युधिष्ठिर की जीवनी | Biography of Yudhisthira in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. युधिष्ठिर का आदर्श व्यक्तित्व एवं उनकी क्षमाशीलता ।
3. धर्मपालक युधिष्ठिर ।
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4. यक्ष और युधिष्ठिर ।
5. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
धर्मराज युधिष्ठिर धर्म के अश से उत्पन्न कुन्ती के धीर, वीर, गंभीर, यसशवी पुत्र थे । पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर थे । वे अज्ञात शत्रु, नीतिनिपुण एवं विनयशील थे । उनमें मानवीय करुणा थी । वे हस्तिनापुर के राजा बने, जहा 36 वर्षो तक धर्मपूर्वक शासन किया । वे आदर्श सम्राट थे । महाराज परीक्षित को राज्य सौंपकर स्वर्ग चले गये । स्वर्ग के अधिपति इन्द्र स्वयं उन्हें लेने पधारे थे ।
2. युधिष्ठिर का आदर्श व्यक्तित्व एवं उनकी क्षमाशीलता:
वनवासकाल में जब दुर्योधन पाण्डवों की दुर्दशा देखने के दृष्टिकोण से द्वैत वन गया हुआ था, तब मार्ग में उनकी भेंट गन्धवों से हो गयी । किसी बात को लेकर उनसे उनकी मुठभेड हो गयी । दुर्योधन को बंदी बना लिया गया । युधिष्ठिर को जब यह ज्ञात हुआ, तो वह दुर्योधन को छुडाने के लिए अर्जुन और भीम से आग्रह करने लगे ।
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उन्होंने कहा: ”भाइयों के बीच छोटे-मोटे मतभेद तो होते ही रहते हैं, इससे कुल के धर्म को नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है । कौरवों सहित हम 105 भाई हैं । शत्रु के आक्रमण के समय हमें एक होना चाहिए ।” युधिष्ठिर कोमल प्रवृत्ति एवं क्षमाशीलता के साक्षात् उदाहरण थे । एक बार की बात है ।
जब जयद्रथ ने द्रौपदी के अप्रतिम सौन्दर्य से मोहित होकर उनके समक्ष विवाह का निर्लज्ज प्रस्ताव रखा, तो द्रौपदी ने इसे ठुकरा दिया था । तब जयद्रथ ने प्रलोभन तथा बल का प्रयोग कर द्रौपदी को वश में करना चाहा । उसने द्रौपदी को अपने रथ में बिठा लिया ।
मार्ग में आश्रम की सेविका के माध्यम से यह समाचार जानकर भीम ने जयद्रथ के सिर के केश काट डाले । आहत, लज्जित, अपमानित जयद्रथ की दशा देखकर युधिष्ठिर को दया आ गयी और उन्होंने उससे आगे ऐसी गलती न करने का वचन लेकर बन्धन मुक्त कर दिया ।
3. धर्मपालक युधिष्ठिर:
युधिष्ठिर धर्म के सात्विक तेज के प्रभाव से युक्त ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने धर्म को अपने जीवन में विशेष स्थान दे रखा था । उन्होंने अजगर योनि में पड़े राजा नहुष को अपने धर्म तत्त्व के दर्शन कराकर मुक्ति दिलायी ।
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जब उन्होंने शासन की बागडोर संभाली, तो भीष्म से धर्म सम्बन्धी दीक्षा ली । युधिष्ठिर ने धर्म में हमेशा निष्ठा दिखलायी । नीति, धर्म व वंचन पाठन के लिए भाइयों, पत्नीसहित 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास का दण्ड चुपचाप सहा ।
4. यक्ष और युधिष्ठिर:
एक बार पाण्डव हिरण का पीछा करते-करते एक वन में पहुच गये । हिरण तो भाग गया, किन्तु प्यास और थकान के मारे पाण्डव एक बरगद की छाया में बैठ गये । प्यास से व्याकुल युधिष्ठिर ने नकुल से कहा: ”नकुल ! उस पेड़ पर चढ़कर देखो तो, कोई नदी या सरोवर है क्या ।” भीम, अर्जुन, सहदेव सभी प्यासे थे ।
नकुल ने एक सुन्दर जलाशय देखा । युधिष्ठिर की आज्ञानुसार वह जलाशय की ओर चल दिया । उसने सोचा-मैं तो अंजुली से पानी पी लूंगा और तरकश में पानी भरकर ले जाऊंगा । नकुल ने पानी पीना ही चाहा था कि उसे एक स्वर सुनाई पड़ा: ”ठहरो ! पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, फिर जल पीयो ।”
नकुल ने उसकी परवा न करते हुए पानी पी लिया । बस, थोड़ी ही देर बाद वह मूर्छित होकर गिर पड़ा । युधिष्ठिर ने एक-एक कर भीम, अर्जुन, सहदेव को भेजा । सभी का यही हाल हुआ । युधिष्ठिर किसी आशंका से भयभीत होकर वहां पहुंचे । देखा कि चारों भाई मृतप्राय पड़े हुए हैं । प्यास के मारे उनका दम निकला जा रहा था ।
उन्होंने जैसे ही सरोवर का पानी पीना चाहा कि उन्हें भी वही स्वर सुनाई पड़ा: “सावधान ! तुम्हारे भाइयों ने मेरी अनुमति के बगैर पानी पी लिया । उनकी तरह तुम्हारा भी यही हाल होगा । तुम पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, तत्पश्चात् पानी पीना ।” युधिष्ठिर यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देने को तैयार थे । उन्हें यक्ष जानकर युधिष्ठिर ने उनके प्रश्नों का उत्तर देना प्रारम्भ किया:
यक्ष: बताओ, सूर्य किसकी प्रेरणा से प्रतिदिन उदित होता है ?
युधिष्ठिर: परमात्मा की ।
यक्ष: महानता की प्राप्ति कैसे होती है ?
युधिष्ठिर – तपस्या से ।
यक्ष – मनुष्य का साथ अन्त तक कौन देता है ?
युधिष्ठिर – धर्म
यक्ष- भूमि से अधिक भारी क्या है ?
युधिष्ठिर – सन्तान गर्भ में धारण करने वाली माता ।
यक्ष – आकाश से ऊंचा कौन है ?
युधिष्ठिर – पिता ।
यक्ष – वायु से तेज कौन है ?
युधिष्ठिर – मन ।
यक्ष – धर्म का सार तत्त्व क्या है ?
युधिष्ठिर – कर्म कौशल ही धर्म का सार तत्त्व है ।
यक्ष – यश किससे प्राप्त होता है ?
युधिष्ठिर – दान से ।
यक्ष – स्वर्ग किससे प्राप्त होता है ?
युधिष्ठिर – सत्य से ।
यक्ष – सबसे उत्तम धन क्या है ?
युधिष्ठिर – विद्या
यक्ष – पृथ्वी पर सबसे बड़ा लाभ क्या है ?
युधिष्ठिर – आरोग्य ।
यक्ष – सबसे बड़ा धर्म क्या है ?
युधिष्ठिर – दया ।
यक्ष – मनुष्य मरे हुए के, समान कब होता है ?
युधिष्ठिर – दरिद्र होने पर ।
यक्ष – राष्ट्र कब मरता है ?
युधिष्ठिर – जब अराजकता छा जाती है ।
यक्ष – किसे त्यागने पर मनुष्य सबका प्रिय हो जाता है ?
युधिष्ठिर – अभिमान ।
यक्ष – किसे त्यागने पर मनुष्य सुखी होता है ?
युधिष्ठिर – लाभ ।
यक्ष – सब धनों का स्वामी कौन है ?
युधिष्ठिर – जो सुख-दु:ख, प्रिय-अप्रिय, भूत-भविष्य में एक-सा रहता है ।
यक्ष – प्राण, मन, बुद्धि और यश के होते हुए भी कौन मरे हुए के समान है ?
युधिष्ठिर – जो देवता, अतिथि, माता-पिता, सेवक का और आत्मा का पालन नहीं करता ।
यक्ष – विदेश जाने वाले का, घर पर रहने वाले का, रोगी का तथा मरने वाले का मित्र कौन है ?
युधिष्ठिर – विदेश जाने वाले का सहयात्री, घर पर रहने वाले की स्त्री, रोगी का वैद्य, मरने वाले का मित्र दान होता है ।
यक्ष – मनुष्यों का दुर्जय शत्रु कौन है?
युधिष्ठिर – क्रोध ।
यक्ष – अनन्त व्याधि क्या है?
युधिष्ठिर – लोभ ।
यक्ष – असाधु किसे कहते है?
युधिष्ठिर – निर्दय पुरुष ।
यक्ष – वास्तविक धैर्य क्या है?
युधिष्ठिर – इन्द्रिय निग्रह ।
यक्ष – वास्तविक स्नान क्या है?
युधिष्ठिर – मानसिक विकारों का त्याग ।
यक्ष – वास्तविक दान क्या है?
युधिष्ठिर – प्राणियों की रक्षा ।
यक्ष – किसे पण्डित और किसे मूर्ख कहा जाये?
युधिष्ठिर – धर्मज्ञ को पण्डित, नास्तिक को मूर्ख ।
यक्ष – काम और मत्सर क्या है?
युधिष्ठिर – वासना ही काम है, हृदय का ताप मत्सर {ईर्ष्या} है ।
यक्ष – संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर – प्रतिदिन कितने ही प्राणियों को मरते देखकर भी लोग अमर रहने की इच्छा रखते हैं ।
यक्ष – तुम्हारे सभी उत्तरों से गैं सन्तुष्ट हूं । अब तुम अपने किस भाई को जीवित करना चाहोगे?
युधिष्ठिर – नकुल को ।
यक्ष – यह तुम क्या कर रहे हो? भीम और अर्जुन को क्यों नहीं?
युधिष्ठिर – महात्मन्! मेरे पिता की एक पत्नी कुन्ती का पुत्र मैं तो जीवित हूं । अब माद्री का एक पुत्र जीवित रहे ।
यक्ष – तुम्हारे इस पक्षपातरहित आचरण से मैं प्रसन्न हूं । अत: मैं तुम्हारे चारों भाइयों को ही जीवित कर देता हूं ।
इस तरह युधिष्ठिर ने यक्ष-प्रश्नों का उत्तर देकर अपने सदाचरण का उदाहरण दिया था ।
5. उपसंहार:
इस तरह युधिष्ठिर ने राजपाट, पत्नी आदि के छीने जाने पर भी अपने भाइयों {करवों} को क्षमा कर दिया था । श्रीकृष्ण के स्वलोक प्रयाण के बाद हिमालय पर्वत पर मार्ग के थके हुए द्रौपदी, सहदेव, नकुल भीम, अर्जुन ने दम तोड़ दिया, तो उनके साथ चलने वाला कुत्ता ही बच गया था ।
इन्द्रदेव रथ स्वयं लेकर उन्हें स्वर्ग तक लेने पहुंचे, तो युधिष्ठिर ने कहा: ”यदि आप इस असहाय स्वामीभक्त कुत्ते को ठिठुरकर मरने के लिए यहीं छोड़ रहे हैं, तो मैं स्वर्ग नहीं जाऊंगा ।” वह कुत्ता धर्मराज का एक रूप था, जो प्रकाश पुंज के साथ स्वर्गलोक चला गया ।
स्वर्ग के रास्ते चलते हुए युधिष्ठिर ने नारकीय यातना भोग रहे द्रौपदी, सहदेव, भीम, अर्जुन, नकुल को देखा और दुर्योधन आदि को स्वर्ग में देखा, तो चीत्कार कर उठे, बोले: ”मेरे निर्दोष भाई और पत्नी ने धर्म का साथ न छोड्कर भी नरक पाया है और कौरवों ने स्वर्ग, तो मैं स्वर्ग नहीं जाना चाहता ।” युधिष्ठिर की यह अन्तिम परीक्षा थी ।
थोड़ी ही देर में उन्हें द्रौपदी, नकुल, भीम, अर्जुन, सहदेव स्वर्ग में नजर आये । महाभारत के सभी पात्रों में नि:सन्देह युधिष्ठिर का चरित्र एवं व्यक्तित्व अत्यन्त आदर्श एवं प्रेरक है, जो धीर, गम्भीर, वीर, बुद्धिमान और सात्विकता के आदर्शो से युक्त है ।