कार्मिक प्रबंधन: परिचय, वस्तुएं, कार्य और आवश्यकता | Read this article in Hindi to learn about:- 1. प्रस्तावना की कार्मिक प्रबंध (Introduction of Personnel Management) 2. कार्मिक विभाग के उद्देश्य (Objects of Personnel Department) 3. कर्तव्य (Functions) and Other Details.
Contents:
- प्रस्तावना की कार्मिक प्रबंध (Introduction of Personnel Management)
- कार्मिक प्रबंध के उद्देश्य (Objects of Personnel Management)
- कार्मिक प्रबंध के कर्तव्य (Functions of Personnel Management)
- भर्ती की आवश्यकता (Need for Recruitment)
- चयन की आवश्यकता (Need for Selection)
- प्रभावी प्रशिक्षण की आवश्यकता (Need for Effective Training)
1. प्रस्तावना की कार्मिक प्रबंध (Introduction of Personnel Management):
किसी भी उद्योग में नियोजन,प्रशिक्षण,स्वास्थ्य कल्याण तथा सुरक्षा सम्बन्धित समस्याओं के निदान के लिये कार्मिक विभाग की स्थापना की जाती है । आज के युग में श्रम विधान तथा उद्योगों में श्रमिक संघ की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए कार्मिक विभाग का महत्व और अधिक बढ़ गया है ।
किसी भी उद्योग के कार्मिक विभाग के दायित्व जिस अधिकारी के द्वारा संभाले जाते है, उसे मुख्य कार्मिक कहा जाता है । इस अविकारी को ऐसे सभी कार्यों का ज्ञान होना आवश्यक है जो कि कार्मिक विभाग द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
इसे श्रम विधान, औद्योगिक संबंध, मजदूरी भुगतान की विधियों, संगठन तथा उद्योग की समस्त संक्रियाओं का पूरा ज्ञान होना चाहिए । एक अच्छे कार्मिक अधिकारी में व्यक्तियों के स्वभाव को परखने का गुण भी होना आवश्यक है ताकि वह उनसे भलीभांति कार्य ले सके ।
2. कार्मिक प्रबंध के उद्देश्य (Objects of Personnel Management):
कार्मिक विभाग की स्थापना निम्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु की जाती है:
i. श्रमिकों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये ।
ii. श्रमिकों को नौकरी में लगाने के लिये ।
ADVERTISEMENTS:
iii. श्रमिकों को कार्य के लिये तैयार करने के लिये ।
iv. झगडों का निपटारा करने का प्रयास करने के लिये ।
v. श्रमिकों के नैतिक स्तर के उत्थान के लिये ।
3. कार्मिक प्रबंध के कर्तव्य (Functions of Personnel Management):
कार्मिक विभाग के मुख्य कर्तव्यों को चार श्रेणियों में बाटा जा सकता है:
ADVERTISEMENTS:
I. नियोजन से संबंधित कार्य ।
II. मानव संबंध के कार्य ।
III. कर्मचारियों के पारिश्रमिक के कार्य ।
IV. श्रम कल्याण संबंधी कार्य ।
I. नियोजन से संबंधित कार्य:
(i) मानव शक्ति के स्रोतों के बारे में पूरी जानकारी रखना ।
(ii) उपलब्ध अभ्यार्थियों में से सबसे योग्य अभ्यार्थी का चयन कर भर्ती करना ।
(iii) चयनित व्यक्तियों के लिये आवश्यकतानुसार प्रशिक्षण की व्यवस्था करना ।
(iv) सभी कर्मचारियों के व्यक्तिगत रिकॉर्ड रखना ताकि उसके आधार पर उनकी पदोन्नति व स्थानान्तरण आदि की सिफारिश की जा सके ।
(v) उद्योग के सभी स्थाई व अस्थाई पदों का रिकॉर्ड रखना ।
(vi) कर्मचारियों की छुट्टियों का रिकॉर्ड रखना ।
II. मानव संबंध के कार्य:
(i) कर्मचारियों में अनुशासन बनाये रखना ।
(ii) कर्मचारियों में नैतिकता का विकास करना ।
(iii) श्रमिक संघों के साथ मधुर संबंध बनाये रखना ।
(iv) कर्मचारियों के मध्य पनप रहे असंतोष के कारण मालूम करना तथा उन्हें दूर करने का प्रयास करना ।
III. कर्मचारियों के पारिश्रमिक के कार्य:
(i) कर्मचारियों के वेतन संबंधी मिल इत्यादि समय पर तैयार करना ।
(ii) वेतन का भुगतान समय पर करना ।
(iii) वार्षिक वेतन वृद्धि की स्वीकृति निकालना ।
(iv) वार्षिक बोनस की गणना करके बिल बनवाना तथा भुगतान करना ।
(v) कर्मचारियों द्वारा अर्जित लाभ का ध्यान रखते हुए भुगतान करना ।
IV. श्रम कल्याण संबंधी कार्य:
(i) श्रमिकों के लिये आवास का प्रबन्ध करना ।
(ii) उद्योग में केन्टीन की व्यवस्था करना ।
(iii) कर्मचारियों के बच्चों के लिये शिक्षा का प्रबन्ध करना ।
(iv) कर्मचारियों व उसके परिवार के लिये स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की व्यवस्था करना ।
(v) कर्मचारी व उसके आश्रितों के लिये मनी-विनोद व मनोरंजन के साधनों का विकास करना ।
(vi) उद्योग में सुरक्षा के प्रबन्ध करना ।
(vii) उद्योग मैं अच्छी कार्यदशाएं बनाये रखना ।
श्रम कल्याण की गतिविधियों को संपन्न करने के लिये अलग से श्रम कल्याण अधिकारी की नियुक्ति कार्मिक विभाग द्वारा की जाती है ।
4. भर्ती की आवश्यकता (Need for Recruitment):
किसी भी उद्योग में भर्ती से तात्पर्य यह है कि किसी कार्य को करने के लिये जिन व्यक्तियों की आवश्यकता हो, उसके लिये पर्याप्त संख्या में मानव शक्ति के विभिन्न स्रोतों से अभ्यार्थियों को जुटाना तथा उनमें से ऐसे उचित अभ्यार्थियों का चुनाव करना जो कि उस कार्य को पूरा करने के योग्य ही तथा जिनसे सुपरवाईजर पूरी तरह संतुष्ट हो सकें ।
भर्ती के लिये मानव शक्ति के स्रोत:
मानव शक्ति उपलब्ध करने के लिये निम्नलिखित स्रोत काम में लाये जा सकते हैं, जिनके द्वारा रिक्त पदों को योग्य व्यक्तियों द्वारा भरा जा सकता है:
(1) उद्योग में कार्यरत व्यक्तियों की पदोन्नति द्वारा ।
(2) उद्योग छोडकर चले गये व्यक्तियों को वापस आने को प्रेरित कर ।
(3) वर्तमान कर्मचारियों के मित्र अथवा संबंधियों को बुलाकर ।
(4) ऐसे प्रार्थी जिन्होंने रिक्त पद हेतु आवेदन किया हो ।
(5) महाविद्यालय, विद्यालय अथवा तकनीकी संस्था के उत्तीर्ण छात्र ।
(6) नियोजन कार्यालय द्वारा ।
(7) समाचारपत्र, रेडियो व टी.वी. पर विवापन द्वारा रिक्त पदों के लिये आवेदन मांग कर ।
(8) श्रमिक संघ के माध्यम से ।
(9) ठेकेदारों के माध्यम से (अकुशल श्रमिक हेतु) ।
भर्ती की प्रक्रिया:
जब भी किसी उद्योग में कर्मचारी की मृत्यु या उसके सेवा निवृत होने से कोई पद रिक्त हो जाता है अथवा भविष्य में विस्तार के कारण नया पद सृजित होता है तो कार्मिक विभाग उसकी सूचना नजदीकी नियोजन कार्यालय को भेजता है तथा यदि सम्भव होता है तो रिक्त पदों की सूचना समाचार पत्र, रेडियो अथवा टीवी पर विज्ञापन के माध्यम से अथवा फैक्टरी के नोटिस बोर्ड पर सूचना लगा कर देता है ।
कार्मिक विभाग को इस प्रकार की सूचना देते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए:
(1) रिक्त पद का नाम
(2) रिक्त पदों की संख्या
(3) रिक्त पदों की वेतन शृंखला
(4) पद के कर्तव्य
(5) कार्य के लिये आवश्यक शैक्षिक व तकनीकी योग्यता
(6) कार्य संबंधी पूर्व अनुभव
(7) न्यूनतम व अधिकतम आयु
(8) आवेदन पत्र प्राप्त होने की अन्तिम तिथि
(9) मूल वेतन तथा अन्य भत्ते ।
(10) पद से सम्बन्धित अन्य सूचनाएं ।
इस विज्ञापन/सूचना के आधार पर इच्छुक व्यक्ति अपना आवेदन सादे कागज पर अथवा नियोक्ता से प्राप्त आवेदन पत्र में भरकर नियोक्ता को भेजता है ।
इस आवेदन पत्र में निम्न सूचनाओं का समावेश किया जाना चाहिए:
1. नाम
2. पिता का नाम
3. जन्म तिथि
4. स्थाई पता
5. वर्तमान पता
6. मातृ भाषा
7. धर्म
8. शैक्षिक योग्यता
9. तकनीकी योग्यता
10. पूर्व अनुभव (यदि कोई हो तो)
11. वर्तमान नौकरी (यदि कोई हो तो)
12. स्वीकार्य न्यूनतम वेतन ।
अन्तिम तिथि तक प्राप्त सभी आवेदन पत्रों के आधार पर सभी अभ्यार्थियों का संक्षिप्त सारांश तैयार किया जाता है तथा इसके आधार पर योग्य अभ्यार्थियों को चयन के लिये बुलाया जाता है । चयन करने के लिये अभ्यार्थियों पर विपिन परीक्षण किये जाते है, तत्पश्चात चयनित अभ्यार्थियों को पद के लिये नियुक्ति पत्र दे दिया जाता है ।
5. चयन की आवश्यकता (Need for Selection):
पुराने समय में कच्ची सामग्री व मशीनों इत्यादि के चयन के बारे में तो बहुत शीघ्र आवश्यकता महसूस कर ली गई थी, परन्तु कर्मचारियों के चयन की आवश्यकता महसूस नहीं की गई । यद्यपि इसके परिणामस्वरूप अधिक श्रमिक हेर-फेर तथा भारी नुकसान फैक्टरी को होता रहा ।
पिछले लगभग 50 वर्षों में जो खोज इस बारे में हुई उससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि उद्योग में कच्ची सामग्री तथा मशीनों के चयन के साथ-साथ कर्मचारियों तथा श्रमिकों का चयन भी वैज्ञानिक विधि से किया जावे तो भारी श्रमिक हेर-फेर से बचने के साथ-साथ उद्योग को होने वाले नुकसान से भी बचाया जा सकता है ।
कर्मचारियों तथा श्रमिकों के वैज्ञानिक चयन द्वारा निम्नलिखित लाभ उद्योग को हो सकते है:
1. उत्पादन बढता है ।
2. उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होता है ।
3. फैक्टरी को आर्थिक लाभ होता है ।
4. श्रमिक हेर-फेर में कमी होती है ।
5. दुर्घटनाओं में कमी आती है ।
6. दुर्घटनाओं के कारण कम मुआवजा देना पड़ता है ।
7. कार्य लगातार चलता रहता है ।
8. व्यक्तियों के साक्षात्कार,नियुक्ति आदि में लगने वाला लिपिक का कार्य बचता है ।
9. श्रमिक को प्रशिक्षित करने में फोरमैन का जो समय लगता है उसमें बचत होती है ।
10. फैक्टरी की साख अच्छी बनी रहती है ।
11. अच्छी योग्यता व कुशलता वाले व्यक्ति उद्योग को प्राप्त होते हैं ।
चयन परीक्षण:
वैज्ञानिक चयन के अन्तर्गत श्रमिक, फोरमैन यहाँ तक कि प्रबन्धक आदि के पद के लिये भी निम्नलिखित परीक्षण किये जाते हैं:
I. रोजगार परीक्षण
II. रोजगार साक्षात्कार
III. शारीरिक परीक्षण
I. रोजगार परीक्षण:
इस प्रकार के परीक्षण किसी भी श्रेणी के पद पर व्यक्तियों के चयन में सहायक होते हैं ।
इसके विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:
(i) मानसिक परीक्षण:
(अ) बुद्धि परीक्षण
(ब) रुचि परीक्षण
(स) अभिरुचि परीक्षण
(द) व्यक्तित्व परीक्षण
बुद्धि का परीक्षण व्यक्ति की सामान्य बुद्धि की परख हेतु किया जाता है । बुद्धि परीक्षण के लिये उम्मीदवार में उपलब्ध बुद्धि सामान्यतया व्यक्ति द्वारा उत्तीर्ण परीक्षा से गत हो जाती है । अनपढ़ लोगों के लिये यह परीक्षण आवश्यक है तथा इसके लिये बुद्धि को व्यक्त करने के लिए व्यक्ति की बुद्धि लब्धि की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाती है-
बुद्धि लब्धि (I.Q.) = परीक्षण द्वारा ज्ञात की गई मानसिक आयु / वास्तविक आयु × 100
यह परीक्षण लिखित अथवा मौखिक रूप से किया जाता है । कार्य के प्रति अभ्यार्थी की रुचि अथवा अरुचि जानने के लिये रुचि परीक्षण किया जाता है । अभिरुचि परीक्षण यह जानने के लिए किया जाता है कि अभ्यार्थी में किस कार्य विशेष को करने की जन्मजात प्रतिभा निहित है । अभिरुचि रखने वाला व्यक्ति कार्य को करने में उस व्यक्ति से अधिक सफल होगा, जिसे कि उस कार्य के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ।
अभिरुचि परीक्षण विश्लेषणात्मक अथवा संश्लेषणात्मक प्रकार के हो सकते है । विश्लेषणात्मक परीक्षण में कुछ योग्यताओं का अवलोकन किया जाता है जैसे कार्य करने की कुशलता, कार्य की गति, अवलोकन, शीशे निर्णय लेना आदि । जबकि संश्लेषणात्मक परीक्षण तब किया जाता है जब कि कार्य कठिन व जटिल हो ।
इस परीक्षण में उम्मीदवार के सामने समस्याएं उत्पन्न कर दी जाती हैं तथा फिर यह देखा जाता है कि वह किस प्रकार उन समस्याओं से निपट कर कार्य को पूरा कर सकता है । व्यक्तित्व परीक्षण के लिये उम्मीदवार के सामान्य जीवन,परिवार के साथ उसके संबंध, उसकी आदतें, व्यवहार, पसन्द अथवा नापसन्द, आत्म-विश्वास आदि की जांच की जाती है । इस प्रकार के परीक्षण सुपरवाईजरव सेल्समैन आदि के चुनाव में अधिक सफल रहते हैं ।
(ii) दस्तकारी परीक्षण या निष्पादन परीक्षण:
रोजगार परीक्षण की यह दूसरी विधि है । इसमें उम्मीदवार को कार्य करना होता है । इस परीक्षण में उम्मीदवार को वह कार्य करने को दिया जाता है जो कि उसे पद पर रहकर करना होगा जिसके लिये उसने आवेदन किया है । जैसे टाइपिस्ट के पद के लिये दस्तकारी परीक्षण के दौरान उसे टाइप करने का कार्य दिया जा सकता है ।
कार्य करने के आधार पर उसकी योग्यता का निर्णय किया जा सकता है । उम्मीदवारों द्वारा दस्तकारी परीक्षण के दौरान कार्य के आधार पर उनका वर्गीकरण कर लिया जाता है तथा उनकी श्रेणी का निर्णय किया जाता है । जैसे कुशल, अर्धकुशल तथा अकुशल कारीगर आदि ।
कुशल कारीगर के लिये किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं रह जाती, जन कि शेष दो श्रेणियों के व्यक्तियों को प्रशिक्षण देने क पश्चात ही कार्य पर लगाया जा सकता है । उनके कार्य के अनुसार ही उनके लिये प्रशिक्षण की योजना बनाई जा सकती है ।
II. रोजगार साक्षात्कार:
कई योग्यताओं का निर्णय रोजगार परीक्षण के आधार पर नहीं किया जा सकता जैसे व्यक्ति अच्छा लिख सकता है परन्तु वही बात बोलकर सही प्रकार से व्यक्त नहीं कर पाता । इस प्रकार की योग्यता की परख के लिये साक्षात्कार परीक्षण करना आवश्यक हो जाता है ।
इस परीक्षण के दौरान उम्मीदवार को परेशानी रहित बिठाकर आवश्यक समस्त जानकारी प्राप्त कर उसकी योग्यता का पता लगाना चाहिए । साक्षात्कार परीक्षण के लिए जो भी सिद्धान्त अपनाने ही अथवा जो भी मापदण्ड रखने ही उन्हें पहले से ही तय कर लेना चाहिए ।
साक्षात्कार के दौरान वातावरण इस प्रकार का रखना चाहिए कि उम्मीदवार को अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने में किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो । कार्य से संबंधित जो प्रश्न साक्षात्कार में पूछे जाने ही, उनकी पहले से ही सूची बना ली जावे तो अच्छा रहेगा । उम्मीदवार के ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव, साक्षात्कार के बीच, डालना सर्वथा अनुचित होगा ।
III. शारीरिक परीक्षण:
जब एक उम्मीदवार सभी प्रकार के परीक्षणों में सफल रहता है तो नियुक्ति पत्र देने से पूर्व उसका शारीरिक परीक्षण चिकित्सक के द्वारा कराया जाता है ताकि यह ज्ञात हो सके कि उसमें ऐसा कोई संक्रामक रोग या स्थाई शारीरिक अपंगता तो नहीं है जो कि उसे उस कार्य के अयोग्य बनाती हो जो कि उसे नियुक्ति के पश्चात करना है ।
6. प्रभावी प्रशिक्षण की आवश्यकता (Need for Effective Training):
जब भी किसी उद्योग में किसी नये व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है या कोई नई आधुनिक मशीन स्थापित की जाती है अथवा किसी नई विधि को लागू किया जाता है तो पहले कार्य करने वाले व्यक्ति को, प्रशिक्षण देने की आवश्यकता महसूस होती है । इस प्रकार का प्रशिक्षण इसके महत्व को देखते हुए आजकल लगभग सभी राजकीय अथवा निजी संस्थाओं एवं उद्योगों में दिया जाता है ।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू के इन शब्दों से प्रशिक्षण का महत्व और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है:
It is good to have good knowledge.
It is good to have good will.
But it is essential, to have good ‘Training’.
सभी बडे उद्योगों में प्रशिक्षण देने के लिए अलग से व्यवस्था की जाती है । उनके अपने स्वयं के विशेष प्रशिक्षण केन्द्र होते है, जहाँ प्रशिक्षुओं को उन सभी बातों का प्रशिक्षण दिया जाता है जिनसे उत्पादन में वृद्धि हो सके तथा सामग्री व मशीनों के अपव्यय को रोका जा सके ।
एक अच्छे प्रशिक्षण कार्यक्रम के द्वारा निम्न लाभ अर्जित किये जा सकते हैं:
1. कार्य को सही ढंग से दक्षतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है ।
2. श्रमिक हेर-फेर तथा अपव्यय को कम किया जा सकता है ।
3. कच्ची सामग्री व मशीनों का अपव्यय कम होता है ।
4. उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है ।
5. प्रशिक्षण के दौरान उद्योग के नियम व नीतियाँ स्पष्ट हो जाती है ।
6. प्रशिक्षित श्रमिकों की अधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं होती ।
प्रशिक्षण की विधियां:
नये नियुक्त किये गये श्रमिकों को दस्तकारी प्रशिक्षण देने की निम्न विधियां अपनाई जाती है:
i. अनुभवी क्रमिक द्वारा प्रशिक्षण:
इस प्रशिक्षण में नये श्रमिक को एक अनुभवी श्रमिक के पास रख दिया जाता है । नया श्रमिक इसके कार्य को देखता रहता है तथा उसकी नकल करके कार्य सीखता है । अनुभवी श्रमिक नये श्रमिक को बीच-बीच में निर्देश देता रहता है । यह पूर्णतया नये श्रमिक के ऊपर ही निर्भर करता है कि वह किस प्रकार कार्य सीखने की इच्छा रखता है ।
इस प्रशिक्षण की मुख्य हानियाँ निम्न है:
(i) अनुभवी श्रमिक में प्रशिक्षण देने की क्षमता न होने पर सही प्रशिक्षण सम्भव नहीं हो पाता ।
(ii) कारीगर का कार्य धीरे होने से उत्पादन में कमी हो सकती है ।
(iii) कुशल कारीगर को प्रशिक्षण देने में रुचि न होने पर नये श्रमिक को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता ।
(iv) कुशल कारीगर के गलत तरीके से कार्य करने पर नया श्रमिक भी उसी गलत तरीके से कार्य करना सीख जाता है ।
(v) उद्योग में प्रोत्साहन योजना लागू करने पर कुशल श्रमिक नये श्रमिक के प्रशिक्षण की ओर ध्यान नहीं देता क्योंकि इसका असर उसके उत्पादन पर पडता है ।
यह प्रशिक्षण की विधि वहीं पर उपयोगी सिद्ध हो सकती है जहां अनुभवी श्रमिक को एक सहायक की आवश्यकता होती है ।
ii. सुपरवाईजर द्वारा प्रशिक्षण:
इस विधि में प्रशिक्षण का भार सुपरवाईजर पर डाल दिया जाता है । अतः सुपरवाईजर का कर्तव्य हो जाता है कि वह नये श्रमिक को सही गा से प्रशिक्षण दे । इसी श्रमिक से उसे प्रशिक्षण के पश्चात कार्य भी लेना होता है, अतः उसे रुचि लेकर कार्य सिखाना होगा ताकि विभाग में उत्पादन की मात्रा व गुणवत्ता में वृद्धि हो सके । इस विधि का मुख्य दोष यह है कि इस प्रकार के प्रशिक्षण से सुपरवाईजर के स्वयं के कार्य में बाधा पडती है ।
iii. प्रशिक्षण केन्द्र:
उद्योगों में प्रशिक्षण देने के लिये पृथक से प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित कर प्रशिक्षण दिया जाता है । प्रशिक्षण देने के लिये अलग से अनुदेशकों की नियुक्ति की जाती है । इससे श्रमिक को जॉब से संबंधित अच्छा प्रशिक्षण मिलता है ।
केन्द्र फैक्टरी से अलग होने से फैक्टरी के कारण होने वाली बाधाओं का प्रभाव नहीं पडता, साथ ही एक ऐसा वातावरण मिल जाता है जहां श्रमिक अच्छी तरह कार्य सीख सकता है । इस प्रकार के केन्द्र में फैक्टरी जैसी वास्तविक दशाएँ ला पाना तथा महंगी मशीनें प्रशिक्षण के लिये उपयोग में ला पाना कठिन होता है ।
अतः इन कठिनाइयों को दूर करने के लिये उप कार्यशाला प्रशिक्षण केन्द्र में स्थापित की जाती है । इसमें मशीनें व अन्य उपकरण वैसे ही होते है जैसे वास्तविक उत्पादन कार्य के लिये प्रयुक्त किये जाते हैं । इस कार्यशाला में प्रशिक्षणार्थियों को मशीनों पर स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करने दिया जाता है तथा होने वाले अपव्यय की ओर ध्यान नहीं दिया जाता । इस प्रकार के प्रशिक्षण केन्द्र के कारण उत्पादन में किसी प्रकार की कोई बाधा उत्पन्न नहीं हो पाती । इसका स्वरूप संस्थान में प्रशिक्षण की भाँति होता है ।
iv. औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान:
उद्योग के लिये कारीगर तैयार करने का भार उद्योग के बाहर औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों पर होता है । इस प्रकार के काफी संस्थान केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा खोले जा चुके हैं । इन संस्थानों में विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक दस्तकारी प्रशिक्षण दिये जाते है जिनकी अवधि 1 वर्ष या 2 वर्ष होती है । इस प्रशिक्षण के बाद उद्योग को तैयार श्रमिक मिल जाते है तथा उन्हें बहुत ही थोडे प्रशिक्षण के पश्चात् सीधे उत्पादन कार्य पर लगाया जा सकता है ।
v. शिक्षुता कार्यक्रम:
भारत सरकार बेरोजगारों को प्रशिक्षण देकर उन्हें नौकरी के अवसर-प्रदान करने की ओर काफी प्रयत्नशील है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारत सरकार ने शिक्षुता अधिनियम भी लागू किया है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक उद्योग के लिये आवश्यक है कि वह कुछ प्रशिक्षुओं को अपने यहाँ कार्य का प्रशिक्षण दे ।
इस प्रकार के प्रशिक्षण के लिये न्यूनतम योग्यता आठवीं उत्तीर्ण रखी गई है । इस प्रशिक्षण की अवधि 3 वर्ष होती है जिसमें प्रशिक्षुओं को स्टाइपेण्ड भी दिया जाता है जिसका आधा भाग केन्द्र सरकार तथा आधा उद्योग वहन करता है ।
ऐसे दस्तकार जिन्होंने 1 अथवा 2 वर्ष का औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान का दस्तकारी प्रशिक्षण प्राप्त कर रखा हो, वे भी इस योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं तथा उनके प्रशिक्षण काल में दस्तकारी प्रशिक्षण की अवधि कम कर दी जाती है । प्रशिक्षण समाप्त होने पर ऐसे प्रशिक्षणार्थियों को उद्योग नियमित नौकरी में रखने को बाध्य नहीं होता ।