सफाई पाउडर कैसे निर्माण करें? | Read this article in Hindi to learn about how to manufacture cleaning powder.
घरों, होटलों रेस्तराओं तथा अस्पतालों आदि में शीशे तथा चीनी आदि के बर्तन साफ करने और अन्य औद्योगिक उपयोगों के लिए आजकल अनेकों प्रकार के क्लीनिग पाउडर्स बाजार में बिक रहे हैं । जिनमें ‘विम’ सबसे प्रसिद्ध है । इस प्रकार के क्लीनिंग पाउडर्स बनाने के लिए जो ‘रचक’ काम में लाये जाते हैं ।
इन पांचों को समूहों में विभाजित किया जा सकता है:
1. बेसिक क्षार
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2. फॉस्फेट्स
3. सिलिकेट्स
4. कृत्रिम आर्गेनिक सर्फेस एक्टिव एजेन्ट्स
विभिन्न रासायनिक पदार्थ (Various Chemical Substances):
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‘बेसिक क्षार’ के रूप में कॉस्टिक सोडा, ऐश और ‘सोडियम बाइकार्बोनेट’ आदि रचक काम में लाये जाते हैं । फास्फेट्स समूह के रचकों में आर्थोफॉस्फेट्स, पायराफास्फेट्स, पोली-फॉस्फेट्स तथा मैट फॉस्फेट्स शामिल हैं । सिलिकेट समूह के रचकों ‘आर्थोसिलिकेट’, मैटासिलिकेट और ‘लिक्विड सिलिकेट’ (जिसे सामान्यतः वाटर ग्लास कहा जाता है) आते हैं ।
जो रचक कृत्रिम आर्गेनिक सरफेस एक्टिव एजेंट के रूप में मिलाये जाते हैं उनमें विभिन्न ‘आर्गेनिक सल्फोनेट्स, सल्फोनेटेड अल्कोहल, पॉलिग्लाइकॉल ईथर और क्वार्टनरी एमोनियम काम्पाउण्ड्स आदि उल्लेखनीय है । इनके अतिरिक्त ‘क्लीनिक पाउडरों में जो अन्य रासायनिक पदार्थ या अन्य नचक मिलाये जाते हैं ।
उनमें सुहागा, सोडियम सल्फेट, ‘प्यूमिस’ तथा खनिज एवं ‘आर्गेनिक एब्रेसिव’ मुख्य हैं इन खनिज तथा ‘आर्गेनिक एब्रेसिव’ में फेलस्पार पाउडर, लकड़ी का बुरादा और पिसी हुई मक्का की गुली आदि शामिल हैं ।
पोटाश लवण जैसे कि ‘पोटेशियम कार्बोनेट या पोटाशियम सिलिकेट’ आदि अनुरूप ‘सोडियम कम्पाउंड’ विकल्प के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं । कॉस्टिक पोटाश को कुछ पाउडरों में कॉस्टिक सोडा के विकल्प के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ।
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क्लीनिंग पाउडर में मिलाये जाने वाले किसी भी रासायनिक पदार्थ का महत्व उसकी मात्रा की बजाय, उससे प्राप्त होने वाले गुण पर अधिक निर्भर करता है । यदि कोई कैमिकल, तैयार होने वाले पाउडरों में कोई विशेष गुण उत्पन्न करने की क्षमता रखता है तो वह चाहे थोड़ी ही मात्रा में मिलाया जाय, उस पाउडर के फार्मूले में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।
संयोजन प्रक्रिया (Compounding Procedure):
पाउडर की शक्ल वाले किसी भी डिटरजेंट के संयोजन में सबसे पहली बात यह ध्यान रखने की होता है कि तैयार होने के बाद उस पाउडर में कौन-कौन सी मुख्य विशेषताएं और गुण होने चाहिए ।
ऐसी विशेषताएं जैसे कि क्षारीयता मैल काटने या सफाई करने की क्षमता जल अनुकूलता प्रभाव, ठोस कणों को फैलाने की क्षमता चिकनाई तथा तेल को एमल्शन के रूप में परिर्वतित कर सकने की क्षमता साफ की जाने वचाली सतह पर शीघ्र फैल सकने की क्षमता और पर्याप्त झाग देने की क्षमता इत्यादि विशेषताएं मुख्य रूप से विचारणीय है ।
उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जब इस पाउडर के लिए आवश्यक गुणों या विशेषताओं का निर्धारण कर चुके तो फिर इन गुणों या विशेषता ओ के अनुरूप ही रासायनिक पदार्थ या आवश्यक रचकों का चुनाव किया जाता है, ताकि इनको उचित मात्रा में मिलाने से उस पाउडर में इच्छित विशेषताएं उत्पन्न हो सकें ।
प्रायः किसी आवश्यक विशेषता को उत्पन्न करने के लिए दो या अधिक रासायनिक पदार्थ चुने जाते हैं फिर इस तथ्य पर विचार किया जाता है इनमें कौन सा पदार्थ अधिक सस्ता है और सरलता पूर्वक उपलब्ध हो सकता है तथा इनमें से कौन से रासायनिक पदार्थ को मिलाने से उत्पादन लागत में कमी की जा सकती है ।
इस ढंग से यदि विचार किया जाय तो पता चलेगा कि किसी पाउडर में अच्छी क्षारीयता उत्पन्न करने के लिए जो रासायनिक पदार्थ प्रयोग में लाये जा सकते हैं उनमें कॉस्टिक सोडा, ट्राइसोडियम फॉस्फेट या ‘सोडियम आर्थों सिलिकेट’ में से कोई एक ‘रचक’ काम में ला सकते हैं परन्तु खर्च में बचत करनी हो तो इन तीनों में सोडा कॉस्टिक सबसे सस्ता पड़ेगा इसलिए इसी का चुनाव सर्वोत्तम रहेगा । आवश्यक रचकों का चुनाव कर चुकने के पश्चात् उन रचकों की मात्रा निश्चित की जाती है, ताकि उनसे ठीक प्रकार का माल तैयार हो सके ।
इस संबंध में कोई निश्चित सिद्धांत नहीं बताया जा सकता परन्तु यह बात ध्यान रखने की होती है कि आधार के रूप में जो पदार्थ काम में लाये जाते है वह पर्याप्त मात्रा में रहें और विशेष गुण उत्पन्न करने के लिए जो महंगे ‘रचक’ मिलाने हों वे इतनी न्यूनतम मात्रा में लिये जाए जिससे कि तैयार पाउडर में इच्छित गुण तो आ जाए परन्तु उसकी लागत अधिक न बढ़ने पाये ।
ऊपर बताये गये तथ्यों को ध्यान में रखकर ठीक-ठाक फार्मूला निश्चित करने के बाद, उसके रचकों को आपस में मिलाने की विधि पर ध्यान देना चाहिए । उदाहरण के रूप में यदि सोप पाउडर मिलाना हो तो उसे सूखी अवस्था में, या थोड़ा गीला करके मिलाया जा सकता है । यदि इसे थोड़ा गीला करके मिलाना हो तो इसके साथ क्षार के रूप में मुख्य रूप से ‘सोडा ऐश’ मिलाना चाहिए ।
इसे सोप पाउडर के साथ मिलाते समय पानी केवल इतनी नियन्त्रित मात्रा में छिड़कना चाहिए जिससे यह मिश्रण आर्द रवेदार रूप में बना रहे । इस उपाय को काम में लाने से तैयार माल अच्छे परिणाम वाला प्राप्त होता है । इसमें से कुछ जलीय अंश, दोनों रचकों को एक जगह मिला चुकने के बाद सुखा दिये जाते हैं ।
पाउडर के रूप वाले डिटरजेंट्स के संयोजन में प्रायः एक समस्या यह भी आती है कि इसके रचकों को परस्पर मिलाते समय सावधानी न रखी जाय तो उसमें थक्के जैसे बन जाते हैं । इसका कारण इस मिश्रण में उपस्थित रहने वाले पानी में घुलनशील रवेदार पदार्थ की सतह पर आर्द्रता की प्रतिक्रिया होना है ।
मिश्रण की सतह पर आर्द्रता के अवशोषण के फलस्वरूप उस स्थान पर घोल की एक झिल्ली सी बन जाती है जो उन कणों के साथ मिल जाती है जो उसके सम्पर्क में आते हैं इसी के परिणाम स्वरूप पाउडर मिश्रण का जलीय अंश (आर्द्रता) वाष्प के रूप में जुड़कर थक्के जैसी रोड़ी या फुटकिया बना देते हैं । तापमान तथा दबाव की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप थक्के से अर्थात् रोडी या फुटकी सी और अधिक बनने लगते है ।
आर्द्रता के स्वतः अवशेषण के गुण को ‘पसीजना’ कहा जाता है । रवों का पानी को स्वतः कम हो जाने को ‘प्रस्फुटन’ भी कहते है । जो पदार्थ ‘निर्जलीय’ अथवा ‘जल योजित’ अवस्था में पसीजने वाले होते हैं या जो प्रस्फुटित हो जाते हैं उनके कारण ही पाउडर मिश्रण में थक्के से बनते हैं अतः इस प्रकार के कुछ पदार्थों को परस्पर मिलाना ठीक नहीं रहता ।
उदाहरण के रूप में कॉस्टिक सोडा (जो कि पसीजता है) और ट्राईसोडियम फॉस्टैड क्रिस्टल जोकि आर्द्रता के प्रभाव से ‘प्रस्फुटित’ हो जाते हैं, परस्पर मिलाये जाते हैं तो इनका मिश्रण कुछ चिपचिपा सा हो जाता है उनमें ‘फुटकी’ या थक्के से बन जाते हैं ।
इस दोष से बचने का एक आदर्श उपाय यह है कि ऐसे पदार्थ का प्रयोग में न लाया जाय तो पसीजते हैं या आर्दता के प्रभाव से प्रस्फुटित हो जाते हैं, अथवा जिनके मिलाने से पाउडर मिश्रण में थक्के बन जाते हैं, सम्भावना हो ।
यह फार्मूला ‘हैड टाइप-डिशवाशिंग कम्पाउन्ड’ का एक उदाहरण है जिसमें ‘सोप पाउडर’ मिलाया गया है । इस फार्मूले में सोडियम सेस्किव कार्बोनेट को आधार के रूप में मिलाया गया है । ‘सोडा ऐश’ को क्षारीयता के गुण में वृद्धि करने तथा पानी मृदु बनाने के विशेषता लाने के लिए मिलाया है और ‘सोप पाउडर’ को ‘वैटिंग एजेंट’ तथा डिटरजेंट के रूप में मिलाया जाता है ।
इस फार्मूले से तैयार होने वाला पाउडर भी ‘लृकरी’ आदि साफ करने के लिए है । इसमें ‘डाइसोडियम फॉस्फेट’ की क्षारीयता सोडियम मैटासिलिकेट तथा सोडा ऐश मिलाकर सुधारी गयी है और उसे मध्यम दर्जे की में परिवर्तित करा गया है ।
सोडियम मैटासिलिकेट इसलिए मिलाया गया है, जिससे कि यह पाउडर मैल के ठोस कणों को छितरा सके और संवेदनशील सतह पर क्षार के हानिकारक प्रभाव को कम करने में सहायक हो सकें, सोडा-ऐश को मैल काटने तथा पानी को मृदु बनाने का गुण उत्पन्न करने के उद्देश्य से मिलाया गया है ।
ट्राइसोडियम पायरो फॉस्फेट में यह गुण है कि इसके मिलाने से कैल्शियम तथा मैग्नेशियम साबुनों की तलछट कम बनती है, सोप पाउडर वैटिंग एजेंट तथा एमल्सिफाइंग एजेंट के रूप में मिलाया गया है ।
इस फार्मूले में सोडियम सैस्कियु कार्बोनेट को आधार के रूप में मिलाया गया है । ट्राइसोडियम पायरों फॉस्फेट में यह गुण है कि पानी में कठोरता लाने वाले खनिज लवणों की तलछट बनाना रोकता है, मैल नहीं बनने देता और अच्छी तरह खंगालने में सहायक होता है, जिसके फलस्वरूप वायु में सूखने के बाद इस पाउडर के साफ की हुई लृकरी पर पानी धब्बे नहीं पड़ते ।
इस फार्मूला में सोडियम मैटा सिलिकेट को आधार के रूप में प्रयुक्त किया गया है क्योंकि यह मध्यम दर्जे का क्षार है इससे चीनी मिट्टी या कांच से बने बर्तनों आदि पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता । सोडियम ट्रिपोली फॉस्फेट इसलिए मिलाया गया है क्योंकि यह पानी की अच्छी तरह खंगालने की क्षमता बढाता है ।
सोडा ऐश में सफाई करने तथा चिकनाई दाग धब्बों का साबुनीकरण कर सकने का गुण होता है । सोप पाउडर में झाग उत्पन्न करने तथा ‘एमल्शन’ बनाने का भी गुण है और इसमें पानी का यह भी गुण आ जाता है कि वह अन्य मैटेरियल की सतहों पर आसानी से फैल जाता है और उन सतहों के अत्यन्त सूक्ष्म रन्ध्रों में आसानी से प्रविष्ट होकर मैल के अत्यन्त महीन कण भी आसानी से बाहर निकाल देता है ।