संत रामदास की जीवनी | Biography of Saint Ramdas in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका जन्म परिचय ।

3. उनका चमत्कारिक जीवन ।

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4. उनकी रचनाएं ।

5 उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

महाराष्ट्र के महान् सन्त स्वामी समर्थ गुरु रामदास बड़े महात्मा, साधु ही नहीं, अपितु विद्वान् कवि, राजनीतिज्ञ और संगठनकर्ता भी थे । तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक बुराइयों को दूर करने में तथा सामान्य जनता के लिए सचाई का मार्ग प्रशस्त करने में उनकी महती भूमिका रही है ।

2. उनका जन्म परिचय:

स्वामी समर्थ रामदासजी का जन्म हैदराबाद राज्य के मराठवाड़ा प्रदेश में जांब नाम के एक कस्बे में चैत्र शुक्ल 9, {रामनवमी} के दिन अप्रैल 1608 में दोपहर बारह दजे हुआ था । उनके पिता का नाम सूर्याजीपंत ठोसर और गाता का नाम राजूबाई था । दोनों के धार्मिक, चारित्रिक संस्कारों का प्रभाव बालक नारायण, अर्थात् रामदास पर पड़ा ।

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उनके पिता, जो गांव के मुखिया कहलाते थे, सूर्य के परमभक्त थे । सूर्य की 36 वर्षो तक की उपासना के बाद उन्हें सूर्य भगवान् ने स्वप्न में प्रसन्न होकर वरदान दिया कि तुम्हारे दो तेजस्वी पुत्र होंगे । उनके दो पुत्र-बड़ा गंगाधर और छोटा नारायण हुए । नारायण आगे चलकर समर्थ रामदास के नाम से मशहूर हुए ।

बाल्यावस्था से ही उनकी स्मरणशक्ति अत्यन्त तेज थी । सामान्य बच्चों की तरह उन्हें खेलना-कूदना भाता था । बाल्यावस्था में पिता सूर्याजी का देहावसान हुआ, तो गाता राजूबाई ने दोनों को पढ़ाया-लिखाया ।

उनके भाई गंगाधरपंत ईश्वर भक्त थे ।

उनके पास जो गुरामन्त्र था, रामदास ने जब उसकी मांग की, तो बड़े होने पर देने का वतन पाने के बाद भी रामदास हठपूर्वक हनुमान मन्दिर में तपस्या करते बैठ गये । कहा जाता है कि 1673 की श्रावण शुक्ल अष्टमी को भगवान् राम हनुमान के साथ प्रकट हुए ।

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उन्होंने रामदास तथा उनके भाई को हिन्दू धर्म और समाज के कल्याण का आशीर्वाद दिया । बारह वर्ष की अवस्था में उनकी माता ने उन्हें विवाह के बन्धन में बांधना चाहा, किन्तु वे विवाह मण्डप से भाग    निकले ।

घर से भागकर 11 दिन की यात्रा में नासिक, पंचवटी पहुंचे और वहां टाकली ग्राम के पास एक अच्छी-सी गुफा में रहने लगे । गोदावरी नदी के बहते जल में सुबह-शाम गायत्री तथा राम नाग का जाप घण्टों खड़े रहकर करते ।

भिक्षा से जो कुछ प्राप्त होता, राम को भोग लगाकर उसके पश्चात् ही भोजन करते । यहीं पर उन्होंने नासिक के ब्राह्मणों से वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत का विधिवत ज्ञान प्राप्त किया इस तरह 12 वर्ष तपस्या में व्यतीत करते हुए कई ग्रन्धों की रचना की ।

3. उनका चमत्कारिक जीवन:

एक दिन रामदास गोदावरी नदी   में  खड़े होकर जाप कर रहे थे, तभी एक ब्राह्मणी विधवा सती होने से पूर्व नदी में स्नान करने चली थी । उसने रामदास को देखकर प्रणाम किया । रामदास ने बिना देखे ही उसे अष्टपुत्रवती सौभाग्यवती भव होने का आशीर्वाद दिया । तभी लोग स्त्री के पति के शव को वहां जलाने ले आये थे ।

रामदास ने आंखें खोलीं, तो उन्हें अपनी भूल मालूम हुई, किन्तु उन्होंने कुछ सोचे बिना भगवान् का नाम लेकर नदी का पवित्र जलन मृत पति के मुख में डाला । यह क्या, वह तो जीवित होकर उठ बैठा और रामनाम जपने लगा ।

ब्राह्मण दम्पती ने अपने पहले पुत्र को रामदास के चरणों में समर्पित कर दिया, जो आगे चलकर रामदास का प्रिय शिष्य उद्धव गोरचामी के नाम से विख्यात हुआ । समर्थ रामदास ने अब रामजी की आज्ञानुसार धर्म और समाज के कल्याण की राह ली । पूरे देश का भ्रमण करने का विचार किया । सर्वप्रथम टाकली में हनुमानजी की मूर्ति की स्थापना कर वहां उद्धव गोस्वामी को नियुक्त किया ।

12 वर्षो के भ्रमणकाल में वे काशी, प्रयाग, अयोध्या, मथुरा, वृन्दावन, द्वारिका, बद्रीनाथ, केदारनाथ, श्रीनगर, मानसरोवर, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, लंका, महाबलेश्वर, पैठण, पंढरपुर पहुंचे । हर स्थान पर रामचन्द्रजी तथा हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कर किसी धार्मिक व्यक्ति को उसके प्रबन्ध हेतु रखा ।

सारे देश में उनके शिष्यों और अनुयायियों का जाल फैल गया । शिवाजी को परेशान करने वाला औरंगजेब तथा उसके अत्याचार से मुक्ति का संकल्प उन्होंने लिया । अत: महाराज शिवाजी की शिक्षा-दीक्षा का भार उन्होंने अपने कन्धों पर लिया ।

शिवाजी की सहायता से हिन्दू स्वराज्य की स्थापना का संकल्प पूरा करने हेतु वे वहीं रह गये । शिवाजी उनके प्रिय शिष्यों में से एक थे । शिवाजी को कई बार उन्होंने अपनी चमत्कारिक शक्ति से मुगलों के अत्याचारों से बचाया ।

शिवा को एक अहंकारहीन राष्ट्रभक्त  मानव बनाने के साथ-साथ उनमें श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों का विकास किया । शिवाजी की मृत्यु के बाद उन्होंने उनके पुत्र संभाजी को सीधे मार्ग पर चलने की नसीहत दी थी । अपने पीछे शिष्यों की बहुत बड़ी संख्या छोड़ने वाले इस सन्त ने महाराष्ट्र में एक नया जोश उत्पन्न किया । उनके काल में हनुमान जयन्ती जैसे उत्सवों ने लोगो में धार्मिक जागति का सूत्रपात किया ।

4. उनकी रचनाएं:

रामदासजी ने जीवन से सम्बन्ध रखने वाले सभी विषयों पर रचनाएं कीं । उनके श्लोकों और पदों की संख्या 26,000 से कहीं अधिक है । उनका सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ “दासबोध” रामदासी सम्प्रदाय के लिए अत्यन्त पवित्र और महत्त्वपूर्ण  ग्रन्थ है । बालबोध में उन्होंने अक्षरों तथा लिपि की सुडौलता से सम्बन्धित अनेक उदाहरण दिये हैं ।

इसके अलावा करुणाष्टक, एकवीस समासी, मनाचे श्लोक लिखे । इन श्लोकों का  महत्व ऐसा था कि एक  बार रामदास मठ में सैकड़ों साधु भोजन करने एक साथ आ धमके । रामदास का उच्चारण करते हुए भिक्षा मांगने का आदेश दिया । शिष्यों ने ऊंची आवाज में जय जय रघुवीर समर्थ के जयघोष के साथ भिक्षा मांगी थी । हजारों के लिए अनाज जुट गया । आज भी इरम श्लोक का श्रद्धापूर्वक उच्चारण किया जाता है ।

5. उपसंहार:

सन्त समर्थ गुरु रामदास स्वामी महाराष्ट्र के सच शिरोमणि कहलाते हैं । धर्म, समाज, राजनीति तथा मानवमात्र की सेवा के लिए उन्होंने जो कुछ किया, वह नि:सन्देह सभी के लिए प्रेरणास्पद रहेगा । सच जन्म लेते ही हैं परमार्थ के लिए ।

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