सौंफ कैसे खेती करें | Read this article in Hindi to learn about how to cultivate fennel (saunf).
सौंफ का वानस्पतिक नाम ”फेनीकुलम वल्गेयर” है । यह कुल अम्बेलीफेरी का पौधा है । सौंफ का उपयोग प्रमुख मसाले व औषधि के रूप में भी किया जाता है । इसके स्वाद एवं सुगन्ध के कारण मसालों में इसका विशिष्ट स्थान है ।
देश में गुजरात, राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश सौंफ की खेती के प्रमुख राज्य हैं । विश्व में सौंफ की खेती स्पेन इटली फ्रांस जर्मनी दक्षिणी रूस में की जाती है । राजस्थान में सिरोही, जोधपुर, अजमेर, टोंक, भीलवाड़ा एवं पाली जिले इसकी खेती के मुख्य क्षेत्र है ।
जलवायु:
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सौंफ शरद ऋतु की फसल है । प्रायः इसकी बुवाई जुलाई-अगस्त में ही शुरू हो जाती है । ठण्डा मौसम इसी पैदावार के लिए अनुकूल रहता है । शुष्क व सामान्य ठंडा मौसम विशेषकर जनवरी से मार्च तक इसकी उपज व गुणवत्ता के लिए लाभदायक रहता है । अतः इसकी बुवाई शीतकाल के प्रारम्भ होने से पूर्व ही सितम्बर-अक्टूबर तक कर दी जाती है । फूल आते समय लम्बी अवधि तक बादल या अधिक नमी से फसल में कीट व रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है ।
भूमि को खेती के लिए तैयार करने की प्रक्रिया:
सौंफ की खेती बलुई मृदा को छोड़कर प्रायः सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है । इसकी अच्छी पैदावार के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है । अच्छे जल निकास वाली चूनायुक्त मृदा में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है । खेत की तैयारी में सर्वप्रथम मृदा को पलटने वाले हल से जुताई की जाती है ।
फिर देशी हल से 4-5 जुताई करके मृदा को 15-20 सेन्टीमीटर गहराई तक भुरभुरी व मुलायम बना लिया जाता है । इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर क्यारियाँ बनाई जाती है । दीमक व अन्य मृदाजनित कीटों के नियन्त्रण हेतु अन्तिम जुताई के समय एण्डोसल्फान चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से मिलाना लाभकारी होता है ।
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सौंफ की खेती के विभिन्न चरण:
1. बीज की मात्रा एवं बुवाई:
सौंफ की बुवाई छिड़काव विधि व रोपण विधि द्वारा भी की जाती है । सीधी बुवाई 8-10 किलोग्राम बीज व रोपण विधि में 3-4 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है । रोपण विधि में एक हैक्टेयर के लिए 100 वर्गमीटर क्षेत्र में नर्सरी लगाई जाती है तथा 30-45 दिन के पौधों का सितम्बर माह में रोपण किया जाता है ।
सीधी बुवाई मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक की जाती है । बुवाई का उपयुक्त समय मध्य सितम्बर है । बुवाई 40 से 50 सेन्टीमीटर की दूरी पर कतार बनाकर हल के द्वारा कूड् द्वारा 2 से 3 सेन्टीमीटर की गहराई की जाती है ।
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सीधी बुवाई अधिकतर छिटकवां विधि से सीधी खेत में की जाती है । इसमें निर्धारित बीज की मात्रा एक समान खेत में छिड़क कर व बाद में हल्की दंताली चलाकर या हाथ से मृदा में बीज मिला कर खेत में मिला दी जाती है ।
2. बीजोपचार:
बुवाई से पूर्व बीज को बॉविस्टिन 2 ग्राम या ट्राईकोडर्मा 4 से 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित किया जा सकता है ।
3. सिंचाई:
सौंफ एक लम्बे समय तक चलने वाली फसल है इसलिए इसे सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है । क्यारियों में बुवाई के 3-4 दिन बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे बीजों का अच्छी तरह जमाव हो जाए । छिटकवां विधि में सिंचाई ध्यान से करनी चाहिए जिससे बीज एक जगह जमा न हो जाए । दूसरी सिंचाई 12-15 दिनों पर अंकुरण के समय करनी चाहिए । सर्दियों में मृदा की संरचना अनुसार 15-20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए । फूल आने पर पानी की कमी नहीं होनी चाहिए ।
4. निराई-गुड़ाई:
बुवाई के 30 दिन बाद पौधे जब 8-10 से.मी. के हो जाए तो खरपतवार निकालकर गुड़ाई करनी चाहिए । पौधे के मध्य दूरी 20 से.मी. रखनी चाहिए । कमजोर पौधा को गुड़ाई के द्वारा निकाल देना चाहिए । रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण हेतु 1 किलोग्राम पेंडीमेथोलिन सक्रिय तत्व 750 लीटर में घोलकर 1 से 2 दिन बाद छिड़काव किया जा सकता है ।
किस्में:
1. एन.आर.सी.एस.एस.-ए.एफ 1:
यह किस्म नेशनल रिसर्च सेन्टर आन सीड स्पाइसेज तबीजी द्वारा विकसित की गई है । यह अगेती बुवाई व रबी फसल दोनों स्थितियों के लिए उपयुक्त है । इसके पुष्प छत्रक, पौधे सीधे व खड़े, दाने आकर्षक, मोटे, मध्यम आकार के होते हैं जिनमें वाष्पशील तेल 1.6 प्रतिशत होता है । यह किस्म देरी से परिपक्व होने वाली किस्म है ।
2. आर.एफ. 101:
कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर द्वारा विकसित इस किस्म के पौधे सीधे, मध्यम ऊँचाई के 120 सेमी. के होते हैं यह लम्बे व आकर्षक दानों वाली किस्म है । इस किस्म से करीब 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है ।
3. यू.एफ. 101:
अगस्त, 1995 में दुर्गापुरा में मसालों की बैठक में राजस्थान के लिए यू.एफ. 101 किस्म की पहचान की गई । यह सोहेला (टोंक) की स्थानीय किस्म से विकसित की गई है । यह 150-160 दिनों में तैयार होती है तथा औसत उपज 15.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है ।
4. गुजरात सौंफ-1:
यह किस्म गुजरात कृषि विश्वविद्यालय, जगुदान में विकसित की गई है । इसका पौधा लम्बा व झाड़ीनुमा होता है । यह खरीफ व रबी तथा शुष्क परिस्थिति हेतु उपयुक्त है । छत्रक अधिक संख्या में तथा आकार में बड़े तथा झड़ते नहीं हैं । इसके दाने गहरे रंग के होते हैं जिनमें वाष्पशील तेल की मात्रा 1.6 प्रतिशत होती है । फसल समयावधि 200-230 दिन है ।
5. एस. 79 किस्म:
यह एक बौनी अधिक शाखित प्रकार की किस्म है । इसके पुष्प छत्रक बड़े व दाने अन्य स्थानीय किस्मों से बड़े होते हैं । उपज 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है ।
6. आर.एफ. 125:
यह भी एक बौनी किस्म है । इनके दाने लम्बे एवं मोटे होते हैं । फसल की समयावधि 110 से 130 दिन है । इसकी उपज 17 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है ।
7. राजेन्द्र सौरभ:
यह बिहार राज्य में विकसित किस्म है । इसका दाना मोटा होता है । यह सुखाग्रस्त एवं क्षारीय भूमि के लिए उपयुक्त है ।
सौंफ फसलोत्तर प्रबन्धन:
कटाई एवं सुखाई:
सौंफ आदि मसालों का मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी गुणवत्ता, दानों की स्वच्छता, रग तथा खुशबू पर निर्भर करता है । ये गुण फसल की विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे कटाई, गहाई तथा भण्डारण पर निर्भर करता है । सौंफ के दाने गुच्छों में आते हैं व एक पौधे के सब गुच्छे एक साथ नहीं पकते हैं अतः कटाई एक साथ नहीं हो सकती है । जैसे ही दानों का रंग हरे से पीला होने लगे, गुच्छों को तोड़ लेना चाहिए अन्यथा ज्यादा पीला होने पर पैदावार खराब हो सकती है । इन्हें सुखाते समय फफूँद से बचाने के लिए बार-बार पलटते रहना चाहिए ।
उच्च स्तर की खाने के काम (चबाने) आने वाली सौंफ प्राप्त करने के लिए जब दानों का आकार पूर्ण विकसित दानों की तुलना में आधा होता है तभी उनके छत्रकों की कटाई कर उन्हें सुखा लिया जाता है । यह सौंफ मीठी होती है और इसका बाजार मूल्य भी अधिक होता है । बुवाई के लिए मुख्य छत्रकों के दाने जब पूर्णतया पीले पड़ जाए तब ही काटना चाहिए ।
उपज:
अच्छी तरह खेती करने पर सौंफ की 10 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पूर्ण विकसित हरी सौंफ तथा महीन सौंफ 5 से 7.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है ।
श्रेणीकरण:
सौंफ की ग्रेडिंग दानों की सफाई, आकार, वजन, पकने, रंग, रूप तथा कीट व्याधि प्रकोप के आधार पर की जाती है । इसके बीज में वजन के 5 प्रतिशत से अधिक अन्य पदार्थ नहीं होने चाहिए तथा कीट-व्याधिग्रस्त बीज भी 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए ।
पैकिंग:
सौंफ की पैकिंग प्रायः टाट के बोरों में भर कर की जाती है । प्लास्टिक की लाइनिंग के टाट के बोरों में सौंफ भरने से बीज को नमी व कीट व्याधि से बचाया जा सकता है ।
भण्डारण:
सौंफ का भण्डारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उसे नमी से बचाया जा सके । गोदामों में बोरों को रखने से पहले नीचे लकड़ी के फन्टे लगाने चाहिए । बोरों की दूरी दीवार से 50-60 सेमी. रखनी चाहिए । कीटनाशक का उपयोग कभी भी नहीं करना चाहिए ।
विशेषज्ञों की राय से धुआं देकर कीटों से बचाना चाहिए । लम्बे समय तक भण्डारित करने के लिए प्लास्टिक लगे बोरी में भरकर सुरक्षित स्थान पर भण्डारित करना चाहिए । व्यापारिक स्तर पर इसे कोल्ड स्टोरेज में भी रखा जाता है ।