वृक्षों का परीक्षण! Read this article in Hindi to learn about the experiments on plants for students.

एक वृक्ष का समग्र रूप से परीक्षण करने के उपरान्त, उसे पास से और दूर से देखकर तथा उसे जीवन वृक्ष की उपाधि से विभूषित कर, अब यह स्वाभाविक ही है कि हम अब उसके विभिन्न अंगों का अध्ययन करें । वृक्ष की पत्तियों, कांटों, कड़ी छाल, फूलों तथा फलों तथा उसके किसी अन्य लक्षण के संबंध में हमें उनके आकार, संयोजन, रंग, गंध, स्वाद आदि को नोट करने की आवश्यकता होती है ।

इस प्रकार के मूलभूत प्रयोग के साथ ही वृक्ष के अंगों को बेहतर रूप से जानने के लिए हम कुछ रोचक गतिविधियां कर सकते हैं जिनका वर्णन निम्नानुसार हैं:

छाल-वृक्ष का परिधान:

वृक्षों के तनों की भिन्नता उनकी छाल में परिलक्षित होती है वृक्षों की परिपक्व छालें विभिन्न रंगों की हो सकती हैं, कुछ चिकनी होती हैं तो कुछ खुरदरी, कुछ छालों को तोड़ा नहीं जा सकता किन्तु कुछ को तोड़ा जा सकता है । किसी वृक्ष के छाल के रंग-रूप व स्पर्श को नोट करने के साथ ही छाल की संरचना का छापा लेकर उसे स्थाई अभिलेख हेतु रखा जा सकता है ।

छाल का छापा लेना:

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किन्तु पतले कागज (चर्मपत्र अथवा बॉण्ड पेपर उपयुक्त होगा) का टुकड़ा लें व उसे वृक्ष के तने पर पकड़कर रखें । फिर मोम वाले क्रेयॉन को उस पर रगड़ें । रगड़ने में अधिक जोर न लगाए बल्कि इतना जोर लगाए कि छाल का छापा कागज पर आ जाए । इस प्रकार आसानी से तैयार किया गया छाल का छापा वृक्ष की रूप-रेखा का एक रोचक अंग होगा ।

पत्तियां – वृक्ष की निर्माता:

पत्तियों द्वारा ही वृक्ष को रूप मिलता है । वृक्ष के ये बहुत अधिक संख्या में पाए जाने वाले अंग अनेक आकारों, नापों व संयोजन में पाए जाते हैं । कुछ पौधों की पत्तियों में विशेष लक्षण होते हैं । जैसे सुगंध, स्वाद, संवेदना आदि । किन्तु पौधे की पहचान के लिए पत्तियों का आकार ही सबसे महत्वपूर्ण होता है । इसीलिए पत्तियों का सही-सही वर्णन हमारे वृक्षों की रूप-रेखा का एक महत्वपूर्ण अंग होता है ।  

क्रेयान से पत्तियों का छापा बनाना:

एक स्वस्थ व परिपक्व पली ले व उसे किसी ठोस व सपाट धरातल पर इस प्रकार रखें कि उसकी नीचे की बाजू ऊपर हो । उस पर एक मजबूत किन्तु पतला कागज रखे व उस पर मोम वाली क्रेयान रगड़े कागज पर पत्नी व उसकी शिराओं का छापा उभर कर आ जाएगा । केवल अति नरम पत्नियों को छोड़कर यह प्रक्रिया प्राय: सभी पत्तियों के लिए कारगर होगी । कड़ी व उभरी हुई शिराओं वाली पत्तियों के छापे सबसे अच्छे बनते हैं ।

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पत्ते की रूप-रेखा:

किसी ठोस व चिकने धरातल पर पत्ते को जिसकी रूप-रेखा हमें बनानी है, उल्टा रखें । पत्ते के किनारों के साथ-साथ कागज पर क्रेयॉन से रेखा खींचते रहें । पत्ते के संपूर्ण किनारों पर क्रेयॉन फिराने के बाद पत्ता उठा लें । कागज पर पत्ते की बाह्याकृति तैयार हो जाएगी ।

पत्तियों का अनुरक्षण:

किसी भी पत्ते को सुखाकर अनुरक्षित किया जा सकता है । केवल उसके अंदर की नमी को सूखने में समय लगता है तथा सूखने तक पले को सपाट रखना होता है । पत्तियों को सीखने वाले कागजों के बीच में रखकर उपरोक्त दोनों प्रक्रियाओं को पूर्ण किया जा सकता है । इसके लिए मोटा सोख्ता कागज सबसे उपयुक्त होगा किन्तु साधारण (बिना चमकीला) कागज से भी जा सकता है । कागज पर दाब रखने हेतु ईट अथवा भारी पुस्तकों का उपयोग किया जा सकता है ।

पत्तियों का प्राणी संग्रहालय:

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दबाई हुई पत्तियां सपाट व कागज के समान पतली होंगी । उनका मौलिक आकार वैसा ही रहेगा किन्तु उनका रग भूरा हो जाएगा । वृक्ष की रूप-रेखा के एक भाग के रूप में अथवा उनके आकार व मापो को भिन्नता का अभिलेख रखने हेतु इन पत्तियों को कागज पर चिपकाया जा सकता है । इन दबी हुई सूखी पत्तियों का एक बहुत रोचक प्रयोग हो सकता है ।

इसके लिए हमें पत्तियों के आकार का ध्यान से परीक्षण करना होगा व प्राणियों के अंगों से मिलते आकार की पततियों चयन करना होगा । थोड़े प्रयत्न के बाद हम अपना स्वयं का पत्तियों का प्राणी-संग्रहालय बना सकते हैं ।

पत्तियों का ढांचा:

पूर्व में बनाए गए पत्तियों के छापों में उनकी कड़ी शिराएं सबसे प्रमुख रूप से दिखाई देती हैं । पत्तियों में इन शिराओं का जाल ही उनके मुलायम अंगों को बांधे रखता है, इन मुलायम अंगों को क्षारक घोल में पाचित कर इन पत्तियों का ढांचा बनाया जा सकता है । इस प्रकार के ढांचों को हम स्वाभाविक रूप से सड़ी हुई पत्तियों से भी प्राप्त कर सकते हैं । पीपल, चंपक, फालसा आदि की पत्तियां पानी में अथवा नम जमीन पर कुछ समय पड़े रहने के उपरान्त बहुत अच्छे ढांचे छोड़ती हैं ।

पौधों के अन्य अंगों का संग्रह:

पत्तियां पौधों का सबसे अधिक दिखने वाला व हमेशा बना रहने वाला अंग होता है किन्तु पौधों के अन्य अंग भी हैं जिनकी ओर ध्यान न देना अनुचित होगा । पौधों की पहचान करने में मदद करने के अतिरिक्त ये अंग हमें अध्ययन व संग्रह करने हेतु अत्यधिक वस्तुएं प्रदान करते हैं । इनमें से कुछ अंगों का संक्षिप्त वर्णन हम यहां करेंगे ।

जड़ें:

कुछ अपवादों को छोड़कर सभी बड़े पौधों की जड़ें होती हैं । यह भी लगभग उतनी ही विस्तृत होती हैं जितने तने अथवा शाखाएं । हालाँकि जमीन के अन्दर होने से एवं हमारी खो से ओझल होने के कारण इनकी और हमारा कम-कम ध्यान जाता है । हम बड़े परिपक्व वृक्षों की जडों को सहजता से नहीं देख सकते । फिर भी कुछ छोटे पौधों-घास व खतपतवार की जड़ों को देखकर हमें उनकी विभिन्नता का कुछ ज्ञान हो सकता है ।

जमीन के अन्दर, किन्तु जड़ें नहीं:

जड़ों के नाजुक तंतुओं को सुरक्षित रखने हेतु हमें जड़ी को बहुत धीरे-धीरे खींचना चाहिए । अच्छा होगा यदि हम पहले पौधे के पास की जमीन को नम करके जड़ों से उसे अलग कर ले ।

जड़ों में चिपकी हुई मिट्टी को हम उसे पानी के अन्दर रखकर हिलाकर निकाल सकते हैं । परिपक्व व लकड़ी का रूप ले चुकी जड़ों को केवल सुखाकर संरक्षित किया जा सकता है । मुलायम जड़ों को पत्तियों के संबंध में किए गए वर्णनानुसार दबाया जा सकता है तथा गत्ते पर लगाया जा सकता है ।

जड़ों के प्रकार:

अनेक पौधों के दूसरे प्रकार के अंग जमीन के अन्दर होते हैं जो उन्हें भोजन तथा नये पौधों के निर्माण में मदद करते हैं । कंद, मूल, धनकन्द तथा प्रकन्द इसके उदाहरण हैं । ये सब जमीन के अन्दर उगते हैं, किन्तु ये वास्तव में संशोधित तने होते हैं ।

जमीन के ऊपर फिर भी जड़ें:

जैसे कि जमीन के अन्दर के पौधों के सभी अंग जड़ें नहीं होती, उसी प्रकार सभी जड़ें हमेशा जमीन के अन्दर नहीं रहतीं । इसका सबसे सामान्य उदाहरण है वट वृक्ष को सहारा देने वाली अथवा पैर बांसा या हवाई जड़ें । कुछ अन्य उदाहरण हैं- पान की बेल की चढ़ती जड़े व ऑर्किड की एपिफायटिक (अधिपादपीय) जड़ें ।

पौधों के अंग जो सार्वत्रिक नहीं होते:

सभी पौधों में जड़ें व पत्ते होते हैं जो वास्तविक रूप से हमेशा रहते हैं । किन्तु पौधों के कुछ ऐसे भी अंग होते हैं जो कुछ ही पौधों में होते हैं अथवा वे सभी पौधों में रहते हैं किन्तु कुछ समय के लिए ही होते हैं । पौधों के अंग जैसे काटे व प्रतान कुछ विशिष्ट अवधि के लिए ही पौधों में पाए जाते हैं ।

कांटे:

पौधों का यह नुकीला अंग पौधों की प्रतिरक्षा प्रणाली का एक भाग होता है । इसके कई रूप होते हैं । कांटे शाखाओं के विशेष रूप से परिवर्तित रूप को कहते हैं जैसे नींबू व बेल के वृक्षों के काटे । किन्तु पत्तों के परिवर्तित रूप में पाए जाने वाले काटों को शूल (स्पाइन) कहते हैं जैसे अनानास अथवा कांटेदार पोस्त (पॉपी या आर्जिमीन) । काटों के कुछ अन्य रूप हैं कटक जो मुड़े हुए होते हैं (जैसे गुलाब में), ब्रिस्टल अथवा छोटे कड़ें सूई की नोंक के समान नुकीले बालों, (जैसे कांटेदार नाशपाती में) तथा डंकदार बाल (जैसे बिछूरी में) |

प्रतान (टेनडिल):

ये पतले व घुमावदार होते हैं जो बेलों (लताओं) को चढ़ने में मदद करते हैं । प्रतान पत्तों के ही परिवर्तित रूप होते हैं तथा वे स्पर्श के प्रति संवेदनशील होते हैं । वे किसी भी वस्तु से जिसे वे स्पर्श करते है, उससे लिपट जाते हैं तथा बेल को चढ़ने में सहायता प्रदान करते हैं ।

फूल:

फूल पौधों का सबसे अधिक आकर्षक अंग होता है । ये अनेक प्रकार के होते हैं तथा उनके फूलने की अवधि में भिन्नता रहती है । इनके कई और लक्षण भी होते हैं । कुछ पौधों में फूल वर्ष भर आते हैं जबकि कुछ ऐसे भी है जिनमें कई वर्षों बाद बहार आती है तथा कुछ में जीवनकाल में केवल एक ही बार फूल आते है ।

चूंकि फूलों के रूप, आकार, रंग, गंध आदि में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है, इसलिए फूलों का संग्रह कर उनका अध्ययन करना प्रकृति प्रेमी के लिए एक बहुत रोचक व शिक्षाप्रद गतिविधि हो सकती हे । दुर्भाग्यवश फूलों को उनके स्वाभाविक रूप में अनुरक्षण करना आसान नहीं है । फिर भी कुछ फूलों की सरल व सपाट पखुड़ियों को पत्तियों के समान दबाकर अनुरक्षित किया जा सकता है । किन्तु सूखने पर इनका रंग चला जाएगा ।

फल व बीज:

फूलों के बाद आने वाले इन फलो व बीजों के अनेक प्रकार होते है । फलों की मांसल व भारी बनावट तथा उनके नश्वर स्वभाव के कारण उन्हें लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता । फिर भी ताजे फलों के संग्रह कों देखकर हमें उनको बाहरी बनावट व आन्तरिक संरचना में पाई जाने वाली विभिन्नता का पता लग जाएगा ।

संग्रहित मांसल फलों में से अधिकांश प्राय: सादे फल होते हैं जैसे रसदार फल व गुठलीदार फल (जैसे आम) | समुच्चयित फल (एग्रीगेट फ्रूट) जैसे सीताफल अथवा चम्पक तथा संश्लिष्ट (कंपोजिट) फल जैसे अनानास अथवा अंजीर भी हमें बिना कठिनाई के मिल सकते हैं ।

फलों का एक प्रकार है जिन्हें सूखे फल (अथवा मेवा) कहते हैं । सूखे फल भी कई प्रकार के होते हैं । इनमें बीजों पर मांसल आवरण नहीं होता व बीज ही फल का अधिकांश भाग होते हैं । इन बीजों पर पतला किन्तु कड़ा, विशेषत: सूखने पर, आवरण अथवा कैप्सूल होता है ।

कुछ सूखे फलो में इन आवरणों को आसानी से तोड़कर बीजों को निकाला जा सकता है । मटर अथवा चने जैसी दालें तथा अन्य फलिया इन अकूल वाले अथवा स्फुटनशील फलो के सामान्य उदाहरण हैं । इनमें से अनेक (जैसे गोरवस) सूखने पर स्वयं ही फूटते है जिससे बीजों का प्रसारण आसानी से हो जाता है ।

अन्य दूसरे सूखे फलों में बीज व उनका आवरण आपस में कसकर बंधे रहते हैं । कुछ फलों में तो ये आपस में जुड़े ही रहते हैं । इन्हें न खुलने वाले अथवा अस्फुटनशील फल कहते हैं । इसके कुछ सामान्य उदाहरण हैं अनाज (जैसे धान तथा गेहूं), फलियां (जैसे काजू) तथा पंखदार फल अथवा समारा (जैसे माधवी) |

दूसरी ओर बीज का डिजाइन इस प्रकार का होता है कि वह सूखने के बाद लंबी अवधि तक रखा जा सके । वास्तव में इसके सूखे हुए रूप को ही हम बीज का स्वाभाविक रूप कहते हैं । इसलिए इनका संग्रह विकसित करना तथा इनके आकार का संबंध पौधों की संरचना से जोड़ना आसान है । अनेक बीजों व सूखे फलों की संरचना का तथा उनके बीजों के फैलाव का अध्ययन करना बहुत रोचक हो सकता है ।

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