अनुशासन पर निबंध | Essay on Discipline in Hindi Language!
मनुष्य अपने विशेष गुणों के कारण ही अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ और महान् समझा और माना जाता है, उसके विशेषगुण हैं: चरित्र बल, विवेकशीलता, अनुशासन आदि । अगर मनुष्य में ये गुण न हो तो वह पशु के समान समझा जायेगा । पशु से श्रेष्ठ रखने वाली मनुष्य की जितनी विशेषताएं हैं और उसके जो-जो गुण हैं, वे सभी अत्यन्त महान् और अदूभुत हैं ।
उसके सभी गुणों में उसका अनुशासन नामक गुण, ऐसा एक गुण है, जो उसे सचमुच में पशु से श्रेष्ठ और देवता की कोटि में रखने वाला है । मनुष्य अनुशासन का पाठ अपने जीवन की शुरूआत से ही पढ़ने लगता है । उसकी अनुशासन की पाठशाला उसका उापना घर-परिवार होता है । यहीं से वह अनुशासन का ‘क’, ‘ख’ पाठ पढ़ना शुरू कर देता है ।
इसके बाद वह अपने स्थानीय विद्यालय में अनुशासन सहित विद्याध्ययन आरंभ करता है । इस अवस्था में आकर वह अपने माता-पिता, अभिभावक सहित अपने परिवार के ही नहीं, अपितु विद्यालय के सभी शिक्षकों अनुशासन की शिक्षा प्राप्त करता है । इस प्रकार परिवार अनुशासन की पहली सीढ़ी है, तो विद्यालय और शिक्षण-संस्थाएं दूसरी सीढ़ी । इस तरह अनुशासन का धरातल क्रमश: फैलता-बढ़ता जाता है ।
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हम यह भलीभाँति जानते हैं कि प्राचीन समय में विद्यार्थी जीवन को ‘ब्रह्मचर्य आश्रम’ की संज्ञा दी जाती थी । इस आश्रम में विद्यार्थी के लिए यह व्यवस्था वनायी गई थी कि वह अपने गुरू के ही साथ रह कर अनुशासित ढंग से विद्या प्राप्त करे । इस तरह विद्यार्थी अनुशासित होकर अपने गुरु के साथ रहकर सम्पूर्ण शिक्षा-दीक्षा को प्राप्त करता था ।
इससे वह सभी प्रकार के ज्ञान-क्षेत्र में अपना और अपने गुरु का नाम रोशन करता था । उस पर सारा संसार गर्व करता था । वह एक एतिहासिक व्यक्ति बन जाता था । आज भी हम उस अनुशासित विद्यार्थी जीवन को नहीं भूल पाते हैं ।
विश्वामित्र के अनन्य शिष्य राम-लक्ष्मण, सान्दीपनि मुनि मुख्य शिष्य कृष्ण-सुदामा, वरतन्तु के शिष्य कण्व आदि ऐसे अनुशासित गुरु-शिष्य परम्परा के ज्वलंत उदाहरण हैं, जिनको याद करके हमारी सारी भारतीय संस्कृति धन्य-धन्य हो उठती हैं । ऐसे गुरु-शिष्य ही अनुशासित जीवन जीने को हमें आज भी प्रेरित करते हैं ।
आज के जीवन में अनुशासन कैसा है और क्या है ? इस पर विचार करने मनक्षुब्ध हो उठता है । सच्चाई यह है कि आज अनुशासन कहीं है ही नहीं । सचमुच में आज अनुशासन का घोर अभाव दिखाई दे रहा है । आज अनुशासनहीनता एक बड़ी गंभीर समस्या के रूप में हमें ललकार रही है । यह सच है कि आजादी के बाद हमारे देश में अनुशासन का घोर अभाव दिखाई दे रहा है ।
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जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहाँ यह समस्या टाँग अड़ाए हुए खड़ी है । समाज, धर्म, राजनीति, साहित्य, व्यापार, अर्थ आदि सभी क्षेत्रों में इसने अपनी व्यापक छाप छोड़ी है । समाज का प्रत्येक सम्बन्ध-स्वरूप अनुशासनहीनता को ही जीवन की लोकप्रियता समझकर कुछ भी अनैतिक कार्य करने में संकोच नहीं कर रहा है । धर्म पर भी अनुशासनहीनता की फीस लग रही है ।
आज धार्मिक कहने या वनने हर व्यक्ति वहुत ही स्वतंत्रतापूर्वक अर्थ का अनर्थ करके धर्म के स्वरूप को विद्रूप करने में जी जान से लगा हुआ है । राजनीतिक क्षेत्र का हाल तो सव से वेहाल है । राजनीतिक लोग चुनाव जीतने के लिए अनेक प्रकार के अनुचित हथकंडे अपनाते हैं । वे अपने विरोधियों को समाप्त करने में खुलकर के अनुशासनहीनता का परिचय देते हैं ।
यहाँ तक उनकी हत्या करवा देते हैं । वे चुनाव जीतने अपने बाहु-वल का असाधारण परिचय देते हैं । इस प्रकार हमारे देश के राजनीतिक अनुशासनहीनता न होते, तो हमारा देश सच्चा लोकतांत्रिक देश होता । कोई भी यहाँ का अनुशासित व्यक्ति चाहे वह क्यों न कंगाल हो, नेता वनकर देश का नेतृत्व कर सकता है । लेकिन अनुशासनहीनता को गले लगाने वालों के सामने ऐसे व्यक्तियों को कौन पूछता-समझता है ?
अनुशासनाथ जीवन एक स्वर्णिम जीवन है । उसमें तेज है, प्रभाव है, महत्त्व है, जीवनी शक्ति है और स्वार्णिम भविष्य है । इसलिए हमें अनुशासित जीवन को सदैव महत्व देना चाहिए । यही नहीं इसके लिए हमें यथासंभव सत्प्रेरित करना चाहिए ।
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इस तरह हमें विश्वस्तमाव से अनुशासित जीवन जीने के लिए निरन्तर प्रयास करना चाहिए । तास्तव में यदि हम अनुशासन का पालन करते हुए जीवन जीने का दृढ़ निश्चय लें, तो निश्चय कर ही यह समाज श्रेष्ठ और कल्याणकारी समाज सिद्ध होगा ।