डेविड रिकार्डो की जीवनी | Biography of David Ricardo in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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अर्थशास्त्र में एडमस्मिथ के बाद जिस अर्थशास्त्री को अपने महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त के कारण जाना जाता है, वह हैं: ”डेविड रिकार्डो, और उनका सिद्धान्त है: ”मूल्य सिद्धान्त ।”  इस सिद्धान्त के अन्तर्गत उन्होंने मुद्रा का परिणाम, विनिमय सिद्धान्त, मूल्य सिद्धान्त आदि के साथ-साथ लगान सम्बन्धी जो विचार व्यक्त किये, वे बहुत उपयोगी हैं ।

रिकार्डो ने सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा स्वतन्त्र व्यापार पर भी अपने वैज्ञानिक विचार प्रकट किये ।

2. जीवन चरित्र:

डेविड रिकार्डो का जन्म 1772 में इंग्लैण्ड के एक यहूदी परिवार में हुआ था । उनके पिता एक शेयर दलाल थे । अत: उन्होंने रिकार्डो को बहुत कम अवस्था से ही व्यापार के गुण सिखा दिये थे । 21 वर्ष की अवस्था में रिकार्डो ने अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध यहूदी युवती से विवाह कर ईसाई धर्म अपना लिया था ।

उन्हें घर से निष्कासित कर दिया गया । इसके बाद उन्होंने 1819 में राजनीति में प्रवेश लेकर संसद तक का सफर तय किया । देश की आर्थिक समस्याओं पर उन्होंने अनेक लेख लिखे और बहुत-सी पुस्तकों का प्रकाशन करवाया, जिनमें ”द हाई प्राइस ऑफ बुलियन-ए प्रूफ ऑफ द डेप्रिसिएशन ऑफ बैंक नोट्‌स, (1810) प्रिसिंपल ऑफ पॉलिटिकल इकॉनामी एण्ड टैक्सेशन (1817), प्रोटेक्शन ऑफ एग्रीकल्चर ही (1822), ए प्लान फॉर दि एस्टेबलिशमेंट ऑफ नेशनल बैंक ही 824, नोट्‌स ऑन माल्थस प्रिंसिपल ऑफ पॉलिटिकल इकॉनामी (1824) प्रमुख हैं ।

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रिकार्डो के इस सिद्धान्त को प्रभावित करने वाली मुख्य बातों में युद्धों तथा अन्य कारणो से औद्योगिक संघर्ष तथा देश का तनावपूर्ण वातावरण, औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव, भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता दबाव, वितरण की जटिल समस्या, मिल-मालिकों तथा भूमिपतियों के मध्य मूल्य निर्धारण की समस्या और पूर्ववर्ती अर्थशास्त्रियों के विचार थे ।

रिकार्डो ने वितरण की समस्या पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि: ”किसी वस्तु का उत्पादन भू-स्वामी, श्रमिक तथा उत्पादक संयुक्त रूप से करते हैं । अत: सम्पूर्ण राष्ट्रीय आय के 3 हिस्सेदारों को क्रमश: लगान, मजदूरी तथा लाभ के पुर२कार के रूप में दिया जाना चाहिए ।”

रिकार्डो का मत था कि लगान इसलिए प्राप्त नहीं होता कि भूमि दयावान है, वरन् लगान तो भू-स्वामियों को इसलिए मिलता है कि भूमि कंजूस है । ”लगान भूमि की उपज का वह भाग है, जो भूमिपति को भूमि की मौलिक अविनाशी शक्तियों के उपयोग के लिए प्रदान किया जाता है ।”

लगान मालूम करने के लिए रिकार्डो ने 4 चीजों का प्रयोग किया है: 1. विस्तृत सीमान्त, 2. घटिया भूमि, 3. गहरा सीमान्त और, 4. उत्पत्ति हरास का नियम । भूमि की उर्वरा शक्ति को ध्यान में रखकर ही लगान का निर्धारण किया जाना चाहिए ।

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मजदूरी सिद्धान्त के प्रतिपादन में उन्होंने स्वाभाविक और बाजारी मजदूरी को व्याख्यायित किया । लाभ के सिद्धान्त के सम्बन्ध में उनके विचार अस्पष्ट तथा अपूर्ण हैं । रिकार्डो ने पत्र-मुद्रा के निर्गमन तथा नियमन पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये । वे बैंकिंग प्रणाली के राजकीय नियन्त्रण के पक्षधर थे ।

1797 में मुद्रा संकट की स्थिति देखकर उनका मत था कि सोने के निर्यात तथा पत्र-मुद्रा के अधिक प्रकाशन के कारण द्रव्य का मूल्य कम हो गया है । अत: पत्र-मुद्रा के निर्गमन में कमी करके सरकार को उस पर नियन्त्रण रखना चाहिए ।

बैंकों को क्रमश: चलन के नोटों की मात्रा तब तक घटा देनी चाहिए । जब तक कि उनका वास्तविक मूल्य उनके प्रतिनिधि मूल्य के बराबर न हो जाये । स्वर्ण-रजत की कीमतें गिरकर टकसाली मूल्य पर न आ जायें ।

3. उपसंहार:

संसार में रिकार्डो द्वारा प्रचलित लगान सिद्धान्त, पत्र-मुद्रा नियमन और निर्गमन सिद्धान्त एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त के रूप में थे । यद्यपि रिकार्डो के इन सिद्धान्तों की आलोचना हुई कि ये सिद्धान्त अपूर्ण, त्रुटिपूर्ण, अवैज्ञानिक हैं, जिसकी भाषा भी गूढ तथा अस्पष्ट है । वास्तविकता यह है कि इन दोषों के बावजूद भी रिकार्डो का लगान सिद्धान्त ध्रुव तारे की तरह अटल रहेगा । ऐसे महान् अर्थशास्त्री का निधन 1823 को हो गया ।

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