बैडमिंटन शटलकॉक्स कैसे बनाएं? | Read this article in Hindi to learn about how to manufacture and produce badminton shuttle cocks.
बैडमिंटन भारत का एक लोकप्रिय खेल है जो कि देश के लगभग सभी भागों में प्रायः सभी उम्र के व्यक्तियों द्वारा समान रूप से पसंद किया जाता है । यह खेल खुले मैदान तथा लीन एवं घरों में भी खेला जा सकता है तथा यही इसकी लोकप्रियता की प्रमुख वजह है ।
क्योंकि उत्तरोत्तर होते जा रहे शहरीकरण तथा अत्यधिक भागदौड़ पूर्ण जीवन के कारण नागरिकों के लिए यह संभव नहीं रह गया है कि वे खुले मैदानी खेलों हेतु समय निकाल सकें । स्कूली लड़कियों तथा वृद्ध स्त्री-पुरुषों द्वारा भी यह खेल अत्यधिक पसंद किया जाता है ।
बैडमिंटन के खेल का एक महत्वपूर्ण अंग है- शटल कॉक । शटल कॉक विभिन्न गुणवत्ताओं के अनुसार (सस्ते/महंगे) बनाए जाते हैं । ऊंची गुणवत्ता के शटल कॉक में बतख अथवा गूज के पंखों का उपयोग किया जाता है जो कि कश्मीर तथा पश्चिमी बंगाल से उपलब्ध होते है जबकि सस्ती क्वालिटी के शटल कॉक बनाने हेतु मुर्गी के पंखों का उपयोग किया जाता है ।
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यह निःसन्देह बड़े दुख की बात है कि कच्चा माल (मुर्गी के पंख) पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के तथा काफी मात्रा में शटल कीक की खपत होने के बावजूद हमारे प्रदेश में इस तरह की बहुत कम इकाइयां हैं तथा वर्तमान में अधिकांश माल जालधर, दिल्ली मेरठ आदि से ही आता है । इसके साथ-साथ इन उत्पादनों की निर्माण प्रक्रिया इतनी सरल है कि इस प्रकार की इकाइयां घर-घर स्थापित की जा सकती है ।
शटल कॉक वनाने की इकाई का उत्पादन लक्ष्य (Production Target of the Shuttle Cock Manufacturing Unit):
प्रस्तुत इकाई में प्रतिवर्ष 13800 दर्जन शटल कॉक बनाने का लक्ष्य है । इनमें से 2400 दर्जन शटल कॉक प्रथम क्वालिटी के होंगे जिनका बिक्री मूल्य लगभग 85/ रु. प्रति दर्जन होगा । जबकि 11400 दर्जन शटल कॉक सैकिण्ड क्वालिटी के होगे जिनका बिक्री मूल्य लगभग 80 रु. प्रति दर्जन होगा । कुल मिलाकर दोनों क्वालिटी की 13800 दर्जन शटल कॉक्स की बिक्री से कुल 11,16,000/- रु. की प्राप्तियां होना अनुमानित है ।
शटल कॉक के निर्माण की विधि-प्रक्रिया (Method of Making the Shuttle Cock):
शटल कॉक बनाने के लिये लगने वाला प्रमुख कच्चा माल है- बॉटम कार्क, मुर्गी के पर, लेदर कैप (छोटी), धागा एवं रिबन बॉटम कॉर्क विदेशी कॉर्क के विशिष्ट आकार के टुकड़े होते है जो कटे हुये, अर्धगोले की तरह दिखते हैं । यह कॉर्क लकड़ी यद्यपि पुर्तगाल और स्पेन से आती है, लेकिन दिल्ली बंबई जालंधर मेरठ के बाजारों में भी आसानी से मिलती है ।
हैन्ड ड़िल नामक छोटी मशीन से बॉटम कार्क के तल (सपाट) पर 16 छेद सही अंतर रखकर बनाये जाते हैं । पोल्ट्री फार्म से प्राप्त मुर्गी के पंखों को तरल साबुन नील से धोकर सुखाया जाता है । छोटी हैन्ड प्रेस द्वारा इन पंखों को शटल की आकार में एक सरीका काटा जाता है । इन पंखों को बॉटम कॉर्क के सुराखों में गोंद द्वारा बिठाया जाता है और शटल कॉक आकार ले लेता है ।
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मर्सराईज्ड या रेशमी धागे से इन परों को बीच में गोलाकार बांधकर मजबूत बनाया जाता है और पंखों में हल्का गोंद लगाकर उन्हें कड़क बनाते हैं । कार्क बॉटम का सिरा रिबन से ढाककर शटल कोक तैयार होता है । इन तैयार शटल कॉक्स को तोलकर वजन के अनुसार 68-70 और 75-80 ग्राम के अनुसार छांटकर कार्डबोर्ड के गोल डिब्बों में 12-12 की संख्या में भरकर पैक किया जाता है । शटल कॉक्स के विक्रय में 75 प्रतिशत हिस्सा सस्ते कॉक्स का ही होता है ।
शटल कॉक वनाने की इकाई के वित्तीय पहलू (Financial Aspects of the Shuttle Cock Manufacturing Entity):
1. इकाई की स्थापना हेतु कार्यस्थल की आवश्यकता (Workplace Requirement for Establishment of a Unit):
इकाई की स्थापना हेतु लगभग 1000 वर्गफीट के निर्मित क्षेत्र की आवश्यकता होगी जो कि 2000 प्रतिमाह के किराये पर लिया जा सकता है ।
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2. मशीनरी एवं उपकरणों की आवश्यकता (Workplace Requirement for Establishment of a Unit):
3. कर्मचारी एवं कारीगर (प्रतिमाह) (Employees and Craftsmen (Per Month)):
इकाई के संचालन हेतु निम्नानुसार कर्मचारियों/कारीगरों की आवश्यकता होगी तथा उन्हें निम्नानुसार वेतन/पारिश्रमिक देय होगा:
यह कार्य पार्टटाइम/ठेके पर भी किया जाता है, किन्तु गणना की सुविधा के लिए मासिक वेतन के आधार पर लिया गया है ।
4. कच्चा माल (प्रतिमाह) (Raw Material (Monthly)):
शटल कॉक बनाने हेतु लगने वाला प्रमुख कच्चा माल है- बॉटम कार्क, मुर्गी के पंख, लैदर टोपियाँ आदि ।
प्रायः एक दर्जन शटल कॉक के निर्माण पर निम्नानुसार कच्चे माल की लागत आती है:
इस प्रकार प्रतिमाह 1150 दर्जन शटल कॉक बनाने हेतु लगने वाले कच्चे
माल पर व्यय- 1150 × 85 = रु. 97750
5. उपयोगिताओं पर व्यय (प्रतिमाह) (Expenditure on Utilities (Per Month)):
इकाई के संचालन हेतु लगने वाली बिजली तथा पानी पर प्रतिमाह 1500 रू. का व्यय होना अनुमानित है ।