फंगी के कारण संयंत्र रोग | Read this article in Hindi to learn about the general symptoms of diseases caused by fungi.
पादपों (Plants) में कवकों (Fungus) द्वारा उत्पन्न ऊतक (Tissues) क्षयी लक्षण पाए जाते हैं जो निम्नलिखित हैं:
(1) ब्राउनिंग (Browning):
रोगी पौधों के अंगों में भूरे (Brown) रंग के क्षेत्र दिखायी देने लगते है जिससे अन्य ऊतक (Tissues) भूरे रंग (Brown Colour) से रंग जाते हैं ।
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(2) सिल्वरिंग (Silvering):
इसमें पत्तियों (Leaves) की सतह राख (Ash) के रंग की चमकीली दिखायी देने लगती है ।
(3) ब्लोच (Blotch):
इसमें पत्तियों (Leaves) अथवा फलों (Fruits) की एपीडर्मिस (Epidermis) के ऊतकों (Tissues) का रंग समाप्त हो जाता है तथा इन ऊतकों (Tissues) में रोग जनकों (Pathogens) के गहरे रंग के कवक जाल (Fungal Net) से भर जाते हैं, जो निक्रोटिक चोट (Necrotic Damage) के लक्षण प्रदर्शित करते हैं । ऐसे लक्षण सेव के Sooty Blotch रोग में देखने को मिलता है ।
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(4) अपक्षय (Die Back):
इस रोग में पौधों की शाखा (Branch) सिरे से पीछे की ओर सूखने लगती है । शीर्ष कलिका (Apical Bud) के नष्ट हो जाने से शाखा की वृद्धि समाप्त हो जाती है तथा पौधे की शाखाएँ सूख जाती है ।
(5) कण्ड (Smut):
कण्ड (Smut) का अर्थ राख (Ash) जैसा अथवा चारकोल (Charcoal) जैसे पाउडर (Powder) से होता है । इस रोग के लक्षण प्रायः पोषकों के पुण्यक्रमों (Inflorescence) में दिखाई देते हैं । पोषक के रोग ग्रस्त (Diseased) भाग काले स्पोर माँस (Black Spore Mass) में परिवर्तित हो जाते है ।
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जौ का कवर्ड स्मट (Covered Smut of Barley) रोग आस्टिलेगों होर्डाई (Ustilago Hordei) द्वारा गेहूँ का लूज स्मट (Loose Smut of Wheat) नामक रोग अस्टिलेगों नृडा॰ वे॰ ट्रिटिसाई (Usilago Nuda ver Tritci) द्वारा होता है ।
(6) केन्कर (Canker):
काष्कीय (Woody) पौधों के तनों (Stem) के कार्टेक्स (Cortex) अथवा छाल (Bark) में मृत क्षेत्र (Dead Area) बन जाते हैं जो केन्कर (Canker) लक्षण कहलाते हैं ।
इसके करण सतह चिकनी या खुरदरी हो जाती है । इस रोग के करण रोगी के अंग फट जाते है जिससे स्वस्थ अंगों की वृद्धि रुक जाती है तथा स्वस्थ अंगों के किनारे पर कैलस (Callus) बन जाता है ।
(7) हायड्रोसिस (Hydrosis):
इसे पानी से भीगे (Water Soaking) लक्षण भी कहते हैं जिसमें रोग ग्रस्त अंग पानी से भीगे (Water Soaked) पारभासक (Translucent) दिखायी देते हैं क्योंकि इन भागों में पानी कोशिकाओं (Cells) से अन्तरा कोशिकीय (Intracellular) अवकाशों (Chamber) में आ जाता है जो नेक्रोटिक (Necrotic) रोगों के अवकाशों में प्राथमिक लक्षणों को प्रदर्शित करता है ।
(8) स्कोर्च (Scorch or Burn):
इस प्रकार के रोग के लक्षणों में पत्तियों के ऊतकों (Tissues) की बहुत तेजी के साथ मृत्यु हो जाती है और उनका रंग भूरा (Brown) हो जाता है । इस प्रकार के लक्षण प्रदर्शित बड़े-बड़े क्षेत्र की पत्तियों या फलों पर स्पष्ट दिखायी देते हैं । इसी प्रकार के परजीवी रोग जनकों (Parasitic Pathogens) द्वारा पौधों के अंग झुलसे (Burn) दिखायी देते हैं ।
(9) ग्लानि (Wilts):
यह रोग संवहन तन्त्र (Vascular System) के रोग ग्रस्त (Diseased) हो जाने से होता है जिससे पत्तियाँ प्ररोह (Tendril) तथा पौधे के अन्य अंग मुरझा कर नीचे की ओर लटक (Dropping) जाते हैं । यह रोग प्रायः जडों के घायल हो जाने के करण होता है ।
रोग जनक (Pathogen) द्वारा कुछ विषैले पदार्थ (Toxins) स्त्रावित (Secrete) किए जाते हैं जो जल के साथ कोमल कोशिकाओं (Delicate Cells) में प्रत्येक जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है जिससे पौधे मुरझा जाते हैं । उदाहरण- अरहर का ग्लानि (Wilt of Pigean Pea) ।
(10) पीतन (Yellowing):
पौधे का क्लोरोफिल (Chlorophyll) युक्त भाग पीले रंग (Yellow Colour) के हो जाते हैं, जो धब्बों (Spots) वलयों (Rings) अथवा धारियों (Streaks) जैसे लक्षण पत्तियों, तनों अथवा फलों पर प्रदर्शित करते हैं ।
(11) धारियाँ (Streaks):
इसमें तनों (Stems) या पत्ती (Leaf) की शिराओं पर लम्बी, सँकरी, घाटियाँ दिखायी देती है जो पीली अथवा निक्रोटिक (Necrotic) होती है ।
(12) आर्द्रगलन (Damping Off):
कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में अनेक मृतोपजीवी (Saprophyte) कवक (Fungi) नवोद्भिदियों (Seedling) में आर्द्रगलन (Damping Off) नामक रोग उत्पन्न करते हैं । ये रोग जनक (Pathogen) नवोदिभदियों (Seedling) के तने के आधार (Base) अथवा हाइपोकोटाइल (Hypocotyl) या जडों पर मिट्टी की सतह के पास आक्रमण करते हैं ।
जिसके करण उस स्थान के ऊतक (Tissues) कमजोर हो जाते हैं और नवोद्रमिद पौधा (Seedling) गिर जाता है । उदाहरण विभिन्न प्रकार के नवोदभिद (Seeding) में पीथियम (Phythium) की Species, इनमें उत्पन्न आर्द्रगलन (Damping Off Disease) होती है ।
(13) गलन (Rot):
यह रोग कवकों (Fungi) तथा जीवाणुओं (Bacteria) द्वारा होता है जो पोषक (Host) की कोशिकाओं (Cells) की कोशिका भित्तियों (Cell Wall) के सेल्युलोज (Cellulose) तथा लिगनिन (Lignin) को नष्ट कर देता है ।
गलन (Rot) रोग दो प्रकार के होते हैं:
(a) श्वेत गलन (White Rot),
(b) भूरा गलन (Brown Rot) ।
इसके अतिरिक्त हार्ट (Hot) रॉट (Rot) व साफ्ट गलन (Soft Rot) भी पाए जाते हैं ।
(14) पिटिंग (Pitting):
इसमें फलों ट्यूबर्स (Fruit, Tuber) आदि के माँसल ऊतकों (Tissues) की मृत्यु एपीडर्मिस (Epidermis) के नीचे होने लगती है, जिससे उनमें गड्डे (Pits) जैसी संरचना बन जाती है ।
(15) धब्बे (Spots):
रोगजनकों (Pathogens) के करण पोषक पौधे की कोशिकाएं (Cells) निश्चित क्षेत्रों (Definite Areas) में नष्ट हो जाती है, जो धब्बों (Spots) के लक्षण प्रदर्शित करती है । मूँगफली (Ground Nut) की पत्तियों (Leaf) में भी सरकोमपोरा (Cercospora) रोग जनक द्वारा लीफ स्पॉट (Leaf Spot) के लक्षण दिखाई देते हैं ।
(16) श्वेत ब्लिस्टर (White Blister):
इस रोग में पोषकों (Host) के अंगों (Organs) जैसे तने (Stem) तथा पत्तियों (Leaves) में सूजन (Swellen) उत्पन्न हो जाती है । रोग जनक (Pathogen) द्वारा स्फोट (Pustule) उत्पन्न होते हैं, जो पोषक की सतह से उभरे हुए तथा चमकीले सफेद रंग के दिखायी देते हैं ।
रोग जनक (Pathogen) के आक्रमण के फलस्वरूप पोषक (Host) पौधे के प्रव्य क्रम (Inflorescence) में अनेक कुरूपताएँ (Determities) आ जाती है । उदाहरण क्रूसीफर्स (Crucifers) का व्हाइट रस्ट (White Rust of Crucifers) रोग एल्बूगो केण्डीडा (Albugo Candida) नामक को जनक (Pathogens) द्वारा होता है ।
(17) एन्थ्रेकस्नोस (Anthracnose):
इसमें पत्ती (Leaf) की निचली सतह (Lower Surface) की शिशुओं (Veins) पर कोणीय (Angular) लम्बे धब्बे (Spots) उत्पन्न होते हैं जो चारों ओर ऊतकों (Tissues) में फैल कर पत्ती (Leaf) की ऊपरी सतह (Upper Surface) पर भी दिखायी देने लगते हैं । इस रोग के लक्षण वृन्तों (Petides) तनों (Stem) तथा फलों (Fruits) में भी दिखायी देते हैं ।
(18) पत्तियों का पीला होना (Yellowing of Leaves):
पौधों के क्लोरोफिल (Chlorophyll) युक्त भाग पीले रंग (Yellow) के हो जाते है जो धब्बों (Spots) वलयों (Rings) अथवा धारियों (Streaks) जैसे लक्षण पत्तियों (Leaf), तनों (Stem) अथवा फलों (Fruits) पर प्रदर्शित करते हैं ।
(19) किट्ट (Rust):
इस रोग के लक्षण पोषकों (Hosts) पर भूरे लाल (Brown Red) रंग के रस्ट (Rust) जैसे धब्बों (Spots) के रूप में दिखायी देते हैं । इसमें पोषक (Hosts) की एपिडर्मिस (Epidermis) के नीचे स्फोट (Pustule) बनते हैं जो कुछ समय के बाद फट जाते हैं जिसके फलस्वरूप भारी संख्या में स्पोर्स (Spores) बाहर निकलते है ।
स्कोटो (Pustules) का रंग पीला, लाल, भूरा (Brown) अथवा काला (Black) होता है । उदाहरण गेहूँ का ब्लेक रस्ट (Black Rust of Wheat) जो पक्सीनिया ग्रेमिनिस ट्रिटिसाई (Puccinia Graminis Tritici) नामक रोग जनक (Pathogen) द्वारा होता है ।
(20) मिल्डयू (Mildew):
इस प्रकार के रोगों के लक्षणों में पोषक (Host) की सतह (Surface) के ऊपर रोग जनक (Pathogen) की वृद्धि (Growth) दिखायी देती है । डाउनी मिल्डयूज (Downy Mildews) के रोगजनक (Pathogen) पोषक (Host) की सतह (Surface) पर कपास (Cotton) के रेशों जैसी वृद्धि प्रदर्शित करते हैं ।
जबकि पाउडरी मिल्डयूज (Powdery Mildews) में रोग जनक (Pathogen) महीन पाउडर के समान संरचना बनाते हुए पोषक की सतह पर फैले हुए दिखायी देते हैं ।
उदाहरण बाजरा का ग्रीनइयर (Green Ear of Bajara) या बाजरा का डाउनी मिल्डयू (Downy Mildew of Bajra) जो स्कलेरो स्पोरा ग्रेमेनी कोला (Sclerospora Graminicola) द्वारा होता है । इसी प्रकार अंगूर का पाउडरी मिल्डयूस (Powdery Mildews) रोग अंसीनूला नेक्टर (Uncinula Nector) रोग जनकों (Pathogens) द्वारा होता है ।
(21) रिसना (Ooze):
इसमें पोषक जीवाणुओं (Bacteria) अथवा कवक (Fungi) के र्स्पोस (Spores) से मिश्रित गाढ़ा द्रव निकलकर बूँदों के रूप में धारियाँ (Lesions) पर इकट्ठा हो जाता है । जैसे बेक्टीरियल ब्लाइट ऑफ राइस (Bacterial Blight of Rice) रोग जेन्थोमोनाज़ औराइजी (Xanthomonas Oryzae) नामक रोग जनक (Pathogens) द्वारा होता है ।
(22) रेजीनोसिस (Resinosis):
कोनीफर (Conifer) वृक्षों में बने घावों (Wounds) से अत्यधिक रेजिन (Resin) रोग के कारण निकलने लगता है ।
(23) गन्ध (Odour):
कुछ रोगी पौधों के अंगों से विशिष्ट गन्ध निकलती है जिनके द्वारा उन्हें पहचाना जा सकता है । जैसे अल्म (Alum) का फ्लोएम निक्रोसिस (Phloem Necrosis) रोग ।
(24) गमोसिस (Gammosis):
नींबू (Citrus) तथा अन्य वृक्षों में रोग के कारण छाल (Bark) में बने घावों (Wounds) जैसे चिपकना पदार्थ बाहर निकलने लगता है ।
(25) अपक्षय (Die Back):
इस रोग में पौधों की शाखा सिरे (Tip) से पीछे की ओर सूखने लगती है । शीर्ष कालिका (Apical Bud) के नष्ट हो जाने से शाखा की वृद्धि समाप्त हो जाती है तथा पौधे की शाखाएँ सुख जाती है ।