विश्वनाथन आनन्द । Biography of Viswanathan Anand in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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शतरंज का खेल भारत में काफी प्राचीन रूप में रहा है । इसे पहले चौसर के नाम से जाना जाता था । शतरंज का बोर्ड समान अकार के 64 वर्गाकार खानों में विभाजित रहता है, जिसके काले तथा सफेद रंग के बने खानों में मोहरें रखी जाती है ।
मोहरे चालों के रूप में खेली जाती हैं । इसमें लम्बाई में खानों की 8 लाइन फाइल्स तथा चौड़ाई में रैक्स कहलाती हैं । एक ही रंग की खानों की लाइन डायगल्स कहलाती हैं । सफेद मोहरों से खेलने वाला खिलाड़ी पहली चाल चलकर खेल की शुरुआत करता है ।
मोहरों की चालों में बादशाह केवल एक खाने में चल सकता है । यदि उसे किला बनाना है, तो वह उसे छोड्कर चल सकता है । शर्त यह है कि किसी विपक्षी मोहरों का जोर न हो । वजीर सीधा और टेढ़ा कैसे भी चलता है । हाथी सीधा, ऊंट तिरछा, घोड़ा ढाई चाल चलता है । प्यादा सीधा चलकर तिरछी चाल चलता है ।
वह एक ही बार में केवल एक ही चाल चल सकता है । विपक्षी मोहरा यदि बादशाह को जोर डालकर मारना चाहता है, तो उसे शह कहा जाता है । अगली चाल में बादशाह को उस मार के दायरे से हटना ही पड़ता है । यदि वह नहीं हटता, तो उसे मात कहा जाता है । दूसरे को मात देने वाला खिलाड़ी जीता कहलाता है ।
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जब चाल चलने का कोई रास्ता शेष नहीं रहता, तो उसे जिच या ड्रा कहते हैं । आजकल इसके नये-नये नियम बनते जा रहे हैं । विश्व शतरंज की चैम्पियनशिप और ओलम्पिक शतरंज की विभिन्न प्रतियोगिताएं हैं । इसमें विश्व के महानतम ग्राण्ड मास्टर-बाबी फिशर, कारपोरोव, कास्पोरव तथा हमारे देश के विश्वनाथन आनन्द रहे हैं ।
2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां:
विश्वनाथन आनन्द ने ग्राण्ड मास्टर बनकर भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुन: वापस किया । इनका जन्म दक्षिण भारत में सन् 1969 को हुआ । 17 वर्ष की अवस्था में इन्होंने ग्राण्ड मास्टर का खिताब हासिल किया । 27 वर्ष की अवस्था में विश्व के 2 नम्बर के खिलाड़ी बन गये । 1988 में इन्होंने यह खिताब हासिल किया ।
लियेनर्स अन्तर्राष्ट्रीय शतरंज टूर्नागेन्द में आनन्द को वां स्थान मिला । इसी प्रतियोगिता में इन्होंने विश्व चैम्पियन कारपोरोव तथा ब्रिटेन के जानाथन स्पीलमैन को पराजित किया । आनन्द एक तेज तर्रार खिलाड़ी हैं ।
इनकी चालें बहुत गुप्त नहीं होती हैं, फिर भी ये अपने प्रतिहन्ही पर दबाव डालकर उसे गलती करने पर मजबूर कर देते हैं । अपनी चालों के लिए ये ज्यादा समय नहीं लेते । ये परम्परागत शैली में खेलते हैं ।
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जिस प्रकार क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर हैं, वैसे ही शतरंज में विश्वनाथन आनन्द । मुम्बई में “ए” राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतकर इन्होंने अपनी प्रतिभा सिद्ध की । इस चैम्पियनशिप में इन्होंने फीडा से मान्यता प्रदान खिलाड़ियों में फीडा रेटिंग 16 वर्ष की अवस्था में प्राप्त की । आनन्द ने 5 वर्ष की अवस्था से ही शतरंज खेलना शुरू कर दिया था । माता-पिता से खेल की बारीकियां सीखीं । 1982 में इन्होंने जूनियर चैम्पियनशिप की राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती ।
1984 में विश्व जूनियर स्पर्धा में 50 खिलाड़ियों में इन्हें 10वां स्थान मिला । इन्होंने लंदन लायड्स बैंक जूनियर का खिताब जीतकर अपनी छाप छोड़ी । वहीं ग्राण्ड मास्टर में छठा स्थान प्राप्त कर सबको चौंका दिया । इजराइली ग्राण्ड मास्टर ग्रीनफील्ड को हराकर इन्होंने अपना पहला अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का खिताब जीता । हांगकांग में एशिया जूनियर प्रतिस्पर्द्धा में अन्तर्राष्ट्रीय मास्टर का खिताब पाया ।
3. उपसंहार:
देश के सबसे युवा खिलाड़ी के रूप गे विश्वनाथन आनन्द का नाम निःसन्देह हमारे लिए गौरव का विषय है । ये भारतीय शतरंज के प्रकाशवान सितारे हैं ।