तुलना: सार्वजनिक और निजी प्रशासन | Comparison: Public and Private Administration in Hindi.
प्रशासन का बड़ा भाग निजी क्षेत्रों में कार्यरत है, यद्यपि संगठन के दृष्टिकोण से सरकारी प्रशासन सबसे बड़ा प्रशासन है । सरकारी या लोक प्रशासन जनता के हितों के लिये कार्यरत है, अतः वह सार्वजनिक स्वरूप का है । निजी हितों के लिए कार्यरत प्रशासन को निजी प्रशासन कहते हैं जैसे टाटा का प्रशासन । दोनों प्रशासनों में समानताएं व असमानताएं विद्यमान है ।
समानता का दृष्टिकोण (Relationship between Public and Private Administration):
समानता के समर्थक विद्वान- हैनरी फेयोल, उर्विक, फॉलेट । प्रारंभिक शास्त्रीय विचारक फेयोल, फॉलेट, उर्विक, गुलिक, मूनरेले लोक और निजी जैसी शब्दावली पर ही आपत्ति करते हैं । एक प्रशासनिक विज्ञान की प्राप्ति के लिए पारंपरिक विद्वानों ने प्रशासनिक भेद को समाप्त करने का प्रयास किया । ऐसा तभी संभव था जब प्रशासन को प्रबंध मान लिया जाए ।
फेयोल- ”अब हमारे सामने अनेक प्रकार के प्रशासनिक विज्ञान नहीं, अपितु एक ही ऐसा प्रशासन है, जिसे सार्वजनिक और निजी मामलों में समान रूप से लागू किया जा सके ।”
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उर्विक- “यह अंतर करना मुश्किल है कि बैंक कर्मियों का अलग जैव रसायन विज्ञान, प्राध्यापकों का अलग शरीर-क्रिया विज्ञान या राजनीतिज्ञों का अलग रोग मनोविज्ञान होता है ।”
1. संगठनात्मक समानताएं:
प्रत्येक प्रशासन के लिए संगठन आवश्यक है । यद्यपि लोक प्रशासन का संगठन पदसौपानिक और नौकरशाही मूलक तथा निजी प्रशासन का कार्यात्मक और समस्तरीय अधिक होता है तथापि इन संगठनें का संतुलित और स्वस्थ्य रहना प्रशासन की सफलता के लिए जरूरी है । अब लोक प्रशासन, विशेषकर विकास प्रशासन में विशृंखलित कार्यात्मक ढांचे अपनाये जा रहे है ।
2. प्रबंधकीय प्रक्रिया:
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लोक और निजी प्रत्येक प्रशासन में नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय जैसी प्रबंधकीय प्रक्रिया समान रूप से अपनायी जाती है ।
3. कार्यात्मक तकनीकें:
आंकड़े जुटाने से सांख्यिकी तकनीक फाइंलिंग, कम्यूटिंग, टाइपिंग, लखांकन, स्टेनोग्राफी आदि का उपयोग सभी प्रशासनों में समान रूप से होता है ।
4. कार्यों की प्रकृति:
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दोनों प्रशासनों में कार्यों की प्रकृति में काफी समानताएं पायी जाती है। यही कारण है कि सेवानिवृत्त सरकारी कार्मिक निजी क्षेत्र में नियोजित हो जाते हैं और सरकारी उपक्रमों में निजी क्षेत्र की प्रतिभाओं को अवसर मिलता है । एडमिनिस्ट्रेव्हि कालेज, हैदराबाद में तो सरकारी और व्यवसायिक दोनों क्षेत्रों के कार्मिकों को एकसमान एक साथ प्रशिक्षण दिया जाता है ।
5. जन संपर्क की अवधारणा:
प्रत्येक प्रशासन की सफलता इस बात में निहित है कि अपने हितग्राहियों और उनकी आवश्यकताओं से कितना परिचित है तथा अपने और अपनी सेवाओं को जनता तक ले जाने में कितना समर्थ होता है । ये कार्य जन संपर्क से ही संभव है ।
असमानता का दृष्टिकोण (Difference between Public and Private Administration):
असमानता के समर्थक विद्वान:
साइमन, एपीलबी, जोशिया, स्टैम्प, पीटर ड्रकर, निग्रो ।
साइमन के अनुसार राजनैतिक चरित्र, लालफीताशाही नौकरशाही आदि लोक प्रशासन की ऐसी विशेषताएं है, जिनका निजी प्रशासन में अभाव होता है । निजी प्रशासन व्यावसायिकता के आधार पर गठित होता है, लोक प्रशासन गैर व्यावसायिक होता है ।
एपीलबी के अनुसार लोक व निजी प्रशासन में असमानता के आधार हैं:
1. राजनीतिक चरित्र:
लोक प्रशासन राजनीतिक होता है, नीजि प्रशासन गैर राजनीतिक ।
2. क्षेत्र या प्रभाव की व्यापकता:
लोक प्रशासन में संगठन बड़ा व प्रभावी होता है जबकि निजी प्रशासन में संगठन छोटा व कम प्रभावी होता है ।
3. जन उत्तरदायित्व:
लोक प्रशासन जनता के प्रति उत्तरदायी है जबकि निजी प्रशासन नहीं । एपलबी के ही अनुसार लोक प्रशासन काँच के घर में रहता है । अत: उसकी जनता द्वारा आलोचना निरंतर होती है जबकि निजी की नहीं ।
जोशिया स्टैम्प ने असामनता के 4 आधार बताये हैं:
1. मत्रियों का उत्तरदायित्व- लोक प्रशासन के कार्यों के लिए मंत्री जनता के प्रति उत्तरदायी होता है ।
2. वित्तीय नियंत्रण- लोक प्रशासन पर वित्त का बाह्य कठोर नियंत्रण होता है, लेकिन निजी प्रशासन पर नहीं। निजी प्रशासन अपनी वित्त व्यवस्था के लिए स्वतंत्र है ।
3. एकरूप प्रशासन- लोक प्रशासन में पूरे देश में एक रूपता पायी जाती है, निजी में नहीं ।
4. सेवा का उद्देश्य और सीमांत लाभ- लोक प्रशासन जनता की सेवा के उद्देश्य से संचालित है जबकि निजी प्रशासन व्यैक्तिक लाभार्जन के उद्देश्य से । लोक प्रशासन अतिरिक्त लाभ को अपने पास नहीं रखता अपितु अन्य मदों में खर्च करके जनता को वापिस कर देता है ।
पीटर ड्रकर के अनुसार सेवा संस्थान (लोक प्रशासन) व्यवसायिक संस्थान (निजी प्रशासन) से आधारभूत रूप से अलग होते हैं ।
उसके अनुसार सेवा संस्थान और व्यवसायिक संस्थान के-
1. प्रयोजन या कार्य अलग-अलग हैं ।
2. मूल्य अलग हैं ।
3. उद्देश्य अलग हैं ।
4. समाज में योगदान अलग है ।
5. निष्पादन और परिणाम भी अलग है ।
सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंतर है ”निष्पादन के लिए प्रबंध” की व्यवस्था (Managing for Performance) ।
असमानता के अन्य आधार:
1. राजनैतिक निर्देशन:
लोक प्रशासन राजनैतिक निर्देशन में काम करता है, निजी नहीं ।
2. लाभ का उद्देश्य:
लाभ का उद्देश्य निजी का होता है, लोक का नहीं ।
3. कानूनी अधिकारिता:
लोक प्रशासन को प्राप्त है, निजी को नहीं ।
4. सेवा सुरक्षा:
लोक कार्मिकों को जितनी सेवा सुरक्षा प्राप्त है, निजी कार्मिकों को उतनी नहीं ।
5. एकाधिकारिता:
लोक प्रशासन के कार्य सामान्यता उसके लिए आरक्षित होते हैं ।
6. विधायी स्वीकृति:
लोक प्रशासन के संगठन और कार्यों को विधायिका की पूर्व स्वीकृति प्राप्त होती है । निजी प्रशासन का विधायिका से कोई संबंध नहीं होता ।
7. सार्वजनिक आलोचना और जन जवाब देयता:
लोक प्रशासन राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक सभी परिवेश से जुड़ा है और वह जनता तथा राजनीति दोनों के प्रति जवाबदेह रहकर काम करता है । इसके विपरीत निजी प्रशासन मुख्यत: आर्थिक परिवेश के प्रति संवेदनशील होता है और उससे प्रभावित होकर काम करता है । हक्सले- ”लोक प्रशासन कांच के घर में रहता है, जबकि निजी प्रशासन ईंट से बने मकानों में । अत: सार्वजनिक आलोचना का केन्द्र लो. प्र. होता है, निजी प्रशासन नहीं ।”
8. व्यवहार की एकरूपता:
लो. प्र. को सभी व्यक्तियों, समूहों के प्रति समान व्यवहार करना होता है लेकिन निजी प्रशासन के लिए ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं होती ।
9. कानूनी स्वरूप:
लो. प्र. के संगठन और कार्यों का स्वरूप कानूनी है । उनके कार्यों के पीछे कानून की शक्ति होती है, जिनका पालन जनता के लिए अनिवार्य होता है और जिनका उल्लंघन कानून का उल्लंघन माना जाता है ।
10. संगठनिक आकार:
लोक प्रशासन का संगठन वृहदाकार है जो पूरे देश भर में अपनी संस्थाओं के माध्यम से अवस्थित और कार्यरत रहता है । निजी संगठन उसकी तुलना में छोटे और कम जटिल होते हैं ।
11. कार्यों की प्रकृति:
लो. प्र. के कार्यों की प्रकृति निजी से अलग है । पहले का संबंध लोगों की मूलभूत आवश्यकता से है अत: वह अत्यावश्यक सेवाएं प्रदान करता है जैसे पेयजल, विद्युत आदि । दूसरे का संबंध लोगों की विलासिता से है अत: उसकी सेवाएं अत्यावश्यक सेवाएं नहीं होती ।
12. बाह्य वित्तीय नियंत्रण:
लो. प्र. पर विधायिका का वित्तीय नियंत्रण रहता है, जिससे निजी प्रशासन मुक्त है ।
13. अनामता का सिद्धांत:
प्रशासनिक कार्यों के पीछे प्रशासक का नाम नहीं होता । यह ”मंत्रिपरिषद के उत्तरदायित्व” सिद्धांत का पूरक है अर्थात प्रशासन के कार्यों के लिए संबंधित मंत्री ही विधायिका के प्रति उत्तरदायी रहता है । निजी प्रशासकों का अपने कार्यों के लिए स्वयं का नाम होता है । वहां मंत्री उत्तरदायित्व का सिद्धांत नहीं पाया जाता ।
14. दक्षता की माप में अंतर:
लोक और निजी प्रशासन में दक्षता का आकलन समान आधारों पर नहीं किया जाता । पहले की दक्षता का मुख्य आधार जनता की संतुष्टी है जबकि दूसरे की लाभ संतुष्टी ।
निष्कर्ष:
(a) कुछ मुद्दे ऐसे है जहां लोक और निजी प्रशासन में अंतर है और जो सदैव बने रहेंगे, जैसे उद्देश्य, राजनीतिक चरित्र और निदेशन, वित्तीय नियंत्रण, कानूनी स्वरूप आदि ।
(b) लेकिन ये अंतर बेहद धुंधले दिखायी देते हैं ।
(c) अत: अंतर मात्रात्मक अधिक, गुणात्मक कम हैं ।
हार्वे शरमन की विचारधारा:
इनके अनुसार दोनों प्रशासनों में अंतर तो है लेकिन उन पर बहुत अधिक बल नहीं दिया जाना चाहिए । विभिन्न संगठनों में उद्देश्य आधारित विशिष्ट अंतर आ जाते है ।
वाल्डो की विचारधारा:
वाल्डो भी दोनों में अंतर तो मानते हैं लेकिन बेहद सूक्ष्म । उनके अनुसार व्यवहार की एकरूपता, कानूनी अधिकारिता, कार्य का उत्तरदायित्व, निर्णय की न्यायोचितता, ईमानदारी आदि ऐसे मुद्दों की बहा कम प्रयोज्यता आधार पर दोनों में अंतर किये जाते हैं ।
वाल्डो के अनुसार- ”वस्तुतः लोक और निजी प्रशासन एक जाति की उप जातियाँ हैं, जिनकी अपनी तकनीकें और विशेष मूल्य हैं, जो दोनों को पृथक स्वरूप प्रदान करते हैं । ……….लोक और निजी प्रशासन एक जाति के दो भेद हैं राष्ट्र सेवा में लगे हैं ।”