केदारनाथ अग्रवाल । Biography of Kedarnath Agarwal in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्यधारा के कवि रहे हैं । उनकी कविता को भाषायी संवेदना और कलात्मक वैशिष्ट्य के कारण विशेष रूप से जाना जाता है । उनकी कविताओं में आत्मबोध है, जग-बोध है । उनकी कविताओं में अनुभूति की सचाई के साथ-साथ जीवन मूल्यों के प्रति सच्ची आस्था विद्यमान है ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:

केदारनाथ अग्रवाल का जन्म बांदा जिले के कमासन गांव में सन् 1911 को हुआ । वे बांदा में वकालत करते थे और प्रगतिवादी वर्ग के सशक्त कवि रहे हैं । उनकी उदबोधनात्मक कविताओं में मानव और प्रकृति के सौन्दर्य का भी सच्चा चित्र मिलता है । उन्होंने प्रगतिशील साहित्यिक आन्दोलन से जुड़कर अपनी काव्य-यात्रा को विकसित किया ।

”हंस” तथा ”नया साहित्य” जैसी पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं को काफी प्रशंसा मिली । उनकी प्रमुख काव्य कृतियां: “युग की गंगा”, “नींद के बादल”, ”लोक और आलोक”, ”फूल नही रंग बोलते हैं”, “आग का आईना”, ”देश की कविताएं”, ”पंख और पतवार”, “हे मेरी तुम”, ”प्यार-प्यार की थापें”, ”कही केदार खरी-खरी”, ”बोल-बोल अबोल” ।

निबन्ध संग्रह: “समय-समय पर विचार बोध”, ”विवेक विवेचन”, ”यात्रा संस्मरण” “बस्ती खिले गुलाबों की” । उपन्यास: ”पहिया”, ”बैल बाजी मार ले गये” आदि हैं ।

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केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिवादी तथा सौन्दर्यवादी रचनाओं में प्रकृति चित्र देखिये:

आज नदी बिलकुल उदास थी

सोयी थी अपने पानी में,

उसके दर्पण पर

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बादल का वस्त्र पड़ा था

मैंने उसको नहीं जगाया

दबे पांव वापस घर आया ।

इसी तरह बासन्ती हवा के उन्माद को कवि चित्रित करते हुए कवि लिखता है:

हवा हूं हवा मैं

मैं हूं पागल बसन्ती हवा !

सुनो बात मेरी:

अनोखी हवा हूं !

बड़ी बावली हूं

बड़ी मस्तमौला ।

नहीं, कुछ फिकर है,

बड़ी ही निडर हूं

चढ़ी पेड़ महुआ,

थपाथप मचाया,

गिरी धम्म से फिर,

चढ़ी आम ऊपर,

उसे भी झकोरा,

किया कान में ‘कू’

उतरकर भगी मैं,

हरे खेत पहुंची,

वहां, गेहुओं में,

लहर खूब मारी ।

पहर दो पहर क्या

अनेकों पहर तक

इसी में रही मैं ।

केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में आदमियत की परख के साथ-साथ देशी मानवीय संवेदनाएं मिलती हैं । लोक-जीवन का संस्पर्श और वैशिष्टय ने उनकी कविताओं में नया रंग भरा है । उनके लोकगीतों में जनप्रिय छन्दों का प्रयोग है । लोक-जीवन की अनुभूति, सौन्दर्य-बोध और प्रकृति से जुड़े सवालों को उन्होंने मानवीय भूमि पर ग्रहण किया है ।

जन-संस्कृति पर आधारित उनकी कविताओं में ग्रामीण जीवन के सुख-दुःख, रास-रंग का संयोजन है । शृंगार और प्रेम की कोमलतम अनुभूतियों में वे प्रकृति को नहीं भूलते । उनकी कविताएं कृषक जीवन की कविताएं हैं, जिसमें श्रम और पसीने की पवित्र बूंदें हैं । सूरज, नदी, पहाड़, नीम, आम के पेड़, हवा उनकी कविताओं के विषय रहे हैं । उनकी भाषा सरल, सहज एवं भावपूर्ण है । उनका निधन 22 मई 2000 को हुआ ।

3. उपसंहार:

आधुनिक हिन्दी कवियों में श्री केदारनाथ अग्रवाल ऐसे कवि हैं, जिनकी कविताओं में मानवीय प्रेम, प्रकृति-प्रेम के साथ-साथ सामाजिक परिवेश का भी चित्रण मिलता है । वे प्रगतिशील और प्रकृतिवादी चेतना के कवि रहे हैं । सरलता, सहजता उनकी प्रकृति है ।

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