चावल का उत्पादन कैसे करें | How to Cultivate Rice in Hindi!

चावल उत्पादन के लिए भौगोलिक परिस्थितियाँ (Geographical Conditions Required for Rice Cultivation):

विश्व के विभिन्न भागों में चावल का उत्पादन 39S (आस्ट्रेलिया) से 50N (चीन, जापान) तक की जाती है । भारत में चावल की खेती 8N से लेकर 34N तक की जाती है । केरल की कुट्टानाद घाटी में सागर स्तर के नीचे से लेकर कश्मीर की घाटी में 2000 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है ।

चावल की खेती के लिए तापमान 20C से 30C तथा वर्षा 75 से॰मी॰ से अधिक होनी चाहिए । जिन प्रदेशों में वर्षा की कमी है वहाँ सिंचाई की सहायता से चावल की खेती की जाती है, जैसे पंजाब हरियाणा एवं राजस्थान में । चावल की खेती के लिए चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है जिसमें पानी ठहरा रहे । चावल की सफल खेती के लिए मिट्टी की PH 5 से 8 की सीमा के अंतर्गत होनी चाहिए ।

चावल कृषि विधि (Systems of Rice Cultivation):

प्राचीनकाल से ही भारत में चावल की खेती बिखेर कर की जाती रही है । बहुत-से स्थानों पर वर्षा तथा मृदा को ध्यान में रखकर धान की खेती की जाती है ।

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नये बीजों की खेती के पश्चात् चावल की खेती अग्रलिखित तीन प्रकार से की जा रही है:

i. शुष्क कृषि (Dry Cultivation):

शुष्क कृषि विधि उन प्रदेशों में की जाती है जहाँ कृषि वर्षा पर निर्भर है और सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं हैं । बीज बोने से पहले खेती की कई बार जुताई की जाती है । वर्षा होने पर खेत में बीज बिखेर दिया जाता है । इस प्रकार की धान की खेती का प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है । धान के ऐसे बीज बोये जाते हैं जो कम वर्षा के क्षेत्रों में शुष्क मौसम को सहन कर सकें । खेती की अधिकतर प्रक्रिया मानव के द्वारा किया जाता है ।

ii. आर्द्र कृषि (Wet Cultivation):

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आर्द्र धान की कृषि उन प्रदेशों में की जाती है जहाँ पर्याप्त मात्रा (75 से॰ मी॰) में वर्षा होती है अथवा सिंचाई के उचित साधन उपलब्ध हों । इस प्रकार की खेती करने के लिए खेत में लगभग पाँच सेंटीमीटर पानी भरकर कई बार जुताई की जाती है तथा गँदला किया जाता है । छोटी आकार के खेतों में यह सब काम बैलों की सहायता से किया जाता है, जबकि बड़े खेतों में यह कार्य ट्रैक्टर आदि की सहायता से किया जाता है ।

चावल की खेती के कुल क्षेत्रफल का लगभग 45 प्रतिशत क्षेत्रफल पर सिंचित आर्द्र कृषि की जाती है । इसका बीज क्यारियों में बोया जाता है और जब पौध 25 या 30 दिन की हो जाती है तब उनको उखाड़कर खेत में रोपाई की जाती है । रोपाई की जाने वाले धान की खेती का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता है ।

चावल चूंकि ऊष्ण-आर्द्र जलवायु की फसल है इसलिए इसको खरीफ के मौसम में उगाया जाता है । बंगाल, असम तथा ओडिशा के कुछ भागों में एक साल में धान की तीन फसलें उगाई जाती हैं, जिनको अमन, साली तथा अगहनी कहते हैं ।

चावल की किस्में (Varieties of Rice):

भारत में चावल की तीन हजार किस्में हैं, जिनमें से चावल की कुछ किस्में थोड़े समय में तैयार हो जाती है । अल्प समय वाली चावल की किस्में 60 से 75 दिन में तैयार हो जाती हैं । अधिक उत्पादन देने वाली चावल के नए बीजों में IR-5, IR-20, IR-22 तथा टाइचुँग प्रमुख हैं ।

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चावल का क्षेत्रफल (Area under Rice):

भारत में अनाज के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल का 43 प्रतिशत क्षेत्रफल चावल की फसल के अंतर्गत है । वर्ष 1950-51 में लगभग 300 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर चावल की खेती की जाती थी, जो 2010-11 में बढ्‌कर 450 लाख हेक्टेयर हो गया ।

यूँ तो भारत के प्रत्येक राज्य में थोड़े-बहुत क्षेत्रफल पर चावल की खेती की जाती है फिर भी पश्चिम बंगाल में चावल का क्षेत्रफल सबसे अधिक है, जिसके पश्चात उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब; तमिलनाडु, बिहार, ओडिशा एवं मध्य प्रदेश का स्थान आता है । चावल उत्पादन करने वाली अन्य राज्यों में असम, हरियाणा जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र प्रमुख हैं ।

उत्पादन (Yield):

भारत में चावल का औसत उत्पादन लगभग 2000 किलो प्रति हेक्टेयर है जो 1950-51 की तुलना में तीन गुणा है, परंतु मिस्र (6500 kg/ha), संयुक्त राज्य अमेरिका 6500 किलो प्रति हेक्टेयर तथा जापान 6400 किलो प्रति हेक्टेयर है । प्रति हेक्टेयर कम उत्पादन के मुख्य कारण जल, खाद इत्यादि का ठीक ढंग से इस्तेमाल न करना है ।

चावल मछली की मिश्रित खेती (Rice-Fish Integrated Farming System):

भारत में लगभग एक करोड हेक्टेयर भूमि पर वर्षा आधारित कृषि की जाती है । अधिकतर प्रदेशों में चावल की एक वर्ष में खरीफ के मौसम में एक चावल की फसल उगाई जाती है, परंतु पश्चिम बंगाल, असम तथा कावेरी डेल्टा में एक वर्ष में दो या तीन चावल की फसलें उगाई जाती हैं ।

भारत के चावल अनुसंधान केंद्र कटक ने चावलों के खेतों में मछली पालन पर बल दिया गया है । चावल तथा मछली को एक साथ उगाने के लिए खेत के चारों और लगभग एक मीटर ऊँचा तथा 2.5 मीटर चौड़ा बाँध बनाया जाता है ।

इस प्रकार के खेत में एक पोखर बनाया जाता है, जिसमें छोटी मछलियाँ छोड़ दी जाती हैं । यह मछलियाँ धीरे-धीरे बड़ी होकर किसान के लिए आहार एवं आय का साधन बन जाती हैं । खेती की ऊँची मेंढ़ों पर लौकी, कद्दू, तुरई इत्यादि की फसलें उगाई जाती हैं ।

व्यापार (Trade):

चावल की अधिकतर खरीद व फरोख्त देश के अंदर ही की जाती है । भारत से बासमती चावल दक्षिण पश्चिमी के देशों रूस, मध्य एशिया तथा पूर्वी यूरोप के देशों को करता है । आवश्यकता पड़ने पर चावल का आयात थाइलैंड, म्यांमार, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं मलेशिया तथा श्रीलंका से किया जाता है ।

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