रजिया सुल्तान की जीवनी | Biography of Razia Sultan in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. रजिया का व्यक्तित्व व उसका शासन-प्रबन्ध ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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रजिया मध्ययुगीन भारत की पहली प्रतिभा सम्पन्न, साहसी, राजनीतिज्ञ, प्रजाहितैषी शासिका थी । इतिहासकारों का कहना है कि यदि वह स्त्री न होती, तो भारत के महान मुस्लिम शासकों में गिनी जाती । उसमें शासक के सभी गुण मौजूद थे ।
लड़की होने के कारण वह तत्कालीन रूढ़िग्रस्त समाज द्वारा स्वीकारी नहीं गयी । एक विद्वान ने यहां तक कहा कि: ”वह एक पुरुष का मस्तिष्क रखती थी और बीस पुत्रों से भी अच्छी थी ।”
2. रजिया का व्यक्तित्व व उसका शासन-प्रबन्ध:
रजिया इल्तुतमिश की योग्य पुत्री थी । इल्तुतमिश के सभी पुत्र अयोग्य, निकम्मे और विषय-भोगी थे । इल्तुतमिश कहता था: ”मेरे पुत्र जवानी की ऐय्याशी में गर्क हैं और उनमें से कोई सुलतान बनने योग्य नहीं
है । रजिया ही शासन चलाने के योग्य है और कोई नहीं ।” अत: उसने रजिया को सुलतान बना दिया ।
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रजिया ने 1236 से 1240 तक शासन किया । रजिया का शासक बनना बहुत बड़ी सफलता न होकर मुसीबत हो गयी । यद्यपि वह साहसी, व्यवहारकुशल, दूरदर्शी, कुशाग्र बुद्धि, न्यायप्रिय, विद्वानों की आश्रयदाता, प्रजाहितैषी शासिका थी । उसने सरदारों को दूरदर्शिता से अपनी ओर मिलाना शुरू किया और विलक्षण कूटनीति एवं साहस का परिचय देते हुए विरोधियों में फूट डलवायी । उसने अपने साहस व बुद्धिमता से पंजाब पर अधिकार कर लिया ।
बंगाल और सिन्ध को अधीनता स्वीकार करने पर मजबूर किया । उसने शासन का पुनर्गठन किया । महत्वपूर्ण पदों पर सहयोगी और विश्वसनीय व्यक्तियों को बिठाया । तुर्क सरदारों के अहम और एकाधिकार को नष्ट कर उसने सामंतों और तुर्कों के अलावा अबीसिनियन, अमीर मलिक जमालुद्दीन याकूत को शाही घुड़सवारों का प्रधान बनाया ।
रजिया अविवाहित थी, अत: उस पर यह आरोप भी लगाये गये कि उसे याकूत से मुहबत थी । वस्तुत: रजिया और याकूत के बीच कोई निन्दनीय और अपराधात्मक सम्बन्ध नहीं थे । याकूत ने रजिया की बस कृपा प्राप्त की थी ।
गद्दी पर बैठते ही रजिया ने स्त्रियों का चोला उतार फेंका । वह पुरुषों जैसे वस्त्र धारण कर घुड़सवारी करती थी । प्रभावशाली ढ़ंग से दरबार चलाती थी । सार्वजनिक रूप से वह हाथी पर सवार होकर निकलती
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थी । उसने एक विश्वसनीय शासन-प्रणाली स्थापित करने के लिए विद्रोहों को दबाया ।
किन्तु उसके प्रजाहितैषी कार्यों को भी नकार दिया गया; क्योंकि वह एक औरत थी । तुर्की योद्धाओं का एक औरत का शासिका होना गंवारा नहीं था । कट्टर सुन्नी मुसलमान उसके मर्दाना पोशाक से अप्रसन्न हो गये । वह सरदारों को मनमानी करने से रोकती थी । इन विभिन्न कारणों से रजिया के खिलाफ विद्रोहों और षड्यन्त्रों का तांता-सा लग गया ।
रजिया ने सबसे पहले लाहौर के सूबेदार कबीर खां के विद्रोह को दबाया । भटिण्डा के विद्रोही शासक अल्तूनिया का दमन कर वह दिल्ली याकूत के साथ लौट रही थी, तो 14 अक्तूबर 1240 को याकूत को बीच रास्ते में ही मार डाला गया । बेहराम को दिल्ली का शासक बना दिया गया । रजिया को बन्दी बनाकर लाया गया । उसका विवाह अल्तूनिया से हो गया ।
रजिया और अल्तूनिया बेहराम से लोहा लेने आगे बढ़े थे । 13 अक्तूबर, 1240 को अल्तूनिया और बेहराम के मध्य घमासान युद्ध हुआ, जिसमें अल्तूनिया परास्त हुआ । कहा जाता है कि अल्तूनिया मारा गया । अल्तूनिया की मौत के बाद रजिया 17 वर्षों तक एकान्त जीवन जीती रही ।
3. उपसंहार:
रजिया योग्य शासिका होते हुए भी राजनीतिक षड्यन्त्रों और विद्रोहों के कारण शासन से दूर कर दी गयी । वस्तुत: तुर्क अमीर सैनिकों की शासक बनने की महत्त्वाकांक्षा ही रजिया को स्वीकारना नहीं चाहती थी ।
वह इल्तुतमिश की एक योग्य उत्तराधिकारी थी । उसकी श्रेष्ठता को सिद्ध करते हुए ”उमदत्त-उम-निस्बा” यह उक्ति सिक्कों पर लिखवायी, अर्थात् स्त्रियों में उदाहरणीय । यदि रजिया के एक स्त्री होने के नाते उसके शासन को व्यर्थ बताया जाता है, तो सिक्कों पर अंकित उल्लेखित वह उक्ति नहीं लिखी गयी होती ।