आर्यभट की जीवनी । Biography of Aaryabhatt in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. आर्यभट उघैर उनका जन्म परिचय 1

3. प्राचीन गणित व ज्योतिष के क्षेत्र में उनका योगदान 1

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

आर्यभट महान गणितज्ञ, ज्योतिषवेत्ता, खगोलशास्त्री के रूप में प्राचीन भारतीय इतिहास में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं । उन्होंने भारतीय गणित के साथ विश्व को, गणितीय सिद्धान्त दिया, जिसकी तत्कालीन समय में किसी अन्य देश के नहीं थी ।

आर्यभट ने दाशमिक पद्धति प्रयोग का सबसे प्राचीन भारतीय उदाहरण प्रस्तुत किया । उनकी इस अंकन पद्धति तीन भागों में बांटा गया था-अंकन दाशमिक पद्धति तथा शून्य का प्रयोग ।

2. आर्यभट और उनका जन्म परिचय:

आर्यभट का जन्म ई॰ सन 476 में पटनाख अर्थात् पाटलीपुत्र में हुआ था । कुछ उन्हें अश्मक जनपद के निवासी मानते हैं । यह जनपद गोदावरी उघैर नर्मदा के बीच स्थित था, जिसकी राजधानी पैठण थी । आर्यभट के सम्बन्ध में अन्य जानकारी, जैसे-उनके माता-पिता आदि नहीं मिलती ।

3. प्राचीन गणित व ज्योतिष के क्षेत्र में उनका योगदान:

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आर्यभट ने गणित तथा ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त की थी । इस शिक्षा को प्राप्त करने के उपरान्त आर्यभट ने एक पुरूाक-आर्यभटीय लिखी । इसमें 121 श्लोक हैं । गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और

गोलपाद । चार भागों में विभक्त इन पुस्तकों में ज्योतिष तथा गणित सम्बन्धी जानकारी मिलती है । उनके द्वारा प्रयुक्त की गयी अंकन पद्धति को अरबों ने अपनाया और पश्चिमी देशों तक इसका प्रचार किया ।

अंग्रेजी में भारतीय अंकमाला को अरबी अंक इअरेबिक  मरल ए कहते हैं, किन्तु अरब लोग इसे हिन्दसा कहते है । पश्चिम में इस अंकमाला का प्रचार होने के सदियों पहले से भारत में इसका प्रयोग हुआ । दाशमिक पद्धति का प्रयोग आर्यभट ने 376-500 ईसा पूर्व किया, जिसको अरबों ने भारत से सीखा । भारतीयों ने शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम किया ।

अरबवासियों ने इसे भारत से सीखा और यूरोप में फैलाया । बीजगणित में भारत और यूनान का योगदान था । आर्यभट ने त्रिभुज के क्षेत्रफल को जानने का नियम निकाला, जिसके फलस्वरूप त्रिकोमितीय का जन्म हुआ ।

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ज्योतिषशास्त्र में भी त्रिकोणमिति का प्रयोग किया जाता है । वर्तमान स्कूलों और कॉलेजों में आर्यभट की पद्धति पर ही आधारित त्रिकोणमिति को पढ़ाया जाता है । समकोण त्रिभुज की दो भुजाओं के अनुपात के लिए अंग्रेजी में साइन शब्द का प्रयोग होता है ।

यह आर्यभट के ज्या या जीवा से बना है । आर्यभट ने चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के कारणों का पता लगाया । उन्होंने अनुमान के आधार पर पृथ्वी की जिस परिधि का जो मान निकाला, वह आज भी शुद्ध मान है ।

उन्होंने बताया कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी घूमती है । पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है । इसीलिए खगोल में अन्तरिक्ष घूमता हुआ दिखाई पड़ता है ।

पृथ्वी के धुरी पर घूमने के कारण ही दिन-रात होते हैं । आर्यभट ने आकाश के ग्रह-नक्षत्रों की गतिविधियों के बारे में आखों से जो कुछ भी देखा था, उसे लिखा । उन्होंने कालक्रियापाद और गोलपाद में कालगणना और ज्योतिषशास्त्र के फलादेश तथा पृथ्वी की परिधि का शुद्ध मान आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां लिखी हैं ।

4. उपसंहार:

आर्यभट वास्तव में एक महान गणितज्ञ, खगोलवेत्ता तथा ज्योतिषाचार्य थे । उन्होंने सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, पृथ्वी के धुरी पर परिभ्रमण करने, दिन-रात होने की स्थिति, ग्रह-नक्षत्र सम्बन्धी जो महत्वपूर्ण जानकारियां तत्कालीन समय में दी थीं, वह आज भी उतनी ही सटीक है । उन्होंने गणितीय क्षेत्र में दाशमिक अंकन, शून्य तथा त्रिकोणमितीय पद्धतियां भारत को ही नहीं, विश्व को भी दीं ।

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