । चिकित्सा विज्ञान में उनके इस महायोगदान को हमेशा याद रखा जायेगा ।