अल्फ्रेड नोबेल की जीवनी | Biography of Alfred Nobel in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. जन्म परिचय एवं उपलब्धियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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विश्व में अनेक महान व्यक्तित्व और वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने अपनी योग्यता और प्रतिभा से अर्जित की हुई धनराशि को परोपकार में खर्च कर दिया । उनमें से अल्फ्रेड नोबेल एक ऐसे वैज्ञानीक अपनी अपार धन-सम्पदा अपनी वसीयतनामे द्वारा वैज्ञानिकों के लिए समर्पित कर दी । डायनामाइट के आविष्कार से कमाई गयी धरा-सम्पत्ति को उन्होंने एक ट्रस्ट को मानव-कल्याण हेतु हृदय से दान में दे दिया ।
नोबेल फाउण्डेशन ट्रस्ट में संरक्षित उस धनराशि से उनके नाम पर विश्व का सर्वोच्च शनित पुरस्कार भौतिक, रसायन, चिकित्सा, साहित्य, अर्थशास्त्र और शान्ति के लिए प्रदान किया जाता है, जिसे ”नोबेल शान्ति पुरस्कार” के नाम से जाना जाता है । विश्व में अब तक लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में नोबेल शान्ति पुरस्कार गिल चुका है ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:
अल्फेड बर्नहार्ड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर, 1833 को स्वीडन के स्टॉकहोम में हुआ था । उनके पिता इमानुएल नोबेल एक आविष्कारक थे, पर वे अशिक्षित थे । जब अल्फेड की अवस्था 4 वर्ष की थी, तब उनके पिता को रूस जाना पड़ा । उसके पश्चात् 1859 में नाइट्रोग्लिसरीन फर्म के दिवालिया हो जाने पर नोबेल के पिता ने स्वीडन आकर नाइट्रोग्लिसरीन का उत्पादन प्रारम्भ कर दिया ।
1864 में कारखाने में विस्फोट हो जाने पर कई कामगार मजदूरों के साथ नोबेल के छोटे भाई की मृत्यु हो गयी थी । इमारत पूरी तरह से ध्वरत हो गयी । कारखाने की पुनर्स्थापना की अनुमति न मिलने की वजह से उन्होंने मालारेन सरोवर पर बांध निर्माण करके उत्पादन जारी रखा । उनका शोधकार्य नाइट्रोग्लिसरीन से सुरक्षित परिवहन पर केन्द्रित था ।
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एक दिन अचानक एक विशेष कार्बनिक पैकिंग में नाइट्रोग्लिसरीन अवशोषित होकर शुष्क पदार्थ में बदल गया । इस नयी खोज से वे आगे जाकर डायनामाइट का निर्माण करने में सफल हुए । अल्फ्रेड ने अपने घर पर रहकर विज्ञान, साहित्य, अर्थशास्त्र, रसायन, भौतिकी का अध्ययन किया ।
17 वर्ष की अवस्था में रूसी, फ्रेंच, जर्मनी, अंग्रेजी भाषाएं धाराप्रवाह बोलना सीख ली थीं । उनके पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे । केमिकल इंजीनियर बनाने के लिए उन्हें पेरिस भेजा गया । पेरिस के रसायनशास्त्री अरकानियो सुबरेरो से उनकी मुलाकात हुई, जिसने नाइट्रोग्लिसरीन का आविष्कार किया था ।
इस शक्तिशाली पदार्थ की एक बूंद को यदि टेबल पर रखकर हथोड़े से प्रहार किया जाये, तो वह भयंकर विस्फोट के साथ फट पड़ता था और हशौड़े का हैण्डल दूर तक छिटक जाता था । इस आविष्कार से सुबरेरो घायल हो चुके थे । 1852 में अल्पोड सेंट पीटर्सबर्ग लौटे, तो पिता और पुत्र ने इस दिशा में शोध प्रारम्भ कर दिया ।
स्टॉकहोम आकर खनिज तेल उद्योग में वे मालामाल हो गये । नाइट्रोग्लिसरीन का प्रयोग करके जब वे एक विस्फोटक तैयार कर रहे थे, तो 1864 में भयंकर विस्फोट के दौरान उनके भाई एमिल और उनके साथ खड़े मजदूर साथी मारे गये । इस भयंकर हादसे के बाद भी अल्फेड ने नाइट्रोग्लिसरीन का स्थायी व उपयोगी प्रयोग जारी रखा ।
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1866 में 33 वर्ष की अवस्था में अल्फ्रेड नाइट्रोग्लिसरीन से भरी हुई परखनली को उलट रहे थे कि परखनली अचानक नीचे जा गिरी । संयोगवश यह परखनली लकड़ी के बुरादे से भरे हुए डिबे में गिरी थी, जिसे लकड़ी के बुरादे ने सोख लिया था ।
यदि यह नीचे गिरा होता, तो नोबेल सहित प्रयोगशाला गे कार्यरत सभी लोग मर जाते । लकड़ी के बुरादे में मिली नाइट्रोग्लिसरीन की जाच करने पर यह पाया कि इसमें उतना विस्फोटक नहीं है, जितना कि तरल रूप में था ।
अत: उन्होंने नाइट्रोग्लिसरीन को सिलिका के साथ मिलाकर ऐसा पेस्ट तैयार किया, जिसे मनचाहे आकार की छड़ों में बदला जा सके । इन छड़ों का उपयोग विस्फोट करने के लिए आसान था । अल्फ्रेड ने डिटोनेटर का आविष्कार भी कर डाला ।
अपने आविष्कार किये गये विस्फोटक डायनामाइट का अब उसने व्यावसायिक इस्तेमाल करने का विचार किया । 1867 में उन्होंने डायनामाइट का ब्रिटिश पेटेन्ट, 1868 में अमेरिकी पेटेन्ट प्राप्त किया । 1889 में उन्होंने बेलिरटाइट नामक धुआरहित विस्फोटक बनाया । अपने 335 पेटन्टौं में उन्होंने कृत्रिम रबड़, चमडे तथा कृत्रिम रेशम का पेटेन्ट भी हासिल किया । उन्होंने विस्फोटकों का एक विशाल कारखाना बनाया ।
इसके बाद एक-से-एक कारखाने एक-से-एक नये-नये प्रयोग किये । उनके द्वारा तैयार किये गये विस्फोटकों से रेल-लाइनें बन रही थीं । पहाडों को खोदकर रारत्ते बनाये जाकर खदानें खोदी जा रही थीं । उनके पास काफी धन एकत्र हो गया था ।
1875 में प्रयोग करते समय अल्फेड की अंगुली कट गयी । उस पर उन्होंने कोलाडियान गोंद पदार्थ लगाया । नाइट्रोग्लिसरीन की कोलाडियान से किया द्वारा एक श्लेश्मी झिल्ली बन गयी थी । अब उन्होंने कोलाडियान को नाइट्रोग्लिइसरीन के साथ गरम किया, तो शक्तिशाली विस्फोटक बन गया, जिसका नाम उन्होंने डायनामाइट गम रखा ।
धीरे-धीरे अन्य स्थानों पर नोबेल ने विस्फोटक के कारखाने खोले, जिसके संचालन के लिए उन्हें दौड़-भाग करनी पड़ी, जिसगें उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया । वह अपनी खूबसूरत सचिव बर्था के प्रति आकर्षित होकर भी अपनी बात उससे नहीं कह पाये । उसने आस्ट्रिया गे जाकर अन्य युवक से विवाह रचा लिया । इस प्रकार नोबेल अविवाहित ही रह गये ।
अल्फ्रेड सोचते थे कि जब दुनिया के सारे देश शक्तिशाली हो जायेंगें, तो अपने आप शान्ति कायम हो जायेगी; क्योंकि एक-दूसरे को नष्ट करने और जीतने की इच्छा स्वत: ही समाप्त हो जायेगी, किन्तु ऐसा हो ने सका । अल्फ्रेड नोबेल एक कुशल आविष्यकारक ही नहीं थे, अपितु एक सफल उद्योगपति तथा मानव-शान्ति के समर्थक भी थे ।
उन्होंने कर्मचारियों के कल्याण हेतु उस समय पेंशन, बीमा, स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई थी । नोबेल ने असाधारण काम करने वालों के लिए अपनी सम्पत्ति का पूरा हिस्सा वसीयत के अनुसार दान में दे डाला । वैज्ञानिकों, साहित्यकारों आदि के साथ किसी किस्म का भेदभाव उनकी दृष्टि में नहीं था । वह कवि हृदय भी थे ।
उन्हें पुस्तकों का बड़ा शौक था । उनके निजी पुस्तकालय में विभिन्न दार्शनिकों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों की पुस्तकों का भण्डार था, उन्हें ताजीवन परिवार तथा उत्तम स्वास्थ्य की कमी खलती रही । अपने अन्तिम दिनों में डायनामाइट का उपयोग मानव हत्या के लिए हो रहा है, यह जानकर वह बहुत दुखी थे । 10 दिसम्बर, 1896 को इटली के सैनरेमो शहर में दुःखद मृत्यु हो गयी ।
अल्फेड की 92,00,000 डॉलर की सम्पदा विज्ञान तथा साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को प्रदान की जाती है । 1901 के प्रारम्भ में इस पुरस्कार राशि का मूल्य 8 लाख का गया था । यह पुरस्कार प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर को शान्ति के लिए स्त्रीका सरकार द्वारा दिया जाता है ।
वर्ष 1901 में उाल्पोड नोबेल की याद में पहली बार पुररकार पाने का श्रेय एक्स-रे किरण की खोज करने वाले डबखके शन्टजन को भौतिकी में, शान्ति के क्षेत्र में जीन॰एस॰ हुनेन्त तथा फेडरिक पासी को, साहित्य में सूली पूधोम को, रसायन के क्षेत्र में जे॰एच॰ वांटहॉफ को तथा चिकित्सा के लिए ई॰ए॰ वान बेहरिंग को मिला ।
प्रथम नोबेल पुररकार पाने वाली महिला मैडग क्यूरी थीं, जिन्हें भौतिक और रसायन दोनों में ही यह पुररकार मिला । उनकी दो पीढ़ियों ने 5 नोबेल पुररकार जीते । अब तक 5 भारतीयों को यह पुरस्कार पाने का गौरव हासिल हुआ है, जिनमें टैगोर, सी०वी० रामन, मदर टेरेसा, अमर्त्य सेन, चन्द्रशेखर वेंकटरामन हैं ।
3. उपसंहार:
अल्फ्रेड नोबेल आज भी इस संसार में अमर रहेंगे; क्योंकि उन्होंने मानवता के हितार्थ काम करने वाले महान् लोगों के लिए इतनी बडी धनराशि प्रदान करके अपने विशाल हृदय का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया । समस्त संसार उनके इस योगदान के लिए उन्हें आजीवन याद करता रहेगा ।
उनके डायनामाइट का प्रयोग आज भी सड़कें बनाने, सुरंग खोदने, बांध बनाने तथा शांति के लिए भी किया जाता है । युद्धों में विनाश के लिए प्रयोग किया जाने वाला डायनामाइट उनके लिए तौ अभिशापरचरूप था ।