लोककल्याणकारी राज्य और भारत । Public Welfare State and India in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा ।
3. लोककल्याणकारी राज्य की विशेषताएं या लक्षण ।
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4. लोककल्याणकारी राज्य के कार्य ।
5. लोककल्याणकारी राज्य और भारत ।
6. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
कुछ व्यक्तिवादी राज्य को आवश्यक बुराई मानते हैं और अपने सीमित अर्थ में उसके कार्यक्षेत्र को अधिक व्यापक नहीं बनाना चाहते । भूमि और जन के साथ निःसन्देह राज्य का होना अनिवार्य तत्त्व है ।
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यह निश्चित रूप से सत्य है कि कोई भी राज्य अपने नागरिकों के लिए प्रत्येक क्षेत्र में सुख-सुविधाएं प्रदान करना चाहता है ।
अपने समस्त साधनों एवं शक्ति का उपयोग वह जनता की भलाई में करना चाहता है । यदि कोई राज्य इस तरह देश की सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, कल्याणकारी योजनाओं को जनता को केन्द्र में मानकर लागू करता है, तो वह लोककल्याणकारी राज्य कहलाता है ।
2. लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा:
लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा अत्यन्त प्राचीनकाल से ही हमारे देश में रही है । प्राचीन युग में राज्य को नैतिक कल्याण का साधन माना जाता था । रामायण काल में तो राम-राज्य की अवधारणा इसी लोककल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त पर आधारित थी ।
हमारे धार्मिक अन्यों में यहां तक लिखा है कि राजा अपनी प्रजा का हित नहीं चाहता और अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह नरक का अधिकारी होता है । चाणक्य हो या फिर अरस्तु या प्लेटो, इन्होंने भी लोक कल्याण कारी राज्य की अवधारणा को महत्त्व दिया है ।
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लोक कल्याण कारी राज्य से तात्पर्य किसी विशेष वर्ग का कल्याण न होकर सम्पूर्ण जनता का कल्याण होता है । इस तरह सम्पूर्ण जनता को केन्द्र मानकर जो राज्य कार्य करता है, वह लोक कल्याणकारी राज्य
है ।
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के सम्बन्ध में इंसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेस के विचार हैं: “लोककल्याणकारी राज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से है, जो अपने सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन रत्तर प्रदान करना अपना अनिवार्य उत्तरदायित्व समझता है ।” प्रो॰ एच॰जे॰ लास्की के अनुसार: “लोककल्याणकारी राज्य लोगों का ऐसा संगठन है, जिसमें सबका सामूहिक रूप से अधिकाधिक हित निहित है ।”
3. लोककल्याणकारी राज्य की विशेषताएं या लक्षण:
लोककल्याणकारी के आदर्श स्वरूप के लिए निम्नलिखित लक्षण या विशेषताओं की आवश्यकता अनिवार्य है:
1.आर्थिक सुरक्षा: इसके बिना लोककल्याणकारी राज्य का कोई महत्त्व नहीं है; क्योंकि सबके लिए रोजगार. न्यूनतम जीवन की गारण्टी, अधिकतम आर्थिक समानता होनी चाहिए । यदि शासन तन्त्र में राजसत्ता आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न लोगों के हाथों में होगी. तो वह लोककल्याणकारी राज्य की श्रेणी में नहीं आयेगा ।
2.राजनीतिक सुरक्षा की व्यवस्था: लोककल्याणकारी राज्य को चाहिए कि वह ऐसी व्यवस्था करे कि राजनैतिक शक्ति सम्पूर्ण रूप से जनता के हाथ में हो । शासन व्यवस्था लोकहित में हो ।
3. सामाजिक सुरक्षा: लोककल्याणकारी राज्य का प्रमुख लक्षण यह होना चाहिए कि वह सामाजिक सुरक्षा से साथ-साथ समाज में रंग, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, वंश, लिंग के आधार पर भेदभाव न करे ।
4. राज्य के कार्यक्षेत्र में वृद्धि: राज्य को लोककल्याण सम्बन्धी वे सभी कार्य करने चाहिए, जिससे नागरिकों की स्वतन्त्रता प्रभावित न हो और वे अपने कार्यक्षेत्र में पूर्ण क्षमता एवं स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य कर सके ।
5. विश्वशान्ति एवं वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना: लोककल्याणकारी राज्य का स्वरूप राष्ट्रीय न होकर अन्तर्राष्ट्रीय होता है । अत: राज्य विशेष को चाहिए कि वह विश्वकल्याण की भावना से सम्पूर्ण मानवता के लिए कार्य करे ।
4. लोककल्याणकारी राज्य के कार्य: लोककल्याणकारी राज्य के कार्य को मोटे तौर पर दो भागों: 1. अनिवार्य कार्य और 2. ऐच्छिक कार्य-में विभाजित किया जा सकता है । अनिवार्य कार्य तो प्रत्येक राज्य को अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए अनिवार्य रूप से करने पड़ते हैं । ऐच्छिक कार्य तो राज्य की परिस्थितियों एवं शासन के दृष्टिकोण पर निर्भर होते हैं ।
लोककल्याणकारी राज्य का दायित्व है कि वह ऐच्छिक व अनिवार्य दोनों को महत्त्व दे । लोककल्याणकारी राज्य के अनिवार्य कार्य हैं: 1. बाह्य आक्रमणों से राज्य की रक्षा करना । उस हेतु विभिन्न प्रकार के सैन्य उपकरणों एवं साधनों की भी व्यवस्था करना ।
2. राज्य का दूसरा अनिवार्य कार्य राज्य में शान्ति एवं सुव्यवस्था कायम करना, नागरिकों को कानून के तहत सुशासन प्रदान करना, पुलिस की व्यवस्था करना और नागरिकों के कर्तव्यों का नियमन करना है ।
3. लोककल्याणकारी राज्य को शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने के लिए स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्याय की व्यवस्था करनी चाहिए ।
4. लोककल्याणकारी राज्य को स्त्री-पुरुष, बच्चों तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का इस प्रकार नियमन करना चाहिए कि उनके बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न न हो । आर्थिक समानता के आधार पर नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना राज्य का अनिवार्य कार्य है ।
5. लोककल्याणकारी राज्य का अनिवार्य कर्तव्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और सद्भावना स्थापित कर विश्वशान्ति व वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को बढ़ाना है ।
6. सभी को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना, इसके साथ 14 वर्ष तक के लिए निःशुल्क अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना । विश्वविद्यालय, तकनीकी, औद्योगिक, महिला, प्रौढ़ शिक्षा की समुचित व्यवस्था करना ।
7. नागरिकों के स्वास्थ्य रक्षा हेतु समुचित उपाय करना ।
8. उद्योग एवं व्यापार पर नियन्त्रण करना ।
9. कृषि की उन्नति हेतु राज्य को उत्तम बीज, खाद एवं सिंचाई के समुचित साधनों की व्यवस्था करना, कृषकों को कम ब्याज पर देना ।
10. यातायात एवं संचार के लिए सड़कों, रेलों, जल तथा वायुमार्गो, डाक, तार, टेलीफोन, रेडियो, दूरदर्शन आदि की व्यवस्था करना ।
11. श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए श्रमहितकारी कानून बनाना ।
12. शारीरिक रूप से अपंग एवं वृद्ध व्यक्तियों के लिए इस प्रकार शिक्षण और प्रशिक्षण की व्यवस्था करना कि वह अपनी जीविकोपार्जन स्वयं कर सकें । इसके लिए वृद्धों और अपंगों के लिए पेंशन इत्यादि की व्यवस्था करना ।
13. प्रत्येक राज्य में कला, साहित्य, विज्ञान को प्रोत्साहन देना ।
14. नागरिकों के लिए आमोद-प्रमोद व मनोरंजन की व्यवस्था करना ।
15. प्राकृतिक सम्पदा के अधिकाधिक उपयोग हेतु राज्य को प्रेरित करना ।
16. सामाजिक कुरीतियों में सती प्रथा, बालविवाह, बहुविवाह, अनमेल विवाह, दहेज प्रथा, मृत्युभोज, पर्दाप्रथा तथा धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध कानून बनाकर उसे समाप्त करना ।
17. बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों को रोटी, कपड़ा, मकीन जैसी जीवनरक्षक आवश्यक व मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना ।
18. सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए कार्य करना ।
19. आर्थिक नियोजन, निर्धनता का अन्त, उद्योग व्यापार एवं कृषि का नियमन एवं विकास करना ।
6. लोककल्याणकारी राज्य और भारत:
भारत एक लोककल्याणकारी राज्य है । प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल तक इसी लोककल्याण की भावना का निरन्तर विकास होता रहा है । महात्मा गांधी, नेहरू, राममनोहर लोहिया, विनोबा भावे आदि ने भारत को लोककल्याणकारी राज्य बनाने हेतु विभिन्न प्रयास किये । स्व॰ इंदिरा गांधी ने बीस सूत्रीय कार्यक्रम लागू कर, स्व॰ राजीव गांधी ने भी लोककल्याणकारी राज्य के स्वप्न को आगे बढ़ाया ।
वर्तमान प्रधानमन्त्री भी इसी दिशा में कार्य कर रहे हैं । समाजवाद, धर्मनिरपेक्षतावादी, सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना तथा अवसरों की समानता लोककल्याणकारी राज्य भारत के ही हैं । राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व सिद्धान्त ऐसे दिशा निर्देश हैं, जो भारत को लोककल्याणकारी राज्य के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं ।
7. उपसंहार:
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि लोककल्याणकारी राज्य जनता की भलाई के लिए ही कार्य करता है । लोककल्याणकारी राज्य अपनी नीतियों, सिद्धान्तों और आदर्शो में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करता है, जिससे व्यक्तिगत एवं सामूहिक कल्याण सम्भव हो सके ।
राज्य के नागरिकों को ऐसे पर्याप्त अवसर सुलभ हो सकें, जिससे वे अपना सर्वांगीण विकास कर सकें । लोककल्याणकारी राज्य अपने सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सुरक्षा प्रदान करता है, जो सार्वजनिक हित, सार्वजनिक सुरक्षा एवं सार्वजनिक उत्थान के लिए समर्पित होता है ।