बीटरूट कैसे खेती करें? | Read this article in Hindi to learn about how to cultivate beetroot.
विश्व में आजकल प्रत्येक वर्ष लगभग 142 मिलियन टन चीनी बनाई जाती है । कुल उत्पादित चीनी 76 प्रतिशत गन्ने से तैयार होता है, शेष 24 प्रतिशत चीनी, चुकंदर से बनाई जाती है । चुकंदर विश्व के समशीतोष्ण देशों, यूरोप और अमेरिका में उगाया जाता है ।
गन्ना विश्व के उष्ण कटिबंधीय देशों, एशिया एवं अफ्रीका के देशों में उगाया जाता है । गन्ने में चीनी उसके तने के रस से मिलती है जबकि चुकंदर में चीनी उसकी जडों से प्राप्त होती है । चुकंदर से चीनी बनाना काफी किफायती है । परंतु वर्तमान भूमंडलीकरण के दौर में विश्व बाजार की शर्तों के अनुसार अब फसल उगाने के लिए दी जाने वाली सभी सब्सिडी खत्म कर दी जायेगी तो यूरोप में चुकंदर से चीनी बनाना गन्ने से चीनी बनाने की अपेक्षा तीन गुना महँगा हो जायेगा तब विश्व में गन्ने से चीनी उत्पादन करने वाले देश ही चीनी आपूर्ति कर पायेंगे ।
भारत में समस्त चीनी उत्पादन केवल गन्ने से ही होता है और यहाँ पर प्रमुख चीनी उत्पादक प्रदेशों-महाराष्ट्र के कनार्टक और आन्ध्र प्रदेश में लगातार सूखे की स्थिति बने रहने के कारण गन्ना उत्पादन में कमी आई है, जिससे चीनी मिलो को पेराई के लिए भरपूर गन्ना नहीं मिल पा रहा है ।
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कई चीनी मिलें तो बद होने के कगार पर खडी हैं । ऐसी स्थिति में वहाँ ऐसी फसल की आवश्यकता है जिसे कम पानी में भी उगाकर उससे चीनी बनाई जा सके । इस दृष्टि से चुकंदर एक उपयुक्त फसल नजर आती है ।
क्योंकि:
(1) गन्ने की अपेक्षा चुकंदर को 30 से 50 प्रतिशत कम पानी की आवश्यकता होती है
(2) चुकंदर सूखे को सहन करने की क्षमता रखता है तथा
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(3) चुकंदर क्षारीय भूमि में भी असानी से उगाया जा सकता है ।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में एक नेटवर्क प्रोजेक्ट प्रारंभ किया गया है इसके अंतर्गत देश में उष्णकटिबंधीय चुकंदर की सस्य क्रियाये विकसित की जानी है ताकि महाराष्ट्र वगैरह में चुकंदर की खेती की जा सके ।
इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत लखनऊ (उतर प्रदेश), पुणे, दिगरज, पडेगाँव (महाराष्ट्र), श्रीगंगानगर (राजस्थान) और मुक्तेश्वर (उत्तरांचल) केद्रो पर शोध कार्य चल रहे हैं । हालाँकि हमारे देश में चुकंदर की खेती कोई नई बात नहीं है । अस्सी के दशक में हमारे देश में चुकंदर पर बहुत अनुसंधान कार्य हुये है । राजस्थान के श्रीगंगानगर क्षेत्र में चुकंदर उगाई भी जाती रही है ।
वहाँ एक चीनी मिल थी जो गन्ने और चुकंदर दोनों से चीनी बनाती थी परंतु अब वह चीनी मिल बद हो गयी है क्योंकि चुकंदर से चीनी बनाने पर मिल में बॉयलर चलाने के लिए ईंधन का अलग से इंतजाम करना पडता है तथा चुकंदर से कोई उपउत्पाद नहीं मिलता । अतः इससे चीनी बनानी महंगी पडती है । परंतु चुकंदर से इथेनाल बहुत आसानी से और सस्ती दर पर बनाया जा सकता है ।
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पाठकों की जानकारी के लिये अस्सी के दशक में हुए शोध के आधार पर चुकंदर की खेती की जानकारी नीचे दी जा रही है:
चुकंदर की खेती:
1. जलवायु:
चुकंदर की खेती सामान्यतः उन सभी स्थानों पर सफलतापूर्वक की जा सकती है, जहां सर्दियों में अधिकतम तापमान लगभग 20० से. रहता हो और गर्मी काफी देर से पडती हो उत्तर भारत में सर्दी के मौसम में यह भली-भाँति उगाया जा सकता है । पहाडी क्षेत्रों के लिए यह एक उपयुक्त फसल साबित हो सकती है ।
2. मृदा:
चुकंदर की खेती के लिए दोमट भूमि अच्छी रहती है । चिकनी मिट्टी में जडों को खोदने और साफ करने में कठिनाई होती है । भूमि में पानी का निकास अच्छा होना चाहिए । ऐसी उर्वरा भूमि, जिसमें कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में हों, बहुत ही उपयुक्त है । इसके लिए उदासीन से क्षारीय भूमि उपयुक्त रहती है ।
अतः राजस्थान, पंजाब हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के ऐसे इलाकों में जहां भूमि में लवणों की मात्रा अधिक होने के कारण अन्य फसलें अच्छी तरह नहीं ली जा सकती, चुकंदर की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है ।
3. खेत की तैयारी:
बुआई के पहले खेत अच्छी तरह तैयार करना आवश्यक है । पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल से करनी चाहिए । इसके बाद खेत को समतल कर देना चाहिए जिससे सिचाई अथवा जल निकास में कोई कठिनाई पैदा न हो ।
4. बीज की मात्रा एवं बुआई:
चुकंदर के बीज दो प्रकार के होते हैं:
(i) एक अंकुर वाले तथा
(ii) बहुअंकुर वाले ।
बहुअंकुर वाले बीज बडे होते हैं, इसलिए उनके बीज की मात्रा अधिक लगती है एक अंकुर वाले 3-4 कि.ग्रा. तथा बहुअंकुर वाले 6-8 कि.ग्रा. बीज एक हैक्टर के लिए पर्याप्त होते है । बीज बोने की गहराई 2-3 सें.मी. सबसे उपयुक्त होती है । गहरी बुआई से अंकुरण कम होता है ।
बुआई समतल क्यारियों में अथवा मेंड बना कर की जा सकती है । मेंडे 50 सें.मी. दूर, 10-12 सें.मी. ऊंची एवं 20-20 सें.मी. चौडी होना चाहिए । प्रयोगों में देखा गया है कि समतल क्यारियों और मेडों पर बोने से पैदावार में कोई अंतर नहीं पडता है । बुआई यदि मेंडों पर की जाये तो बुआई के बाद सिचाई करनी चाहिए ।
सिंचाई करते समय ध्यान रखना चाहिए कि मेंडें पानी में न डूबे अन्यथा बीजों का अंकुरण अच्छा नहीं होगा । उत्तर भारत में बुआई अक्तूबर के पहले पखवाडे में करनी चाहिए । उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में बुआई अक्तूबर के दूसरे पखवाडे में उचित रहती है । इससे ज्यादा देर करने से पैदावार में कमी आ जाती है ।
5. उन्नत किस्में:
अब तक खेती के लिए इसकी चार किस्में अनुमोदित की गई हैं । ये हैं – रोमोन्सकाया, मेरीबी मैग्नापीली, मेरीबो रैजिस्टापोली और इरो टाईप-ई । विभिन्न क्षेत्रों में किये गये परीक्षणों में इन किस्मों में कोई विशेष अत्तर नहीं पाया गया । पंतनगर में किये गये परीक्षणों के आंकडे सारणी-22.2 में दिये गये हैं । इन किस्मों में कोई विशेष अतर न होने के कारण अब देश में अधिकतर रोमोन्सकाया का ही उत्पादन होता है ।
6. उर्वरक:
एक हैक्टर फसल के लिए 120-150 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है । फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा मिट्टी की जाँच के अनुसार निर्धारित करनी चाहिए ।
हालांकि चुकंदर की उपज 240 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर देने तक बढती है परंतु यह बढोत्तरी आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है क्योंकि 120-150 कि.ग्रा. नाइट्रोजन से अधिक मात्रा देने से शर्करा की मात्रा घटती जाती है ।
नाइट्रोजन की कुल मात्रा का एक तिहाई भाग और पोटाश तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय खेत में देनी चाहिए । उर्वरक को बीज बोने की कतार के पास 2-3 सें.मी. दूर डाल देना चाहिए । नाइट्रोजन की शेष मात्रा का आधा भाग बुआई के 30 दिन बाद और बाकी आधा भाग 60 दिन बाद खडी फसल में डालना चाहिए ।
इसके बाद नाइट्रोजन देने से फसल की हानि होने की सम्भावना रहती है । नाइट्रोजन को किसी भी स्रोत जैसे अमोनियम सल्फेट, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट या यूरिया के रूप में दिया जा सकता है । पंतनगर में किये परीक्षणों से पता चलता है कि 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बोरेक्स देने से चुकंदर की पैदावार में वृद्धि होती है । इसके अलावा जिंक सल्फेट भी मिट्टी की जांच के अनुसार डालना लाभदायक है ।
7. सिंचाई:
फसल में दी जाने वाली सिंचाइयों की संख्या मृदा की किस्म पर काफी हद तक निर्भर करती है । दोमट भूमि में लगभग 7-8 सिंचाई करनी पडती है । फसल की खुदाई देर से करने पर अतिरिक्त सिंचाइयों की आवश्यकता पडती है ।
8. छंटाई:
जब बहुअंकुर वाले बीज बोये जाते है तो पौधों की छंटाई अनिवार्य हो जाती है । एक ही बीज से कई पौधे निकलते हैं, उनमें से एक को छोडकर बाकी सबको निकाल दिया जाता है । छंटाई करते समय पौधों की दूरी 20 सें.मी. कर देनी चाहिए । फसल में छंटाई करने का सबसे उपयुक्त समय बोने के पाँच सप्ताह बाद का है । इससे पहले अथवा बाद में छंटाई करने पर उपज में कमी आ जाती है ।
9. निराई:
पहले 45 दिनों में दो बार निराई की आवश्यकता होती है । बाद में निराई की आवश्यकता नहीं है । पाइरामिन और बीटानिल के मिश्रण को 3.0 तथा 2.0 कि. ग्रा. प्रति हैक्टर के दर से छिडकाव करने पर खरपतवारों की रोकथाम हो जाती है । पाइरामिन का छिडकाव बुआई के तुरंत बाद करना चाहिए और बीटानिल बुआई के 25 दिन बाद छिडकाव करना चाहिए ।
10. खुदाई:
फसल की खुदाई अप्रैल से शुरू की जा सकती है । यदि किसी रोग का प्रकोप न हो तो जून के प्रारंभ तक इसकी खुदाई की जा सकती है । खुदाई करते समय जडों में चीनी की मात्रा 16-17 प्रतिशत होती है । खुदाई ट्रैक्टर या गहरे हल से की जा सकती है ।
जडें निकलने के बाद उनकी पत्तियाँ काट देनी चाहिए एवं जडें मिल को भेज देनी चाहिए । खुदाई के बाद जडों को अधिक समय खेत में छोडने से वे सडने लगती है । अच्छी फसल से 60-70 टन पैदावार प्रति हैक्टर मिल जाती है ।
11. गन्ना व चुकंदर की मिश्रित खेती:
अक्तूबर में बोये जाने वाले गन्ने की वृद्धि शुरू में बडी सीमित होती है और कतारों के बीच अधिकतर जगह खाली पडी रहती है । इस जगह में चुकंदर की फसल ली जा सकती है । परीक्षणों में देखा गया है कि गन्ने की दो कतारों, जिनमें 90 सें. मी. की दूरी होती है के बीच एक पंक्ति चुकंदर की ली जा सकती है ।
गन्ने का जमाव हो जाने के बाद नवंबर के महीने में चुकंदर की बुआई की जानी चाहिए । इस विधि से खेत में गन्ने की पौध संख्या में कोई अंतर नहीं होता परंतु चुकंदर की पौध संख्या शुद्ध फसल की तुलना में 5.5 प्रतिशत ही होती है ।
चुकंदर के पौधों को अधिक स्थान मिलने से उसकी पैदावार अच्छी होती हैं और शुद्ध फसल की तुलना में उनकी पैदावार कुछ कम होती है । पंतनगर में किये एक परीक्षण में शुद्ध गन्ने की पैदावार 98.5 टन प्रति हैक्टर, शुद्ध चुकंदर की 67.4 टन, व मिश्रित खेती में गन्ने व चुकंदर की पैदावार क्रमशः 87.3 व 58.9 टन प्रति हैक्टर पायी गयी ।
इस प्रकार गन्ने के बीच चुकंदर लगाने से गन्ने की पैदावार में 11.2 टन की कमी हुई, परंतु 58.9 टन चुकंदर अतिरिक्त प्राप्त हुआ । गन्ना चुकंदर की खेती में चुकंदर का उत्पादन व्यय भी बहुत कम आता है । इसमें मुख्य रूप से बीज व उर्वरक का मूल्य आता है । कृषि क्रियाएँ निराई-गुडाई लगभग एक ही होती है ।
12. रोग:
भारत में अब तक जो बीमारियाँ इस फसल पर देखी गई हैं उनमें मूल सडन बीमारी मुख्य है । यह एक फफूँदी स्केलेरोशीयम सैल्पसाई द्वारा होती है । बीमारी का प्रकोप फरवरी के अंत या मार्च में जब तापमान बढने लगता है तब होता है । जडों पर फफूँदी के प्रकोप से पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं और जल्दी ही पौधे मर जाते है । ऐसे पौधों को उखाडने पर उनकी जडों पर चारों ओर फफूँदी लगी होती है ।
इस रोग को रोकने के लिए 15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर ब्रैसीकाल का प्रयोग करना चाहिए । फरवरी के माह में इसका घोल बनाकर जड़ों के चारों ओर डालना चाहिए जिससे कि जडों के चारों ओर की मिट्टी इस घोल से भीग जाये । इसका उचित प्रयोग करने से बीमारी का प्रकोप काफी हद तक रुक जाता है ।
13. कीट:
इस फसल पर कई कीट देखे गये हैं परंतु उनसे कितनी हानि होती है अभी तक ठीक से पता नहीं है । मुख्य रूप से हानि ग्रीसी कटवर्म, बिहार रोमिल सूँडी और तम्बाकू सूँडी से होती है । इनको हैप्टाक्लोर धूल (5 प्रतिशत) व थायोडान से रोका जा सकता है ।