सेंट वल्लभचार्य की जीवनी | Biography of Saint Vallabhacharya in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. उनके मत तथा विचार ।
3. उपसंहार ।
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1. प्रस्तावना:
वल्लभाचार्य पुष्टि मार्ग के प्रवर्तक तथा अष्टछाप के प्रमुख कवि थे । उन्होंने विष्णुस्वामी सम्प्रदाय की स्थापना की । दार्शनिक दृष्टि से इसे शुद्धाद्वैतवाद भी कहा जाता है । साहित्यिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से राम तथा कृष्ण की उपासना का प्रचार करने वाले इस सम्प्रदाय को भक्तिकाल का स्वर्णयुग कहा जाता है ।
वल्लभाचार्यजी का जन्म 1479 को रायपुर जिले के चम्पारन नामक स्थान में हुआ था । उनके पिता तेलंग ब्राह्मण थे । वे अपने समय के तेजस्वी, प्रतिभा सम्पन्न महात्मा थे । सम्राट अकबर भी उनसे प्रभावित थे ।
2. उनके मत तथा विचार:
वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैतवाद के समर्थक थे । ब्रह्म को माया से अलिप्त मानते थे । ब्रह्म शुद्ध है । जीव मुक्त अणु है । जड़-जगत न तो उत्पन्न होता है, न नष्ट होता है । भगवान के पोषण और प्राप्ति का साधन भक्ति है ।
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मर्यादा और पुष्ट भक्ति ही श्रेष्ठ है । भगवान् को जब रमण करने की इच्छा होती है, तब वे अपने गुणों को तिरोहित करके जीव रूप को अपनी इच्छानुसार धारण करते हैं । उनके प्रमुख ग्राम्यों में सुबोधिनी टीका, श्रुंगार मण्डन, अणु भाष्य प्रमुख हैं ।
3. उपसंहार:
वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी आज भी कृष्णभूमि में मिलते हैं । वल्लभाचार्य के पुत्र गोस्वामी विट्ठलदास भी अपने पिता की तरह ही प्रतिभावान थे । इस सम्प्रदाय की सेवा पद्धति व भक्ति पद्धति ने वैष्णव धर्म की आस्था को बनाये रखा, जो गुजरात, राजस्थान में भी अपनी जड़ें जमाये हुए है । अष्टछाप के आठ कवियों में चार वल्लभाचार्य के तथा चार विट्ठलनाथ के समर्थक थे ।
प्राणीमात्र के प्रति प्रेम व अहिंसा की भावना इस भक्ति मार्ग का आदर्श है । उदार तथा शुद्ध हृदय भक्ति का प्रमुख आधार है । राम और कृष्ण के रूप, गुण, शील और चरित्र का जैसा वर्णन इस युग के कवियों ने किया, वैसा किसी ने नहीं किया ।