नीरज की जीवनी | Biography of Neeraj in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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काव्य मंच के अद्वितीय गीतकार नीरज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । हिन्दी साहित्य में जब आज से लगभग 60-65 वर्ष पूर्व कवि सम्मेलनों का आयोजन होने लगा था, तब से मंच पर अनेक कवियों ने अपनी काव्य प्रतिभा से लोगों को न केवल रस विभोर किया, वरन् उन्हें प्रभावित भी किया ।
फलस्वरूप कवि सम्मेलनों की लोकप्रियता चरमसीमा पर पहुंचने लगी । विभिन्न दिवसों एवं पर्वो पर कवि विविध विषयों पर कविताएं प्रस्तुत करते रहे हैं । हास्य कवि सम्मेलन वर्तमान समय में लोकप्रियताओं की बुलन्दियों को पार कर गया है । मंच के श्रेष्ठ गीतकारों में कवि ‘नीरज’ का नाम सर्वप्रमुख तथा सर्वसम्मानीय रहा है ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:
श्री गोपालदास “नीरज” का जन्म 4 जून, 1925 को पुरावली जिला-इटावा में हुआ था । उनके पिता स्वर्गीय श्री ब्रजकिशोर सक्सेना थे । उनकी शिक्षा एम॰ए॰ तक हुई । सन 1940 से वे काव्य रचना की ओर प्रवृत्त
हुए । मंचीय काव्य पाठ की शुराआत उन्होंने 1940 में ”एटा” से की ।
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उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत कष्टों और संघर्षो में बीता । एक प्रकार से संघर्ष ही उनके जीवन की कथा रही है । उन्होंने बेकारी से लेकर ऑफिसरी करते हुए जीवन के अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं । कॉलेज में अध्यापन कार्य करने के साथ-साथ उन्होंने सम्पादक के रूप में भी अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया ।
उन्होंने फिल्मों के लिए भी अनेक गीत लिखे । इन गीतों ने उनको काफी लोकप्रिय बनाया । उनकी रुचि ज्योतिष तथा दर्शनशास्त्र में भी रही हैं । उन्होंने हिन्दी काव्य मंच पर, विशेषत: भारी कवि के रूप में प्रसिद्धि पायी है, किन्तु उन्होंने सामाजिक, राजनैतिक, समसामयिक तथा दार्शनिक विषयों पर भी लिखा है ।
भाषा, रस, शिल्प, अलंकार, लाक्षणिकता के कारण उनकी कविताएं काफी प्रभावपूर्ण बन पड़ी हैं । श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ वे सुमधुर गायक भी हैं । 3-4 घण्टे तक निरन्तर अपने काव्य-पाठ से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर देना उनकी विशेषता है । उनके गीतों में उर्दू के शब्दों का प्रयोग विशेष प्रभावी बन पड़ा है ।
उन्होंने अच्छी गजलें भी लिखी हैं । उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में ”संघर्ष”, ”अन्तर्ध्यान”, ”विभावरी”, “प्राणगीत” भाग 1-2, ”दर्द दिया है”, ”बादल बरस गया”, “आसावरी”, ”नीरज की पाती”, ”कारवां गुजर गया”, ”तुम्हारे लिए”, ”फिर दीप जलेगा” आदि है, जो पॉकेट बुक्स के रूप में विशेष प्रसिद्ध रही हैं ।
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उन्होंने हिन्दी गजलों को प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा से जोड़ा है । उर्दू गजल को छोड्कर उन्होंने बातचीत के मुहावरे में गजलें लिखीं । उनकी गजल को ”गीतिका” नाम दिया गया ।
उदाहरणार्थ:
खुशबू सी आ रही इधर जाफरान की
खिड़की खुली है फिर कोई उनके मकान की
हारे हुए परिन्दे जरा उड्के देख तो
आ जायेगी जमीन पे छत आसमान की
बुझ जाये सरेशाम ही जैसे कोई चिराग
कुछ यूं है शुराआत मेरी दास्तान की ।
ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी
हालत यही है आजकल हिन्दुस्तान की ।
नीरज से बढ़ के और धनी कौन है यहां
उसके हृदय में पीर है सारे जहान की ।
नीरज के गीतों की लोकप्रियता का कारण झरने की तरह स्वर तथा भाषा का अबाध प्रवाह तथा एक स्वाभाविक अनुभूति कहा जा सकता है । उनके गीतों का मुख्य विषय प्रेम व कार रहा है । उन्होंने राष्ट्रप्रेम तथा जाति-पांति की संकीर्ण भावना पर भी गीत रचे हैं ।
जैसे:-
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है ।
मैं न बन्धा हूं देश-काल की जंग लगी जंजीरों में,
मैं न खड़ा हूं जातिपाति की ऊंची-नीची भीड़ में,
+ + + + + +
मुझसे तुम कहौ मन्दिर-मस्जिद पर मैं सिर टैक दूं
मैं सिखाता हूं कि जीयो और जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बांट सको, तुम बांटो अपने प्यार को ।
कवि धरती का अंधेरा मानवता का दीप जलाकर दूर करना चाहता है । वह सम्पूर्ण विश्व तथा धर्म को एक मानता है । उनके दार्शनिक गीतों में विशेषत प्रसिद्ध है- उमरिया बिन खेवक की नैया
कैसा पूरब कैसा पश्चिम? / कैसा उद्गम कैसा संगम?
वो ही अपना घाट सांस की / जहां कटै कनकैया ।
उमरिया बिन खेवक की नैया ।
कारवां गुजर गया का लोकप्रिय गीत…
स्वप्न झरे फूल से / मीत चुभे शूल से / लूट गये श्रुंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे / कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे ।
3. उपसंहार:
यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि नीरज ने काव्य मंच से अपने गीतों की उत्कृष्ट प्रस्तुति से लाखों लोगों को अपना दीवाना-सा बना दिया । श्रोताओं को गीतों के जादुई प्रभाव से मन्त्रमुग्ध और चमत्कृत करने की क्षमता नीरज में ही हो सकती है ।