भास्करचार्य की जीवनी | Biography of Bhaskaracharya in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. भारतीय विज्ञान जगत को उनकी देन ।

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

प्राचीन भारतीय विज्ञान यद्यपि तत्कालीन समय में अपने युग से कहीं आगे था, किन्तु कई मामलों में वह अन्धविश्वासों व संकीर्णताओं से घिरा हुआ था । भास्कराचार्य ने इसे नवीन वैज्ञानिक दृष्टि दी । उन्होंने सभी घटनाओं तथा वस्तुओं को विज्ञान की कसौटी पर कसने की एक्? सोच भी दी थी । खगोल तथा गणित सम्बन्धी उन्होंने जो जानकारियां उस समय दी थीं, उसे पश्चिमी विज्ञान 500 साल बाद ही हासिल कर पाया था ।

2. जन्म परिचय:

भास्कराचार्य का जन्म 12वीं सदी में कर्नाटक के बीजापुर नामक स्थान में हुआ था । उनके पिता महेश्वर भट्‌ट को गणित, वेद तथा अन्य शास्त्रों का अच्छा ज्ञान था । अपने पुत्र की असीमित प्रतिभा को पहचानकर उन्होंने बाल्यावस्था में ही उसे गणित तथा ज्योतिष की अच्छी शिक्षा प्रदान की ।

अपने पुत्र का नामकरण उन्होंने किया-भास्कराचार्य । भास्कराचार्य ने आठ वर्ष की अवस्था में सिद्धान्तशिरोमणि नामक ग्रन्थ लिखा । उनके इस  ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद भी किया गया । भास्कराचार्य ने संस्कृत भाषा में लिखी गयी इस पुरतक को सुबोध बनाने के लिए इसकी टीका लिखी, जिसे वासनाभाष्य नाम दिया गया ।

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सिद्धान्तशिरोमणि में चार अध्याय हैं । यह पुस्तक गणितीय ज्ञान की दृष्टि से अद्‌भुत थी । भास्कराचार्य के पुत्र लक्ष्मीधर हुए, जिन्होंने ज्योतिष व गणित में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था । कहा जाता है कि उस समय के कुछ ज्योतिषियों ने यह कहा था कि वह अपनी पुत्री लीलावती का विवाह न करें ।

उनके इस निर्णय को चुनौती देते हुए भास्कराचार्य ने शुभ मुहूर्त तय कर सही समय की सूचना हेतु नाड़िका यन्त्र स्थिर किया । यह एक तांबे का बर्तन होता था, जिसके पेंदे में एक छोटा छेद होता था, जिससे पानी बर्तन गे जमा होता था । निश्चित जल स्तर आने पर समय की गणना हो जाती थी ।

सज-धजकर लीलावती कौतूहलवश उस नाड़िका यन्त्र में झांकने लगी, तो उसके वस्त्र का मोती आकर यन्त्र के पेंदे में जाकर धंस गया, जिसकी वजह से पानी गिरना बन्द हो गया । शुभ  मुहूर्त का पता ही नहीं चल पाया ।

भास्कराचार्य ने अपनी दुखी पुत्री को सांत्वना  देने हेतु कहा कि मैं तुम्हारे नाम से एक ऐसा  ग्रन्थ लिखूंगा, जो अमर होगा । भास्कराचार्य ने सूर्यसिद्धान्त नामक जो ग्रन्थ लिखा, उसमें पाटीगणित, बीजगणित, गणिताध्याय, गोलाध्याय नामक चार अध्याय हैं । प्रथम दो गणित से तथा शेष दो ज्योतिष से सम्बन्धित थे, जिसमें बीजगणित तथा अंकगणित प्रमुख हैं ।

3. भास्कराचार्य की विज्ञान को देन:

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भारकराचार्य ने सारणियां, संख्या प्रणाली भिन्न, त्रैराशिक, श्रेणी, क्षेत्रमितीय, अनिवार्य समीकरण जोड़-घटाव, गुणा-भाग, अव्यक्त संख्या व सारिणी, घन, क्षेत्रफल के साथ-साथ शून्य की प्रकृति का विस्तृत ज्ञान दिया । पायी का गान 3.14166 निकाला, जो वास्तविक मान के बहुत करीब है । उनके द्वारा खोजी गयी तमाम विधियां आज भी बीजगणित की पाठ्‌यपुस्सकों में मिलती हैं ।

ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान में उन्होंने ग्रहों के मध्य व यथार्थ गतियां काल, दिशा, स्थान, ग्रहों के उदय, सूर्य एवं चन्द्रग्रहण विशेषत: सूर्य की गति के बारे में महत्त्वपूर्ण खोजें कीं । अपने सूर्यसिद्धान्त में उन्होंने यह समझाया था कि पृथ्वी गोल है, जो सूर्य के चारों ओर निश्चित परिपथ पर चक्कर लगाती है । भास्कराचार्य ने ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति सम्बन्धी तथ्य बताये ।

उन्होंने गोले की सतह पर घनफल निकालने की विधि भी बतायी । आंखों के सहारे रात-भर जाग-जागकर उन्होंने गणना के आधार पर सूर्योदय, सूर्यास्त, गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी जो तथ्य संसार के लिए दिये, वह प्रशंसनीय हैं । उनके  ग्रन्थ लीलावती का अनुवाद फैजी ने फारसी  में तथा 1810 में एच॰टी॰ कोलब्रुक ने अंग्रेजी में किया । उनके सिद्धान्तशिरोमणि का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया ।

4. उपसंहार:

गणित तथा खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भास्कराचार्य का स्थान युगों तक अमर रहेगा । भास्कराचार्य की महत्त्वपूर्ण देन विज्ञान को अन्धविश्वासों से बाहर निकालकर नयी सोच, नयी दृष्टि देने की थी । गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले वे संसार के सर्वप्रथम वैज्ञानिक हैं, किन्तु इसका श्रेय न्यूटन को ही, दिया जाता है, जो कि गलत है । ऐसे महान् वैज्ञानिक का अवसान 65 वर्ष की आयु में हो गया ।

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