सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी | Subhadra Kumari Chauhan Kee Jeevanee | Biography of Subhadra Kumari Chauhan in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. जन्म एवं कृतित्व ।
3. भावपक्षीय एवं कलापक्षीय विशेषता ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
सुभद्रा कुमारी चौहान हिन्दी की उन महान् कवयित्रियों में से एक हैं, जिन्होंने राष्ट्रीयता, देश-प्रेम, सामाजिक अन्धविश्वासों, कुप्रथाओं के साथ-साथ नारी सुलभ भावनाओं को अपनी अभिव्यक्ति का विषय बनाया । वह एक सफल राष्ट्र सेविका, कवयित्री, सुशील गृहिणी एवं सहृदय माता थीं ।
2. जन्म एवं कृतित्व:
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म सन् 1905 को प्रयोग जिले के त्रिहालपुर गांव में हुआ था । उन्होंने अपनी शिक्षा प्रयाग से ही पूर्ण की । इसके बाद वह सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन में भाग लेने हेतु अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर राजनीति में सक्रिय रूप से कूद पड़ी ।
अपने राजनैतिक कार्यों के कारण वह जेल भी गयीं । विद्यार्थी जीवन से ही उन्हें कविता लिखने में काफी रुचि रही थी । सुभद्राजी का विवाह खण्डवा निवासी लक्ष्मण सिंह के साथ हुआ था । दाम्पत्य जीवन में बंधकर भी उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेना नहीं छोड़ा ।
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कलकत्ता अधिवेशन में उनके भाषणों को सुनकर लोगों में राष्ट्रीय भावना का ऐसा जोश पैदा हो गया था कि वे स्वतन्त्रता हेतु मन, कर्म, वचन से इस हेतु प्रेरित हो गये । उनके पति लक्ष्मण सिंह राष्ट्र सेवक थे उन्होंने ‘कर्मवीर’ नाम की पत्रिका का सम्पादन कर जन-जागरण का कार्य किया ।
‘कर्मवीर’ तत्कालीन समय में राष्ट्रीय भावना को छापने वाली एक महत्त्वपूर्ण पत्रिका थी । श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं ”त्रिधारा” एवं ”मुकुल” में संग्रहित हैं । उनकी कहानियां-बिखरे मोती, उन्मादिनी में संग्रहित हैं ।
3. भावपक्षीय एवं कलापक्षीय विशेषताएं:
भावपक्ष की दृष्टि से सुभद्राजी की कविताओं को मुख्यत: दो भागों में बांटा जा सकता है । एक राष्ट्रप्रेम की कविताएं, जिनमें असहयोग आन्दोलन में भाग लेने वाले वीरों की बलिदान गाथा है । इनमें ”झांसी की रानी लक्ष्मीबाई” कविता आज भी सम्पूर्ण देशवासियों का कण्ठहार बनी हुई है ।
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बुंदेलों हरबोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी । खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ।।
इस तरह वीरों की विशेषता बताते हुए उन्होंने लिखा है: बढ़ जाता है मान वीर का रण में बलि बलि होने से । मूल्यवती होती है सोने की । भस्म यथा सोने की ।। दूसरे वर्ग में उनकी कविताओं का विषय पारिवारिक जीवन है । ऐसी कविताओं में पति-प्रेम की भावनाओं की कमनीय अभिव्यक्ति है । दाम्पत्य जीवन पर केन्द्रित उनकी एक कविता में भावों की कितनी सुन्दर व्यंजना है ।
”कैसे कहं दिया कि मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊं? इतने वर्षों का साथ तुम्हारा” कैसे कह दिया कि मैं तुम्हें छोड़ चली जाऊं ।। वात्सल्य भाव की अभिव्यक्ति करती हुई उनकी कविता में ”अपनी बिटिया के प्रति” स्नेहिल भाव कितना सहज एवं मार्मिक बन पड़ा है । मिट्टी खाकर आयी हुई बिटिया को देखकर उनकी भावना ऐसे व्यक्त हुई है…
मां ओ ! कहकर बुला रही थी, मिट्टी खाकर आयी थी । कुछ मुंह में कुछ लिये हाथ में, मुझे खिलाने आयी थी । मैंने पूछा यह क्या लाई, बोल पड़ी वह मां काओ । हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा- ”तुम्हें खाओ ।”
कलापक्ष की दृष्टि से उनकी भाषा सरल, सुबोध साहित्यिक हिन्दी है, जिसमें अलंकार का प्रयोग स्वाभाविक हुआ है । आज, प्रसाद, माधुर्य, अमिधा, लक्षणा, व्यंजना का समन्वित प्रयोग उनकी रचनाओं में मिलता है । सुभद्रा कुमारी चौहान स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद म॰प्र॰ विधानसभा की सदस्या भी रही थीं । 18 फरवरी 1948 को एक कार दुर्घटना में वह चल बसीं ।
3. उपसंहार:
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान एक महान् देशभक्त, समाज सुधारक व सफल कवयित्री थीं । ”झांसी की रानी” शीर्षक कविता ने हिन्दी साहित्य की अमर कवयित्री बना दिया । उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व सभी के लिए आदर्श एवं प्रेरणा स्रोत रहेगा ।