संत मत्स्येंद्रनाथ की जीवनी | Biography of Saint Matsyendranath in Hindi!
मत्स्येन्द्रनाथ का भगवान् शंकर के भक्तों में विशिष्ट स्थान है । समस्त मानव जगत में शिव भक्ति का अलख जगाने वाले मत्स्येन्द्रनाथ की जन्मकथा अत्यन्त चमत्कारिक है । एक बार भगवान् शंकर समुद्र तट पर विचरण करते हुए पार्वतीजी को एक अमर कथा सुना रहे थे ।
कथा सुनते-सुनते पार्वतीजी को एक झपकी-सी आ गयी । कथा सुनने के पश्चात् हुंकारा देने का जो कार्य पार्वतीजी को करना था, वह कार्य एक अण्डे से निकले तोते ने कर दिया । उसी समय महादेवजी ने देखा कि एक विशालकाय मत्स्य बालक को निगल गया था । भगवान ने मन्त्र प्रयोग कर उस मत्स्य को जल से बाहर बुलाया ।
तभी वह रूपवान बालक उस मत्स्य के मुख से निकलकर देवी पार्वती और भगवान् शिव के चरणों में जा गिरा । महादेवजी ने पार्वती से कहा कि यह तो तुम्हारा पुत्र है । तुम इसका लालन-पालन करो । पार्वती ने उस बालक को अत्यन्त प्रेमपूर्वक गोद में उठाकर कहा: “जगत में तुम्हारा यश विख्यात होगा ।” ऐसा करके शंकर-पार्वती अन्तर्ध्यान हो गये ।
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बालक समुद्र तट के रास्ते कामाक्षा देवी के स्थान जा पहुंचा । वहां देवी को प्रसन्न कर वर प्राप्त करते हुए बद्रीकाश्रम पहुंचा । वहां पर शंकर-पार्वती की कठोर तपस्या केवल वायु का आहार लेकर करने लगा । इन बारह वर्षो में उसका शरीर पूरी तरह से सूख गया । महादेवजी उसकी तपस्या पूर्ण करने के उपरान्त उसे वर देने चले आये ।
उसने भगवान् शिव से कहा कि: ”आप अपना स्वरूप मुझे प्रदान करें ।” शंकरजी ने तथास्तु कहा । इस तरह महादेवजी ने कुण्डल आदि पहनाकर बालक का नाम मत्स्येन्द्रनाथ रखा । वह शिव भक्ति का प्रचार करता हुआ जगन्नाथपुरी आ पहुंचा ।
यहां पर भिक्षावृत्ति के साथ-साथ शिव भक्ति का प्रचार किया । इस तरह मत्स्येन्द्रनाथ शिव भक्तों में बड़ी श्रद्धा से पूजा जाता है । देवी पार्वती का दिया हुआ आशीर्वाद सफल हुआ । वह संसार में यशस्वी तथा अपने कार्य को पूर्ण करता हुआ देवलोकवासी हो गया ।