मदर टेरेसा की जीवनी | Mother Teresa Kee Jeevanee | Biography of Mother Teresa in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय एवं उनके मानवसेवी कार्य ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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मदर टेरेसा का सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा में व्यतीत हुआ था । निर्धन, बेसहारा, दुखी, पीड़ित, रोगी, समाज से उपेक्षित, तिरस्कृत लोगों की सेवा को अपने जीवन की सार्थकता मानने वाली मदर टेरेसा विश्वशान्ति व मानव-सेवा की सच्चे अर्थों में पुजारन थीं ।

”सादा जीवन उच्च विचार” तथा ”पीड़ित मानवता की सेवा” ही उनका जीवनादर्श था । भारतभूमि को ही अपनी कर्मभूमि मानकर अपना जीवन समर्पित करने वाली इस भारतीय ममता की देवी को 1979 में विश्व के महानतम पुरस्कार ”नोवेल शान्ति पुरस्कार” से भी सम्मानित किया गया था ।

2. जन्म परिचय एवं उनके मानव सेबी कार्य:

सेवा, त्याग, प्रेम, दया, करुणा, समर्पण की प्रतिमूर्ति, ममतामयी मां ”मदर टेरेसा” का जन्म यूगोस्लाविया के अल्बानिया के स्कोपजे नगर में अल्बेनियन कृषक परिवार में 27 अगस्त सन् 1910 को हुआ था । उनके बचपन का नाम एरनेस गोजा बोजाक्षिया था । सन् 1928 में वह मात्र 18 वर्ष की अवस्था में आयरलैण्ड के लोरटो मुख्यालय में रोमन कैथोलिक नन के रूप में कार्य करने लगी थीं ।

उसी केन्द्र द्वारा संचालित कार्यक्रम में भाग लेने के सिलसिले में जब वह 1929 को कलकत्ता आयीं, तो उन्होंने यहां दीन-दुखियों की कारुणिक दशा देखी, इससे उनका करुण-हृदय द्रवित हो उठा । उन्होंने भारत भूमि में ही रहकर यहां के दुखी, अनाथ, रोगी लोगों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का निश्चय कर डाला ।

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सन् 1929 में ही उन्होंने रोमन कैथोलिक नन के रूप में दार्जिलिंग में प्रशिक्षण प्राप्त किया । फिर सन्त टेरेसा के नाम पर 24 अगस्त, 1931 को अपना नाम टेरेसा धारण कर लिया । 1948 को उन्होंने अपने पारम्परिक वस्त्रों का त्यागकर नीली किनारी वाली सफेद साड़ी पहनने का निश्चय कर लिया । अमरीकी मिशन से सामान्य चिकित्सा सेवा का प्रशिक्षण प्राप्त कर वह सर्वप्रथम कलकत्ता की मोती झील बस्ती में   आ  बसीं ।

यहीं पर उन्होंने झुग्गी-झोपड़ी स्कूल की शुरुआत की । शिक्षा प्रसार के साथ-साथ कुष्ठ रोगियों की देखभाल में भी कूद पड़ी । मदर टेरेसा ने यहां के फुटपाथ पर जीवन बिताने वाले कोढ़ियों की दशा देखी, तो उनकी चिकित्सा और देखभाल करते हुए उन्हें समझाया कि ‘यह रोग असाध्य नहीं है ।’ मदर ने टीटागढ़ में महात्मा गांधी कुष्ठ आश्रम की स्थापना भी की ।

कूड़े के ढेर पर सुअर और कुत्तों के बीच नाजायज नवजातों को फेंक देने वालों को जहां ”हत्यारा” कहकर धिक्कारा, वहीं ऐसे अनाथ लावारिस बच्चों के लिए सन् 1952 में ‘निर्मला शिशु भवन’ की स्थापना की । सन् 1949 में ”मिशनरीज ऑफ चेरिटीज” नामक संस्था की स्थापना की । उनके इस सेवा कार्य से प्रोत्साहित होकर 125 देशों में भी ऐसे ही केन्द्र खोले गये ।

इन केन्द्रों द्वारा प्रतिदिन ढाई लाख से कुछ अधिक लोगों को भोजन तथा इतने ही रोगियों को दवा दी जाती है । 20 हजार से अधिक बच्चों को शिक्षित करने का पुनीत कार्य भी किया जाता है । मदर के सेवा कार्यों का विस्तार क्षयरोग से पीड़ित जन की सेवा, एड्‌स पीड़ितों की सेवा तथा नशे के शिकार हुए लोगों को इससे मुक्ति दिलाने तक फैला हुआ है ।

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मदर ने हमेशा यही सन्देश दिया कि ”भगवान् उन्हें ही प्यार करता है, जो दूसरों की सेवा में ही अपने जीवन का आनन्द पाता है । हृदय से इस आनन्द को महसूस करना ही भगवान् को पाना है ।” दिन के 24 घण्टों में पीड़ित मानवता की सेवा के बारे में सोचना ही नहीं, अपितु उन्हें करना भी मदर के महान् व्यक्तित्व का विशेष गुण रहा है ।

अपने सेवा कार्य को भगवान् को समर्पित करने वाली इस महिला का आडम्बरों से दूर-दूर तक नाता नहीं रहा था । आजीवन तीन धोतियों को धारण कर उन्होंने अपने सच्चे जीवनादर्श का साक्षात् उदाहरण लोगों के समक्ष रखा । अपना सम्पूर्ण जीवन पीड़ित मानवता पर न्योछावर करने वाली मदर टेरेसा का 5 सितम्बर, 1997 में कलकत्ता में देहावसान हो गया ।

3. उपसंहार:

यद्यपि मदर टेरेसा का सेवा कार्य आडम्बर और विज्ञापन से दूर रहा, तथापि उन पर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगते रहे । मदर इन आरोपों को एक सिरे से हमेशा खारिज करती रहीं ।

भारत तथा विश्व के देशों ने उनके सेवा-समर्पण, त्याग के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उन्हें अनेक उपाधियों, पुरस्कारों से भी नवाजा, जिनमें सन् 1962 की पद्‌मश्री की उपाधि, 1973 का टैम्पलेटन पुरस्कार, 1976 का देशिकोत्तम पुरस्कार, 1990 का सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, अन्तर्राष्ट्रीय सद्‌भावना पुरस्कार, 1992 का भारत शिरोमणि पुरस्कार, 1993 का यूनेस्को शान्ति पुरस्कार, रेमेन मेग्सेसे तथा 1980 का भारत रत्न, 1979 का नोबेल शान्ति पुरस्कार तथा अनेक पुरस्कार विशिष्ट हैं ।

मदर के मरणोपरान्त सिस्टर निर्मला को उनका उत्तराधिकारी घोषित कर, उनके अधूरे कार्यों व मिशनरी के कार्यों को पूर्ण करने का दायित्व सौंपा गया । मदर टेरेसा को सन्त भी कहा जाता है ।

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