पण्डित प्रतापनारायण मिश्र । Biography of Pandit Pratapanarayan Mishra in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन वृत एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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भारतेन्दुयुगीन श्रेष्ठ निबन्धकर एवं कवि पण्डित प्रतापनारायण मिश्र उस युग के श्रेष्ठ रचनाकारों में से एक थे । वे संस्कृत एवं उर्दू के प्रकाण्ड विद्वान थे । उन्होंने “हिन्दू हिन्दी और हिन्दुस्तान” का सदा समर्थन किया ।
उनकी भाषा में हास्य-व्यंग्य की प्रधानता के साथ-साथ जो पूर्वीपन था, वह उनकी रचनाओं में चार चांद लगा देता था । उनकी रचनाओं में कहावतों और मुहावरों का प्रयोग भी विशेषत: हुआ है । विषय वैविध्य एवं भाव-पक्ष की अभिव्यंजना के कारण उनकी रचनाएं हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है ।
2. जीवन वृत्त एवं कृतित्व:
उनका जन्म 1856 को उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के बैजे नामक ग्राम में हुआ था । पिता के कानपुर चले जाने के कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा वहीं सम्पन्न हुई । उनका पैतृक व्यवसाय ज्योतिष था । उन्होंने इसे नहीं अपनाकर साहित्य रचना को ही अपना क्षेत्र माना । वह अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, एवं फारसी के भी अच्छे ज्ञाता रहे है ।
उनका स्वभाव बड़ा ही विनोदपूर्ण, फक्कड़पन एवं मनमौजीपन से युक्त था । बुद्धि चातुर्य भी उनमें कुछ कम नहीं था । उन्होंने गद्या एवं पद्या पर समान रूप से लिखा । ”ब्राह्मण” नामक पत्रिका का सम्पादन वर्षो तक उन्होंने घाटा उठाकर किया ।
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कुछ समय तक उन्होंने ”हिन्दोस्तान” नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया । मात्र 38 वर्ष की आयु में वे सन् 1884 में साहित्य जगत को सुना कर गये । गद्या एवं पद्या सहित उनकी पुस्तकें निम्नलिखित हैं: हठी हमीर, आल्हा, मन की बहार, निबन्ध नवनीत, जिसमें उन्होंने भौंह, दांत, पेट, मुच्छ, वृद्ध. एवं परीक्षा जैसे विषयों पर हास्य-व्यंग्यपूर्ण शैली में निबन्ध लिखे ।
उनके निबन्धों की शैली, विचारात्मक, भावात्मक, वर्णनात्मक, हास्यव्यंग्यपूर्ण थी । भाषा में पूर्वीपन का सौन्दर्य था । उनकी भाषा अत्यन्त चुटीली है । उनकी भावपूर्ण कविताओं में तत्कालीन समाज एवं देश की दशा का सजीव चित्रण मिलता है ।
महंगी और टिक्कस के मारे,
सगरी वस्तु अमोली है ।
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कौन भांति त्योहार मनैये,
कैसे कहिये होली है ?
सब धन ढोयो जात विलायत,
रहयो दलिद्दर छाई ।
अन्न-वस्त्र को सब जन तरसै,
होरी कहां सुहाई ।
भूखे मरत किसान तहूं पर,
कर हित न डपटन थोरी है ।
गारी देत दुष्ट चपरासी,
तकति बेचारी छोरी है ।।
गद्या में उनके निबन्धों का बड़ा आदर था । हास्य-व्यंग्य भाषा में उन्होंने ग्रामीण मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग किया है । कहां तक कहै परीक्षा सबको खलती है । क्या ही अच्छा होता, जो सब-के-सब बातों में सच्चे होते, और जगत में परीक्षा का काम न पड़ता । वह बड़भागी धन्य है, जो अपनी जीवन लीला को यों ही समाप्त कर दे ।”
”कहा तो-तुम्हारा जहां पसीना गिरेगा, वहां
हमारा खून ।” जब काम पड़ा किये तो
महाशय ने कटी ऊंगली पर भी न मूता ।।
3. उपसंहार:
पण्डित प्रतापनारायण मिश्रजी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से तत्कालीन समाज के अंग्रेजी राज्य की तो मानो कलई ही खोल दी है । उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज सेवा एवं देश सेवा के साथ-साथ हिन्दी की सेवा का कार्य भी किया है । उन्होंने अपने साहित्यकार होने के धर्म का पूरा दायित्व निभाया । इतनी अल्पावस्था में उनकी बहुविध एवं युगीन रचनाओं के कारण साहित्य जगत् उनको सदा स्मरण रखेगा ।