भूषण की जीवनी | Bhushan Kee Jeevanee | Biography of Bhushan in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त एवं कृतित्व ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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महाकवि भूषण रीतिकाल के एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिन्होंने शृंगार-निरूपण को छोड़कर परम्परा के विरुद्ध वीर रस की कविताएं लिखीं । यद्यपि कुछ लोग उन पर साम्प्रदायिक होने का आरोप भी लगाते रहे हैं, तथापि यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वे एक सच्चे राष्ट्रवादी कवि थे ।

मुगलों के आक्रमण के विरुद्ध आवाज बुलन्द करने वाले राष्ट्रनायक शिवाजी एव वीर बुंदेला छत्रसाल के राष्ट्रप्रेम को कवि भूषण ने अपनी कविता का विषय बनाया और जनता में मातृभूमि के प्रति प्रेम को जागृत करने का महान कार्य किया ।

2. जीवन वृत एवं कृतित्व:

वीर रस के श्रेष्ठ कवि भूषण रीति कवि चिंतामणि और मतिराम त्रिपाठी के तीसरे भाई थे । वे रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र थे । उनका जन्म संवत 1670 को कानपुर के निकट तिकवापुर नामक स्थान में हुआ था । उन्हें चित्रकूट के राजा रूद्रशाह सोलंकी ने ”भूषण” की उपाधि दी थी ।

वे छत्रसाल तथा शिवाजी के आश्रयदाता कवि थे । भूषण बहुत ही स्वाभिमानी थे । एक बार नमक मांगने पर उनकी भाभी ने उन्हें निखहू कह दिया । इस पर वे घर छोड्‌कर देवी की आराधना करने के लिए निकल पड़े । वे कई राजाओं से भी मिले । उन्हें सभी राजाओं की विलासिता देखकर चिढ़ सी हो गयी थी ।

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भूषण जब शिवाजी के सम्पर्क में आये, तो वे उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए । उन्होंने शिवाजी के उद्देश्य के अनुसार यवनों के विरुद्ध हिन्दू जनता में मातृभूमि के प्रति प्रेम जागृत किया । अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रभक्ति का ऐसा जोश उनमें भरा कि उनमें राष्ट्रभक्ति की धारा-सी बह निकली ।

उन्होंने शिवाबावनी, शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक की रचना की । शिवराज भूषण में महाराज शिवाजी के शौर्य-पराक्रम का वर्णन है, तो 105 अलंकारों का निरूपण भी किया है, जिसमें अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, निर्दशना, अतिशयोक्ति आदि प्रमुख हैं । अलंकारों के साथ-साथ उन्होंने कवित्त, सवैया, छप्पय दोहे का भी प्रयोग किया है ।

शृंगारिक कविताओं की तरह उनकी कविताओं में कल्पना की उतनी ऊंची उड़ान नहीं है, तथापि उन्होंने अपनी ओजमयी ब्रजभाषा को आवश्यकतानुसार तोड़ने-मरोड़ने में तनिक भी संकोच नहीं किया है । अमिधा, लक्षणा के सुन्दर समन्व्य से युक्त उनकी भाषा अकड़ती चलती है । जैसे:

साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धारि ।

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सरजा शिवाजी जंगजीतन चलत है ।।

इन्द्र जिमि जम्भ पर बाड़व सुअम्भ पर ।

रावण सुदाम पर रघुकुल राज है ।।

पौन बारिबाह पर, सम्मु रार्तनाह पर ।

ज्यों, सहस्त्रबाहु पर राम द्विजराज है ।।

दावा द्रुममण्ड पर चीता मृगझुण्ड पर ।

भूषण वितुण्ड पर जैसे मृगराज है ।।

तेज अस पर कान्ह जिमि कंस पर ।

त्यो मलिच्छ बंस पर सेर शिवराज है ।।

उनकी भाषा वीर रस के अनुरूप ओजस्विनी है । भाषा प्रवाहमयी, मुहावरे एवं कहावतों से समृद्ध है । इसी प्रकार महाराज छत्रसाल की वीरता एवं साहसपूर्ण गाथाओं का वर्णन छत्रसाल दशक में उन्होंने किया है ।

3. उपसंहार:

यह स्पष्ट है कि महाकवि भूषण सच्चे अर्थों में एक कवि ही नहीं, राष्ट्रभक्त भी थे । जिस तरह साहित्य समाज को प्रभावित करता है, वैसे भूषण के साहित्य ने तत्कालीन भारतीय समाज को प्रभावित किया । उसमें राष्ट्रप्रेम की क्रान्तिकारी भावना एवं जोश भरा । इस प्रकार उन्होंने अपने साहित्यकार धर्म का भी पूरी तरह से निर्वाह किया है । उन पर साम्प्रदायिक होने का आरोप संकीर्ण व पूर्वाग्रह भरी मानसिकता का परिचायक होगा ।

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