मुहम्मद अली की जीवनी | Biography of Muhammad Ali in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. प्रारम्भिक संघर्षमय जीवन एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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मुक्केबाजी विश्व का लोकप्रिय एवं प्राचीन खेल है । मुक्केबाजी में नोंक आऊट, अर्थात् 10 सैकण्ड तक रैफरी द्वारा गिनती गिनने तक रिंग के फर्श पर मुक्केबाज का न उठना कहलाता है । विपक्षी मुक्केबाज के खेल योग्य न रहने पर अंकों के आधार पर यह खेल जीता जाता है ।

यह खेल 610 वर्ग मीटर के रिंग में 3 रस्सों के घिरे स्थान में खेला जाता है । इसमें हैवी वेट की 11 श्रेणियां होती हैं । 1 जज, 1 रैफरी, 1 टाइमकीपर होता है । इसमें फाउल के अपने नियम हैं । मुक्केबाजी के इतिहास में जितना विवादास्पद, रोमांचक, असाधारण नाम कैसियस क्ले उर्फ मोहम्मद अली का था, उतना माइक टाइसन को छोड़कर किसी अन्य का नहीं ।

2. प्रारम्भिक संघर्षमय जीवन व उपलब्धियां:

नीग्रो परिवार में 17 जनवरी, 1942 को जन्मे कैसियस क्ले का नाम इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बाद मोहम्मद अली हो गया । अपने पेशेवर जीवन में 69 लाख डॉलर की रिकॉर्ड कमाई करने के लिए इन्हें 61 मुकाबलों गे 549 चक्र मुक्केबाजी करनी पड़ी ।

इन्होंने राम ओलम्पिक में ”लाइट हैवीवेट” का स्वर्ण पदक हासिल किया था । 25 फरवरी, 1964 को बौव्यिता की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी । ये रिंग के भीतर व बाहर अपनी अनूठी जीवनशैली के कारण प्रसिद्ध रहे हैं ।

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इनके नाम 3 बार विश्व हैवीवेट चैम्पियन आने का विश्व रिकॉर्ड रहा । इनका जीवन बहुत असाधारण व कठिनाइयों से भरा था । रंग-भेद नीति के कारण इन्हें कई अपमानजनक तथा अप्रिय घटनाओं का सामना करना पड़ा था ।

एक बार एक गोरे पत्रकार ने इनसे यह पूछा था कि-यदि आपको वियतनाम की लडाई में भेज दिया जाता और उस समय आपक बन्दूक में केवल एक ही गोली रहती, तो ऐसी पेशा में आप क्या करते ?” मोहम्मद अली का जवाब था-तो मैं उसे तुग पर चला देता ।”

बस फिर क्या था, अमेरिकी रंग-भेद नीति ने इन्हें कानूनी दुष्वकों में फंसाकर क्याका विश्व विजेता का पदक छीन लिया । बचपन में मुक्केवाजी की देसी आजमाइश की कि गुरके में एक अध्यापक पर मुक्का चला दिया ।

बुरी तरह से घायल अध्यापक से इस तरह के व्यवहार में इन्हें अनुशासनहीनता का दण्ड भुगतना पड़ा । इन्होंने स्वयं ही विश्व चैम्पियन बनने की भविष्यवाणी कर दी थी । 18 वर्ष की अवस्था में राष्ट्रीय चैम्पियन बनने का गौरव तथा 1960 में ओलम्पिक गोल्ड मैडल जीतने का गौरव इन्हें ही हासिल है । ये अपनी शेख चिल्ली की तरह शेखी बघारने की आदत की वजह से काफी चर्चित रहे हैं ।

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तितली की तरह नाचकर, मधुमक्खी की तरह प्रहार कर खेलना इन्हें पसन्द है । अपने बारे में ये कहते हैं कि मैं सचमुच महान् हूं । महानतम हूं खूबसूरत भी इन्होंने हर मुकाबले में लगभग 15 लाख रुपये कोई धनराशि जीती, जो उाब इनकी पत्नी से हुए जीवन निर्वाह पर दिये खर्चे में जा रही है ।

25 फरवरी, 1964 को उन्होंने सानी लिरटन को 1 मिनट से याग सगयावधि में हराकर विश्व विजेता का पद प्राप्त किया । 1965 को पहले ही राउण्ड में फिर इन्हें हराया । 22 नवम्बर, 1965 को पलाइड पेटरसन को बुरी तरह से घायल कर यह मुकाबला जीता ।

19 मार्च, 1966 को जार्ज चुवाले को हराकर कनाडा चैम्पियनशिप जीती । 21 मई, 1966 के मुकाबले में तो इन्होंने अपने जीतने की भविष्यवाणी करके इंग्लैण्ड के मुक्केबाज कूपर को खून से लथपथ कर दिया । उसका खून से भरा चेहरा देखकर संवेदना भी व्यक्त की । 1966 के दो मुकाबलों में इन्होंने इंग्लैण्ड के ब्रायन को पराजित किया ।

14 नवम्बर, 1966 से 1971 तक के मुकाबलों गे इन्होंने विलियम, एरनी टेरेल, जोरा फोली, बोना बेना जैसे दिग्गज चैम्पियनों को परास्त किया । 8 मार्च, 1971 के रोमांचकारी मुकाबले में इन्होंने फ्रेजियर को हराने की गर्वोक्ति की थी ।

15 राउण्ड तक चलने वाले इस मुकाबले में फ्रेजियर जीते । फ्रेजियर को देखकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचता था, किन्तु जब फ्रेजियर ने इनके खेल की प्रशंसा करते हुए अली की पीठ थपथपायी, तो वै शर्मिन्दा हुए बिना नहीं रह सके ।

3. उपसंहार:

खेल जीवन से संन्यास के बाद अली ने नौजवानों को यह सीख दी कि ये इस खेल को अपना पेशा न बनाये । इनका जीवन संघर्ष यही कहता है । मुक्केबाजी के दौरान दिमाग पर आयी गम्भीर चोटों के कारण ये पार्किन्सन रोग से ग्रसित हो गये । आजकल ये अपनी बेटी लैला को मुक्केबाजी में प्रवीण कर उसे मुकाबलों में उतरने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं ।

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