क्रोमैटोग्राफी के प्रकार | Types of Chromatography in Hindi.
वर्णलेखिकी (Chromatography) को स्थिर तथा गतिमान प्रावस्थाओं के भौतिक लक्षणों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है । स्थिर प्रावस्था ठोस अथवा द्रव तथा गतिमान प्रावस्था द्रव अथवा गैस हो सकती है । जब स्थिर प्रावस्था ठोस होती है तब इस तकनीक (Technique) को अधिशोषण वर्णलेखिकी (Adsorption Chromatography) कहते हैं ।
यह तीन प्रकार की होती है:
(i) थिन-लेयर क्रोमैटोग्राफी (Thin-Layer Chromatography or TLC),
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(ii) आयन-एक्सचेंज क्रोमैटोग्राफी (Ion-Exchange Chromatography) तथा
(iii) गैस-सॉलिड क्रोमैटोग्राफी (Gas-Solid Chromatography or GSC) ।
दूसरी तरफ जब स्थिर प्रावस्था द्रव होती है तब इसे पार्टीशन क्रोमैटोग्राफी (Partition Chromatography) कहते हैं ।
यह दो प्रकार की होती है:
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(a) पेपर क्रोमैटोग्राफी (Paper Chromatography) तथा
(b) गैस-लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (Gas-Liquid Chromatography or GLC) ।
यदि पृथक्करण में द्रव गतिमान प्रावस्था (Liquid Mobile Phase) नीचे की तरफ गति करती है, तो इसे अवरोही पेपर क्रोमैटोग्राफी (Descending Paper Chromatography) तथा यदि द्रव गतिमान प्रावस्था ऊपर की तरफ गति करती है तो इसे आरोही पेपर क्रोमैटोग्राफी (Ascending Paper Chromatography) कहते हैं ।
प्रमुख वर्णलेखिकी-तकनीकी का संक्षिप्त वर्णन निम्नानुसार है:
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i. कॉलम वर्णलेखिकी (Column Chromatography):
कॉलम क्रोमैटोग्राफी में स्थिर प्रावस्था एक काँच अथवा धातु की नली (कॉलम) में भरी होती है तथा इस नली से गतिमान प्रावस्था को चलाया जाता है । यह नली 20-30 सेमी. व्यास वाली होती है । इस नली में 50-100 ग्राम तक अधिशोषक (Adsorbent) आ जाता है, जो कई ग्राम अधिशोष्य (Adsorbate) को रोक सकता है ।
अधिशोषक को सहारा देने के लिए रुई अथवा ग्लास वूल (Glass Wool) का प्रयोग किया जाता है । नमूने (Sample) को गतिमान प्रावस्था को कुछ मात्रा में घोलकर नली के ऊपर से छोड़ा जाता है । नमूने (Sample) तथा गतिमान प्रावस्था को नली में धीरे-धीरे परन्तु एक स्थिर गति से चलाना होता है ।
नमूने (Sample) में उपस्थित विभिन्न पदार्थ नली में विभिन्न दर से चलते हैं । ये पदार्थ रंगीन होने पर नली के अन्त में एक के बाद एक निकलते दिखायी देते हैं, जिन्हें एकत्रित (Collect) किया जा सकता है ।
पदार्थों के गति करने की दर (Rate of Movement of Substances):
नली अथवा कॉलम में स्थिर प्रावस्था का निश्चित आयतन (Vs) भर देते हैं । गतिमान प्रावस्था के आयतन Vr को नली से बहने में लगे समय को काल गतिमान प्रावस्था का धारण काल (Retention Time) Tr कहते हैं । आयतन Vr गतिमान प्रावस्था का धारण आयतन (Retention Volume) भी कहलाता है ।
गतिमान प्रावस्था की गति करने की दर को h से प्रदर्शित करते हैं । किसी पदार्थ को नली से बाहर निकलने में लगे समय को उसका धारण काल (TR) कहते हैं । इस धारण काल (TR) में गतिमान प्रावस्था का जितना आयतन बाहर बह जाता है उसे उसका धारण आयतन (VR) कहते हैं ।
पदार्थ के गति (Movement) करने की दर को H से प्रदर्शित करते हैं । यदि किसी पदार्थ का Rf भाग (Fraction) गतिमान प्रावस्था में है तो उसका I-Rf भाग स्थिर प्रावस्था में होगा ।
यदि दोनों प्रावस्था के मध्य पदार्थ (Material) का तीव्रता से विनिमय होता है तो प्रयोग की अवधि (T) के Rf भाग में पदार्थ गतिमान प्रावस्था में होगा तथा T (I-Rf) भाग में पदार्थ स्थिर प्रावस्था में होगा । अत: यह T अवधि में गति करता है । T अवधि में इसकी गति गतिमान प्रावस्था की गति करने की दर के Rf गुना होगी । इस प्रकार पदार्थ (Material) के गति करने की दर H होगी-
H = hRf …….(i)
अर्थात् पदार्थ के गति करने की दर (Speed), गतिमान प्रावस्था के गति करने की दर तथा गतिमान प्रावस्था में उपस्थित पदार्थ के भाग (Fraction) के गुणों के बराबर होगी । यही प्रमुख नियम है, जो सभी वर्णलेखिकी विधियों पर लागू होता है-
Rf = H / h = पदार्थ के गति करने की दर (Speed) / गतिमान प्रावस्था के गति करने की दर (Speed)
Rf पदार्थ के स्थिर तथा गतिमान प्रावस्थाओं के मध्य की पार्टीशन गुणांक K तथा प्रावस्थाओं के आयतन Vr तथा Vs पर निर्भर करता है-
Rf = Vr / KVs + Vr ……(ii)
H = hVr / KVs + Vr ……(iii)
अत: हम कह सकते हैं कि नमूने के गति करने कि दर (Speed) नमूने की मात्रा अथवा दोनों प्रावस्थाओं के निरपेक्ष आयतन पर निर्भर नहीं करती यह गतिमान प्रावस्था के गति करने की दर, पदार्थों के पार्टीशन गुणांक तथा दोनों प्रावस्थाओं के आयतन के मध्य के अनुपात द्वारा निर्धारित होती है ।
समीकरण (iii) को निम्न प्रकार से भी लिखा जा सकता है:
Vrh / H = KVs + Vr
चूँकि धारण आयतन, गति करने की दर के न्यूत्क्रमानुपाती होता है:
Vrh / H = VR
चूँकि VR पदार्थ का धारण आयतन होता है, अत:
VR = KVs + Vr ……(iv)
अत: यह स्पष्ट है कि दो पदार्थों को अलग करने के लिए यह आवश्यक है कि उनका धारण आयतन (VR) भिन्न होना चाहिए । इसके लिए स्थिर तथा गतिमान प्रावस्थाओं का चयन इस प्रकार करते हैं कि पदार्थों के वितरण गुणांक (Kd) का मान भिन्न-भिन्न हो ।
ii. जैल-परमियेशन वर्णलेखिकी (Gel Permeation Chromatography):
जेल परमियेशन क्रोमैटोग्राफी में अणुओं का पृथक्करण उनके माप, आकार तथा आण्विक भार के आधार पर किया जाता है । इस तकनीक को आण्विक छनना या आण्विक एक्सक्लूशन क्रोमैटोग्राफी भी कहते हैं । इसका एपेरेटस (Apparatus) एक कॉलम का बना होता है जो स्पंज समान जेल बीड्स (दानों) से भरे रहते हैं ।
(अधिकांशत, क्रॉसलिंक्ड, पॉलीसेकेराइड्स) जिसमें छिद्र (Pores) उपस्थित होते हैं । जेल छोटे तथा बड़े अणुओं के पृथक्ककरण (Separation) के लिए आण्विक छानने की भाँति कार्य करते हैं ।
विभिन्न आमाप के अणुओं युक्त विलयन मिश्रण कॉलम पर एप्लाई किया जाता है तथा बफर में इल्यूट किया जाता है । बड़े अणु जेल के छिद्रों (Pores) में से नहीं जाते इस कारण तेजी से गमन करते हैं । जबकि छोटे अणु जेल बीड्स में प्रवेश कर जाते हैं तथा पीछे छूट जाते हैं जो धीरे-धीरे बाहर आते हैं ।
विभिन्न सान्द्रता (Concentration) वाले जेल बीड्स के चयन द्वारा अणु पृथक किए जा सकते हैं । व्यापारिक उपलब्ध जैल बीड्स है- सिफेडेक्स (G-10, G-25, G-100) बायो जेल (P-10, P-30, P-100) तथा सिफेरोज (6B, 4B, 2B) ।
जेल परमियेशन क्रोमेटोग्राफी (Gel Permeation Chromatography) का उपयोग आण्विक भार के निर्धारण में किया जा सकता है । यह ज्ञात आण्विक भार वाले पदार्थों (Materials) के साथ कैलिब्रेटेड कॉलम को उपयोग करके किया जाता है ।
iii. आयन-विनिमय वर्णलेखिकी (Column Chromatography):
आयन विनिमय क्रोमैटोग्राफी में अणुओं का पृथक्करण उनके विद्युत आवेशों के आधार पर किया जाता है । आयन विनिमय वर्णलेखिकी एक उत्क्रमणीय प्रक्रिया (Process) है, जिसमें किसी ठोस के स्वतंत्र गतिमान आयनों (जिन्हें आयन एक्सचेन्जर कहते हैं) का विनिमय विलयन में उपस्थित समान आवेश वाले विभिन्न आयनों से होता है ।
इस उद्देश्य के लिए आयन विनिमय (Ion-Exchange) रेजिन्स-धनायन एक्सचेंजर तथा ऋणायन एक्सचेंजर का उपयोग किया जाता है । एक धनायन एक्सचेंजर (R+A–) आयन ऋणायनों (A–) को विलयन में अन्य ऋणायनों (B–) से विनिमय करता है ।
आयन एक्सचेन्जर (जो एक प्रकार के आयन से संतृप्त होता है) स्थिर प्रावस्था के रूप में प्रयोग में लाया जाता है । गतिमान प्रावस्था अधिकतर एक ऐसा विलयन होता है, जिसमें वही आयन (Ion) होते हैं, जिनसे आयन एक्सचेन्जर संतृप्त होता है ।
जब नमूने के आयनों को कॉलम में स्थानान्तरित किया जाता है, तो वे कुछ मूल आयनों को विस्थापित कर देते हैं, परन्तु स्वयं तब तक आयन एक्सचेन्जर पर रहते हैं, जब तक कि उत्तरोत्तर आयनों द्वारा विस्थापित न कर दिया जाएँ । इस प्रकार ये कॉलम में गति करते हैं ।
पदार्थ (Material) के गति करने की दर का निर्धारण पदार्थ के आयनीकरण की श्रेणी (Degree) पर निर्भर करता है । आयन एक्सचेन्ज पृथक्करण मुख्यतया आयन एक्सचेन्जर को कॉलम में भरकर किए जाते हैं ।
आयन एक्सचेन्जर दो प्रकार के होते हैं:
(i) कैटायन एक्सचेन्जर तथा
(ii) एनायन एक्सचेन्जर ।
कैटायन एक्सचेन्जर (Cation Exchanger) में ऋणात्मक आवेश वाले समूह (Group) होते हैं और वे धनायन आवेश वाले अणुओं को आकर्षित करते हैं । चूंकि इनका ऋणात्मक आवेश अम्लीय समूह की प्रोटोलाइसिस के कारण होता है अत: इन्हें अम्लीय आयन एक्सचेन्ज पदार्थ कहते हैं ।
एनायन एक्सचेन्जर (Anion Exchanger) में धनात्मक आवेश वाले समूह होते हैं, जो ऋणात्मक आवेश वाले अणुओं को आकर्षित करते हैं । चूंकि इनका धनात्मक आवेश क्षारीय समूह के साथ प्रोटॉन्स के संयोजन के करण होता है, अत: इन्हें क्षारीय आयन एक्सचेन्ज पदार्थ भी कहते हैं ।
आयन एक्सचेन्ज वर्णलेखिकी का उपयोग अमीनो अम्लों (Amino Acids) की मात्रा आंकलन में, प्रोटीन के शुद्धीकरण में तथा न्यूक्लियोटाइड के बेस संघटन के आंकलन में किया जाता है ।
iv. एफिनिटी या बंधुता वर्णलेखिकी (Affinity Chromatography):
बंधुता क्रोमेटोग्राफी का सिद्धान्त प्रोटीन (Protein) के अन्य अणुओं जिन्हें लिगेण्ड कहते हैं के विशिष्ट तथा सहसंयोजक बंधन के गुण पर आधारित है, उदाहरण के लिए एन्जाइम (Enzyme) कुछ विशिष्ट लिगेण्डो, जैसे- सब्सट्रेट या गेफेक्टर से ही विशिष्ट प्रकार से जुड़ते है ।
इस तकनीक में लिगेण्डो (Ligands) का उपयोग किया जाता है जो अक्रिय तथा संरध्र मैट्रिक्स से कॉलम में, सहसंयोजक बंध द्वारा जुड़े होते हैं । इम्मोबलाइज्ड लिगेण्ड वांछित प्रोटीन को चयनात्मक रूप से चुनने के लिए कार्य करते हैं, जबकि शेष प्रोटीन कॉलम में से गुजर जाते हैं । वांछित प्रोटीन लिगेण्ड द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है ।
इसे, मुक्त लिगेण्ड अणु के उपयोग द्वारा इल्यूट किया जा सकता है । एकांतरत: कुछ अभिकारक जो प्रोटीन लिगेण्ड की अन्योन्य क्रिया को तोड़ सकते हैं । वे भी इस पृथक्करण में उपयोग में जाये जा सकते हैं । बंधुता क्रोमेटोग्राफी का उपयोग एन्जाइम, विटामिन, न्यूक्लिक एसिड, ड्रग्स, हार्मोन रिसेप्टर, एटीबॉडीज इत्यादि के शोधन में किया जाता है ।
हाई-परफॉर्मेन्स लिक्विड वर्णलेखिकी (High Performance Liquid Chromatography HPLC):
सामान्य रूप से क्रोमेटोग्राफी तकनीकें (Techniques) धीमी तथा समय की खपत करने वाली होती है । पृथक्करण में वृद्धि करने के लिए 5000-10000 psi (पाउण्ड्स प्रति स्क्वायर इंच) की रेंज का दाब (उच्च दाब) लगाकर की जा सकती है । HPCL में ट्रांसपीड़ित रेजिन पदार्थों (Resin-Materials) तथा प्रबल धातु कॉलम का उपयोग किया जाता है ।
HPLC का तात्पर्य है, हाई परफॉर्मेन्स लिक्विड वर्णलेखिकी । यह एक उच्च विभेदन क्षमता वाली तकनीक (Techniques) है, जो बहुत तीव्रता से होती है । इसमें पदार्थों की अति सूक्ष्म मात्रा (नैनोग्राम या पीकोग्राम) की आवश्यकता होती है ।
इसकी उच्च विभेदन क्षमता इसके कॉलम में भरे अति सूक्ष्म (5-20µ) कणों के कारण होती है । इसमें कॉलम तथा कॉलम में भरे पदार्थ के लक्षण सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं । कॉलम की लम्बाई 50-100 सेमी. तथा आन्तरिक व्यास 2-3 मिमी. होता है और ये स्टेनलेस स्टील के बने होते हैं ।
कॉलम के ऊपर से विलायक को एक उच्च दाब वाले पम्प की सहायता से कॉलम (Column) में भेजा जाता है । इसके कारण कॉलम में विलायक के बहने की दर 1-2 मिली. प्रति मिनट होती है ।
कॉलम से निकले बहि:स्राव (Effluent) को एक अविनाशक संसूचक (Non-Destructive Detector) के माध्यम से गुजारा जाता है, जिससे जुड़े रिकॉर्डर पर अल्ट्रावॉयलेट अवशोषण (UV Absorbance), अपवर्तनांक तथा आण्विक फ्लोरिसेन्स (Molecular Florescence) को डिटेक्ट (Detect) किया जाता है । इसके बाद बहि:स्राव (Effluent) को एकत्रित कर लिया जाता है ।
आजकल निम्न तीन प्रकार की HPLC तकनीकों का प्रयोग किया जाता है:
(1) साइज एक्सक्लूजन वर्णलेखिकी (Size Exclusion Chromatography),
(2) रिवर्स फेज वर्णलेखिकी (Reverse Phase Chromatography),
(3) आयन-एक्सचेन्ज वर्णलेखिकी (Ion-Exchange Chromatography) ।
महत्व:
HPLC का उपयोग प्रोटीन्स के पृथक्करण (Separation) तथा उनके अणुभार के निर्धारण, न्यूक्लिक अम्लों तथा न्यूक्लियोटाइड्स के विश्लेषण में किया जाता है ।
v. गैस वर्णलेखिकी (Gas Chromatography):
यह वाष्पशील पदार्थों अथवा कुछ अवाष्पशील पदार्थों के वाष्पशील व्युत्पन्नों के पृथक्करण (Separation) के लिये उपयुक्त विधि है । GLC में स्टेशनरी फेज अक्रिय ठोस पदार्थ होता है ।
(डायएसेमेशियस अर्थ या पावडर्ड फायरब्रिक) जो अवाष्पशील द्रव के साथ ऐम्प्रेगनेटेड रहता है (सिलिकॉन या पालीइथिलीन ग्लायकोल) यह एक संकरे स्तंभ में पैक्ड (Packed) रहता है तथा उच्च तापमान (High Temperature) (200°C) पर नियंत्रित (Control) किया जाता है ।
वाष्पशील पदार्थ का मिश्रण, स्तंभ में मोबाइल फेज के साथ निवेशित किया जाता है, जो कि अक्रिय गैस (आर्गन, हीलियम तथा नाइट्रोजन) होता है । वाष्पशील मिश्रण का पृथक्करण (Separation) घटकों का स्टेशनरी फेज (द्रव) तथा मोबाइल फेज (गैस), के साथ विभाजन (Division) पर निर्भर करता है ।
अत: इसे गैस द्रव्य क्रोमेटोग्राफी कहते हैं । पृथक्करण (Separation) यौगिकों की पहचान तथा मात्रा का निर्धारण डिक्टेक्टर द्वारा किया जा सकता है । डिटेक्टर ऊष्मीय चालकता के सिद्धान्त (Theory) पर कार्य करता है ।
गैस वर्णलेखिकी का प्रस्तुतीकरण मार्टिन एवं सिंज (Martin and Synge) ने 1952 में किया । इसके अन्तर्गत वाष्पशील तथा अवाष्पशील पदार्थों के विश्लेषण की अनेक विधियाँ (Methods) आती हैं । यह बहुत तीव्रता से सम्पन्न होने वाली एक संवेदनशील तकनीक है, जिसकी विभेदन क्षमता बहुत अधिक होती हैं ।
इस तकनीक के अन्तर्गत किसी द्रव अथवा ठोस प्रावस्था से भरे कॉलम (Column) में वाष्पशील पदार्थ का अन्त:क्षेपण (Inject) किया जाता है । गतिमान प्रावस्था के रूप में कॉलम (Column) में नाइट्रोजन, हीलियम या आर्गन जैसी कोई निष्क्रिय गैस प्रवाहित की जाती है ।
वाष्पशील पदार्थ के विभिन्न घटकों का पृथक्करण पदार्थ के विभिन्न घटकों की पार्टीशन (Partition) अथवा अधिशोषण गुणांक (Partition or Adsorption Coefficient) की विभिन्नता के कारण होता है ।
नमूने (Sample) को एक रबर पट (Rubber Septum) के माध्यम से अन्त:क्षेपण पोर्ट (Injection Port) में अन्त:निक्षेपित किया जाता है, जहाँ से यह वाष्पीकृत होकर कॉलम (Column) में प्रवेश करता है । कॉलम को एक ओवेन (Oven) में रखा जाता है जिसका ताप अधिक रखा जाता है, ताकि पृथक् किया जाने वाला पदार्थ वाष्पित होता रहे ।
नमूने के विभिन्न घटक पृथक् होकर बहि:स्राव (Effluent) के साथ कॉलम (Column) से बाहर निकलते हैं, जिन्हें एक संसूचक के माध्यम से निकाल कर एकत्रित किया जाता है । संसूचक को एक रिकॉर्डर से जोड़ा जाता है ।
विभिन्न प्रयोजनों हेतु विभिन्न प्रकार के संसूचकों का उपयोग (Use) किया जाता है, जैसे- थर्मल कन्डक्टिविटी संसूचक (Thermal Conductivity Detector or TCD), फ्लेम आयनाइजेशन संसूचक (Flame Ionization Detector or FID), इलेक्ट्रॉन कैप्चर संसूचक (Electron Capture Detector or ECD) आदि ।
नमूने (Sample) के अन्त:क्षेपण (Injection) से लेकर रिकॉर्डर पर चरम (Peak) उत्पन्न होने तक के समय को धारण काल (Retention Time) कहते हैं । अज्ञात नमूनों (Sample) की पहचान ज्ञात मानक नमूनों (Known Standard Samples) के धारण काल के आधार पर की जाती है ।
गैस वर्णलेखिकी का उपयोग गैसों, प्रदूषकों (Pollutants), खाद्य पदार्थों, औषधियों, विटामिनों, कीटनाशकों, कवकनाशकों तथा रेडियोधर्मी आइसोटोप्स आदि की पहचान के लिए किया जाता है । अन्तर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्द्धाओं में खिलाड़ियों द्वारा सेवन की गयी स्टीरॉएड औषधियों की पहचान भी इसी तकनीकी द्वारा की जाती है ।
vi. थिन-लेयर वर्णलेखिकी (Thin Layer Chromatography):
TLC का सिद्धान्त पेपर क्रोमेटोग्राफी के सिद्धान्त के समान है, पेपर के स्थान पर यहाँ अक्रिय पदार्थ जैसे- सेल्युलोज (Cellulose) का उपयोग सहायक पदार्थ (Supporting Material) के रूप में किया जाता है । सेल्युलोज (Cellulose) को थिन लेयर (पतली लेयर) के रूप में काँच अथवा प्लास्टिक की प्लेट पर फैलाया जाता है ।
TLC में क्रोमेटोग्राफी पृथक्करण तुलनात्मक रूप में तीव्र होता है । इस तकनीक (Technique) में किसी काँच, पर्णिका (Foil) अथवा प्लास्टिक की चपटी सतह पर स्थिर प्रावस्था की इतनी पतली पर्त जमा देते है कि इस पर गतिमान अवस्था कैपिलरी एक्शन द्वारा बिना किसी रुकावट के तीव्रता से बहती जाती है ।
इस गतिमान अवस्था के पर्त (Layer) पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक गति करने के साथ विश्लेष्य (Analyte) भी स्थानान्तरित होते हैं । विश्लेष्यों के गति करने की दर (Rate) उनके वितरण गुणांक (Kd) पर निर्भर करती है । विश्लेष्य (Analyte) की गति को उसके धारण कारक (Rf) से व्यक्त किया जाता है ।
Rf = विश्लेष्य द्वारा अपने उद्गम से तय की गई दूरी (DA) / विलायक द्वारा अपने उद्गम से तय की गई दूरी (DF)
विधि (Method):
(a) पतली पर्त बनाना (Thin Layer Preparation):
सर्वप्रथम स्थिर प्रावस्था का एक पतला घोल बनाते हैं तथा एक 20 वर्ग सेमी. की किसी काँच, पर्णिका या प्लास्टिक (Plastic) की प्लेट लेकर उस पर स्थिर प्रावस्था की पतली एक-समान पर्त जमाते हैं । पर्त की मोटाई वांछित पृथक्करण (Separation) की प्रकृति पर आधारित होती है ।
विश्लेषणात्मक पृथक्करण (Analytical Separation) हेतु पर्त की मोटाई (Thickness) 0.25 मिमी. तथा प्रारंभिक पृथक्करण (Preparative Separation) के लिए पर्त की मोटाई 2 मिमी. रखी जा सकती है । पर्त जमाने के बाद प्लेट (Plate) को सुखा लेते हैं ।
(b) प्लेट का विकास (Plate Development):
यह कार्य काँच के एक टैंक (Tank) में किया जाता है, जिसमें 1.5 सेमी. गहराई तक गतिमान प्रावस्था के रूप में विलायक भरा होता है । अब इस टैंक (Tank) को ढककर लगभग एक घण्टे के लिए छोड़ देते हैं ताकि टैंक के अन्दर का वातावरण विलायक की वाष्प से संतृप्त हो जाए (साम्यता) ।
साम्यता स्थापित हो जाने के बाद ढक्कन हटाकर पतली पर्त जमी प्लेटों के टेंक में ऊर्ध्वाधर (Vertical) स्थिति में खड़ा कर देते हैं । जैसे-जैसे विलायक प्लेट पर, कोशिका क्रिया द्वारा (Capillary Action) चढ़ता जाता है पृथक्करण (Separation) होता जाता है । पृथक्करण में 30 से 90 मिनट का समय लगता है ।
द्विआयामी (Two-Dimensional) वर्णलेखिकी तकनीक (Technique) में सर्वप्रथम प्लेट के एक कोने में विश्लेषण को लगाकर प्लेट को टैंक में रखकर विकसित किया जाता है । फिर प्लेट (Plate) को बाहर निकल कर सुखा लेते हैं । अब इस प्लेट को 90° पर घुमाकर विश्लेष्य को फिर से लगाकर एक नए विलायक में रखते हैं । दूसरे विलायक में रखने से Kd मान भिन्न हो जाता है और हमें अलग से क्रोमेटोग्राफ (Chromatograph) प्राप्त हो जाता है ।
(c) विश्लेष्यों की पहचान (Analyte Detection):
विश्लेष्यों की पहचान करने के लिए सामान्यतया इथेनॉल (Ethanol) में 25 अथवा 50% (v/v) सल्फ्यूरिक अम्ल के मिश्रण को प्लेट (Plate) पर स्प्रे करके 110°C पर गर्म किया जाता है, जिससे यौगिक झुलस कर भूरे धब्बे के रूप में दिखायी देने लगते है ।
वैसे तो यौगिकों की गति (Movement) उनकी विशिष्ट Rf मान पर आधारित होती है फिर भी इस विधि (Method) से घटकों की पहचान के अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं होते । इसलिए पहचान के लिए यौगिकों के गति की तुलना सन्दर्भ यौगिकों की TLC करके उनसे करनी चाहिए ।
इसके अतिरिक्त अन्य विधियों में प्लेटों (Plates) को UV लाइट में रखकर भी पहचान की जा सकती है । आजकल कई फ्लोरिसेन्ट डाई युक्त थिन-लेयर अधिशोषक (Thin-Layer Adsorbents with Fluorescent Dye) भी बाजार में मिलते हैं, जिनके उपयोग से अल्ट्रावॉयलेट रोशनी में प्लेट को रखने पर पृथक् हुए यौगिक नीले, हरे या काले रंग के धब्बों के रूप में स्पष्ट रूप से दिखायी देने लगते हैं ।
प्लेट पर विशिष्ट रंग अभिकर्मक (Colour Reagents) का स्प्रे कर देने से कुछ यौगिक रंगीन दिखायी देते हैं, जैसे- अमीनो अम्लों तथा पेप्टाइड्स के लिए निनहाइड्रिन (Ninhydrin) का प्रयोग किया जाता है ताकि उनकी सरलतापूर्वक पहचान की जा सके ।
vii. पेपर वर्णलेखिकी (Paper Chromatography):
इस तकनीक को सर्वप्रथम मार्टिन तथा सिन्ज (Martin and Synge) ने 1941 में प्रस्तुत किया था । अब तक ज्ञात समस्त क्रोमेटोग्राफिक तकनीकों में पेपर क्रोमेटोग्राफी सबसे सरलतम तकनीक है तथा इसका प्रयोग अनेक स्थानों पर किया जाता है ।
यह महत्वपूर्ण कार्य कान्सडेन (Consden), गॉरडान (Gordon), मार्टिन (Martin) तथा सिन्ज (Synge) नामक वैज्ञानिकों ने 1944 में किया था । इस कार्य के सम्मान में इन वैज्ञानिकों को बाद में ‘नोबेल पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था ।
यह क्रोमेटोग्राफी का सरल प्रतिरूप है । इसका आविष्कार सेहोन बेन ने किया था । इस विधि में वाटमेन फिल्टर पेपर पर विलायक को बहाकर अज्ञात पदार्थों का विश्लेषण किया जाता है । इन पदार्थों का पृथक्करण इनके डिफ्रेन्शियल माइग्रेहशन के कारण प्रभावी होता है ।
पृथक् किये जाने वाले अणु को वाटमेन पेपर पर लगाया जाता है । इस पेपर को एक वेसल (Vessel) में रखा जाता है, जिसमें उपयुक्त विलायक होता है । विलायक पेपर के द्वारा अवशोषित होता है । अत्यधिक घुलनशील पदार्थ, विलायक के साथ तेजी से प्रवाहित होते हैं ।
अन्य पदार्थ घुलनशीलता के आधार पर मंद गति से प्रवाहित होते हैं । साथ ही विलायक का चयन भी पदार्थ के प्रवासन की दर को निर्धारित करता है । पेपर क्रोमेटोग्राफी द्वारा एमिनो अम्ल, न्यूक्लिओटाइड व अन्य कम अणुभार वाले उपापचयी पदार्थों का पृथक्करण किया जाता है । किसी विलेय द्वारा तय की गई को Rf – वेल्यू के रूप में प्रदर्शित करने हैं ।
Rf = विलेय द्वारा तय की गई दूरी / विलायक द्वारा तय की गई नई दूरी |