स्टेरलाइजेशन के रासायनिक तरीके | Read this article in Hindi to learn about the chemical methods of sterilization.
रसायनों का भी कीटाणुशोधन के लिए उपयोग किया जा सकता है । हालांकि ऊष्मा देना सभी संक्रमणशील माध्यमों के सभी पदार्थों से छुटकारा पाने का सबसे विश्वसनीय तरीका उपलब्ध कराता हैं पर यह हमेशा उपयुक्त नहीं होती, क्योंकि यह ऊष्मा संवेदी पदार्थों जैसे जैविक पदार्थ फाइबर ऑस्टिनस इलेक्ट्रॉनिक्स तथा कई लास्टिकों आदि को क्षति पहुंचा देगी ।
निम्न तापमान युक्त कीटाणुशोधक कीटाणुमुक्त करने हेतु वस्तुओं को अति क्रियाशील गैसी (अल्काएलेटिक माध्यम जैसे- एथीलीन ऑक्साइड तथा आक्सीडाई जिंग कारक हाइड्रोजन परऑक्साइड तथा ओजोन) की अधिक संख्या (विशेष 5-10% v/v) से उपचारित करके कार्य करते है ।
द्रव्य कीटाणु शोधक तथा परएसेटिक अम्ल जैसे ऑक्साइडजिंग सजेट तथा उल्डहाइड जैसे ग्लुजरअल्डेटाइड तथा सबसे नवीनतम ऑपथैलेल्डेहाइड जबकि गैस तथा द्रव्य रसायनिक किटाणुशोधकों/उच्च स्तरीय संक्रमण का प्रयोग ऊष्मा क्षति की समस्या को दूर कर देता है । पर प्रयोगकर्ता को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि कीटाणुशोधित करने हेतु वस्तु रासायनिक कप से प्रयुक्त कीटाणुमुक्ति करणकर्ता से अनुकूल हो ।
1. एथीलीन ऑक्साइड (Athelene Oxide):
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एथीलीन ऑक्साइड (ई.ओ. अथवा ई टी ओ) गैस को सामान्यतः 60°C से अधिक तापमान के प्रति संवेदनशील वस्तुओं को कीटाणु रहित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे- प्लास्टिकें ऑटिक्स तथा इलेक्ट्रिक्स ।
एथीलीन ऑक्साइड उपचार 30°C से 60°C पर सापेक्षित 30 से अधिक आद्रता तथा 200 तथा 800 मिग्रा/प्रति लीटर के मध्य की गैस सान्द्रता पर कम से कम तीन घंटों के लिए किया जाता है ।
एथीलीन ऑक्साइड कम कपड़े तथा कुछ प्लास्टिक फिल्मों में से गुजरते हुऐ उनमें अच्छे से घुस जाता है तथा अत्यन्त प्रभावशाली होता है । एथीलीन ऑक्साइड कीटाणुशोधकों का प्रयोग संवेदनशील उपकरणों को कीटाणु रहित करने में किया जाता है ।
अन्य विधियों से अच्छी तरह कीटाणुमुक्त करने में किया जाता है । ई. टी. ओं सभी ज्ञात विषाणुओं जीवाणु तथा कवक साथ ही जीवविक बीजाणुओं को नष्ट कर सकता है तथा अधिकांश चिकित्सकीय पदार्थों के लिए बार-बार प्रयोग किये जाने पर भी संतोषजनक होता है ।
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दो अत्यधिक महत्वपूर्ण एथीलीन ऑक्साइड कीटाणु शोधन विधियाँ है:
(i) गैस चैम्बर विधि तथा
(ii) माइक्रो-डोज विधि ।
2. ओजोन (Ozone):
ओजोन औद्योगिक क्षेत्रों में वायु तथा जल को कीटाणुरहित करने के लिए तथा सतहों के लिए संक्रामणनाशक के रूप में प्रयोग होता है । इसमें यह लाभ है कि इसमें पास अधिकांश ऑर्गेनिक पदार्थों को ऑक्सीडाईज करने की क्षमता है । वहीं दूसरी ओर यह विषैली तथा अस्थायी गैस है, जिसको स्थल पर ही उत्पन्न किया जाना चाहिए । अत: यह कर क्षेत्रों में प्रयोग करने के लिए व्यवहारिक नहीं है ।
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ओजोन एक कीटाणुशोधक गैस के रूप में कई लाभ पेश करती है । ओजोन एक अति प्रभावशाली कीटाणुशोधक है । क्योंकि यह तीक्ष्ण ऑक्सीडाइर्जिन रोगाणुओं की एक विशाल श्रृंखला को नष्ट करने में सक्षम हैं, जिनमें प्रिआन्स भी शामिल हैं ।
इस प्रक्रिया में खतरनाक रसायनों को संभालने-की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि ओजोन कीटाणुशोधी के अंदर ही चिकित्सनीय ग्रेड के ऑक्सीजन से बनती है । ओजोन की उच्च क्रियात्मकता से तात्पर्य हैं कि व्यर्थ ओजोन को एक साधारण केटेलिस्ट के ऊपर से निकलवाकर नष्ट किया जा सकता है, जो इसे पुन: ऑक्सीजन में बदल देगा तथा इससे यह भी मतलब होता है कि चक्र अवधि अत्यधिक छोटी है ।
3. ब्लीच (Bleach):
क्लोरीन ब्लीच एक अन्य द्रव्यीय कीटाणुशोधक है । घरेलू ब्लीच में 5.25 प्रतिशत सोडियम हापोक्लोराइट होता हैं । यह प्रयोग के तुरंत पहले 1/10 तक पतला कर दिया जाता है; हालांकि माइक्रोवेबटीशिम ट्यूबर क्यूलोसिस को नष्ट करने के लिए केवल 1/5 तथा प्रिऑन्स को निष्क्रिय करने के लिये 1/2.5 एक भाग ब्लीच तथा 2.5 भाग ब्लीच तक तनुया पतला करना चाहिए ।
इस तनुवा डाइल्युशन फेक्टर को किसी भी द्रव्य अपशिष्ट की मात्रा को भी हिसाब में रखना चाहिये, जो कीटाणुरहित करने में प्रयोग हो रही हो । ब्लीच कई जीवों को तुरंत नष्ट कर देता है, पर पूर्ण कीटाणुशोधन के लिये रखें ।
20 मिनट तक क्रिया करने देना चाहिए । ब्लीच कई स्पोरों को भी नष्ट कर देता है, पर सभी स्पोरों को नहीं । यह अत्यन्त क्षरणकारी होता है तथा स्टेनलिस स्टील के शल्य चिकित्सकीय उपकरणों में भी जंग लगा सकता है ।
4. ग्लुटरेएल्डिहाइड तथा फॉर्मलडिहाइड (Glutaldehyde and Formaldehyde):
ग्लुटरेएल्डिहाइड तथा फॉर्मलडिहाइड विलयन (फेक्सेटिव की तरह भी उपयोग होते है) मान्य द्रव्य कीटाणुशोधन माध्यम है, यदि इसमें डुबोये रखे जाने की अवधि पर्याप्त लम्बी हों । एक स्पष्ट द्रव्य में सभी स्पोरों को नष्ट करने में ग्लुटरएल्डिहाइड के साथ 12 घंटे तथा फार्मेलडिहाइड के साथ और अधिक समय लग सकता है ।
5. हाइड्रोजन परऑक्साइड (Hydrogen Peroxide):
हाइड्रोजन परऑक्साइड एक अन्य रासायनिक कीटाणुशोधक हैं । जब कम सान्द्रता तक तनु कर दिया जाता है जैसे सामान्य (3 प्रतिशत) फुल्टर विलयन, तब यह विषैला नहीं होता । हालाँकि उच्च सांदता (10% w/w) पर यह खतरनाक ऑक्सीकारक होता है ।
हाइड्रोजन-परऑक्साइड एक तीक्ष्ण ऑक्सीकारक है तथा यह ऑक्सीकरण गुण से रोगाणु की विशाल श्रृंखला को नष्ट करने में सक्षम बनाते हैं तथा ऊष्मा अथवा तापमान संवेदी वस्तुओं जैसे दृढ़ एन्डीस्कोप आदि को कीटाणुओं रहित करने में उपयोग किए जाते हैं ।
चिकित्सकीय कीटाणुशोधन में हाईड्रोजन ऑक्साइड में उच्च सांद्रता पर प्रयोग किया जाता है, जो लगभग 35 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक जाती है । एक कीटाणुशोधक के रूप में हाइड्रोजन परऑक्साइड का सबसे बड़ा लाभ इसकी छटी चक्र अवधि है ।
6. एल्कोहल (Alcohol):
एथिल एल्कोहल तथा आइसोप्रोपाइल एल्कोहल सर्वाधिक प्रयोग होते हैं । ये मुख्यतः त्वचा एन्टीसेप्टिक होता है तथा जीवाणु प्रोटीन का अप्राकृतिककरण करके कार्य करता है । इसमें विषाणुओं तथा जीवाणुओं के प्रभावी होंगे पर कोई क्रिया नहीं होती ।
इनको पानी में 60-70 प्रतिशत की सान्द्रता पर प्रयोग करना चाहिए । प्रोटीन क्रिया को धीमा कर देते है, जबकि 1 प्रतिशत खनिज अम्ल अथवा क्षार इसकी गतिविधियों को बढ़ा देते हैं । आइसोप्रोपाइल एल्कोहल इथाइल एल्कोहल से बेहतर होता, क्योंकि यह वसा द्रावक अधिक जीवाणुनाशक तथा कम वाष्पशील होता है ।
इसे क्लीनिकल तापमापियों को संक्रमण मुक्ति में प्रयोग किया जाता है । मिथाइल अलकोहल कवक विषाणुओं के प्रति प्रभावशाली होता है तथा उनसे उत्पन्न होने वाले केबिनटों तथा संवर्धकों को उपचारित करने में प्रयोग किया जाता है ।
7. एल्डेहाइड (Aldehyde):
फॉर्मलडिहाइड (HCHO) प्रोटीन अणु में अमीनो समूह के प्रति क्रिया करता है । जलीय विलयनों में यह विशेष प्रकार से जीवाणुनाशी तथा विषाणुनाशी होता है तथा विषाणुओं पर प्राणघाती प्रभाव रखता है । इसे संरचनात्मक नमूनों को संरक्षित करने में बालों तथा ऊन में ऐन्थेनम के स्पोरों को नष्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है ।
10 प्रतिशत फॉर्मालीन में जिसमें आधा प्रतिशत सोडियम ऑरेट होता है, उपकरणों तथा ऊष्मा संवेदी कैथेटरों को कीटाणुरहित करने में प्रयोग किया जाता है । यह वार्डों, तीमार कक्षों तथा प्रयोगशालाओं के दुर्गंधयुक्त करने में भी प्रयोग होता है । अच्छी तरह नियंत्रित अवस्था में कपड़े विस्तर, लकड़ी का सामान तथा किताबें भी संतोष तथा श्वसन कर लिये जाने पर जहरीली होती है ।
8. हैलोजन (Halogen):
जलीय तथा अम्लीय विलयनों में आयोडीन एक त्वचा संक्रमणनाशी के रूप में उपयोग किया जाता है । यह एक सक्रिय जीवाणुनाशक माध्यम है, जो स्पीरों के प्रति भी सामान्य क्रिया रखता है । यह ट्यूबरकल बेसिलस तथा कई विषाणुओं के प्रति सक्रिय होता है । क्लोरीन सबसे ज्यादा हाइपोक्लोराइट के रूप में प्रयोग किया जाता है । क्लोरीन तथा हाइपोक्लोराइट विशिष्ट रूप से जीवाणुनाशक होते हैं ।
9. फिनॉल (Phenol):
ये कोलतार के 170 डिग्री से 270 डिग्री सी के बीच डिस्टिलेशन द्वारा प्राप्त किए जाते है । लिसर “एन्टीसोप्टिक शल्य क्रिया के जनक” ने सबसे पहले इनका शल्य क्रिया में (1867) प्रयोग किया । तभी से फिनॉलीय यौगिकों की एक विशाल श्रृंखला संक्रमणनाशी के रूप में विकसित कर ली गई है ।
फिनॉल एक शक्तिशाली सूक्ष्मजीवनाशक पदार्थ है । यह तथा अन्य कोलतार से प्राप्त फिनॉल कई कार्यों के लिए अस्पतालों में संक्रमणनाशी है । यह विशिष्ट रूप से मानव के लिये जहरीला होता है ।
हैक्साक्लोरोफीन सक्षमविषाक्त होता है तथा सावधानी पूर्वक प्रयोग किया जाना चाहिए । क्लोरहेक्सीडीन संक्षिप्त रूप से अविषाक्त त्वचा एंटीसेप्टिक है, जो ग्राम धनात्मक जीवों के प्रति सर्वाधिक सक्रिय होता है ।
पृष्ठ सक्रिय माध्यम:
वह पदार्थ, जो संयोजन स्थलों पर ऊर्जा संबंधों को पृष्ठ अथवा अंतफलकीय तनाव उत्पन्न करते हुए बदल देते है, वे पृष्ठ सक्रिय माध्यम कहलाते हैं । यह अव्यायिक तथा युग्मद जो भी होते हैं । सर्वाधिक महत्वपूर्ण सूक्षमजीव विरोधी कारक, कैटायनिक पृष्ठ सक्रिकारक हैं ।
यह कोशिका झिल्ली के फोस्फेट समूहों पर क्रिया करते है तथा कोशिका में प्रवेश भी कर जाते है । झिल्ली अपनी अर्धपारग्म्यता खो देती है तथा कोशिका प्रोटीन अप्राकृतिक हो जाते है । केटायनिक यौगिक, जो क्वाटरनरी अमोनियम यौगिक के रूप में होते है, वे जीवाणुनाशक होते हैं, जो ग्राम घनात्मक जीवों के विरूद्ध सक्रिय होते हैं ।
अनायनिक यौगिक जैसे सामान्य साबुन एक परिमित गतिविधि रखते हैं । संतृप्त वसीय अम्लों से निर्मित साबुन ग्राम ऋणात्मक ब्रैसिली के प्रति अधिक प्रभावशाली होते हैं, जबकि असंतृप्त वसीय अम्लों से निर्मित साबुन ग्राम घनात्मक जीवों के विरूद्ध अधिक प्रभावशाली होते हैं । “टैगो” योगिक कहलाने वाले एम्फोटेरिक यौगिक ग्राम घनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला के प्रति सक्रिय होते हैं ।
धात्विक लवण:
चाँदी, तांबे तथा पारे के लवण संक्रमण नाशकों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं । ये प्रोटीन थक्काकारक होते हैं तथा कोशिका प्रकिण्वों (एन्जाइमों) के मुक्त सल्फिड्रिल समूहों से जुड़ने की क्षमता रखते हैं ।