अमृता शेरगिल की जीवनी | Amrita Shergill Kee Jeevanee | Biography of Amrita Shergill in Hindi
1. प्रस्तावना ।
2. जन्म परिचय एवं उपलब्धियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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भारतीय संस्कृति कला और कलाकारों से समृद्ध भूमि रही है । गीत-संगीत, नृत्य, वाद्य कला से लेकर यहां मूर्तिकला एवं चित्रकला ने अपनी बेजोड़ मिसाल कायम की है । यहां की चित्रकला विश्व की अमूल्य धरोहर मानी जाती रही है । हमारे देश में कला के चितेरों में राजा रवि वर्मा, भगवान् जगन्नाथ, जतिन दास से लेकर महिला चित्रकारों ने भी अपनी कला-कौशल से विश्व को चमत्कृत किया है ।
भारतीय महिला चित्रकारों में ”अमृता शेरगिल” का नाम आधुनिक चित्रकारों में अग्रगण्य है । उनकी चित्रकला में भारतीय रंगों का चटकीलापन व संस्कृति की अमिट छाप देखने को मिलती है । अपनी मौलिक चित्रकला शैली में सिद्धहस्त अमृता शेरगिल भारतवर्ष की सबसे कम उम्र की महिला चित्रकार मानी जाती है ।
2. जन्म परिचय व उपलब्धियां:
अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी, 1913 को हंगरी के बुडापेस्ट नामक शहर में हुआ था । उनकी माता हंगेरियन और पिता भारतीय सिख थे । उनके पिता का नाम उमराव सिंह शेरगिल था । उन्होंने इटली तथा फ्रांस के आर्ट स्कूल से चित्रकला का प्रशिक्षण प्राप्त किया था ।
सन् 1921 में उन्होंने नग्न महिला का चित्रण किया था । अत: स्कूल से उन्हें निकाल दिया गया । उनकी चित्रकला में कालान्तर में परिवर्तन आया । उन्होंने अपने जीवन के 8 वर्ष यूरोप में ही व्यतीत किये । सन् 1921 के युद्ध के बाद वे भारत आ गयी थीं और शिमला में ही आकर रहने लगी थीं ।
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भारत आकर उन्होंने विधिवत चित्रकला की शुरुआत की । उनके बनाये गये चित्रों में भारतीय नारी की घरेलू छवि अत्यन्त मनोवैज्ञानिक एवं सूक्ष्म भाव-भंगिमा के साथ चित्रित हुई है । उनके चित्रों में रोजमर्रा के जीवन का ऐसा सजीव चित्रण है कि ऐसा प्रतीत होता है, मानो उनके चित्र बोलते हों ।
चित्रकला की अपनी निजी शैली में रंगों का ऐसा अद्भुत संयोजन है कि बस देखते ही बनता है । चटकीले रंगों से भरपूर इनकी निजी शैली भारतीय संस्कृति के हर पहलू को अत्यन्त जीवन्त के साथ कैनवास पर उतारती है । उनकी तूलिका में भारतीय ग्रामीण जन-जीवन तो अपने समूचे जीवन के साथ प्रतिबिम्बित हो उठता है ।
चित्रों में रंगों के साथ-साथ भाव-व्यंजन ने तो जैसे इसमें प्राण ही फूंक डाले हों । अमृताजी ने कई आत्मचित्र भी बनाये हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट शैली है । 1938 में उन्होंने हंगरी जाकर विक्टर इगान नामक एक डॉक्टर से विवाह किया । उनका विवाहित जीवन अल्पकाल का ही रहा ।
भारत आकर उन्होंने भारतीय नारी की अन्यतम छवि के ऐसे चित्र बनाये थे, जो अपनी यथार्थता के साथ सचमुच अनूठे थे । सन् 1936 में अजंता की यात्रा के बाद अमृताजी ने लम्बे-चौड़े चित्रों की बजाय छोटे चित्रों का निर्माण कर भारतीय चित्रकला को एक नयी दिशा दी ।
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उनके चित्रों में शान्त एवं रागात्मक छवि के दर्शन होते हैं । चित्रों में कहीं भावात्मकता है, तो कहीं पर आक्रामक तेवर । उनके नग्न चित्रों में दो छोटी भारतीय ग्रामीण बालिकाओं के चित्र अपनी वास्तविकता के कारण गांव के जीवन को सजीव रूप प्रदान करते हैं ।
उनके चित्रों में दक्षिण भारत के ब्रह्मचारी, दक्षिण भारत के ग्रामीण, बाजार जाते लोग, केले बेचने वाला, तो कहीं सेब खाता हुआ युवक, तो कहीं आलू छीलने वाला दिखाई पड़ता है । आजीवन कला-साधना में लीन इस महान् चित्रकार का मात्र 28 वर्ष की अल्पावस्था में 5 दिसम्बर, 1941 को रहस्यमय बीमारी से देहान्त हो गया ।
3. उपसंहार:
अमृता शेरगिल 20वीं सदी की सबसे कम अवस्था में प्रसिद्धि प्राप्त करने वाली महिला कलाकार थीं । उनके बनाये गये चित्र आज भी राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय दिल्ली में संग्रहित हैं । उनके सभी चित्र बहुमूल्य हैं ।
चटकीलापन एवं भारतीय संस्कृति की समूची जीवनशैली उनके चित्रों की विशेषता है । अमृता शेरगिल का नाम जहां उनके चित्रों की मौलिक शैली के लिए प्रसिद्ध है, वहीं उन्होंने यूरोपीय चित्रकला के प्रारम्भिक दौर में ऐसे यथार्थवादी चित्रों की रचना की, जो विश्व-भर में आज भी प्रसिद्ध हैं । अमृता के चित्रों में गति ही नहीं, अपितु आत्मा है, आत्मीयता है । आत्मीयता एवं संवेदना ही कलाकार को महान् बना देती है ।
अमृता के मन में करुणा, मर्माहत एवं विषाद की तीव्र अनुभूति है । आंखों की अनिश्चित, आतंक, मन में भरा अवसाद अपना एक अलग करुण भाव छोड़ता है । यदि सही ढंग से सोचा जाये, तो उनकी कला में पूर्व-पश्चिम का अजूबा समन्वय है । अमृताजी की चित्रकला पर भारतीय कला-जगत् हमेशा नाज करता रहेगा ।