मशरूम फ़सल और भंडार कैसे करें | Read this article in Hindi to learn about how to harvest and store mushrooms.

बारीक कवकजाल से बनी खुंभी तोडाई के उपरांत भी बेड पर लगे रहने की तरह बढती हैं । इन क्रियाओं के कारण ऐसे बदलाव आते हैं जिससे इनका व्यवसायिक मूल्य कम हो जाता है । यह खाने योग्य नहीं रहती । फलनकाय के परिपक्व होने के बाद से उसके गुणों में अवमूल्यन होने लगते हैं ।

जिसके कारण कुछ समय बाद इनको नहीं खाया जा सकता । खराब होने का प्रथम लक्षण भूरा होना है और यह गुणवत्ता खराब होने का कारण है । ऑक्सीजन और क्रियाधार की उपस्थिति में पॉलीफीनॉल आक्सीडेज एंजाइम रंगहीन फीनोल वाले यौगिकों को आक्सीडेशन के द्वारा क्वीनोन में बदल देते हैं, जो कि अमीनो एसिड डेरिवेटिव के साथ मिलकर बहुत रंगीन पदार्थ बनाते हैं, जिससे ये अग्रहणशील हो जाते हैं ।

बटन खुंभी को बटन अवस्था में ही तोड़ना चाहिए, जब टोपी का आकार 30-40 मि.मी. हो । ये सफेद, बिना दाग वाले, आवरण मृदा और खाद से मुता होना चाहिए । कटाई उपरांत विकास के कारण से फलनकाय का कडापन खत्म होने लगता है । पाइलस और स्टाइप झुर्रीदार, कडे और सिकुड जाते हैं, जिससे खुंभी का ताजापन खत्म हो जाता है और इनका वजन कम हो जाता है । पुराने हो जाने पर फलनकाय का रंग बदलने लगता है ।

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बरवाल (1992) ने देखा कि तुडाई के पहले एस्कारबिक एसिड (2 प्रतिशत) का छिडकाव करने से पालीफीनॉल आक्सीडोज और भूरा रंग पैदा करने वाले एन्जाइम की क्रिया रूक जाती है और खुंभी का रंग अच्छा हो जाता है ।

सफेदी बरकरार रखने के लिये खुंभी को हाइड्रोजन पराक्साइड के तनु घोल (1:3) में आधे घंटे तक डुबोकर रखने या 50 पीपीएम सल्फर डाई आक्साइड वाले 0.25 प्रतिशत साइट्रिक एसिड के घोल में डुबाने से अच्छा प्रभाव पाया गया ।

आयस्टर खुंभी में पूर्व विकसित गिल वाले फलनकाय के किनारे अंदर की तरफ मुड़ने लगते हैं । तब इसे तोडा जाता है । तोड़ाई के उपरांत विकास के कारण से फलनकाय से पानी निकल जाता है और यह सिकुडने लगता है ।

पानी की कमी के साथ-साथ खुंभी का रंग गहरा होने लगता है और इसकी किनारी गलने लगती है । फलनकाय चिकने हो जाते हैं, और बीजाणु झड़ जाते हैं । इसके कारण से बदबू आने लगती है और खुंभी का आकार खराब हो जाता है ।

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पुआल खुंभी को बटन स्टेज या अण्ड अवस्था में तोडा जाता है । इस अवस्था में युनिवर्सल बेल के अंदर टोपी और तना विकसित होने लगते हैं । यह विकास तब तक होता है जब तक कि युनिवर्सल वेल टूट न जाये ।

तने के दिखने के बाद से यह लंबाई में बढने लगता है जो कि अवांछित है । रामासेमी और कंडास्वामी (1978) ने बताया कि बटन अवस्था में खुंभी को तोडने से कम खराबी आती है क्योंकि पालीफीनॉल आक्सीडेज की क्रियाशीलता बहुत कम रहती है ।

तोडने के बाद शीघ्र परिपक्वता आने के कारण एक दिन के भण्डारण से ही टोपी खुल जाती है और यह चपटे छाते की तरह दिखने लगती है । इसके साथ-साथ नमी की कमी से भार घट जाता है और बीजाणु झड़ जाते हैं । बीजाणु के कारण ही फलनकाय गुलाबी रग के दिखने लगते हैं । इस समय फलनकाय पनीले होने लगते हैं और इनसे खराब गंध आती है ।

खुंभी की पैकिंग:

खुंभी को बेचने के लिये पेकिंग एक अनिवार्य भाग है । पेकिंग में उत्पाद को सही अवस्था में रखें तथा इसके ऊपर उत्पाद के बारे में, उत्पादक मात्रा, तिथि, बैच तथा मूल्य छपा होना चाहिए । चूंकि यह सर्वविदित है कि खुंभी को खराब होने से बचाने के लिये तुडाई के बाद शीघ्र ही इसको कम तापमान पर रखना चाहिए, अतः पेकिंग में ठंडा करने की तकनीकी होनी चाहिए ।

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बटन खुंभी को सही प्रकार पेक करने के पहले, तुडाई के ठीक बाद खुंभी को काटकर धो दिया जाता है । जिससे उस पर लगी मिट्‌टी, केसिंग मिट्‌टी अलग हो जाए । धोने से खुंभी की भण्डारण अवधि बढ जाती है । अत: बेचने का समय भी बढ जाता है ।

प्रायः खुंभी को 250 से 500 ग्राम क्षमता वाली पीली प्रोपेलीन की थैलियों में पैक किया जाता है । प्रायः खुंभी को ज्वाला या हीटर के द्वारा बद किया जाता है । पहले इन पैकों को छिद्रदार बनाया जाता था, परंतु सक्सेना और राय (1988) ने 100 गेज मोटी पालीथीन की, बिना छिद्रयुक्त थैलियों में बटन खुंभी को पैक करके उन्हें 50 से.ग्रे पर 4 दिन तक भण्डारण करके रखा ।

बिना छिद्र वाले बैलों में आक्सीजन खत्म हो जाता है और कार्बन डाइ आक्साइड जमा हो जाती है जिससे खुंभी की भण्डारण क्षमता बढ जाती है । दूर बाजार में बेचने के लिये खुंभी की अधिक मात्रा को पैक करने के लिये पाली स्टीरीन या पल्प बोर्ड के बने पनेटो का उपयोग किया जाता है ।

पनेट को विभेदी परागम्य पाली विनाइल क्लोराइड (पीवीसी) या पालाएसीटेट की फिल्म से ढका जाता है । बाद में इन पनेट को कार्ड बोर्ड के बने बक्सों में पैक कर देते हैं ।

जब आयस्टर खुंभी का किनारा ऊपर की ओर मुडने लगे तब इसे तोडकर, साफ करके छिद्रदार पालीथीन के थैलों में पैक किया जाता है जिससे संघनन व चिकनापन न हो पाये और खुंभी का गठन खराब न हो ।

आयस्टर खुंभी को खुली ट्रे में या छिद्रदार पालीथीन के शैलों में 50 से.ग्रे. तापक्रम पर 2 हफ्ते आसानी से रख सकते हैं । खुंभी की कम मात्रा को रेफ्रिजिरेटर में भण्डारित किया जा सकता है । अधिक मात्रा में उत्पादन होने पर सीलबंद थैलों को कोल्ड रूम में 8-100 से.ग्रे. पर हवादार अवस्था में रखा जाता है ।

पुआल खुंभी के नाजुक फलनकाय को पालीथीन के शैलों में सावधानीपूर्वक पैक किया जाता है । आयस्टर खुंभी के समान इसे कम तापक्रम पर भण्डारण करने से इसमें तुषार क्षति पायी जाती है और इसकी गुणवत्ता भी नष्ट हो जाती है अतः इसके भण्डारण के लिये खुंभी को छिद्रदार पालीथीन के थैलो में 10-150 डिग्री से.ग्रे. पर रखने से ये 4 दिन तक ताजे बने रहते हैं ।

परिवहन:

लंबी दूरी के परिवहन के लिये पहले से ठण्डी बटन खुंभी को ऊष्मारोधी बर्फ के डिब्बे में 8-9 घण्टे तक के लिये पैक कर देते हैं । लकडी के डिब्बे या बक्से को अंदर से 4 इंच मोटे थर्मोकोल से अस्तरिति करके उसे दोनों तरफ से टिन की चादर से ढक देते हैं, जो कि मजबूती देती हैं ।

तली पर बर्फ रखकर उसके ऊपर एक शेल्फ रखते हैं जिसमें कि खुंभी को सुरक्षित किया जाता है । इस तरह से खुंभी स्वस्थ व सफेद बनी रहती हैं । आयस्टर खुंभी के परिवहन का सबसे अच्छा माध्यम ट्रे या डलिया हैं । फलनकाय को ट्रे या डलियों में एक के ऊपर एक रखकर इसके साथ शुष्क बर्फ को पेपर में लपेटकर रखते हैं ।

अब ट्रे या डलियों को पतली छिद्रदार पॉलीथीन की चादर से ढक देते हैं । ताइवान में पुआल खुंभी को बास की डलियों में भरकर भेजते हैं । इसके लिये डलिया के मध्य भाग में एक वायु मार्ग बनाते हैं और शुष्क बर्फ को कागज में लपेटकर खुली के ऊपर रखते हैं ।

चीन में खुंभी को लकडी की पेटियों में भरकर पैक करते हैं । पेटी को 3 खण्डों में विभाजित करते हैं । इसके मध्य भाग में बर्फ भरते हैं तथा अन्य दो भागों में खुंभी भरी जाती है । दोनों विधियां प्रभावी पायी गयी हैं और अपने देश में स्थानीय जरूरतों के अनुसार बदलाव करके इन्हें उपयोग में लाया जा सकता है ।

खुंभी का संचयन:

(A) अल्पकालीन संचयन:

अल्पकालीन संचयन में ऐसे उपाय अपनाये जाते हैं जिससे उगाने वाले, आढातियों, फुटकर विक्रेता व खाने वाले की खुंभी में गुणवत्ता की कमी न आए । खुंभी की प्रजातियों के अनुसार खुंभी की संचयन अवधि में एक दिन से लेकर 2 सप्ताह तक का अंतर होता है ।

ताजी खुंभी का संचयन काल रेफ्रिजरेटर में 1-4 डिग्री से.ग्रे. पर रखकर बढा सकते हैं । यद्यपि शीतलीकरण भण्डारण हमेशा प्रभावशाली नहीं होता । विशेषकर कुछ ऊष्णकटिबंधीय अथवा उपोष्ट कटिबंधीय खुंभी पर शीतलीकरण का दुष्प्रभाव होता है ।

कम ताप पर खुंभी का अल्पकालीन संचयन प्रभावशाली पाया गया । कम ताप पर सूक्ष्म जीवों की वृद्धि रूक जाती है । खुंभी के ऊतकों की तुड़ाई उपरांत उपापचयी क्रिया की दर कम हो जाती है तथा आर्द्रता की हानि कम होती है । सक्सेना और रॉय (1988) ने बताया कि बटन खुंभी को 0.5 प्रतिशत मेटा बाई सल्फाइड से धोने से रंग सुरक्षित रहता है ।

जो कि संचयन काल में धीरे-धीरे खराब होता है । मैनी एवं अन्य (1987) ने पाया कि खुंभी का अल्पकालीन संचयन (एक दिन) करने के लिये पोटेशियम मेटा बाई सल्फाइट का अल्प सांद्रता का घोल प्रभावी पाया गया ।

परंतु दीर्घकालीन संचयन के लिये साइट्रिक एसिड 1 प्रतिशत और पोटेशियम मेटा बाइसल्फाइट 0.3 प्रतिशत या साइट्रिक एसिड 0.1 प्रतिशत और टारटरिक एसिड 0.3 प्रतिशत का उपयोग सही पाया गया ।

प्रुथी एवं अन्य (1984) के अनुसार घोल में परिरक्षित करने से खुंभी का सफेदपन और अवधि बढ जाती है । विभिन्न उपचारों में से खुंभी को उबलते पानी में 3-4 मिनट रखने के बाद 0.5 प्रतिशत साइट्रिक एसिड के घोल में रखना सबसे अच्छा उपचार पाया गया ।

इस घोल में 8-10 दिन तक खुंभी रखने में उसके रंग एवं गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता । खुंभी को 250 क्राड मात्रा का गामा रेडियेशन देने से इसकी संचयन अवधि 10 दिन बढायी जा सकती है और इसके बाद खुंभी को 15 डिग्री से.ग्रे. पर संचयन करते है ।

साधारण ताप पर प्लूरोटस प्रजातियों में तुड़ाई उपरांत भंडारण करने से श्वसन दर, घुलनशील कार्बोहाइड्रेट और जल की मात्रा में कमी आती है । भण्डारण के दौरान ओ-डाइफीनॉल आक्सीडेज और प्रोटिएज की क्रियाशीलता बढ जाती है । इसके साथ-साथ कुल फीनॉल कम और स्वतंत्र अमीनो अम्ल बढ जाते हैं ।

भण्डारण काल के बढने के साथ-साथ बदरंगता की मात्रा बढ जाती है । ताजी खुंभी को 25 मिली माइक्रान वाले पालीथीन थैले में बंद करके उसमें दोनों तरफ एक पिन से छेद करके साधारण ताप पर 24 घंटे तथा 52 डिग्री से.ग्रे. पर बिना छेद वाले बैग में 6 दिन तक रखा जा सकता है ।

पॉलीथीन बैग में बंद करने से जल की क्षति की दर कम हो जाती है । यह क्षति 72 घंटे बाद 15-180 डिग्री सें.ग्रे. पर 32-35 प्रतिशत और 6-80 डिग्री से.ग्रे. पर 6 प्रतिशत रहती है । बंद थैलियों में जल की क्षति नहीं होती पर थैली में अधिक नमी के एकत्रित होने के कारण चिकनी हो जाती है जिसके कारण से फलनकाय ग्रहण करने योग्य नहीं रहते ।

ताजी तोड़े गये प्लूरोटस सेपीडम के फलनकाय को पूरी तरह से बंद, बिना छिद्र वाली पॉलीथीन के थैले में भण्डारण कमरे के तापमान (20-30 डिग्री से.ग्रे.) पर 72 घंटे और कम तापक्रम (0-5 डिग्री से.ग्रे.) पर 15 दिन रखा जा सकता है ।

प्लूरोटस प्रजाति को 5 प्रतिशत नमक, 0.2 प्रतिशत साइट्रिक एसिड और 0.1 प्रतिशत साइट्रिक एसिड और 0.1 प्रतिशत मेटाबाइसल्फाइड के घोल में शीशे की बोतल में 3 महीने तक आसानी से रखा जा सकता है ।

वाल्वेरियेला प्रजाति को कम तापक्रम पर भण्डारण करने से तुषार क्षति और गुणवत्ता में अवनति पायी जाती है । उपयुक्त संचयन करने के लिये इसे 10-15 डिग्री से.ग्रे. पर छिद्रदार पॉलीथीन की थैलियों में रखते हैं, 4 दिन तक इनका ताजापन बना रहता है । रामासेमी और कंडास्वामी ने संचयन अवधि बडाने के लिये सोडियम क्लोराइड या एर्स्कोबिक अम्ल या साइट्रिक अम्ल के घोल के उपयोग की सिफारिश की ।

(B) दीर्घकालीन संचयन:

खुंभी का लंबे समय तक संचयन करने की विभिन्न विधियों है । साधारणतः सफेद बटन खुंभी को डिब्बा बंदी द्वारा और आयस्टर और पुआल खुंभी का संचयन शुष्कीकरण द्वारा करते हैं । इनके अलावा सभी खुंभीयों का अचार भी बनाया जाता हैं ।

डिब्बा बंदी:

बटन खुंभी के लिये डिब्बा बंदी अति सामान्य संसाधन है । इन खुंभीयों को डिब्बा बंदी के लिये पूरा या कटा हुआ या छोटे टुकड़ों में उपयोग किया जाता है । डिब्बा बंदी के लिये उपयोग में आने वाली खुंभी छोटे बटन तथा समान आकार वाली होना चाहिए । जिसका तना 0.4 से 1 से.मी. लंबा और टोपी से जुड़ा होना चाहिए ।

डिब्बाबंदी की विधि सामान्यतः 4 मूल प्रक्रमों में विभाजित होती है:

i. सफाई:

स्टेनलेस स्टील के बर्तन में पूरी या कटी खुंभी को लोह रहित पानी में कई बार हल्के से धोना चाहिए । त्वचा को बदरंग होने से बचाने के लिये इस पानी में 0.1 प्रतिशत साइट्रिक एसिड मिला देते हैं । धोते समय धुलाई वाले पानी को सोखने से खुंभी का भार बढ जाता है ।

ii. धवलीकरण:

खुंभी के धवलीकरण के लिये उसे 0.2 प्रतिशत साइट्रिक एसिड और 1 प्रतिशत साधारण नमक वाले घोल में 95-100 डिग्री से.ग्रे. तापक्रम पर 4-6 मिनट तक उबालते हैं । धवलीकरण और निर्जीवीकरण के दौरान ताजी खुंभी की तुलना में 25-30 प्रतिशत तक भार में कमी होती है । धवलीकरण के दौरान उत्पन्न होने वाले झाग को लगातार निकालते रहते हैं ।

iii. डिब्बा बंदी:

धवलीकरण के बाद खुंभी को डिब्बे में भरते हैं जिसमे 2.5 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड तथा 0.25-0.5 प्रतिशत साइट्रिक अम्ल का घोल होता है । इसके उपरांत डिब्बों को बद करके उनकी हवा को बाहर निकालने के लिये डिब्बों को उबलते पानी में रखा जाता है या एक कनवेयर बेल्ट पर रखकर भाप वाले बक्से से तब तक निकालते हैं जब तब कि डिब्बे के बीच का तापमान 85 डिग्री से.ग्रे. न हो जाए ।

अब डिब्बों पर ढक्कन चढाकर हाथ या स्वचालित मशीन के द्वारा सील कर देते हैं । इन डिबों को आटोक्लेव में 15 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाब पर 25-30 मिनट तक रखकर निर्जीवीकृत करते हैं ।

iv. शीतलीकरण:

निर्जीवीकरण के बाद डिब्बों का जल्दी शीतलीकरण करते हैं । ठंडा करने के लिये इन्हें साधारण लोहे के बने टँक में डाला जाता है जिससे पानी लगातार बहता रहता है । अब साफ और सूखे डब्बों को लेबल लगाकर लकड़ी या कार्डबोर्ड के बक्सों में रख देते हैं । इनका भंडारण ठण्डी व सूखी जगह पर करना चाहिए ।

शुष्कन:

शुष्क खुंभी दीर्घकालीन भण्डारण एवं परिवहन के लिये उपयुक्त होती है । शुष्कन द्वारा परिरक्षित खुंभी स्वादिष्ट होती है और इससे यह खराब होने से बची रहती हैं । ताजी खुंभी में नमी की मात्रा तुड़ाई-काल तथा वातावरणीय परिस्थितियों के अनुसार 70-90 प्रतिशत तक होती है जबकि शुष्क खुंभी में यह 5 प्रतिशत होती है ।

हमारे देश में सूर्य द्वारा शुष्कन एक कम लागत वाली तकनीक है । जबकि गर्म हवा संचरण वाले केबिनेट ड्रायर में सूर्य की अपेक्षा निर्जलीकरण तेजी व ठीक प्रकार से होता है । खुंभी के शुष्कन के लिये साधारणतः सफाई, टुकड़ों में काटना, धवलीकरण, शुष्कन, पैकिंग तथा भण्डारण प्रक्रिया अपनायी जाती है ।

लाल एवं अन्य (1990) के अनुसार खुंभी का 16 घण्टे तक 1 प्रतिशत पोटेशियम मेटा बाई सल्फाइट, 2 प्रतिशत साइट्रिक अम्ल और 3 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोने के बाद 60 ± 2 डिग्री से.ग्रे. पर 8 घंटे शुष्कन करने से ज्यादा व अच्छी उपज प्रान्त होती है तथा जल्दी खराब नहीं होती ।

सूर्य शुष्कन में काली पालीथीन का उपयोग करने से सूर्य का ताप 10 डिग्री सें.ग्रे. बढ जाता है । सामान्यतः निर्जलीकरण 8-9 घंटे में हो जाता है । परन्तु सूर्य द्वारा शुष्कन करने में 16 घंटे लगते हैं । उच्च ताप पर शुष्कन जल्दी होता है परंतु इस प्रकार प्राप्त होने वाली खुंभी गहरे रंग की हो जाती है ।

पूर्ण शुष्कन के बाद खुंभी अपने भार का 1/10 भाग रह जाती है । शुष्क खुंभी को वायु रोधी डिब्बों में भण्डारित करके ठंडे, शुष्क व अंधेरेयुक्त स्थान में रखना चाहिए । शुष्क खुंभी को पीसकर पाउडर भी बना सकते हैं जिसका उपयोग खुंभी का सूप बनाने में किया जा सकता है ।

पाउडर को वायुरोधी डिब्बों में बद करके रखना चाहिए । शुष्क खुंभी को पॉलीथीन के थैले में भरकर भण्डारण करने से 6-7 महीने तक इनका रंग और सुगंध ठीक रहती है । उपयोग में लाने के पहले इन्हें शक्कर और एस्कार्बिक अम्ल के सान्द्र घोल में डुबाकर जलीकृत कर लेते हैं ।

फ्रिज शुष्कन:

इस विधि में साफ टुकडे वाली खुंभी को 0.05 प्रातेशत सोडियम मेटा बाइ सल्फाइट और 2 प्रतिशत नमक वाले घोल में 30 मिनट तक डुबोते हैं । इसके बाद 2 मिनट तक उबलते पानी में धवलीकरण करते हैं, और फिर ठंडा करते हैं ।

इसके बाद खुंभी को 22 डिग्री फे. पर 1 मिनट तक शीतलीकरण करते हैं । इन शीतलीकृत खुंभी को फ्रीज ड्रायर में 2 प्रतिशत नमी रहने तक सुखाकर हवारहित डिब्बों में पैक कर देते हैं ।

दूसरी विधि में तुड़ाई के बाद खुंभी को 2-4 डिग्री से.ग्रे. ठण्डा करते हैं । जमाव बिंदु पर इन्हें छाटकर, धोकर पूर्व उपचारित करते हैं । तीस पी.पी.एम. तक क्लोरीन के उपयोग से सूक्ष्मजीवों की संख्या निम्नतम बनी रहती है ।

कभी-कभी खुंभी का धवलीकरण करने के बाद इसे डीप फ्रीज में रख देते हैं जिससे लंबे समय तक इनका सफेद रंग बना रहता है ।

धूप में सुखाना:

प्लूरोटस प्रजाति को दिन के समय अधिक तापक्रम 40-500 डिग्री से.ग्रे. पर सुखाते हैं । धूप में सूखी खुंभी में 3-4 प्रतिशत नमी रहती है । जबकि यांत्रिक विधि से सुखायी खुंभी में 2 प्रतिशत नमी रहती है । इन सूखी खुंभी को पॉलीथीन की थैलियों में बंद करके 120 दिनों तक भण्डारण कर सकते हैं ।

धवलीकृत और शक्कर से उपचारित सूखे प्लूरोटस प्लेबीलेटस को 6 महीने तक भण्डारित करने से ये भूरी नहीं होती जबकि धवलीकृत रहित सूखी खुंभी की भण्डारण अवधि केवल एक माह पायी गयी । इसके बाद खुंभी गहरे रंग के चमडे के समान और स्वाद में कडवी हो जाती है ।

आयस्टर खुंभी के समान ताजे पुआल स्ट्रा खुंभी को धूप में या ओवन में सुखाया जाता है । खुंभी को 3-4 बार धवलीकृत करने के बाद 0.5-1.0 प्रतिशत साइट्रिक एसिड के घोल में 16 घटे तक डुबोने के बाद सुखाने से प्राप्त खुंभी का रंग, फिर से जल ग्रहण करने की क्षमता और भण्डारण क्षमता बढ जाती है । सूखी खुंभी को फिर से गीला करने के लिये इसे हल्के गर्म पानी में 10 मिनट तक या कमरे के ताप पर पानी में 4 घटे तक डुबाया जाता है ।

पुआल खुंभी स्ट्रा की बटन अवस्था को डिब्बा बंदी करते हैं । खुंभी को साफ करके टुकडे काटकर उबलते पानी में 4 से 5 मिनट तक धवलीकृत करके जल्दी से 2 प्रतिशत नमक के घोल वाले डिब्बे में भरते हैं । डिब्बे की सील बंदी करके 10 पौंड दाब पर 40 मिनट तक भाप द्वारा निर्जीवीकृत करते हैं । निर्जीवीकरण के बाद डिब्बों को पानी में ठंडा करके इन्हें ठंडी जगह रखते हैं ।

 

परिरक्षण:

खुंभी को केचअप, चटनी, अचार आदि बनाकर लंबे समय परिरक्षित रख सकते हैं । इन उत्पादों को 6 महीने तक 22-30 डिग्री से.ग्रे. पर भण्डारित कर सकते हैं । खुंभी को भण्डारण से पहले पकाने से सूक्ष्मजीवों की वृद्धि रूक जाती है जिससे उत्पाद की भण्डारण क्षमता बढ जाती है ।

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