सेंट रविदास की जीवनी | Biography of Saint Ravidas in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय व उनके चमत्कार ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

ADVERTISEMENTS:

इस संसार में सन्त एवं महात्माओं ने उच्चे जाति में न जन्म लेकर निम्न कुल में जन्म लेकर यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि जाति या धर्म से बड़ा धर्म मानवता है । सच्ची श्रद्धा और भक्ति से कि गयीं मानव सेवा और ईश्वर सेवा ही जीवन की सार्थकता है । ईश्वर किसी जाति विशेष का नहीं, वह तो अछूतों और दलितों के हृदय में भी वास करता है ।

2. जन्म परिचय व उनके चमत्कार:

सन्त रैदास का जन्म एक चर्मकार परिवार में 1456 को वाराणसी में हुआ था । उनके पिता रघुजी और माता विनया अत्यन्त ही दयालु एवं धार्मिक विचारों वाले थे । सन्त रैदास (रविदास) का जन्म ऐसे ही परिवार में हुआ था । बाल्यावस्था से ही रैदास का मन ईश्वर-भक्ति की ओर उम्मुख हो चला था ।

विवाह करने की इच्छा न होते हुए भी माता-पिता का आदेश मानते हुए उन्होंने लोणा नाम की कन्या से विवाह किया, किन्तु अधिक दिनों तक वे गृहस्थी के बन्धन में बंधकर नहीं रह सके । रैदास का जीवन निम्न कुल में जन्म लेने के कारण अत्यन्त संघर्षो में बीता । फिर भी उन्होंने अपनी सत्यनिष्ठा, ईश्वर-भक्ति को कभी नहीं छोड़ा ।

जूतियां-चप्पलें बनाते-बनाते ईश्वर-साधना करना ही उनके जीवन का ध्येय था । जब कोई सन्त-महात्मा उनके द्वार पर उमते, वे बिना दाम लिये उनके लिए जूतियां तथा चप्पलें बना दिया करते थे । कहा जाता है कि उन्होंने अपनी कुटिया के पास भगवान् की एक मूर्ति रखकर उस पर छप्पर डलवाया था ।

ADVERTISEMENTS:

इससे प्रसन्न होकर भगवान् ने साधु का रूप धारण करके उनकी दरिद्रता को दूर करने हेतु पारस पत्थर प्रदान किया । रैदासजी ने उस पत्थर को घर के छप्पर पर रख दिया, ताकि उनके मन में धन के प्रति मोह न जागे ।

चप्पल-जूते सीते हुए भगवान की भक्ति करते हुए रैदास को देखकर एक ब्राह्मण ने उनकी ईश्वर भक्ति पर ताना मारा कि: ”मेरी तरह गंगा जाकर स्नान-ध्यान करके साधना करोगे, तो ही ईश्वर मिलेगा ।”

रैदास ने कहा:

”मुझे गंगा तक जाने की कोई आवश्यकता नहीं है । मन चंगा तो कठौती में गंगा ।”

ADVERTISEMENTS:

ब्राह्मण उपहास कर ही रहा था कि चमड़ा धोने वाली कठौती से गंगाजी का हाथ सोने और मोतियों से जड़े कंगन के साथ प्रकट हुआ । रैदासजी ने वह कंगन ब्राह्मण के मांगने पर दान में दे दिया । कंगन पाकर ब्राह्मण ने यह झूठा प्रचार किया कि गंगा गैया ने उनकी भक्ति से प्रकट होकर यह कंगन उन्हें दिया है ।

यह कंगन रानी तक जा पहुंचा, तो उसने वैसे ही दूसरे कंगन की मांग ब्राह्मण से कर डाली । ब्राह्मण रोता-गिड़गिड़ाता हुआ रैदास के पास जा पहुंचा । रैदासजी ने गंगाजी से प्रार्थना कर दूसरा कंगन ब्राह्मण के लिए मांगा । उसे लेकर ब्राह्मण रानी के पास गया, उन्हें कंगन देकर किसी तरह अपनी आफत में फंसी जान बचायी ।

एक बार की बात है । सन्त रैदास ने कीर्तन-भजन के पश्चात् प्रसाद अपने हाथों से वितरित किया । वहां खड़े सेठजी ने रैदास के हाथों प्रसाद तो ले लिया, पर उसे धृणावश बाहर फेंक दिया । सौभाग्य से वह एक कुष्ठ रोगी पर जा गिरा ।

प्रसाद के चमत्कार का परिणाम यह हुआ कि कुष्ठ रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो गया और सेठजी बीमार हो गये । सन्त की शरण में जाने पर उनकी आत्महीनता और बीमारी ठीक हो सकी । कहा जाता है कि 120 वर्ष तक का जीवन जीकर रैदासजी ने अपने अन्तिम समय में शरीर का  चर्म उतारकर अपना यज्ञोपवीत दिखाया, ताकि लोगों के मन से जातीय भेदभाव दूर हो सके ।

3. उपसंहार:

रैदासजी सच्चे ईश्वर भक्त थे । शक्ति के बिना वे अन्न-जल तक ग्रहण नहीं करते थे । उनके चमत्कारिक जीवन से हम सभी मनुष्यों को यह प्रेरणा मिलती है कि ईश्वर सच्चे हृदय में ही बसता है । रैदासजी के प्रमुख शिष्यों में कबीर, धन्ना, पीपा तथा मीराबाई भी शामिल थीं । आज भी भारत के कोने-कोने में उनके अनुयायी लाखों की संख्या में मिलते हैं । रैदासजी रविदासजी के नाम से भी जाने जाते हैं ।

Home››Biography››