मिल्की व्हाइट मशरूम कैसे खेती करें? | Read this article in Hindi to learn about how to cultivate milky white mushroom.
यह खुंभी दूध छत्ता, श्वेत दुधारी या गर्मी की खुंभी के नाम से जानी जाती है क्योंकि यह दूध के समान सफेद रहती है एवं सुखाने के बाद भी इसके रंग में अधिक परिवर्तन नहीं आता । यह गर्मी के मौसम में भी अच्छी उपज देने वाली खुंभी है । लगभग 30 साल पहले इस खुंभी को भारत के जंगलों में पाया गया था । गिर्द क्षेत्र में इस खुंभी को अप्रैल से सितम्बर माह तक आसानी से उगा सकते हैं ।
तीस डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान पर अन्य खुंभी का उत्पादन नहीं किया जा सकता है किंतु इस खुंभी को आसानी से उगाया जा सकता है । इस कारण साल भर उत्पादन चक्र में यह आसानी से सम्मिलित हो जाता है । इसकी उपजा क्षमता 60-70 प्रतिशत तक होती है । दूध छत्ता आकार में काफी बडा होता है एवं अधिक समय तक खराब नहीं होती है ।
अन्य खुंभियों की तरह इसमें 17.69 प्रतिशत प्रोटीन, 4.1 प्रतिशत वसा, 3.4 प्रतिशत रेशा एवं 64.26 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट रहता है । इसके अतिरिक्त 4 प्रतिशत विलयशील शर्करा, 27 प्रतिशत, स्टार्च एवं 7.3 प्रतिशत राख होती है, जो सूक्ष्म तत्वों से परिपूर्ण होती है । इसमें पाये जाने वाले क्षारीय तत्व एवं अधिक रेशे होने के कारण यह एसिडिटी एवं कब्ज के रोगियों के अति लाभदायक है ।
व्यवसायिक उत्पादन:
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I. दुध छत्ता खुंभी की खेती के लिए माध्यम बनाना:
दूध छत्ता खुंभी के लिए ताजा, सूखा व अच्छी किस्म का, फफूँद आदि बीमारियों से रहित तथा बरसात के पानी से मुक्त गेहूँ या धान का भूसा उपयोग में लाना चाहिये ।
इस भूसे को सर्वप्रथम उपचारित कर तैयार करना पड़ता है जिससे उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवों को नष्ट किया जा सके । इन सूक्ष्म जीवों की वजह से खुंभी कवकजाल फैलता नहीं हैं तथा अच्छी पैदावार नहीं मिलती । भूसे की उपचार की मुख्यतः तीन विधियों हैं । गर्म पानी द्वारा, भाप द्वारा एवं रसायन द्वारा ।
II. जल उपचार विधि:
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दस किलो गेहूँ का भूसा या धान के पुआल को छिद्रदार जूट के थैले में भरकर 100 लीटर ठंडे पानी में डुबाते हैं । दूसरे दिन इस गीले भूसे को थैले सहित 40 लीटर गर्म पानी (70-80 डिग्री सेन्टीग्रेड) में 1 घंटे तक रखकर निकाल लेते हैं । ठंडा होने पर इस भूसे का तारपोलिन या प्लास्टिक की चादर पर फैला कर बीजाई की जाती है ।
III. वाष्प पाश्चरीकरण विधि:
इस विधि में भूसे को साधारण पानी में रात भर के लिए भिगोते हैं बाद में उसका पानी निथारकर इस भूसे को वाष्पीकरण कक्ष में 70-75 डिग्री सेन्टीग्रेड पर 6 घंटे रखते है इसके बाद ठंडा होने जाने पर भूसे में बीजाई की जाती है ।
IV. रासायनिक विधि:
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यह उपचार सस्ता, सरल एवं अधिक उपज देता है । इसके लिए 200 लीटर प्लास्टिक के टब या ड्रम में 10 किलो भूसा को 100 लीटर पानी में भिगो देते हैं । इस पानी में 7.5 ग्राम बेविस्टिन एवं 125 मिलि फार्मेलिन पानी में घोलकर मिला देते हैं । इस घोल में बोरी सहित भूसा डालकर डुबा देते हैं और ड्रम को प्लास्टिक की चादर से 18 घटे के लिए ढक देते हैं । इसके बाद भूसा से पानी निथारकर इसे पॉलीथीन की चादर पर फैलाया जाता है जिससे कि फार्मेलिन की महक उड जाये ।
स्पान एवं बीजाई:
प्राय. स्तरीय विधि द्वारा दाना स्पान बनाया जाता है । इस खुंभी के उत्पादन के लिए आयस्टर और बटन खुंभी के उगाने की संयुक्त विधि अपनायी जाती है । इसके लिए 100 गेज वाली 60×40 सेमी. आकार वाली पोलीप्रोपाइलीन की थैली सबसे उपयुक्त पायी गयी । क्रियाधार को खराब होने से बचाने के लिए थैलियों को थोड़ा खाली रखते हैं ।
बीजाई करने के लिए 18 से 20 दिन पुराना बीज उपयुक्त रहता है । अधिक पुराना बीज उत्पादन नहीं देता हैं । अधिक उपज के लिए भूसे के साथ कुछ अतिरिक्त खाद्य भी डाले जा सकते हैं जैसे गेहूँ का चोकर, मक्का का दलिया, चावल की तुड़ी (5 प्रतिशत) आदि ।
भूसे के उपचार के बाद उसे एक साफ कमरे में स्वच्छ पॉलीथीन की चादर बिछाकर उस पर 2 प्रतिशत फार्मेलिन का छिडकाव करते हैं । उसके बाद चादर पर उपचारित भूसा डालते हैं । गीले भूसे में 4 या 5 प्रतिशत की दर से बीज मिलाना चाहिये । अब भूसे को पॉलीथीन की छिद्रदार थैली में भरकर परत विधि से बीज मिलाते हैं ।
पहली परत नीचे से 4 इंच एवं दूसरी नीचे से 6 इंच एवं तीसरी परत 12 इंच पर रखते है । बीज को हाथ से फैलाकर डालते हैं । सबसे ऊपर भूसे की 3 इंच की परत डालकर थैलियों का मुंह बंद कर देते हैं ।
केसिंग:
उपयुक्त तापमान एवं नमी पर 15-20 दिन में खुंभी का सफेद कवकजाल अच्छी तरह फैल जाता है । दूध छत्ता खुंभी में फलनकाय बनने के लिए केसिंग की आवश्यकता होती है । केसिंग के लिए निम्नलिखित केसिंग मिश्रण को काम में लिया जा सकता है । दो वर्ष पुरानी गोबर की खाद या गोबर की खाद: मिट्टी (1:1) या मिट्टी रेत: गोबर की खाद: बगीचे की खाद (1:1:1:1) इनमें से कोई भी एक सामग्री को पॉलीथीन की चादर पर लेकर उस पर 4 प्रतिशत फार्मेलिन का छिड़काव करके 48 घंटे तक ढक कर रख देते हैं ।
केसिंग मिश्रण का पी.एच. 6.5 से 7.5 के बीच में होना चाहिये । अड़तालीस घंटे बाद पॉलीथीन खोलकर इस मिश्रण को लेते हैं जिससे उसमें उपस्थित फार्मेलिन उड जाये । अब पूरी तरह सफेद थैली का मुँह खोलकर उस पर 3 से.मी. मोटी केसिंग मिश्रण की परत डालते हैं । इसे ही केसिंग कहते हैं ।
केसिंग करने के बाद दिन में 3 बार पानी का छिड़काव करना चाहिये । बहुत ज्यादा पानी देने से खुंभी के बटन सड़ने लगते हैं और बहुत कम पानी से बटन सूखने लगते हैं । जब थैलियों में सफेद कवकजाल पूर्ण रूप से फैल जाये तभी शैलियों का मुंह खोलना चाहिये । इन थैलियों को खुली लकड़ी या लोहे की अलमारियों में 10-10 से.मी. की दूरी पर रखना चाहिये ।
फसल प्रबंधन:
फसल कक्ष को उपयोग में लाने से पहले उस कक्ष को 2 प्रतिशत फार्मेलिन के घोल का छिडकाव करके 48 घंटे तक बद रखना चाहिये । इसके बाद कमरे की खिडकियों या दरवाजे को पूरा खोलकर ताजी हवा को अंदर आने देना चाहिये ताकि फार्मेलिन की गन्ध समाप्त हो जाये । इस खुंभी के उत्पादन के लिए ज्यादा तापक्रम, ज्यादा नमी एवं अच्छे वातायन की आवश्यकता होती है जिसके अभाव में फसल उत्पादन प्रभावित होता है ।
फलनकाय बनते समय कक्ष का तापक्रम 25-30 डिग्री सेन्टीग्रेड तथा नमी 70-90 प्रतिशत होना चाहिये । खुंभी के बटन बनते समय उत्पादन कक्ष में ताजी हवा का प्रवेश होने देना चाहिये जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकल जाये तथा ऑक्सीजन की उचित मात्रा कक्ष में विद्यमान रहे ।
तुड़ाई:
जब खुंभी का फलनकाय नीचे की तरफ मुडने लगे तब दूध छत्ता फलनकाय को तोड लिया जाता है । इसके फलनकाय को बीजाणु झडने से पहले ही तोड लेना चाहिये । खुंभी की तुड़ाई हल्के हाथ से मोडकर की जाती है जिससे खुंभी का टूटा भाग सतह पर न रह जाये ।
इस कटे भाग पर जीवाणु संक्रमण होने के कारण भूसा सडने लगता है । इस खुंभी की लगभग 4-5 तुड़ाई की जाती है । शैया से एक साथ सभी खुंभीयों को तोडना चाहिये । तुड़ाई के पश्चात खुंभी के निचले सिरे पर लटके कवकजाल के धागे और मिट्टी को कण को तेज चाकू से काटकर अलग कर देते है ।
प्रायः खुंभी को 250 से 500 ग्राम क्षमता वाली पीली प्रोपलीन की छिद्रदार थैलियों में भरकर बेचा जाता हैं । इस खुंभी के पतले-पतले टुकडे भरकर काटकर धूप में या गर्म हवा ओवन में 40-50 डिग्री सेन्टीग्रेड पर सुखा लेते है ।
शुष्क खुंभी को पीली प्रोपेलीन की थैलियों में सीलबंद करके 2-3 साल तक भण्डारित किया जा सकता है । सूखी खुंभी को फिर से गीला करने के लिए इसे हल्के गर्म पानी में 10-15 मिनट तक डुबाया जाता है । प्रति किलो क्रियाधार से 700 ग्राम खुंभी उत्पादित होती हैं ।