सहकारी समिति: विशेषताएँ, प्रकार और लाभ! Read this article in Hindi to learn about:- 1. सहकारी समितियों का अर्थ (Meaning of Cooperative Societies) 2. सहकारी समितियों के विशेषताएँ (Features of Cooperative Societies) 3. प्रकार (Types) 4. लाभ (Advantages) 5. हानियां (Disadvantages).
Contents:
- सहकारी समितियों का अर्थ (Meaning of Cooperative Societies)
- सहकारी समितियों के विशेषताएँ (Features of Cooperative Societies)
- सहकारी समितियों के प्रकार (Types of Cooperative Societies)
- सहकारी समितियों के लाभ (Advantages of Cooperative Societies)
- सहकारी समितियों की हानियां (Disadvantages of Cooperative Societies)
1. सहकारी समितियों का अर्थ
(Meaning of Cooperative Societies):
श्री एन बेरोव के अनुसार- ”सहकारी समिति उन व्यक्तियों का स्वैच्छिक संगठन होता है जो कि अधिकतर श्रमिक और छोटे उत्पादक होते हैं तथा अपनी घरेलू तथा व्यापारिक स्थिति में सुधार लाने के लिये लोकतांत्रिक तरीके पर संयुक्त प्रबन्ध के अन्तर्गत संगठित होते हैं व सभी मिलकर पूंजी इकट्ठी करते हैं ।”
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सहकारी संगठन अपने सदस्यों की सेवा करने के अभिप्राय से बनाये जाते है । समाज में जो लोग अपने आपको कमजोर महसूस करते है, वे अपनी स्वयं की रक्षा के लिये इस तरह के संगठन बना सकते है और उनके सदस्य बनकर अपने आपको आधुनिक उत्पादन एवं वितरण के साधनों से होने वाले शोषण से बचा सकते है ।
2. सहकारी समितियों के विशेषताएँ (Features of Cooperative Societies):
i. यह एक स्वैच्छिक संगठन है । सदस्य जब तक चाहे सदस्यता में रह सकता है तथा जब चाहे अपना अंश हटाकर सदस्यता छोड सकता है ।
ii. सदस्यता की कोई सीमा नहीं होती है । सामान्यतया अंश का मान 1 से 10 रुपये तक होता है । इस प्रकार अंश का मान कम होने से अधिक सदस्य बन सकते हैं, क्योंकि गरीब भी इतनी रकम जमा करा सकता है ।
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iii. इसका प्रबन्धकीय मण्डल लोकतांत्रिक समानता के आधार पर चुना जाता है । प्रत्येक सदस्य को एक वोट का अधिकार होता है, चाहे उसके कितने ही अंश हों । मुख्य नीतियाँ तय करने के लिये सदस्यों की बैठक बुलाई जाती है और उनको कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व प्रबन्ध समिति पर है । समिति अपना पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) भी करवा सकती है । इनका रजिस्ट्रेशन सहकारी संस्थाओं के रजिस्ट्रार के यहां होता है । पंजीकृत समिति का लाभ यह है कि उसको सरकार की तरफ से सुविधायें मिलती हैं, जैसे – आयकर (इनकम टैक्स) व स्टाम्प ड्यूटी से मुक्ति,ऋण सुविधा आदि ।
3. सहकारी समितियों के प्रकार (Types of Cooperative Societies):
i. उत्पादक सहकारी समिति:
वस्तुओं के निर्माण के लिए व्यक्तियों के संगठन द्वारा बनायी जाने वाली समिति है । यह उस स्थान पर उचित रहती है, जहाँ पर न तो अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है और न ही अधिक तकनीकी ज्ञान की । इसमें होने वाला लाभ पूंजीपतियों के पास जाने से बच जाता है । यद्यपि यह औद्योगिक उत्पादन का लोकतांत्रिक प्रबन्ध है, परन्तु यह दुर्भाग्यवश भारत में सफल नहीं हो पायी है ।
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ii. उपभोक्ता सहकारी समिति:
यह समिति अधिक लोकप्रिय है । इसका उद्देश्य निर्माणकर्ता से सीधे माल खरीद कर सदस्यों तथा उपभोक्ताओं तक उचित मूल्य में पहुंचाना है । इस प्रकार से इस समिति के माध्यम से बिचौलियों का विलोपन हो जाता है, जिससे इसका लाभ सदस्यों को बच जाता है ।
सहकारी समिति द्वारा उचित व कम मूल्य पर वस्तुएं उपलब्ध कराने के लिये शहरों में सुपर माउंट-सहकारी बाजार खोले गये हैं । इन्हें प्रारम्भ में काफी सफलता मिली-लेकिन बाद में कुप्रबन्ध, भ्रष्टाचार व अनुभव की कमी के कारण इस प्रकार के बाजार अधिकतर शहरों में संतोषप्रद कार्य नहीं कर पाये ।
iii. गृह-निर्माण सहकारी समिति:
यह समिति सदस्यों, जिनको भूखण्ड तथा मकान की आवश्यकता है, उपलब्ध कराने हेतु बनाई जाती है । इन कार्यों के लिए सरकार ने कई सुविधायें प्रदान कर रखी हैं ।
iv. ऋणदाता सहकारी समिति:
इसका उद्देश्य गरीब व मध्यम वर्ग के व्यक्तियों को आर्थिक सहायता ऋण के रूप में देना है, ताकि वे उस राशि को किसी ऐसे काम में लगा सकें जोकि उनके लिये लाभदायक हो । इसमें ऋण ब्याज की दर पर दिया जाता है ।
v. सहकारी कृषि:
इसका उद्देश्य कृषकों के समूह द्वारा सहकारी समिति बनाकर कृषि योग्य भूमि का आकार बढाना है । इस प्रकार कृषि में विज्ञान व टेक्नोलॉजी द्वारा आधुनिक उपकरण प्रयुक्त करते हुए उपज बढाई जा सकती है ।
4. सहकारी समितियों के लाभ (Advantages of Cooperative Societies):
i. यह उत्पाद सस्ता बेचती है क्योंकि इसमें विज्ञापन आदि पर कोई खर्चा नहीं करना पडता ।
ii. लेखा इत्यादि रखने तथा प्रबन्ध के कार्यों का खर्चा न्यूनतम होता है क्योंकि सदस्य अवैतनिक रूप से स्वयं ही काम करते है ।
iii. यह अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन व स्थिति प्रदान करते है ।
iv. यह क्योंकि सामुदायिक सेवा के लिये है, अतः इसमें अधिक लाभ, काला बाजारी तथा जमाखोरी जैसी बुराइयां नहीं होती ।
v. इसमें खरीद सीधे उत्पादकों से होती है, अतः बिचौलियों का लाभ कम हो जाता है ।
vi. यह भारतीय कृषकों की समस्याओं में सुधार हेतु उचित है ताकि उन्हें भण्डारण ऋण आदि की सुविधाएं प्राप्त हो सकें ।
vii. इसमें लाभ का हिस्सा समान रूप से निश्चित दर से वितरित किया जाता है तथा शेष सामाजिक विकास कार्यों में लगा दिया जाता है ।
viii. सामान्य जनता को लाभ पहुंचाती है ।
ix. इसमें सरकार से ऋण के रूप में अधिक राशि लेना संभव है ।
x. सदस्यों में सहकारिता एवं सहयोग की भावना उत्पन्न करती है ।
5. सहकारी समितियों की हानियां (Disadvantages of Cooperative Societies):
i. इसके सदस्य क्योंकि अधिकतर अल्प आय वर्ग वाले होते हैं, अतः पूंजी सीमित मात्रा में इकट्ठी की जा सकती है ।
ii. आर्थिक स्रोत सीमित रहने से उच्च योग्यता प्राप्त व्यक्तियों को नौकरी में रख पाना सम्भव नहीं है ।
iii. इसमें कठोर व अच्छी देख-रेख की आवश्यकता होती है ।
iv. इसमें व्यापार यद्यपि सदस्यों के लिये किया जाता है परन्तु असदस्यों को मना कर पाना सम्भव नहीं है ।
v. प्रबन्ध अधिकतर असक्षम होता है ।
vi. सदस्य सामान्यतया अनावश्यक लाभ उठाने की कोशिश करते है ।