संयंत्र प्रजनन के शीर्ष 3 तरीके | Top 3 Methods of Plant Breeding
Read this article in Hindi to learn about the top three methods of plant breeding. The methods are:- 1. पादप पुरःस्थापन व दशानुकूलन (Plant Introduction and Acclimatization) 2. वरण (Selection) 3. संकरण (Hybridization).
पादप प्रजनन अथवा फसल सुधारने के लिए पाँच मुख्य विधियाँ हैं:
(1) पादप पुरःस्थापन व दशानुकूलन (Plant Introduction and Acclimatization)
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(2) वरण (Selection)
(3) संकरण (Hybridization)
Method # 1. पादप पुरःस्थापन व दशानुकृलन (Plant Introduction and Acclimatization):
किसी पादप को प्राकृतिक आवास से निकालकर नई जलवायु वाले आवास में स्थापित करना पादप पुरःस्थापन (Plant Introduction) कहलाता है । नये आवास में पादप का समायोजित होना दशानुकूलन (Acclimatization) कहलाता है । इस विधि में लैंगिक जनन करने वाले वांछित पौधों के बीजों अथवा कायिक जनन करने वाले वांछित पौधे की कलम को उस क्षेत्र अथवा देश से जहाँ वह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, नये क्षेत्र या देश में लाया जाता है तथा उन्हें स्थानीय परिस्थितियों में उगाया जाता है ।
Method # 2. वरण (Selection):
लक्षणप्ररूप लक्षणों (Phenotypic Characters) के आधार पर दी गई पादप समष्टि (Population) से वांछित लक्षण रखने वाले पादपों को छाँटना अथवा पृथक् करना वरण (Selection) कहलाता है ।
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वरण दो प्रकार के होते हैं:
(a) प्राकृतिक वरण (Natural Selection):
प्राकृतिक में वरण स्वतः ही होता हैं प्राकृतिक वरण में योग्य जीवित बने रहते हैं तथा शेष नष्ट हो जाते हैं अर्थात् इसका परिणाम विकास होता है ।
(b) कृत्रिम वरण (Artificial Selection):
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इसके अन्तर्गत मिश्रित जनसंख्या से वांछित गुणों वाले पौधों का चयन किया जाता है ।
कृत्रिम वरण तीन प्रकार के होते हैं:
(i) संहति वरण (Mass Selection):
इसमें किसी मिश्रित समष्टि से अत्यधिक स्वस्थ एवं सर्वोत्तम पौधों के समूह का व्यापक रूप से चयन किया जाता है और उनके बीजों को एकत्रित करके मिला दिया जाता है । इन मिश्रित बीजों से अगली फसल प्राप्त की जाती है तथा इस क्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक कि फसल के सभी पौधे एक सम्भव वांछित गुणों के न हो जावें ।
(ii) शुद्ध वंशक्रम वरण (Pure Line Selection):
स्वपरागित समयुग्मजी (Self-Pollinated Homozygous) पौधे से प्राप्त सन्तति को शुद्ध वंशक्रम (Pure Line) कहते हैं । इसमें मिश्रित समष्टि से वांछित गुण वाले पौधों का वरण करके उन्हें बार-बार उगाकर स्वयं पशुगण द्वारा उनमें समयुग्मजी लक्षणों खे बढाया जाता है तथा अन्त में वांछनीय गुण वाली किस्म प्राप्त कर ली जाती है । यह विधि केवल स्वपरागित फसलों के लिए उपयोगी होती है ।
(iii) क्लोनीय अथवा पूर्वजक वरण (Clonal Selection):
यह विधि केवल उन पौधे के लिए उपयोगी है जिनमें केवल कायिक जनन होता है । जैसे – केला, गन्ना आदि । एक पौधे से कायिक जनन द्वारा पूराप्त सभी सन्ततियो को क्लोन अथवा पूर्वजक (Clone) कहते हैं तथा क्लोन द्वारा नयी जातियों को प्राप्त करने की विधि को क्लोनीय अथवा पूर्वजक वरण कहते हैं ।
Method # 3. संकरण (Hybridization):
विभिन्न आनुवंशिक संगठन वाली दो या दो से अधिक जातियों में उपस्थित लक्षणों को एक ही जाति में लाये जाने की क्रियाविधि संकरण (Hybridization) कहलाती है । इस क्रिया में आनुवंशिक संगठन में भिन्न दो या अधिक पादप जातियों में क्रॉस (Cross) कराया जाता है तथा क्रॉस कराने पर प्राप्त नई जाति को संकर (Hybrid) कहते है ।