यशोधरा की जीवनी | Biography of Yashodhara in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. यशोधरा का आदर्श चरित्र ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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यशोधरा की जीवन गाथा त्यागमयी नारी की गौरव गाथा है, जिसने अपने पत्नी धर्म तथा पुत्र धर्म का निर्वाह करते हुए अपने पति सिद्धार्थ के वियोग में सम्पूर्ण जीवन एकाकीपन की पीड़ा में व्यतीत किया । सिद्धार्थ के महानिष्क्रमण के बाद अपने पुत्र के प्रति माता-पिता के दायित्व का बखूबी अकेले ही निर्वाह किया ।
पति सिद्धार्थ द्वारा रात्रि में अचानक उसे छोड़ जाने का जो आघात उसे लगा था, उसे भी उसने हंसकर सहा था ।
2. यशोधरा का आदर्श चरित्र:
यशोधरा कोलिय वंश के राजा दण्डपाणि की रूपवती कन्या थी । उसे मद्दकच्याना, सुभद्रा या बिम्बी अथवा गोपा आदि नामों से भी जाना जाता है । विवाह के समय उसकी अवस्था मात्र 16 वर्ष की थी । वह अपने पति सिद्धार्थ से अत्यन्त अनुराग रखती थी । उनका वैवाहिक जीवन अत्यन्त सुखमय था ।
पुत्र राहुल को जन्म देकर उसने सिद्धार्थ का जीवन खुशियों से भर दिया था, किन्तु जब पति सिद्धार्थ का मन सांसारिक माया-मोह से दूर संसार को दुःखों से निवृति देने हेतु संन्यास की ओर प्रेरित हुआ और जब वे उसे अर्द्धरात्रि को पुत्र राहुल सहित सोता छोड़कर महानिष्क्रमण के लिए चले गये, तो यशोधरा को इस बात का अत्यन्त कष्ट हुआ कि जिस पति ने उसके साथ विवाह के समय अग्नि के समक्ष सात फेरे लेते हुए जीवन-भर सुख-दुःख में साथ देने की कसमें खाई थीं, उसी पति ने उसे अपने इस तरह मंझधार में छोड़कर जाते समय अपने संन्यासी होने के निर्णय के बारे में अवगत तक नहीं कराया ।
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यशोधरा यही कहती रही: सिद्धि हेतु स्वामी गये हैं सखी! यह है गौरव की बात । किन्तु कहकर नहीं गये, यह बड़ा आघात…सखी वे मुझसे कहकर जाते । यशोधरा इस वियोग की असीम पीड़ा को सहते हुए भी यही मंगलकामना करती है कि वे जहां भी जायें, सिद्धि प्राप्त करें और संसार का कल्याण करें । इस तरह वह अपने त्याग और धैर्य का परिचय देती है ।
3. उपसंहार:
यदि यशोधरा का त्याग सिद्धार्थ के साथ न होता, तो सिद्धार्थ भी अपनी कार्यारीद्धि नहीं कर पाते । यशोधरा एक क्षत्राणी नारी थी । वह भारतीय नारी के उस सांरकृतिक आदर्श का बेजोड़ उदाहरण थी, जो अपने पति के हित को ही अपना हित समझती हुई उसके प्रति मंगलकामना ही रखती है ।