नेतृत्व: कार्य, योग्यता और सिद्धांत | Read this article in Hindi to learn about:- 1. नेतृत्व के कार्य (Functions of Leadership) 2. नेतृत्व के गुण (Qualities of Leadership) 3. सिद्धांत या उपागम (Theories or Approaches).

नेतृत्व के कार्य (Functions of Leadership):

किसी प्रशासनिक संगठन में नेतृत्व के कार्यों का निम्न चिंतकों और विद्वानों ने विश्लेषण किया है:

फिलिप सेल्जनिक– उनके अनुसार सांगठनिक नेतृत्व के कामों में निम्न कार्य शामिल हैं:

(i) संस्थागत अभियान व भूमिका को परिभाषित करना । सांगठनिक लक्ष्य तय करना और नीतियाँ निर्धारित करना ।

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(ii) उद्देश्य का संस्थागत समावेश अर्थात नीति के अर्थ को संगठन के निम्नतर स्तरों तक रिसकर जाने में मदद करना ।

(iii) संस्थागत अखंडता की रक्षा अर्थात संगठन के मूल अर्थों और अलग पहचान को कायम रखना ।

(iv) आंतरिक विवादों की व्यवस्था अर्थात संगठन में प्रतियोगी हितों के बीच संतुलन कायम करना ।

हिक्स व गुलेट- उन्होंने नेता के निम्न आठ कार्यों की पहचान की:

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(i) सदस्यों को सांगठनिक उद्देश्य देना ।

(ii) सांगठनिक सदस्यों के बीच विवाद में निर्णायक भूमिका निभाना ।

(iii) अधीनस्थों को सक्रिय करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाना ।

(iv) अधीनस्थों को विचार सुझाना ।

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(v) अधीनस्थों को सांगठनिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रभावी ढंग से काम करने के लिए प्रेरित करना ।

(vi) उनकी पहचान और सम्मान-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधीनस्थों की प्रशंसा करना ।

(vii) अनुसरणकर्ताओं को समस्याओं को सामना करने की स्थिति में सुरक्षा देना ।

(viii) संगठन के प्रतीक के रूप में कार्य करना और दूसरों के सामने संगठन का प्रतिनिधित्व करना ।

चेस्टर बर्नार्ड- बर्नार्ड कहते हैं कि नेता निम्न चार कार्य करता है:

(i) उद्देश्यों का निर्धारण,

(ii) साधनों का कुशल प्रयोग,

(iii) कार्यवाही के साधनों का नियंत्रण और

(iv) समन्वित कार्यवाही की प्रेरणा ।

फॉलेट- उनके अनुसार एक नेता को निम्न तीन कार्य करने चाहिए:

(i) तालमेल,

(ii) उद्देश्य की परिभाषा,

(iii) पूर्वानुमान ।

एफ.ई. फीडलर- उन्होंने नेतृत्व के निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख किया:

(i) समूह गतिविधियों को निर्देशित करना ।

(ii) समूह गतिविधियों को समन्वित करना ।

फिकनर और शेरवुड- उन्होंने एक नेता को संगठन के व्यवहार को संशोधित करने वाले व्यक्ति की संज्ञा दी है । उनके अनुसार- “यदि आपके नेतृत्व कार्य के लिए सही व्यक्ति मिल जाता है, तो आपकी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी ।”

नेतृत्व के गुण (Qualities of Leadership):

नेतृत्व के गुणों की विभिन्न चिंतकों द्वारा निर्मित सूची निम्नलिखित है:

चेस्टर बर्नार्ड- वे कहते हैं कि एक नेता में निम्न चार गुण होने चाहिए (महत्व के क्रम में):

(i) जीवक्षमता और सहन शक्ति,

(ii) निर्णायकता,

(iii) अनुकरणीयता,

(iv) जिम्मेदारी और बौद्धिक क्षमता ।

बर्नार्ड ने बौद्धिकता को महत्व के क्रम में चौथा नेतृत्व गुण माना क्योंकि वे मानते थे कि यह नेता की जिम्मेदारी और निर्णायकता में बाधा पैदा करता है ।

पॉल. एच. एपलबी- उनके अनुसार:

(i) एक अच्छे प्रशासक में जिम्मेदारियाँ लेने की इच्छा होनी चाहिए ।

(ii) एक अच्छे प्रशासक को निरंतर व्यक्तिगत विकास का प्रदर्शन करना चाहिए ।

(iii) एक अच्छे प्रशासक का कार्यवाही के प्रति नियमनिष्ठ होना आवश्यक है ।

(iv) वह एक अच्छा श्रोता होता है जो मुख्य सवाल पूछता है ।

(v) वह हर तरह के लोगों के साथ अच्छी तरह काम करता है ।

(vi) वह सबसे उपयुक्त अधीनस्थ प्राप्त करने का प्रयास करता है ।

(vii) संस्थागत स्रोतों का प्रयोग करता है- खुद ही सब कुछ कर और जान लेने की कोशिश नहीं करता ।

(viii) शक्ति की परवाह इसलिए करता है क्योंकि यह प्रभाविता बढ़ाती है मुख्य रूप से एक संरक्षित संपदा के रूप में ।

(ix) वह आत्मविश्वास वाला होता है और अपनी सीमाओं और गलतियों को स्वीकारने में तत्पर होता है ।

(x) बुरी और अच्छी दोनों खबरों का स्वागत करता है ।

(xi) अधीनस्थों की श्रेष्ठों जितनी ही इज्जत करता है ।

(xii) लगातार संस्थागत प्रदर्शन को सुधारने का प्रयास करता है और

(xiii) जनतांत्रिक सरकारों में राजनीतिक प्रक्रियाओं और जिम्मेदारियों का सम्मान करता है ।

इसके अलावा, एक प्रशासक (नेता) के पास ‘सरकारी बोध’ और ‘राजनीतिक बोध’ भी होना चाहिए । मिलेट- नेतृत्व के गुणों में “अच्छा स्वास्थ्य, मिशन का बोध, दूसरे लोगों में दिलचस्पी, बौद्धिकता, अखंडता, प्रेरकता, निर्णय और निष्ठा” शामिल हैं । टेरी- नेतृत्व के गुण हैं- ”ऊर्जा, भावनात्मक स्थिरता, मानव संबंधों का ज्ञान, निजी प्रेरणा, संचार कौशल, शैक्षिक क्षमता, सामाजिक कौशल और तकनीकी योग्यता ।”

नेतृत्व के सिद्धांत या उपागम (Theories or Approaches to Leadership):

नेतृत्व के तीन उपागम हैं:

a. विशेषता उपागम,

b. व्यवहारवादी उपागम और

c. स्थितिगत उपागम ।

a. विशेषता उपागम:

यह उपागम कहता है कि कोई व्यक्ति अपनी विशेषताओं की वजह से नेता बनता है । इसका सरोकार नेताओं के व्यक्तित्व की विशेषताओं की पहचान से है । शुरुआत में विशेषता सिद्धांत मानता था कि नेता पैदाइशी होते हैं, वे बनते नहीं ।

यह नेतृत्व के ‘महामानव सिद्धांत’ के रूप में लोकप्रिय हुआ । बाद में, व्यवहारवादी अध्ययनों ने खोजा कि नेतृत्व की विशेषताएँ पूरी तरह जन्मागत नहीं होतीं बल्कि शिक्षण और अनुभव से हासिल भी की जा सकती हैं । इस सिद्धांत के महत्त्वपूर्ण समर्थक हैं- चेस्टर बर्नार्ड, आर्डवे टीड, मिलेट, टेरी, एपलबी और शेल । हालाँकि यह उपागम 1900-1940 के दौरान लोकप्रिय रहा ।

किंतु इसकी निम्न कारणों से आलोचना हुई है:

(i) यह नेतृत्व की विशेषताओं की एक सामान्य (सार्वभौमिक) सूची दे पाने में असफल रहा । विभिन्न विद्वानों द्वारा पहचानी गई विशेषताओं में काफी विविधता है ।

(ii) यह विभिन्न विशेषताओं के तुलनात्मक (संबंधी) महत्व को नही दर्शाता ।

(iii) यह इस तथ्य पर विचार कर पाने में असफल हो जाते हैं कि अधिकतर ऐसी विशेषताएँ जो नेतृत्व के गुण बताए जाते हैं, ऐसे व्यक्तियों में भी होती हैं जो नेता नहीं होते ।

(iv) यह नेतृत्व हासिल करने के लिए आवश्यक विशेषताओं और उसे कायम रखने के लिए आवश्यक विशेषताओं के बीच फर्क नहीं कर पाता ।

(v) यह अधीनस्थों (अनुसरणकर्ताओं) की आवश्यकताओं की उपेक्षा करता है ।

(vi) यह स्थितिगत कारकों के नेतृत्व पर प्रभाव को नहीं पहचानता ।

b. व्यवहारवादी उपागम:

विशेषता उपागम की तरह इस पर ध्यानकेंद्रित करने की बजाय कि नेता ‘क्या’ है; व्यवहारवादी उपागम इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि नेता ‘क्या करते हैं’ । व्यवहारवादी अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाने की कोशिश की, कि नेता क्या करते हैं, वे कैसे नेतृत्व करते हैं; वे कैसा व्यवहार करते हैं; वे अधीनस्थों को कैसे प्रेरित करते हैं, वे कैसे संचार स्थापित करते हैं; इत्यादि । उन्होंने नेतृत्व के कार्यों और शैलियों पर ध्यान दिया ।

c. स्थितिगत उपागम:

विशेषता और व्यवहारवादी दोनों ही उपागम नेतृत्व की एक संपूर्ण और संतोषजनक सिद्धांत दे पाने में असफल रहे क्योंकि उन्होंने नेतृत्व की प्रभाविता के निर्धारण में स्थितिगत कारणों की उपेक्षा की । इसलिए अनुसंधानकर्ताओं ने अपना ध्यान नेतृत्व के स्थितिगत आयाम की तरफ मोड़ा । उन्होंने बल देकर कहा कि नेतृत्व की प्रभाविता नेता की विशेषताओं और व्यवहार के अतिरिक्त विभिन्न स्थितिगत कारकों द्वारा निर्धारित होती है ।

यह उपागम मानता है कि नेतृत्व विभिन्न स्थितिगत परिवर्ती कारकों से प्रभावित होता है इसलिए एक स्थिति से दूसरी स्थिति में भिन्न होता है । यह नेतृत्व को नेता, अनुसरणकर्ता, कार्यस्थिति, परिवेश इत्यादि जैसे तमाम स्थितिगत परिवर्ती कारकों के गतिमान रूप से घुलने-मिलने के अर्थों में समझती है । इस तरह इस उपागम के अनुसार, नेतृत्व बहुआयामी होता है । निम्न तालिका नेतृत्व की स्थितिगत सिद्धांतों के विकास के विभिन्न विद्वानों के योगदान के बारे में बताती है ।