संतोष यादव की जीवनी | Santosh Yadav Kee Jeevanee | Biography of Santosh Yadav in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय एवं उपलब्दियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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हमारे देश भारत में ऐसी प्रतिभाओं की कमी नहीं रही है, जिन्होंने अपने अदम्य साहस व आत्मबल से कुछ ऐसे कार्य कर दिखाये हैं, जिसे देखकर दांतों तले उंगली दबाये बिना नहीं रहा जा सकता है । ऐसी ही प्रतिभाओं में महिला पर्वतारोही सन्तोष यादव का नाम आता है ।

वह विश्व की सबसे कम उम्र वाली महिला हैं, जिन्होंने माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता अर्जित की । यद्यपि सन्तोष यादव, बछेन्द्रीपाल के बाद भारत की दूसरी तथा विश्व की दसवीं पर्वतारोही महिला हैं, जिन्होंने विश्व के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने में सफलता प्राप्त की है ।

2. जन्म परिचय एवं उपलब्धियां:

सन्तोष यादव के पिता का नाम सूबेदार रामसिंह यादव और माता का नाम श्रीमती चमेली देवी है । सन्तोष ने बी॰ए॰ की परीक्षा महारानी लक्ष्मीबाई जयपुर से 1980 में उत्तीर्ण की । सन्तोष को पर्वतारोहण का शौक बचपन से ही था । अत: इन्होंने सन् 1986 में उत्तर काशी से पर्वतारोहण का बुनियादी प्रशिक्षण भी लिया था ।

अगस्त 1989 में इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 9 देशों के 31 सदस्यों के नूनकुण्ड अभियान के अन्तर्गत 6600 मीटर ऊंचे व्हाइट पर्वत शिखर पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की । इसमें सन्तोष यादव सर्वप्रथम पहुंचने वाली प्रथम महिला थीं ।

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1990 में काराकोरम शृंखला की सासर कागंरी पीक पर भारत ताईवान के संयुक्त तत्त्वाधान में 3 भारतीयों व 4 जापानियों ने पहुंचने में सफलता प्राप्त की । इस चोटी पर पहुंचने वाली सन्तोष यादव विश्व की सर्वप्रथम महिला थीं ।

सन् 1991 में कंचनजंघा शिखर पर सफलतापूर्वक चढ़ने के लिए सन्तोष को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में सबइंस्पेक्टर पर से इंस्पेक्टर पद पर पदोन्नत कर दिया । 25 जनवरी 2000 को इन्हें पद्‌मविभूषण से अलंकृत किया गया ।

अर्जेटाइना के एकोंन्वागुआ के पर्वत शिखर के पर्वतारोहण के लिए इनके नेतृत्व में प्रथम भारतीय दल जनवरी 1998 में भेजा गया । दो बार एवरेस्ट विजय करने के कारण इन्हें के॰के॰ बिड़ला फाउण्डेशन खेल के विशेष पुरस्कार देने की घोषणा की गयी । 19 अप्रैल 2001 को लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस द्वारा सन्तोष को सम्मानित किया गया ।

3. उपसंहार:

सन्तोष यादव दो बार विश्व की कम उम्र वाली माउण्ट एवरेस्ट पर फतेह पाने वाली महिला हैं । चार बार असफलता का मुंह देखकर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 12 मई 1992 को दोपहर 12.30 बजे माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल रहीं । सफलता साहसी लोगों के कदम चूमती है, यही वास्तविक सत्य है ।

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