कपड़े धोने साबुन कैसे बनाएँ | Read this article in Hindi to learn about how to manufacture laundry soap.
थोड़ा पूंजी निवेश करने वालों को प्रारंभ में कपड़ा धोने के साबुन ही बनाने चाहिये, क्योंकि इनमें लागत कम बैठती है और जल्दी बिक जाते हैं । अगर साबुन में मामूली सा दोष रह भी जाये तो वह छिप जाता है और चीज बिक ही जाती है ।
उत्पादन विधि (Production Method):
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नारियल का तेल यदि जमा हुआ हो तो उसे गर्म करके पतला कर लिया जाता है और यदि तेल जमा हुआ हो तो गर्म करने की आवश्यकता नहीं होती अब एक कड़ाई में तेल को रखा जाता है और कॉस्टिक की लाई डालते हुए इसे मस्सद से चलाया जाता है ।
इसको उस समय तक चलाते रहें जब तक की लाई व तेल का मिश्रण शहद जैसा गाढा न बन जाये । इसके बाद नहीं चलाना चाहिए अन्यथा साबुन के फटजाने की सम्भवना बनी रहती है । आमतौर पर 15-20 मिनट तक चलाना काफी होता हैं इसी समय सोडा सिलिकेट मिलाया जा सकता है ।
सोडा सिलिकेट प्रायः जमकर कठोर हो जाताया करता है इसलिए इसे सीधा ही साबुन में नहीं मिलाया जा सकता इसे पानी में घोलकर मिलाते हैं । यइ ठंडे की अपेक्षा गर्म पानी में जल्दी घुल जाता है इसलिए पानी को गर्म करके उसमें सोडा सिलिकेट तोड़कर मिला दिया जाता है ।
इसे बराबर चलाते रहना चाहिए, ताकि यह शीघ्र घुल जाय । घुल जाने पर इसे साबुन में मिलाकर साबुन का फ्रेम में भर दिया जाता है अगले दिन तक साबुन फ्रेम में जम जाता है ।
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साबुन को टेस्ट करके देख लेना चाहिए । यह जीभ की नोक पर गलाने से यह जीभ को कोटे तो इसका अर्थ है कि साबुन में सोडा कॉस्टिक अधिक डाला गया है । यदि साबुन मुलायम है और चिकना हो तो सोडा कॉस्टिक आवश्यकता से कम डाला गया है । इसे ठीक करने के लिए इन्हें काटकर कड़ाई में लेकर थोडा सा पानी मिलाकर उबाला जाता है एवं चलाया जाता है ।
यदि इसमें सोडे की अधिकता हो तो थोड़ा सा तेल और मिला दिया जाता है अधिक तेल हो जती थोड़ी अतिरिक्त लाई मिला दी जाती है । सुगन्धिया व रंग साबुन में उस समय मिलाने चाहिए जब यह फ्रेम में भरने के लायक तैयार हो ।
रंग व सुगन्धि मिलाने के बाद साबुन को मसस्द से अच्छी तरह चलाकर मिला देना चाहिए ताकि ये उसमें अच्छी तरह मिल जाये । रंग व सुगन्धि दोनों का पहले ही टेस्ट करके देख लेना चाहिए कि ये साबुन में कॉस्टिक के प्रभाव से कट तो नहीं जाता ।
उत्पादन विधि (Production Method):
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तेलों को आपस में मिला लिया जाता है और पानी में सोडा कॉस्टिक मिलाकर लाई बना ली जाती है । ठंडी हो जाने पर लाई को धार बांधकर तेल में मस्सद से तब चलाते रहना चाहिए जब तक कि दिनों मिलकर दूधित रंग का पायस एमल्शन बन जाए ।
सोडा सिलिकेट को थोडा गर्म पानी मिलाकर पतला कर लिया जाता है । पहले सोप स्टोन और फिर सोडा सिलिकेट को इसमें मिलाकर अच्छी तरह चलाया जाता है । जब सब चीजें मिलाकर साबुन एक समान और गाढ़ा हो जाये तो इसे निकाल कर फ्रेम में भर दिया जाता है ।
उत्पादन विधि (Production Method):
इस फार्मूले के अनुसार साबुन बनाने की विधि में तेलों को कढ़ाई में डालकर थोड़ा गर्म कर लिया जाता है । अब इसमें मैदा और सोप स्टोन मिला दिया जाता है । मैदा की जगह ग्रिट पाउडर डाला जा सकता है । इसका अच्छी तरह मिला लेना चाहिए ।
अब एक दूसरे बर्तन में पानी में नमक और सोडा सिलिकेट घोल लिया जाता है । इस मिश्रण को लाई में मिला दिया जाता है और इस सम्पूर्ण मिश्रण को तेल में डालकर मस्सद से चलाया जाता हैं और जब साबुन न एक समान हो जाय तब फ्रेम में भर दिया जाता है । फ्रेम को ढक कर रखना चाहिए, ताकि उसके अन्दर गर्मी बनी रहे ।
उत्पादन विधि (Production Method):
सूत्र 1 से 3 तक के साबुन की विधि एक ही है । तेलों को कढ़ाई में डालकर इसमें सोप स्टोन मिला दिया जाता है । इसके बाद इसमें सोडा कॉस्टिक की लाई मिलाकर मस्सद से चलाया जाता है । जब साबुन एक समान हो जाए तो फ्रेम में भर दिया जाता है और फ्रेम को ढक कर रखा जाता है । अगले दिन साबुन की टिकियां काट सकते हैं ।
उत्पादन विधि (Production Method):
पानी में सोडा कॉस्टिक मिलाकर लाई तैयार कर लिया जाता है तेल को कड़ाई में डालकर इतना ध्यान करना चाहिए कि इसमें पानी की बूंद डालने पर तड़कने की आवाज हो तो इसमें लाई मिला दिया जाता है ।
अब गर्म करना बंद कर दिया जाता है और जब इससे भाप निकलना बंद हो जाये तो इसमें उचित मात्रा में पानी डालकर फिर लगभग दो घंटे तक उबाला जाता है । जब साबुन गाढ़ा होने लगे तब गर्म करना बंद कर दिया जाता है । अब इसके ऊपर ग्रिट पाउडर पिसा हुआ नमक व सोडा पेश छिड़कर मस्सद से चलाया जाता है । अन्त में शेष लाई मिलाकर इसे फ्रेमों में भर दिया जाता है ।
उत्पादन विधि (Production Method):
इस फार्मूले से साबुन बनाने की विधि उपर्युक्त ही है । सोडा सिलिकेट को मिलाने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए । सोडा सिलिकेट को तोड़कर पानी में डाला जाता हे और पानी को गर्म किया जाता है ताकि यह उसमें घुल जाये । जब साबुन गाढ़ा होने लगे तो उसमें सोडा सिलिकेट का यह गर्म घोल मिलाकर खूब अच्छी तरह चला कर फ्रेम में भर दिया जाता है ।
बनाने का विधि (Method):
फार्मूला संख्या 1 से 4 तक के साबुन बनाने की विधि एक ही है । कढ़ाई में तेलों को डालकर गर्म किया जाता है बिरोजा बारीक तोड़कर इसमें डाल दिया जाता है । तेल को चलाते रहना चाहिए. ताकि बिरोजा उसमें घुल जाये । तेलों को इतना गर्म किया जाता है कि पानी की बूंद डालने से चट-चट की आवाज आये ।
जब तेल इतना गर्म हो जाये तो सारी लाई को उसमें डाल दिया जाता है और मिश्रण को थोड़ी देर चलाकर छोड़ दिया जाता है । कुछ मिनटों बाद मिश्रण में प्रतिक्रिया के कारण उफान आना शुरू हो जाता है । जब उफान अच्छी तरह चारों तरफ से आ चुके तो मस्सद से अच्छी तरह मिलाकर छोड़ दिया जाता है कुछ देर बाद उफान आयेगा तब फिर मस्सद से चलाकर छोड़ दिया जाता है ।
इस तरह जब तीन-चार उफान आ चूकें तो गर्म करना बंद करके सोप स्टोन मिलाकर चलाया जाता है और जब मिश्रण गाढ़ा हो जाये तो सोडा सिलिकेट डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है अतः में गर्म करना बंद करके इसको फ्रेम में भर दिया जाता है । सुगन्धि आदि मिलानी हो तो सिलिकेट मिलाने के बाद फ्रेम में भरने के पहले मिलानी चाहिए ।
(II) बिरोजे के साबुन (Rosin Soap):
घरेलू प्रयोग के साबुनों में बिरोजे साबुन बहुत लोकप्रिय हैं । यद्यपि वे काले या मैले रंग के होते हैं परन्तु जहां तक सफाई का प्रश्न है कपडे बहुत अच्छे साफ होते हैं ।
उत्पादन विधि (Production Method):
इन सूत्रों से साबुन बनाने के विधि एक ही है । तेलों को कड़ाई में डालकर गर्म किया जाता है और उसमें बिरोजा बारीक तोड़कर मिला दिया जाता है । जब बिरोजा भी तेलों में मिल जाये तो सोप स्केन डालकर मस्सद से चलाकर मिला दिया जाता है । जब तेल इतना गर्म हो जाये कि पानी में डालने से तड़-तड़ की आवाज आए तो सारी लाई डालकर चलाना आरम्भ कर दिया जाता है ।
जब मिश्रण एक समान हो जाय तो छोड़ दिया जाता है । थोड़ी देर बाद प्रतिक्रिया आरम्भ होगी जिससे मिश्रण में उफान आयेगा । जब उफान आ चुके तो मिश्रण को थोड़ी देर चलाने के बाद पानी मिला दिया जाता है । जिस फार्मूले में पानी की जगह सोडा सिलिकेट हो उसमें सिलिकेट मिला दिया जाता है और अच्छी तरह मिलाकर फ्रेम में भर दिया जाता है ।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि तेलों में लाई मिलाते ही या दो-तीन मिनट बाद प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उफान आ जाता है । कभी-कभी उफासन इतने जोर का आता है कि कढ़ाई से बाहर निकल जाता है । अगर कढ़ाई काफी बडी है तो उफान के बाहर निकलने के सम्भावना नहीं रहती । सिलिकेट को हमेशा पानी में घोलकर ही मिलाना चाहिए, ताकि साबुन में अच्छी तरह मिल जाये ।
(III) नीम व अन्य तेलों में साबुन बनाना (ग्रेनिंग या फाड़ने की क्रिया) (Preparing Soap in Neem and Other Oils):
यदि तेल साफ और निर्गन्ध हों तो उससे ग्रेनिंग रीति से साबुन बनाने की जरूरत नहीं पड़ती । तेल मिलों से सीधे ही तेल बैगनों या ड्रमों में लाया जाता है जिसमें अशुद्धिया मिली होती हैं ।
बनाते समय साबुन को एक या दो बार फाड़ लिया जाता है । ऐसा करने के तेल की सारी गन्दगियां और रंग व गंध आदि कटकर अलग हो जाते हैं और शुद्ध साबुन प्राप्त होता है । फाड़कर-बनाये जाने वाले साबुन को निरोल पवित्र साबुन कहा जाता है ।
निरोल साबुन बनाने का एक आम फार्मूला नीचे दिया जा रहा है:
उत्पादन विधि (Production Method):
उपर्युक्त तेल में बिरोजा मिलाकर पिघला लिया जाता है । जब दोनों चीजें पिघलकर एक समान हो जायें तो कढाई में डालकर ऊपर से पानी भी कढ़ाई में डाल दिया जाता है । इसमें उपर्युक्त लाई मिला कर खूब अच्छी तरह तेल के साथ चलाकर रखा रहने दिया जाता है ।
दूसरे दिन सवेरे कड़ाई में रखे पदार्थ को गर्म किया जाता है और जब उबाल आने लगे तो उपर्युक्त बची हुई लाई मिला दी जाती है और साबुन को उबलने दिया जाता है । जब साबुन उबलते-उबलते कुछ गाढ़ा हो जाए तो फिर लाई मिलानी चाहिए । लाई मिलाकर साबुन को अच्छी तरह चला दें ।
इसी प्रकार जब भी पकते-पकते साबुन कुछ गाढ़ा दिखाई दे तो फिर लाई डालकर अच्छी तरह चला दिया जाता है । अन्तिम बार जब लाई मिलाया जाती है तो साबुन फट जाता है अर्थात् इसमें रवे-से बन जाते हैं ।
वास्तव में इस साबुन में लाई अधिक मिलायी गयी होती है जो कि साबुन को फाड देती है । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि साबुन नहीं फटता तो इसमें पिसा हुआ नमक मिला देने पर साबुन फट जाता है ।
अब कढ़ाई को गर्म करना बंद कर दिया जाता है और साबुन को दो-चार घंटे तक ऐसे ही पड़ा रहने दिया जाता है । देखा जाता है कि ऊपर-ऊपर का साबुन जम गया होता है और इसके नीचे की तह में कॉस्टिक लाई व अशुद्धियां रह जाती हैं ।
अब एक पानी के सहारे ऊपर से साफ साबुन उतार कर एक दूसरी कढ़ाई में डाल दिया जाता है । इस कढ़ाई में शुरू कर बचा हुआ बिरोजा मिश्रित तेल डालकर मस्सद से अच्छी तरह मिला दिया जाता है । यह फालतू तेल इसलिए मिलाया गया है कि जो साबुन ऊपर-ऊपर से उतारा गया था, उसमें थोड़ी सी कॉस्टिक भी फालतू होती है ।
जो इस तेल में हाल हो जाती है । अब इस साबुन को फ्रेमों में भर दिया जाता है, और अगले दिन निकालकर काट लिया जाता हैं इसे 4-5 दिन हवा में रखा जाता है, ताकि टिकिया थोड़ी कड़ी हो जायें । यह बिल्कुल निरोल साबुन है, क्योंकि इसमें किसी चीज की मिलावट नहीं है । यह साबुन हल्का होता है और प्रायः पानी पर तैयार है ।
इसी तरीके से अन्य गेंदे तेलों को फाड़कर साबुन बनाये जा सकते हैं । अगर तेल ज्यादा गदा हो और पहली बार फाड़ने पर बंद बू या रंग साफ न हो तो दुबारा या तीसरी बार फाड़ सकते हैं । उपर्युक्त साबुन बनाने में जो लाई बचती है, उसे नया घान बनाते समय काम में ला सकते हैं ।
अगर इसमें सोप स्टोन या सोडा सिलिकेट की कुछ मिलाट करना चाहें तो साबुन को दूसरी कढ़ाई में डालकर, उसमें भर्ती वस्तुएं मिलाकर तथा घोंटकर फ्रेम में जमने को डाल दें ।
मशीन एवं उपकरण (Machines & Equipment):
1. सोप कैटेल
2. स्पैविंग मशीन
3. सोप कटिंग मशीन
4. सोप स्टैम्पिंग मशीन
5. सोप एमलग्मेटर
6. सोप प्लोडर