पक्षियों में अंडे की पकड़ (प्रक्रिया)! Read this article in Hindi to learn about the process of hatching of eggs in birds.
यद्यपि हमने हंस को अण्डे देते देखा तथा चूजों को अण्डे से बाहर आने के बाद तुरन्त देखा किन्तु अण्डे का छिलका तोड़कर चूजे किस प्रकार बाहर आते हैं, यह हम नहीं देख पाए । सौभाग्यवश मुर्गी के अण्डों में से चूजे बाहर निकलने की प्रक्रिया का अवलोकन करने हेतु मंच की व्यवस्था करना बहुत कठिन नहीं है ।
चूजे प्राप्त करने हेतु हमें निषेचित अण्डों की आवश्यकता होगी । ये अण्डे उस मुर्गी के होने चाहिए जिसने मुर्गे के साथ जोड़ा बनाया । ऐसे अण्डे कई ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध होते हैं किन्तु उन्हें 21 दिन तक 39 डिग्री सेल्सियस तापमान में सेया जाना चाहिए । यद्यपि अण्डे सेने की एक मशीन की व्यवस्था करना संभव है किन्तु इतने दिनों तक स्थिर तापमान बनाए रखना कठिन काम होता है । सौभाग्यवश आजकल पौल्ट्री का व्यवसाय बहुत विकसित हो गया है ।
अत: आज अनेक चूजा- शालाएं (Hatcheries) खुल गई हैं जो निषेचित अण्डों का उत्पादन कर उनसे चूजे निकालकर पालती हैं । इस हेतु वे बड़ी-बड़ी अण्डे सेने वाली मशीनों में 21 दिन तक 39 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अण्डे सेने का कार्य करती हैं ।
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यदि हमें 18-19 दिन तक के हुए अण्डे प्राप्त हो जाएं तो हमारा काम चल सकता है । वैसे भी इस समय तक अण्डों के तापमान में आई अस्थिरता को सहने की शक्ति विकसित हो जाती है ।
अण्डों से चूजों के निकलने की प्रक्रिया को निहारने हेतु निम्न कार्य करने की आवश्यकता होगी:
(1) किसी ढके हुए एक्वेरियम (अथवा किसी भी उपयुक्त पारदर्शी बर्तन में) एक धातु के परावर्तक लगा हुआ बिजली का बल्ब लटका दें तथा प्रयोगशाला में प्रयुक्त तापमापी से तापमान नोट करें । बल्ब को तथा उसकी ऊँचाई को इस प्रकार बदलें कि अंदर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से 39 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे । तापमान स्थिर होने पर अण्डों के बगल में एक पानी भरा कटोरा रखें जिससे अन्दर आर्द्रता बनी रहे ।
(2) तापमान पर कड़ी नजर रखें । यह सुनिश्चित करें कि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर न जाए तथा 35 डिग्री सेल्सियस से कम न हो । आपको एक्वेरियम के ऊपर एक और आवरण डालने की आवश्यकता पड़ सकती है अथवा तापमान स्थिर रखने हेतु कुछ देर के लिए लाइट भी बन्द करनी पड़ सकती है यदि लंबे समय तक बिजली चली जाती है तब अण्डों के आस-पास मोमबत्ती के छोटे टुकड़े (ज्योति को नीचा रखने हेतु छोटे टुकड़े) जलाकर रख दे ।
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(3) अण्डों में कुछ हलचल के चिन्ह अथवा अण्डों के अंदर से कोई चींचीं की आवाज सुनाई देती है, इस पर ध्यान रखें । कुछ अण्डों से बीसवें दिन चूजे निकल सकते हैं । यह तापमान पर निर्भर करेगा ।
(4) अण्डे में थोड़ी हलचल के बाद चोंच मारने की धीमी आवाज सुनाई देगी । इसके बाद अण्डे के कवच में से एक छोटी सी चोंच बाहर निकलेगी ।
(5) अण्डे के कवच की दरार धीरे-धीरे बढ़ेगी व अण्डे के अन्दर एक गीला, चिपचिपा चूजा दिखाई देगा ।
(6) फिर कवच दो भागों में बट जायेगा तथा एक गंदे प्राणी के रूप में चूजा बाहर आएगा सारी प्रक्रिया में एक घण्टे का या इससे अधिक का समय लग सकता है । बार-बार चोंच मारने के कारण व आवरण को ढकेलने के कारण चूजा इतना थक जाता है कि वह कुछ देर उठ भी नहीं सकता ।
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धीरे-धीरे उसमें शक्ति आएगी तथा वह अपने लड़खड़ाते पैरों पर, जो अभी-अभी फैले हैं, खड़े होने का प्रयास करेगा । हवा के संपर्क में आने पर वह धीरे-धीरे सूखेगा तथा लगभग एक घण्टे बाद वह मुलायम पीले चूजे के रूप में हमारे सामने होगा । वह खाने की तलाश भी प्रारंभ कर देगा तथा अनाज के दानों व कीड़ों पर चोंच मारेगा । पहले कुछ दिनों तक उसके लिए सूजी ही उपयुक्त भोजन होगा ।
जब चूजे सूखकर मुलायम रेशेदार हो जाए तो उन्हें किसी बड़े व हवादार स्थान में रखें किन्तु उन्हें गर्मी प्रदान करने हेतु एक लैम्प जलता रखें । उन्हें भोजन व पानी दें तथा उनकी बिल्लियों से रक्षा करें । इन चूजों को जो आपकी, अपनी आंखों के सामने जन्में हैं, निहारने तथा उन्हें हाथ में लेने में बहुत आनंद आता है ।
अण्डे जिनमें से बच्चे अपने आप निकलते हैं:
पक्षियों के अण्डों के विपरीत गिरगिट/छिपकलियों के अण्डों में से भी बच्चे अपने आप निकलते हैं । आप देखेंगे कि पहली वर्षा के बाद गिरगिट मादा जमीन के अन्दर बिलों में अण्डे देती हैं । गिरगिट मादा के जाने के बाद यदि आप इन अण्डों को खोज सकें (वह इन्हें बहुत अच्छी तरह ढंककर रखती है) तो कुछ नम मिट्टी के साथ इन गिरगिट के चमड़े जैसे कुछ अण्डों को उठाइए और इन्हें किसी पारदर्शी बर्तन में मच्छरदानी की जाली से ढककर रख दीजिए ।
मिट्टी में नमी रखने के लिए उस पर आवश्यकता होने पर पानी का छिड़काव करें । गिरगिट के बच्चे समय आने पर अपने आप अण्डों से निकलेंगे । यदि हो सके तो इन्हें आप टेरेरियम में रख सकते हैं । नहीं तो आप इन्हें बगीचे में गोल अगत छोड़ दीजिए, वे अपनी देखभाल स्वयं कर लेंगे ।
छिपकली के अण्डों को खोजना अधिक सुगम है । ये अपने अण्डे अलग-थलग स्थान पर जैसे पुस्तकों या कागजों के पीछे, कम उपयोग में आने वाले बक्सों में, ऊंचे ताख पर रही हुई खाली शीशियों में देना पसंद करती हैं । ये प्राय: एक या दो अण्डे देती हैं । इनके कवच कड़े होते हैं ।
यह गिरगिट के अण्डों के समान गिलगिले नहीं होते । छिपकली के अण्डों का रंग सफेद होता है, ये लगभग गोल आकार के व आधा सेंटीमीटर के होते हैं । घर की सफाई करते समय प्राय: ये हमें मिल जाते हैं । इन्हें किसी पारदर्शी बर्तन में मच्छरदानी व जाली से ढंककर रख दीजिए समय आने पर बच्चे स्वयं ही अण्डों से बाहर आ जायेंगे अण्डों को ऐसे स्थान पर रखिए जहां आप उन्हें नियमित रूप से देख सकें । छिपकली के बच्चों को यदि भोजन नहीं दिया गया अथवा उन्हें मुक्त नहीं किया गया तो वे मर जाएंगे ।