मनु भंडारी की जीवनी | Manu Bhandari Kee Jeevanee | Biography of Manu Bhandari in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. रचना कौशल ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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स्वतन्त्रता के बाद जिन कहानीकारों ने अपनी विशिष्ट एवं अलग पहचान बनाकर हिन्दी कहानी को एक नयी दिशा दी थी, उनमें मन्नू भण्डारी का नाम विशेष उल्लेखनीय है । मन्नू भण्डारी ने सामाजिक मान्यताओं और रूढ़ियों के प्रति स्वस्थ दृष्टि का विकास किया ।

इनकी कहानीकला चुनौतियों से जूझती हुई बेबाक भाषा में सामाजिक सरोकार की कहानियां हैं । अर्धसामन्ती व अर्धपूंजीवादी समाज में नारी का संघर्ष जागरूकता इनका विषय है ।

2. रचना कौशल:

3 अप्रैल, 1931 को भानपुरा (म॰प॰) में जन्मी, बनारस विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ करने के पश्चात् यह दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बन गयीं । इनकी कथाकृतियों पर फिल्मों का निर्माण भी होने लगा । इनकी प्रकाशित पुस्तकें  एक इंच मुसकान, आपका बंटी, स्वामी, महाभोज, आसमान, मैं हार गयी, तीन निगाहों की एक तस्वीर, एक प्लेट सैलाब, यही सच है, त्रिशंकु, बिना दीवारों के घर, महाभोज, कलवा, आंखों देखा झूठ ।

मन्नू भण्डारी ने अपनी रचनाओं में मानव-मन का अत्यन्त मनोवैज्ञानिक रूप से चित्रण किया है । मन्नू भण्डारी ने नारी मनोविज्ञान का अत्यन्त बारीकी के साथ चित्रण किया है । भारतीय नारी के तथाकथित आदर्शों, घटाटोप में छटपटाती नारी की आशाओं, आकांक्षाओं और लालसाओं को निर्भीक वाणी दी है, जिसमें नारी अपनी पारम्परिक छवि से बाहर निकलकर मानवी नारी के रूप में सामने आती है ।

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व्यक्तिमन की कहानियां लिखते हुए इन्होंने जीवन की सहजता को छोड़ा नहीं है । मन्नू भण्डारी ने अपने लेखन में हमेशा कुछ-न-कुछ जोड़ा है । इनके लेखन में ताजगी की धार मिलती है । इनके पात्र ओढ़ी हुई बौद्धिकता या अहंकार में अपने परिवेश में जीवन जीते हैं । मानवीय सम्वेदनाएं प्रत्येक पात्रों के साथ अन्तरंग सम्बन्ध जोड़ लेती हैं ।

”आपका बंटी” उपन्यास का पात्र बंटी है । उसकी मां उसके पिता से अलग हो जाती है । बंटी अलग हुई मां को दूसरे किसी पुरुष के साथ देखना नहीं चाहता है । बाल-अन्तर्मन में उमड़ते-घुमड़ते भावों का मन्नू भण्डारी ने इतना सशक्त चित्रण किया है कि उनका बंटी सबका बंटी बन जाता है ।

”सोमा बुआ” उनकी इस कहानी की बुआ सभी के काम आती है । वह मुहल्ले-भर की बुआ है । ”बुआ” का व्यक्तित्व मन्नू भण्डारी की लेखनी का स्पर्श पाकर ”प्रेमचन्द की बूढ़ी काकी” के मनोवैज्ञानिक पात्र का संस्पर्श करता है ।

”स्वामी”, जिसकी पटकथा पर हिन्दी फिल्म भी बनी है, इस उपन्यास का प्रारम्भ, मध्य एवं अन्त इतना रोचक, सशक्त एवं प्रभावपूर्ण है कि पात्रों के मनोभाव एवं घटनाओं का ऐसा सुन्दर समन्वित रूप ले बैठता है कि उसकी नायिका ”मिनी” मानो सामने आ खड़ी हो । मन्नू भण्डारी की भाषा सहज, प्रवाहमयी एवं प्रभावशाली है । पात्रानुकूल, विषयानुकूल भाषा के प्रयोग ने इन्हें श्रेष्ठ महिला कथाकारों की श्रेणी में ला खड़ा किया है ।

3. उपसंहार:

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मन्नू भण्डारी हिन्दी साहित्य की उन महिला लेखिकाओं में स्थान रखती हैं, जिन्होंने कहानी के स्वरूप को नयी जमीन दी । इनकी कहानियां हों, चाहे फिर उपन्यास प्रत्येक पात्र, प्रत्येक घटना बड़ी सजीवता के साथ पाठकों के समक्ष आ खड़ी होती है । इनके पति एवं कहानीकार राजेन्द्र यादव का लेखन दूसरी महिला कथाकारों से स्वतन्त्र एवं विशिष्ट मौलिकता लिये हुए है ।

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