डॉ॰ हजारिप्रसाद द्विवेदी । Biography of Dr. Hariprasad Dwivedi in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदीजी हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार, संस्कृत के आचार्य, अनुवादक एवं श्रेष्ठ आलोचक थे । आचार्य द्विवेदी श्रेष्ठ आत्मकथा लेखक भी रहे हैं । द्विवेदीजी ने हिन्दी समीक्षा को नयी उदार और वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान की ।
उन्होंने ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय समीक्षा पद्धति का श्रीगणेश किया तथा सामाजिक परिस्थिति एवं सांस्कृतिक चेतना लोकजीवन एवं राजनीतिक उथल-पुथल को ‘दृष्टि’ में रखते हुए साहित्य का परीक्षण किया । तटस्थतापूर्ण चिन्तन, पूर्वाग्रह रहित समीक्षा पद्धति एवं पूर्ण पाश्चात्यवादी व समन्वयवादी समीक्षा शैली ने उनको पहचान दी ।
द्विवेदीजी ने आलोचना हेतु इतिहास, धर्मशास्त्र, विज्ञान, पुराण, प्राच्य-विद्या, जीवविज्ञान, मनोविज्ञान, प्रजननशास्त्र, नृत्यशास्त्र, पुरातत्व, नीतिशास्त्र, कानून, राजनीतिशास्त्र को सहायक माना है । वे श्रेष्ठ उपन्यासकार भी है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के बाद वे ही ऐसे निबन्धकार हैं, जो इतिहासकार भी हैं, जिन्होंने नवीन शोध एवं नवीन मान्यताएं दी हैं ।
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2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:
डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदीजी का जन्म उ०प्र० के बलिया जनपद के ग्राम छपरा में सन् 1904 में हुआ था । उन्होंने हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय लेकर इण्टरमीडियेट की परीक्षा उत्तीर्ण की । उन्होंने ज्योतिष-शास्त्र का भी गहन अध्ययन किया ।
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उन्होंने सन 1930 से 1950 तक शान्ति निकेतन में भी हिन्दी आचार्य के रूप में अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दीं । उनके निबन्धों में अशोक के फूल, विचार प्रवाह, विचार वितर्क, कल्पलता, आलोक पर्व प्रमुख हैं । उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास की भूमिका, हिन्दी साहित्य के वीरगाथाकाल पर अपनी दृष्टि डाली है ।
इसके अतिरिक्त उन्होंने कबीर, सूरदास, साहित्य मर्म, ”कालिदास की लालित्य योजना” भी लिखा है । उनके श्रेष्ठ उपन्यासों में वाणभट्ट की आत्मकथा, चारु चन्द्रलेखा, पुनर्ववा, अनामदास का पोथा इत्यादि है । उनकी भाषा सरल, सहज है । परिष्कृत संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से पूर्ण क्लिष्ट सामासिक भाषा शैली में उनकी “बाणभट्ट की आत्मकथा” श्रेष्ठ कृति है, जो उनके आचार्यत्व का प्रमाण देती है ।
उनकी भाषा पर उर्दू फारसी, बंगला का प्रभाव है । उनका शब्द चयन सटीक व सार्थक है । वाक्य विन्यास अत्यन्त सुगठित है । ”नाखून क्यों बढ़ते हैं” उन्होंने इस निबन्ध में अपनी सूक्तिमयी भाषा का प्रभाव कायम किया है । जैसे: “अज्ञान आदमी को सर्वत्र पछाड़ता है ।”
”नाखूनों का बढ़ना पशुता की निशानी है । इसे काटना मनुष्यता का प्रतीक है ।” उनकी भाषा-शैली-गवेषणात्मक, आलोचनात्मक, विवेचनात्मक, संस्कृतनिष्ठ, सामासिक, सूत्रात्मक, उद्धरणात्मक है । उनका निधन 19 मई 1979 को हुआ ।
3. उपसंहार:
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार, उपन्यासकार एवं समीक्षक थे । वे इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता के रूप में भी जाने जाते हैं । समीक्षा के क्षेत्र में वे रामचन्द्र शुक्ल के बाद श्रेष्ठ स्थान रखते हैं । हिन्दी साहित्य को उन जैसे विद्वानों पर सदैव गर्व रहेगा ।