इलेक्ट्रोफोरोसिस: अर्थ और सिद्धांत | Electrophoresis: Meaning and Principle in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about:- 1. इलेक्ट्रोफोरेसिस का अर्थ  (Meaning of Electrophoresis) 2. इलेक्ट्रोफोरेसिस का महत्व (Significance of Electrophoresis) 3. सिद्धान्त (Principle) 4. घटक (Components) 5. प्रकार (Types).

इलेक्ट्रोफोरेसिस का अर्थ  (Meaning of Electrophoresis):

इलेक्ट्रो फोरेसिस (Electrophoresis) में दो विद्युत ध्रुवों (Electrical Poles) के मध्य विद्युत प्रवाहित (Electric Current) की जाती है, तो इलेक्ट्रोलाइट विलयन (Electrolyte Solution) में उपस्थित (Present) आवेशित पार्टिकल (Charged Particles) में प्रवाह होता है । इन अवशोषित कणों की वैद्युत क्षेत्र में गति के अध्ययन को वैद्युत-आवेश गतिकी करते हैं ।

टिसेलियस ने सर्वप्रथम गतिमान सीमा इलेक्ट्रोफोरेसिस (Moving Boundary Electrophoresis) तकनीक की शुरुआत की, जबकि वैद्युत-आवेश गतिकी बफर विलयन से उत्पन्न हुई इसकी एक त्रुटि सैम्पल विसरण (Sample Diffusion) में थी तथा संवहन धाराओं (Convection Currents) के कारण सैम्पल (Sample) अवयवों का मिश्रित होना थी ।

ADVERTISEMENTS:

यह प्रतिबन्धता क्षेत्रीय (Zonal) इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) में समाप्त हुई, जब बफर संतृप्त ठोस मैट्रिक्स (Buffer Saturated Solid Matrix) को बफर विलयन के स्थान पल्लेक्ट्रोफोरेटिक (Electrophoretic) माध्यम के समान प्रयुक्त किया गया ।

इसे सैम्पल (Sample) माध्यम में एक संकरी पट्टी (Narrow Band) की तरह लगाया गया । विभिन्न गतियों के अणु अलग-अलग क्षेत्रों में गति करते हैं, जो शनै:शनै एक-दूसरे से पृथक् हो जाते हैं । यह तकनीक जैव अणुओं, जैसे- अमीनो एसिड, पेप्टाइडों प्रोटीन न्यूक्लियोटाइड व न्यूक्लिक अम्लों के विश्लेषण (Analysis) व पृथक्करण (Separation) में प्रयुक्त होता है ।

इलेक्ट्रोफोरेसिस का महत्व (Significance of Electrophoresis):

इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) के द्वारा विभिन्न प्रकार (Different Type) के यौगिक (Compounds) जैसे- प्रोटीन (Protein) अमीनो अम्ल (Amino Acids), न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic Acids) न्यूक्लियोटाइड्‌स (Nucleotides) आदि के मिश्रण (Mixture) के विभिन्न अवयवों (Components) को पृथक् करके पहचानने में किया जाता है । क्योंकि इन पदार्थों के आयनीकरण समूह (Ionizable Group) पाया जाता है । Gel Electrophoresis, Resolution में सुधार व क्षेत्रीय तीव्रता का लाभ देते हैं ।

तकनीक (Techniques) के गुणों का प्रयोग कार्यिकी अक्षमता (Physical Disorder) को पहचानने में व प्रोटीन (Protein) के विभिन्न एन्जाइमों (Enzymes) के उत्पादन की सामान्य तुलना द्वारा जैसे सामान्य व्यक्ति के Sputum व दमा के रोगी के Sputum में विभेदन व अल्जीमर रोग में Haptoglobins की विभिन्नता पहचानने में होती है ।

इलेक्ट्रोफोरेसिस का सिद्धान्त (Principle of Electrophoresis):

ADVERTISEMENTS:

कोई भी आवेशित आयतन या अणु वैद्युत क्षेत्र में रखने पर पलायन (Migrate) करता है । यह दर उसके कुल (Net) आवेश, आकार, माप व धारा की मात्रा पर निर्भर करती है ।

यह निम्न समीकरण द्वारा निरुपित की जाती है:

यहाँ- v = अणु के पलायन वेग,

ADVERTISEMENTS:

E = Volts/cm में वैद्युत क्षेत्र,

q = अणु का कुल आवेश तथा

f = घर्षण गुणांक (Frictional Coefficient) है, जो कि द्रव्यमान (Mass) व अणु के आकार (Shape) का फलन होता है ।

वैद्युत क्षेत्र में आवेशित कण की गति को Electrophoretic Mobility (µ) में व्यक्त करते हैं, जिसे वैद्युत क्षेत्र के प्रवेग या इकाई से परिभाषित करते हैं ।

समान अणुओं के लिए f परिमाण के साथ बदलता है, परन्तु आकार के साथ नहीं । अत: अणु की Electrophoretic Mobility (µ) आवेश घनत्व (Change Mass) के समानुपाती होती है ।

भिन्न-भिन्न घनत्वों वाले अणु, भिन्न-भिन्न गतियों से वैद्युत क्षेत्र में पलायनित होते हैं व पृथक् हो जाते हैं । यह इलेक्ट्रोफोरेटिक तकनीकी (Electrophoretic Techniques) का आधारभूत सिद्धान्त है ।

इसका उद्देश्य यौगिक, जो Amino Acid, Nuclear Acid, प्रोटीन, न्यूक्लियोटाइडयुक्त अथवा जिन्हें दुर्बल आवेश देकर Derivitization किया जा सके, जैसे- फॉस्फेट व बोरेट का विश्लेषण व पृथक्करण होता है ।

जब वैद्युत आवेश प्रवाहित किया जाता है, तो इलेक्ट्रोलाइटिक विलयन (Electrolytic Solution) में, दो वैद्युत छड़ों (Electrical Poles) के बीच आवेशित कणों की गति को ‘Electrophoresis’ कहते हैं । यह मिश्रण के अवयवों (प्रोटीन) को पृथक् करने में प्रयोग होता है ।

आवेशित कणों के गमन की निर्भरता (Dependence of Movement of Charged Particles):

आवेशित कणों का विद्युत क्षेत्र में प्रचलन निम्न बातों पर निर्भर करता है:

(i) समय,

(ii) विद्युत धारा,

(iii) विलायक की चालकता,

(iv) कण का आकार एवं आवेश ।

एक सेकण्ड में एक वोल्ट प्रति सेमी. के पोटैन्शियल ग्रेडिएन्ट (Potential Gradient) पर कण द्वारा चली गयी दूरी इलेक्ट्रोफोरेटिक मोबाइलिटी (Electrophoretic Mobility) कहलाती है । चूँकि विभिन्न प्रकार के कणों की समान विद्युत धारा के प्रभाव में इलेक्ट्रोफोरिक मोबाइलिटी अलग-अलग होती है ।

अत: उन्हें किसी मिश्रण से पृथक् किया जा सकता है । pH मानों में भिन्नताओं के आधार पर भी इलेक्ट्रोफोरिक प्रचलन देखा जा सकता है । उदाहरणार्थ- आइसोइलेक्ट्रिक बिन्दु पर विद्युत धारा प्रवाहित करने के बावजूद किसी भी इलेक्ट्रोड (Electrode) की ओर गमन नहीं करते ।

निम्न pH पर ये धन आवेशित होते हैं तथा ये एनोड (Anode) पर एकत्रित होते हैं । pH के भिन्न-भिन्न मानों पर अम्लीय, भास्मिक तथा उदासीन अमीनो अम्ल ध्रुवों की ओर गमन करते हैं ।

प्रोटीन को घोल में पृथक् करना (Separation of Proteins of Solution):

किसी विलयन में विभिन्न प्रोटीन्स का पृथक्करण इलेक्ट्रोफोरेसिस तकनीक द्वारा किया जाता है । यद्यपि यह तरीका पूर्णतः सही नहीं है, किन्तु इसमें अनेक प्रकार के पदार्थ सम्मिलित किये गये हैं । आवेशित कण जिस माध्यम से होकर गति करते हैं, वह सामान्यतः छिद्रित होता है ।

इलेक्ट्रोफोरेसिस के घटक (Components of Electrophoresis):

इलेक्ट्रोफोरेसिस के घटक (Components of Electrophoresis) के निम्नलिखित हैं:

(1) बफर (Buffer),

(2) सेम्पल (Sample),

(3) माध्यम (Medium),

(4) उपकरण (Apparatus) ।

(1) बफर (Buffer):

इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) में बफर (Buffer) वह पदार्थ है, जो माध्यम (Medium) के pH को स्थिर (Constant) बनाये रखता है तथा माध्यम के आयनों (Ions) के प्रवाह की दर को कई प्रकार से प्रभावित करता है । बफर (Buffer) के रूप में मुख्यता ऐसीटेट (Acetate), सिट्रेट, बार्बीटोन, फॉस्फेट, Tris, EDTA एवं पाइरीडीन का उपयोग किया जाता है ।

ये बफर सैंपल (Buffer Sample) के लिए विलायक (Solvent) की तरह कार्य करते हैं । अत: आंशिक रूप से सैंपल (Sample) का विसरण (Diffusion) होता है । इस विसरण को रोकने के लिए सैंपल को संकरे बैंड (Narrow Band) के रूप में मंदगति से प्रवाहित किया जाता है ।

बफर (Buffer) की सांद्रता (Concentration) पृथक्करण (Isolation) को प्रभावित करती है । आयनों (Ions) के गमन की दर बफर (Buffer) की आयनिक शक्ति (Ionic Strength) के विलोमानुपाती होती हैं । बफर की आयनिक शक्ति (Ionic Strength) ज्यादा होने पर उष्मा का उत्पादन बढ़ जाता है ।

आयनिक शक्ति कम होने पर उष्मा का उत्पादन कम होता है लेकिन इससे विसरण तथा रिजोल्यूशन का ह्रास होता है । अत: बकर (Buffer) की आयनिक शक्ति (Ionic Strength) का चुनाव एक महत्वपूर्ण कार्य है और प्रायः 0.05 से 0.10 mol.dm-3 आयनिक शक्ति (Ionic Strength) वाले बफर्स का चुनाव अधिक किया जाता है ।

आयनिक शक्ति (Lonic Strength) = t/2 ECZ2

C = आयन की मोलर सान्द्रता (Molar Concentration of Ions),

Z = आयन का आवेश (Charge of Ions) ।

आयनीकृत यौगिकों (Ionized Compound) पर pH का प्रभाव कम होता है, लेकिन कार्बनिक यौगिकों (Organic Compound) के लिए pH आयनीकरण की मात्रा का निर्धारण करता है । pH का मान अधिक होने के कारण कार्बनिक अम्लों (Organic Acids) का आयनीकरण बढ़ जाता है । अत: कार्बनिक यौगिकों (Organic Compound) के गमन की दर pH पर निर्भर करती है ।

(2) सेम्पल (Sample):

आवेशित यौगिकों (Charged Compound) की प्रकृति कई तरीकों से उनकी गमन दर को प्रभावित करती है ।

जैसे:

(a) आवेश (Charge)- गमन की दर आवेश के समानुपाती होती है ।

(b) आकृति (Chape)- अलग-अलग आकृति (Shape) वाले मोलीक्यूल (Molecules) अलग-अलग गमन प्रवृतियाँ (Frequency) प्रदर्शित करते हैं क्योंकि उन पर अलग-अलग घर्षण तथा इलेक्ट्रोस्टेटिक बल (Electrostatic Force) कार्य करता है ।

(c) आकार (Size)- गमन की दर अणु के आकार के विलोमानुपाती होती है ।

(3) माध्यम (Medium):

इलेक्ट्रोफोरेसिस के माध्यम (Medium) के रूप में निष्क्रिय पदार्थों का प्रयोग किया जाता है ।

ये माध्यम निम्न हैं:

(a) पेपर (Paper)- इसका उपयोग प्रारंभ में किया जाता था परन्तु सेलूलोज पर विभिन्न पदार्थों का अधिशोषण हो जाने के कारण उनकी आपस में मिक्सिंग हो जाती है । अत: सेलूलोज का उपयोग होने लगा ।

(b) अगार जैल (Agar Gel)- यह पारदर्शी (Transparent) माध्यम है तथा फोटो मैट्रिक स्कैनिंग (Photometric Scanning) में इसका उपयोग किया जाता है ।

(c) पोली एक्रिलेमाइड जेल (Polyacryl Amide Gel)- यह माध्यम (Medium) पारदर्शी (Transparent) होता है । इसे पराबैंगनी (Ultraviolet) एवं दृश्य प्रकाश दोनों में स्केन (Scan) किया जा सकता है ।

इनके रंध्रों (Pores) के आकार को नियंत्रित किया जा सकता है । अणुओं (Molecules) के पृथक्करण अणु (Isolated Molecules) आकार तथा आवेश (Charge) पर निर्भर करते हैं ।

(4) उपकरण (Apparatus):

इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) के उपकरण (Apparatus) में दो मुख्य रचनाएँ होती हैं । एक पावर पैक (Power Pack) तथा द्वितीय (Secondary) इलेक्ट्रोफोरेसिस यूनिट (Electrophoresis Unit) पावर पैक (Power Pack) द्वारा स्थिर और डायरेक्टर करंट (DC) प्रदान किया जाता है ।

इससे वोल्टेज (Voltage) तथा करंट (Current) आऊट पुट (Out Put) दोनों नियंत्रित (Control) किए जाते हैं । इलेक्ट्रोफोरेटिक यूनिट (Electrophoretic Unit) में इलेक्ट्रोड्‌स बफर रिसर्वोयर माध्यम को रखने का स्थान तथा पारदर्शी इंसुलेटिंग (Transparent Insulating) कवर होता है ।

बफर रिसर्वोयर्स दो भागों में बंटे होते हैं:

(1) इलेक्ट्रोड (Electrode),

(2) विक कपार्टमेंट (Vick Compartment) ।

इलेक्ट्रोफोरेसिस के प्रकार (Types of Electrophoresis):

इलेक्ट्रोफोरेसिस के निम्नलिखित मुख्य तीन विधियों का उपयोग किया जाता है:

(1) पेपर इलेक्ट्रोफोरेसिस (Paper Electrophoresis),

(2) स्लेब जेल इलेक्ट्रो फोरेसिस (Slab Gel Electrophoresis),

(3) डिस्क जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Disc Gel Electrophoresis) ।

(1) पेपर इलेक्ट्रोफोरेसिस (Paper Electrophoresis):

यह सर्वाधिक प्रचलित विधि है । इसमें छोटे अणुओं का विश्लेषण तथा रिजोल्यूशन ज्ञात किया जा सकता है । सैंपल को आसुत जल या किसी अन्य वाष्पशील बफर में घोलकर, उत्पत्ति रेखा (Origin Line) पर एक छोटा स्त्रोत के रूप में रखा जाता है ।

इसके पश्चात् ज्ञात मानकों वाले यौगिकों को उत्पत्ति रेखा पर किसी दूसरी जगह रखा जाता है । जब विलायक वाष्पीकृत हो जाता है । तब पेपर को इलेक्ट्रोफोरेटिक बफर के द्वारा स्प्रे करके गीला किया जाता है । यह स्प्रे दोनों सिरों पर किया जाता है ताकि दोनों सिरों का बफर फ्रंट साथ-साथ उत्पत्ति रेखा पर मिले ।

इस पेपर के इलेक्ट्रोफोरेसिस यूनिट में रखा जाता है तथा इसके दोनों सिरे इलेक्ट्रोइडस पर इलेक्ट्रोफोरेसिस बफर के रिसर्वोयर के संपर्क में रहे । इस प्रक्रिया के पश्चात् संपूर्ण यूनिट को ढक दिया जाता है । ताकि विद्युत आघात न लगे । उचित वोल्टेज देकर निश्चित समय बाद पेपर पर सैम्पल के घटकों का पृथक्करण हो जाता है ।

अंत में विद्युत प्रवाह को बंद करके पेपर को हटा लिया जाता है तथा इसे सुखाकर, इसका विश्लेषण किया जाता है । यह विधि निम्न (कम) आण्विक भार (Molecular Weight) वाले यौगिकों (Compound) जैसे अमीनो अम्ल (Aminoacids) छोटे पेप्टाइडस (Small Peptides) व न्यूक्लियोटाइड्स (Nucleotides) के लिए उपयुक्त होती है ।

(2) स्लेब जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Slab Gel Electrophoresis):

इस विधि के अंतर्गत अच्छे परिणाम पाने के लिए कागज के स्थान पर जैल (Gel) को सपोर्टिग मैटर (Supporting Matter) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है । इस विधि में प्रोटीन्स (Proteins) के पृथक्करण (Isolation) हेतु पॉलीएक्राइलैमाइड (Polyacrylamide) का प्रयोग किया जाता है तथा न्यूक्लिक अम्लों (Nucleic Acid) के पृथक्करणों हेतु छोटे न्यूक्लिमोटाइड (Small Nucleotide) तथा आर्गोज एगरेज (Agarose) का प्रयोग किया जाता है ।

यह जैल स्लेब (Slab) स्लाइड पर या स्तम्भ (Columns) के रूप में हो सकते हैं । प्रायः स्लेब (Slab) को कॉलम से अधिक प्रयोग किया जाता है, क्योंकि उनकी क्षमताएँ कॉलम (Column) से अधिक होती हैं ।

जैल (Gel) का प्रयोग करने के कारण यह विधि जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel Electrophoresis) कहलाती है । इसके अन्तर्गत दो माध्यम, जैसे पोली एक्रिलेमाइड (Poly Acrylamide) और एगरोस (Agrose Gel) आते हैं ।

(a) पोली एक्रिलेमाइड जैल (Poly Acrylamide Gel):

इस विधि में अणुओं को तरल बफर विलयन में पृथक् किया जाता है । यहाँ माध्यम बहुलीकृत जैल मैट्रिक्स के रूप में होता है । माध्यम के लिए पोली एक्रिलेमाइड जेल का उपयोग किया जाता है । इस विधि द्वारा DNA खण्डों का पृथक्करण किया जाता है ।

पहले DNA को रिस्ट्रक्सन एन्जाइम के द्वारा काटा जाता है । ये खण्ड उच्च वोल्टेज की विद्युत धारा के साथ अपने आवेश व भार के अनुसार विलगित हो जाते हैं । DNA खण्डों के मिश्रण को जेल में पात्रों (Wells) में भरते हैं तथा जेल के दोनों तरफ ऐनोड (+) व कैथोड (-) पोल लगाकर विद्युत प्रवाहित करते हैं ।

विद्युत आवेश के कारण DNA के बड़े खण्ड समीप रह जाते हैं जबकि छोटे खण्ड दूर चले जाते हैं । अत: अलग-अलग आकर के DNA खण्ड अलग-अलग बैण्ड का निर्माण करते हैं ।

पोली एक्रिलेमाइड बेल का निर्माण एक्रिलेमाइड तथा N, N मिथाइलीन बिस एक्रिलेमाइड को बहुलीकृत करके प्राप्त किया जा सकता है । एक्रिलेमाइड मोनोमर तथा क्रास लिंकर, अपने आप में स्थाई होते हैं । किन्तु मुक्त मूलकों (Radicals) का उपयोग करने पर ये बहुलीकृत (Polymerized) हो जाते हैं ।

(b) ऐगारोज जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Agarose Gel Electrophoresis):

यह जेल (Gel) छिद्रयुक्त (Porous) तथा इसके छिद्र बड़े होते हैं व इनका उपयोग दीर्घ अणु (Macro Molecules) जैसे नाभिकीय अम्ल (Nuclear Acids) के विखण्डन में जो विभेदन (Penetrate) नहीं कर पाते व अन्य सहायक पदार्थ की ओर बढ़ जाते हैं । इस विधि के ग्लास ट्‌यूब (Glass Tube) या प्लेन स्लाइड (Plain slide) का उपयोग कर सकते हैं ।

Agarose D-Galactose व 3, 6-Anhydro-L-Galactose का रेखीय बहुलक (Linear Polymer) है । ऐगारोज (Agarose) जेल (Gel) को बफर (Buffer) की उपस्थिति में उबालकर Mold में पलटकर (Pour) मैट्रिक्स (Matrix) बनाने के लिए कठोर किये जाते हैं ।

ऐगारोज (Agarose) का सान्द्रण (Concentration) उच्च होने पर छिद्र (Pore) का आकार बड़ा हो जाता है । जब जेल (Gel) में विद्युत क्षेत्र प्रवाह होता है तो DNA अणु (Molecules) जो उदासीन (Neutral) pH पर ऋणावेशित (Negative Charged) होते हैं, तो विपरीत (Opposite) आवेश (Charge) वाले अपघटयों की ओर पलायन कर जाते हैं ।

यह दर इनके आण्विक आकार (Molecular Shape) व संरेखण के अनुसार होती है । चूँकि आवेश (Charge) या द्रव्यमान अनुपात होता है । अत: DNA अणुओं (Molecules) के पलायन की दर उनके आण्विक भार (Molecular Weight) के log10 के व्युत्क्रमानुपाती (Inversely Proportional) होती है ।

जैसे लघु DNA अणु, दीर्घाणुओं की तुलना में शीघ्रता से गति करेंगे । समान आकार परन्तु भिन्न संरुपण वाले DNA अणु (Molecule) भिन्न दर पर गति करते हैं । पलायन वेग की कोटि (Order), DNA के विभिन्न रूपों की बढ़ती कोटि (Order) कुण्डलित (Coiled) DNA रैखिक द्विपट्टिका DNA, ओपन गोला कार DNA होते हैं ।

जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel Electrophoresis) उसे 10pH वाले बफर (Buffer) में भी किया जा सकता है । बफरों (Buffers) की आयनिक क्षमता (Ionic Power) को निम्न (0.1 से 0.1 M) रखा जाता है, जिससे इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) के दौरान ऊष्मा अल्प मात्रा में उत्पन्न हो जाते हैं ।

(3) डिस्क जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Disc Gel Electrophoresis):

इस विधि में पॉलीएक्रिलोमाइड जेल का उपयोग किया जाता है । इस उपकरण में दो रिजर्वोयर होते हैं जो बफर द्वारा भरे रहते हैं । ये आपस में जेल युक्त कांच की नलिका की श्रृंखला से जुड़े रहते हैं । निचले रिजर्वोयर में एनोड (+) तथा ऊपर वाले में कैथोड (-) होता है ।

सैम्पल को जेल स्तम्भ की ऊपरी सतह पर डाला जाता है एवं बफर को ऊपरी रिजर्वोयर में डालकर ढक्कर में बंद कर दिया जाता है तथा विद्युत का प्रवाह प्रारंभ कर दिया जाता है ।

इस उपकरण में जैल का ऊपरी तिहाई भाग बड़े छिद्रों वाले स्टेकिंग या स्पेसर जेल से बना होता है, जबकि निचला भाग छोटे छिद्रों वाले सैपरेटिंग या रिजोल्विंग या रनिंग जैल का बना होता है । स्पेसर जैल का मुख्य कार्य सैंपल को नीचे उतरते समय अधिक सांद्र करना होता है, ताकि रनिंग जैल में एक संकरे बैण्ड (Narrow-Band) के रूप में प्रवेश करें ।

रनिंग जैल आण्विक चालनी (Molecular Sieve) के द्वारा मिश्रण में यौगिकों को पृथक् करता है । ऊपरी तथा निचले रिजर्वोयर में pH में अंतर के कारण जब सैम्पल स्टेकिंग जैल से गुजरता है, तो यह अधिक सांद्र हो जाता है ।

स्पेसर जैल तथा ऊपरी रिजर्वोयर के बफर में दुर्बल एमिल क्षार-Tris होते हैं । लेकिन ऊपरी रिजर्वोयर में इसके अलावा दुर्बल अम्ल (a-Tris/Glycine Buffer System) होता है । इसी प्रकार स्पेसर जैल में प्रबल अम्ल HCI (Tris/HCI Buffer System) होता है । इस कारण ऊपरी रिजर्वोयर की pH स्पेसर जेल से थोड़ी ज्यादा होती है ।

प्रोटीन के सैंपल को उसी pH पर डाला जाता है । जो स्पेसर जैल की pH होती है । इन पर बहुत कम -ve आवेश होता है, जब यूनिट में विद्युत को प्रवाहित किया जाता है, तो ऊपरी रिजर्वोयर में उपस्थित ग्लाईसीनेट (Glycinate) आयन की गति क्लोराइड आयनों की तुलना में काफी कम होती है ।

अत: क्लोराइड आयन आगे होते हैं एवं ग्लाईसीनेट इसके पीछे होते हैं । ग्लाईसीनेट की गति, स्पेसर जैल में ओर कम हो जाती है क्योंकि ये प्रोटॉन से जुड़कर ज्वीटर आयन (Zwitter Ion) बना लेते हैं । ग्लाइर्सिनेट वाले क्षेत्र में वोल्टेज बढ़ जाता है । जबकि क्लोराइड वाले क्षेत्र में वोल्टेज कम हो जाता है ।

इस प्रकार सैंपल के प्रोटीन ऋणायन, दोनों क्षेत्रों के मध्य आ जाते हैं क्योंकि इनकी गति, ग्लाइसीनेट आयनों से ज्यादा होती है तथा क्लोराइड आयनों से कम होती है । इस प्रकार प्रोटीन के अणुओं का एक पतला बैण्ड उत्पन्न होता है जो रनिंग जैल में क्लोराइड आयनों के पीछे प्रवेश करता है ।