संयुक्त पूंजी कंपनी: पूंजी के स्रोत, लाभ एवंग हानियां! Read this article in Hindi to learn about:- 1. संयुक्त पूंजी कंपनी का अर्थ एवंग प्रकार (Meaning and Types of Joint Stock Company) 2. संयुक्त पूंजी कम्पनी के लिए पूंजी के स्रोत (Sources of Capital for Joint Stock Company) 3. लाभ (Advantages) 4. हानियां (Disadvantages).
संयुक्त पूंजी कंपनी का अर्थ एवंग प्रकार (Meaning and Types of Joint Stock Company):
कम्पनी व्यक्तियों का एक समूह है । इसका अस्तित्व अपने सदस्यों से अलग होता है । कई लोग मिलकर कम्पनी पूंजी लगाते हैं, इस कारण इसे संयुक्त पूंजी कम्पनी कहते है । अतः ऐसे व्यक्तियों (सदस्यों) का संगठन होता है जो लाभ कमाने के लिए विभिन्न मान के अंशों के रूप में व्यवसाय में पूंजी लगाते हैं ।
ऐसे व्यक्तियों को अंशधारी कहते हैं । इसके संचालन के लिए एक मण्डल होता है, जिसे निदेशक मण्डल कहते है । इनका चुनाव अंशधारियों द्वारा किया जाता है । प्रबन्ध के लिये आवश्यक सभी अधिकार निदेशक मण्डल को मिले होते हैं । इसमें सदस्यों के परिमित दायित्व होते है । यद्यपि यह कोई निकाय नहीं है, फिर भी इसको कानूनी माना जाता है ।
यह कम्पनी दो प्रकार की होती है:
ADVERTISEMENTS:
1. निजी सीमित कम्पनी:
इस प्रकार की कम्पनी दो या अधिक सदस्यों द्वारा बनाई जा सकती है । इसमें अधिकतम 50 सदस्य हो सकते हैं । ये सभी अंशधारी कहलाते हैं । साधारणतया यह रिश्तेदारों या मित्रों को मिलाकर बनाई जाती है । इसमें अंश सिर्फ सदस्यों को ही हस्तांतरित किये जा सकते हैं । इस प्रकार की कम्पनी को प्रविवरण तथा अन्य विवरण प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं है ।
प्रत्येक सदस्य स्थिति विवरण व अंकेक्षण रिपोर्ट की प्रतिलिपि प्राप्त करने का हकदार होता है । इस प्रकार की कम्पनी में ऐसे व्यक्ति जो परिमित दायित्व के लाभ के साथ-साथ जहां तक संभव हो व्यवसाय को निजी रखना चाहते हैं, पूंजी लगा सकते हैं । प्राइवेट कम्पनी के नाम के साथ ‘प्राइवेट’ शब्द का लगाना कानूनी रूप से आवश्यक है ।
2. सार्वजनिक सीमित कम्पनी:
ADVERTISEMENTS:
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 3 (i) व (iv) के अनुसार, ‘सार्वजनिक कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है,जो निजी कम्पनी नहीं है ।’ दूसरे शब्दों में, एक सार्वजनिक कम्पनी न तो अंशों के हस्तान्तरण पर रोक लगाती है और न सदस्यों की संख्या पर । सार्वजनिक कम्पनी अपनी पूंजी अंशों एवं ऋण-पत्रों को जनता में बेचकर इकट्ठा कर सकती है ।
इसकी सदस्यता देश के सभी व्यक्तियों के लिये खुली है । इसमें सदस्यों की न्यूनतम संख्या 7 है व अधिकतम संख्या के लिये कोई सीमा नहीं है । प्रत्येक सदस्य अंशधारी कहलाता है । इस प्रकार की कम्पनी प्रारम्भ करने के लिये प्रविवरण व अन्य विवरण प्रकाशित करना होता है ।
इस प्रकार की कम्पनी पर सरकार का अधिक नियंत्रण होता है, ताकि अंशधारियों के हितों की रक्षा की जा सके । अंशों का हस्तान्तरण भागों में या पूर्ण रूप से किया जा सकता है, इसके लिये अग्रिम स्वीकृति आदि की आवश्यकता नहीं होती ।
कम्पनी का कार्य देखने के लिये निदेशक मण्डल का चुनाव सभी सदस्यों द्वारा मिलकर किया जाता है । निदेशक मण्डल में सदस्य संख्या 7 तक होती है । प्रत्येक अंशधारी को वर्ष में एक बार बेलेन्स शीट व अंकेक्षण रिपोर्ट प्राप्त करने का हक होता है ।
संयुक्त पूंजी कम्पनी के लिए पूंजी के स्रोत (Sources of Capital for Joint Stock Company):
ADVERTISEMENTS:
व्यवसाय को प्रारम्भ करने, चालू रखने, बढाने, परिवर्तन करने तथा पुन: स्थापन के लिये पूंजी की आवश्यकता होती है ।
संयुक्त पूंजी कम्पनी के लिए पूंजी के स्रोत निम्न हैं:
1. अंशों द्वारा
2. डिबेन्चर्स द्वारा यह ऋण बतौर है, सिर्फ ब्याज देना पडता है ।
3. बैंकों से ऋण
4. निम्न सरकारी संस्थाओं से ऋण लेकर:
(i) औद्योगिक निगम
(ii) राज्य वित्त निगम
(iii) औद्योगिक बिकास बैंक
संयुक्त पूंजी कम्पनी के लाभ (Advantages of Joint Stock Company):
1. अंशधारियों का दायित्व प्रत्यक्ष मूल्य तक ही सीमित रहता है ।
2. इससे अधिक लोग धन लगाने को प्रेरित रहते है, अतः आधुनिक उद्योग चलाने के लिए अधिक पूंजी संप्रहित की जा सकती है ।
3. यह कानूनी बंधनों के अन्तर्गत आती है इसलिए जनता का पूरा विश्वास रहता है ।
4. अधिक सदस्य होने से हानि का खतरा बंट जाता है, अतः साधारण व्यक्ति भी बिना किसी झिझक के पूंजी लगा सकता है ।
5. इसमें कार्य का विभाजन विभिन्न समुदाय के व्यक्तियों में किया जा सकता है, अतः कार्य सरल व अच्छा होता है ।
6. इसमें उच्च अधिकारियों को अच्छा वेतन देकर उनसे दक्षतापूर्वक कार्य करवाया जा सकता है इस कारण प्रशासन अच्छा रहता है ।
7. किसी भी अंशधारी के अलग हो जाने या मृत्यु हो जाने पर व्यवसाय पर कोई प्रभाव नहीं पडता, अतः अस्तित्व निरन्तर बना रहता है ।
8. कम्पनी बड़ी हो जाने के कारण अधिक लोगों को रोजगार देती है ।
संयुक्त पूंजी कम्पनी की हानियां (Disadvantages of Joint Stock Company):
1. वेतन भोगी प्रबंधकों की रुचि कम रहने पर दक्षता कम हो बातों है तथा घाटा हो सकता है ।
2. इस प्रकार के संगठनों के निदेशक तथा प्रबन्ध के अन्य सदस्यों के व्यक्तिगत लाभ के अधिक अवसर रहते हैं, क्योंकि वे कम्पनी की आर्थिक स्थिति से वाकिफ रहते है तथा उसके अनुसार अंश खरीद व बेच सकते है ।
3. इस प्रकार की कम्पनी में देश के विचित्र भागों के व्यक्ति अंशधारी होते है । लेकिन शायद ही कभी सामान्य बैठक में भाग से पाते हैं । अतः अधिकतर अंशधारियों का वास्तविक प्रबन्ध पर बहुत कम नियन्त्रण रहता है । इस कारण निदेशक मण्डल के सदस्य अपनी मनमानी करने लगते है ।
4. कम्पनी को बनाने के लिये कई तरह के विवरण तैयार करने पडते हैं । यह महंगा भी पडता है तथा इसमें समय भी काफी व्यर्थ जाता है ।