विजयलक्ष्मी पण्डित  की जीवनी । Biography of Vijaya Lakshmi Pandit in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका आदर्श जीवन चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

ADVERTISEMENTS:

विजयलक्ष्मी पण्डित भारत की बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न महिलाओं में से एक थीं । वे राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी थीं । रूस और अमेरिका में भारतीय राजदूत के पद पर रहते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का अध्यक्ष बनने का गौरव भी हासिल किया था ।

2. उनका आदर्श जीवन चरित्र:

श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित का जन्म आनन्द भवन इलाहावाद में 18 अगस्त 1900 को हुआ था । उनके पिता मोतीलाल नेहरू तथा माता स्वरूप रानी देवी व भाई जवाहरलाल नेहरू का प्रभाव विजयलक्ष्मी के व्यक्तित्व निर्धारण पर पड़ा ।

भाई जवाहर की तरह उनका प्रारम्भिक जीवन भी एक राजकुमारी-सा व्यतीत हुआ । उन्होंने घर पर रहकर अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी । वह शिक्षा के साथ-साथ राजनीति साहित्य, घुड़सवारी आदि में भी रुचि लेती थीं । उनका परिवार राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था । अत: उन पर उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था ।

वह सक्रिय राजनीति में महात्मा गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होकर आयी थीं । उनका विवाह सन् 1921 में श्री रणजीत सीताराम पण्डित, जो कि एक सुप्रसिद्ध वकील, इतिहासकार थे, उनसे हुआ । उनकी 3 पुत्रियां चन्द्रलेखा, नयनतारा और रीता थीं ।

ADVERTISEMENTS:

उनके मन में साधारण गृहिणी बनकर अपना जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा देश की सेवा में जीवन देने का ऐसा विचार आया कि सर्वप्रथम 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में गांधीजी के साथ जेलयात्रा पर गयीं । फिर 1934 में इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड की सम्मानित सदस्य निर्वाचित हईं, साथ ही शिक्षा समिति का अध्यक्ष पद भी उन्हें प्राप्त हुआ । 1935 एवं 1937 में केबिनेट स्तर के चुनावों में शासन मन्त्री बनीं ।

उन्होंने गांवों की दशा सुधारने के लिए पंचायत राज व्यवस्था अधिनियम भी पारित करवाया । 1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में 4 माह जेल में बिताये । 1942 के ”भारत छोड़ो आन्दोलन” में उन्हें अस्वस्थतावश 9 माह उपरान्त रिहा कर दिया गया ।

रिहा होते ती उन्होंने अकाल पीड़ित भारतीयों की सेवा हेतु ”बंगाल राहत कोष” भी गठित किया । सन् 1944 में उन्हें अपने पति के स्वर्गवास का दुःख झेलना पड़ा । वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष भी रही थीं ।

सन् 1945 में सेनफ्रांसिसको के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में उन्होंने भारतवासियों के प्रति अमेरिकी लोगों की दुर्भावना को अपने प्रभावशाली वक्तव्य द्वारा दूर करने का प्रयास किया । 1946 में उन्हें भारतीय शिष्ट मण्डल की अध्यक्षा व प्रतिनिधि के रूप में न्यूयार्क में सम्पन्न होने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में भेजा गया ।

ADVERTISEMENTS:

दक्षिण अफ्रीकी सरकार के द्वारा भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों का ऐसा मार्मिक वर्णन किया कि अमेरिका के समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर उन्हें साहसिक नारी के रूप में स्थान दिया गया । 1953-1954 में संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा की अध्यक्षता की ।

देश स्वतन्त्र होने के बाद विजयलक्ष्मीजी ने 1949 से 1952 तक अमेरिका में भारतीय राजदूत, 1954 से 1961 तक ब्रिटेन में उच्चायुक्त तथा स्पेन और आयरलैण्ड के राजदूतों के पद पर अपनी सेवाएं प्रदान की । 1962 में महाराष्ट्र की गवर्नर रहीं । 1967 में लोकसभा सीट फूलपुर से निर्वाचित हुईं ।

कुछ समय तक एकाकी जीवन व्यतीत कर 1975 में उन्होंने इन्दिरा गांधी के आपातकाल के विरुद्ध जनता पार्टी के समर्थन में खुलकर प्रचार किया । इसके पश्चात् इन्दिरा गांधी और उनके बीच कटुता इतनी अधिक बढ़ी कि इन्दिरा गांधी ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद उनकी घोर उपेक्षा करनी शुरू कर दी थी, जिससे व्यथित होकर उन्होंने राजनीति से लगभग सन्यास ही ले लिया था । अपने जीवन का अन्तिम समय राजपुर में बिताया, जहां 2 दिसम्बर 1990 में उनका निधन हो गया ।

3. उपसंहार:

श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित को अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टर की मानद उपाधि से भी विभूषित किया गया । वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, वक्ता, मन्त्री, राजदूत, देशभक्त महिला होने के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महिला थीं । उन्होंने ”सो आयी बिकेम ए मिनिस्टर”, ”प्रिजन डेज”, ”द स्पोक ऑफ हैप्पीनेस” आदि पुस्तकें लिखकर कुशल लेखकीय व्यक्तित्व का परिचय दिया । हर भारतीय महिला को इन पर गर्व रहेगा ।

Home››Biography››