शकुंतला की जीवनी | Biography of Shakuntala in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. शकुन्तला का जीवन चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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शकुन्तला पौराणिक भारतीय नारियों में उच्चतम स्थान पर सम्मानित होने का गौरव इसलिए रखती हैं; क्योंकि उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश आर्यावर्त का नाम भारतवर्ष पड़ा । शकुन्तला का सम्पूर्ण जीवन चरित्र मान तथा अपमान के बीच होते हुए भी पौराणिक भारतीय नारियों में आदर्श चरित्र है ।

2. शकुन्तला का जीवन चरित्र:

शकुन्तला ऋषि विश्वामित्र तथा मेनका की कन्या थी । जन्म से ही विश्वामित्र तथा मेनका ने उसका त्याग बड़ी ही कठोरता से कर दिया था । इन्द्र ने विश्वामित्र के तप को भंग करने हेतु इन्द्र सभा की अप्सरा मेनका को भेजा था ।

विश्वामित्र का तप भंग हुआ और वे मेनका के आकर्षण में ऐसे बंधे कि मेनका को उनसे जो पुत्री प्राप्त हुई, वह शकुन्तला ही थी । विश्वामित्र दोनों को अकेला छोड़कर तप करने चले गये । कुछ समय पश्चात मेनका ने शकुन्तला को शैशवास्था में जंगल में ही पशु-पक्षियों के बीच छोड़ दिया ।

वन के शकुन्त, अर्थात् पक्षियों ने अपनी छत्रछाया में उसका लालन-पालन किया, इसलिए वह शकुन्तला कहलायी । अचानक एक दिन वनमार्ग से जाते हुए ऋषि कण्व को नवजात बच्ची शकुन्तला मिली । वे उसे अपने आश्रम ले आये, जहां ऋषि की कुटिया में वह पली बढ़ी । सभी वनवासियों की वह दुलारी थी ।

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अत्यन्त रूपवान, गुणवान शकुन्तला को कण्व ऋषि भी बहुत अधिक स्नेह करते थे । शकुन्तला युवा हुई, तो उसका रूप और भी निखर आया । एक दिन कण्व ऋषि किसी कार्य से बाहर गये हुए थे । कुटिया में शकुन्तला अकेली थी । अचानक द्वार पर किसी ने दस्तक दी ।

उसने पाया कि एक राजकुमार आतिथ्य गहण करने की आकांक्षा से वहां आया है । शकुन्तला ने उसका आतिथ्य-सत्कार किया । वह शकुन्तला के रूप-यौवन को देखकर विवाह का निवेदन कर बैठा । शकुन्तला ने अपने पिता कण्व की अनुपस्थिति में ऐसा करने से अस्वीकार किया ।

राजकुमार ने बताया कि वह प्रतापी राजा दुष्यन्त है । उसके साथ गन्धर्व विवाह करना चाहता है । ऐसी परम सौशायशालिनी स्त्री को वह तुरन्त वरण करना चाहता है । शकुन्तला प्रेमवश दुष्यन्त की बातों में आ गयी और उसने राजा दुष्यन्त से गन्धर्व विवाह कर लिया ।

जाते समय राजा दुष्यन्त ने शकुन्तला को अपनी पहचान के रूप में एक अंगूठी दी और उसे शीघ्र ही राजधानी ले जाने का वचन भी दिया । इसके बाद सन्ध्या होने से पहले ही अपनी राजधानी लौट गये । जब कण्व ऋषि लौटे, तो शकुन्तला ने अपनी परम सखी अनसूया के माध्यम से ऋषि कण्व को सारी बात बतायी ।

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स्नेहवश उन्होंने शकुन्तला के इस विवाह को स्वीकार करते हुए उसके निर्णय को उचित ठहराया । दुष्यन्त के प्रेम में खोई हुई शकुन्तला ऐसे ही एक दिन द्वार पर यह सोचते बैठी थी कि दुष्यन्त उसे अपनी राजधानी ले जाने क्यों नहीं आये ? उनका प्रेम था या छल ? इतने मेन द्वार पर दुर्वासा मुनि भिक्षाम्‌देहि! भिक्षामदेहि! कहते खड़े थे ।

शकुन्तला का ध्यान तो राजा दुष्यन्त में खोया था । दुर्वासा मुनि ने कुछ क्षण प्रतीक्षा कर शकुन्तला को यह कहते हुए शाप दे डाला कि: ”तू जिसके विचार में इतना खोई है, जा वह तुझे भूल जायेगा ।”  शकुन्तला की तन्द्रा भंग हुई, तो उसने दुर्वासा के चरणों पर गिरकर शाप-मुक्ति हेतु क्षमा मांगी ।

दुर्वासा ने उदारता दिखाते हुए कहा कि ”यदि उसे तुम्हारी कोई पहचान की वस्तु मिल जाये, तो वह तुम्हें पुन: स्वीकार कर लेगा ।” समय बीतने पर शकुन्तला गर्भवती हुई । शकुन्तला ने अपने पिता पर बोझ बने रहने की अपेक्षा राजा दुष्यन्त के पास जाना उचित समझा ।

भारी मन से ऋषि कण्व, वनवासियों, पशु-पक्षियों, बेलों तथा लताओं ने शकुन्तला को विदाई दी । शकुन्तला दो ऋषि शिष्यों के साथ राजा दुष्यन्त के महल जा पहुंची । शाप के प्रणाव से दुष्यन्त ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया और उसे दुष्चरित्र कहकर अपमानित करते हुए महल से निकाल दिया ।

शकुन्तला के अनुनय-विनय का दुष्यन्त पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । पुन: वनवासियों के बीच आकर शकुन्तला ने कुछ समय पश्चात् एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । ऐसे ही दिन बीतते चले गये । एक दिन राजा दुष्यन्त अपनी बड़ी तथा छोटी रानी के साथ बाग में टहल रहे थे, तभी मछुआरे ने आकर यह खबर दी कि उसे मछली काटते समय उनके राजचिह्न वाली एक अंगूठी प्राप्त हुई है ।

राजा दुष्यन्त ने जैसे ही अंगूठी देखी, तो उन्हें शकुन्तला की याद हो आयी । बड़ी रानी ने राजा दुष्यन्त को शकुन्तला के साथ किये गये उस दुर्व्यवहार व अपमान के प्रति क्षमा मांगने हेतु और उसे ससम्मान राजमहल वापस ले आने हेतु निवेदन किया ।

राजा दुष्यन्त ने अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए वन की ओर प्रस्थान किया । वे वन में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि एक 8 वर्षीय बालक दो सिंहों के साथ खेल रहा था । उसके मुखमण्डल पर राजसी तेज था ।

राजा दुष्यन्त ने उस बालक की वीरता से प्रभावित होकर उससे यह जानना चाहा कि उसके सौभाग्यशाली माता-पिता कौन हैं ? बालक ने कुटिया के द्वार की ओर संकेत कर कहा कि वह अपनी माता का परिचय ही जानता है ।

पिता के बारे में नहीं जानता । राजा दुष्यन्त उत्सुकतावश शकुन्तला का ख्याल करते हुए कुटिया के द्वार पर जा पहुंचे । उन्होंने पाया कि वह तो उनकी प्राणप्रिया शकुन्तला ही है । शकुन्तला ने कहा कि वह उन्हें नहीं पहचानती ।

राजमहल में इतना अपमानित होने की घटना उसके लिए अब भी ताजा थी । दुष्यन्त ने शकुन्तला को खूब मनाया और बताया कि ऐसा शापवश हुआ है । शकुन्तला को अचानक याद हो आया कि उसके साथ जो कुछ हुआ, वह तो दुर्वासा मुनि के शाप का प्रतिफल था । उसकी अंगूठी नदी पार करते समय जल में गिर गयी थी, जिसे मछली निगल गयी थी । जिसे देखते ही दुष्यन्त को शकुन्तला की पुन: याद हो आयी ।

उसने बताया कि शेरों से खेलने वाला वह बालक उनका ही पुत्र है । कालान्तर में वह बालक श्रेष्ठ राजा बना । उसके नाम भरत से ही भारतवर्ष का नाम ”भारत” पड़ा । इस तरह सुखपूर्वक दिन व्यतीत करने के बाद शकुन्तला और दुष्यन्त अपने बेटे भरत को राज सौंपकर वन की ओर चले गये ।

3. उपसंहार:

दुष्यन्त और शकुन्तला की प्रेमकथा हमारे पौराणिक आख्यानों में ही नहीं है, वरन् कालिदास जैसे संस्कृत के श्रेष्ठ रचनाकार ने इसे अपने नाटक ”अभिज्ञान शकुन्तलम” के माध्यम से युगों से अमर बनाये रखा है । शकुन्तला और दुष्यन्त के साहसी और वीर पुत्र ने चक्रवर्ती सम्राट बनकर कई वर्षों तक भगवान् राम की तरह आदर्श शासन स्थापित किया ।

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