मशरूम खेती के लिए फार्म कैसे डिजाइन करें? | Read this article in Hindi to learn about how to design farms for mushroom cultivation.
भारत में खुंभी की खेती मुख्यतः मौसमी गतिविधि हैं । मैदानी भागों में खुंभी प्राय: मिट्टी के घर या झोपड़ियों में उगाये जाते हैं जहाँ वातायन, नमी एवं ताप को नियंत्रित रखना कठिन होता है, जिसके कारण से कम उपज प्राप्त होती है और कभी-कभी फसल नष्ट हो जाती है ।
परंतु अब उन्नत तकनीक अपनाकर इसे विशिष्ट प्रकार के बने खुंभी घरों में नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया जा सकता है । खुंभी उगाना एक कृषि क्रिया है जहाँ स्वास्थ्य विज्ञान एक महत्वपूर्ण कारक है । लाभ प्राप्त करने के लिए तीन उत्पादन कक्ष से व्यवसाय शुरू करना चाहिये, जिसमें प्रत्येक कक्ष में खेती योग्य जगह 200 वर्ग मीटर हो तथा 1 बल्क कक्ष हो साथ ही भविष्य में प्रसार के लिए जगह भी होना चाहिये ।
1. बटन खुंभी (अमेरिकस जाति):
बटन खुंभी को व्यवसायिक स्तर पर उगाने के लिए सही जगह का चुनाव व खुंभी फार्म का प्रतिरूप का बहुत महत्व है जिससे वहाँ होने वाली क्रियाएं क्रमबद्ध व भली भांति चल सके ।
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वह जगह सडक से जुड़ी होनी चाहिये, वहाँ साफ पानी और सतत तीन फेज वाली बिजली उपलब्ध होना चाहिए, निकास व्यवस्था, कच्ची सामग्री और श्रमिक उपलब्धता, बाजार के समीप और आसपास की जगह हरियाली युक्त होना चाहिये । यह जगह निवास स्थल से दूर होना चाहिये क्योंकि खाद्य घर से निकलने वाली अमोनिया की खराब गंध कष्टकारी हो सकती है ।
बटन खुंभी के खुंभी फार्म बनाने के लिए निम्न अवसंरचना बनाने की आवश्यकता होती है:
(अ) कम्पोस्टिंग इकाई:
i. बाह्य फेज । कम्पोजिंग प्लेटफार्म
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ii. आंतरिक बंकर या हवादार कक्ष
iii. आंतरिक फेज ।। पीक हीटिंग/बल्क कक्ष
iv. पीक हीटिंग कक्ष
v. बल्क पास्तुरीकरण कक्ष
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vi. गर्मी के महीने में खाद को ठण्डा करने के लिए विशिष्ट आवश्यकता पाश्तुरीकरण केसिंग कक्ष
(ब) स्पान इफाई स्मान प्रयोगशाला
(स) फसल उत्पादन इकाई:
i. मौसमी उत्पादन कक्ष
ii. नियंत्रित वातावरण वाला उत्पादन कक्ष
iii. नियंत्रित वातावरण, वायु प्रशीषित और बलयुक्त हवा का संचरण,
iv. सहायक इकाई
(द) तुड़ाई के उपरांत हेडलिंग यूनिट:
i. पूर्व प्रशीषित कक्ष
ii. केनिंग लाइन के साथ डिबाबदी क्ख
iii. संकुलन कक्ष
सारे संसार में स्थानीय जरूरत के अनुसार विभिन्न रूपान्तरण के साथ डच फार्म का प्रारूप और भवन निर्माण अपनाया गया है । खुंभी के उत्पादन में सैद्धान्तिक रूप से दो प्रणाली अपनायी गयी है । एक क्षेत्र प्रणाली व दो क्षेत्र प्रणाली ।
एक क्षेत्र प्रणाली में पीक हीटिंग कक्ष में स्पान का बढना और फसल उत्पादन एक ही कक्ष में किये जाते हैं जिसका अर्थ यह है कि प्रत्येक कक्ष ताप अवरोधी होना चाहिए तथा उसमें इस प्रकार के उपकरण लगे होना चाहिए जिससे अधिकतम तापक्रम (पीक हीटिंग में 55-590 से.ग्रे. और कुकआउट के समय 700 से.ग्रे.) उत्पन्न किया जा सके । एक क्षेत्र सिस्टम में हमेशा स्थिर बेड में खुंभी उगायी जाती है जिन्हें शेल्फ बेड भी कहते हैं ।
दो क्षेत्र प्रणाली में पीक हीटिंग, स्पान का बढना और फसल उत्पादन के लिए अलग-अलग कक्ष होते है । प्राय: दो क्षेत्र प्रणाली एक क्षेत्र प्रणाली से ज्यादा बडी रहती है । इनमें अलग-अलग कक्ष होते है । इस सिस्टम में उत्पादन कक्ष का तापमान 16-200 से.ग्रे. से ज्यादा नहीं बढता और इन्हें भारी ताप अवरोधी बनाने की आवश्यकता नहीं रहती ।
I. कम्पोस्टिंग यार्ड:
खाद बनाने के लिए बिना दिवार वाले छायादार घर की आवश्यकता होती है जिससे खराब गैस वायुमण्डल में आसानी से निकल सके । कम्पोस्टिंग यार्ड ठोस जमीन पर बना होना चाहिये । इसमें पहले 15-20 से.मी. मोटी रेत की तह डाली जाती है । फिर 15 से.मी. मोटी पत्थर की तह डाली जाती है ।
बल्क कक्ष से दूर प्लेटफार्म के कोने में बने गुडी पिट (xx मी.) की तरफ फर्श का झुकाव होना चाहिये और इस पिट में एक पानी निकालने वाला पंप और नली लगी होना चाहिये ।
कम्पोस्टिंग यार्ड का आकार 100×40 फीट होना चाहिए । यह इतना बडा होता है जिसमें 8 टन भूसे वाली तीन ढेरी बन सके तथा साथ ही साथ ढेरी बनाने के लिये भूसे को गीला करने की भी जगह रहे । बाह्य कम्पोस्टिंग प्लेटफार्म की छत 15 फुट ऊँचे आर.सी.सी. के खम्बों पर टिकी गेल्वेनाइज्ड लोहे की बनी रहती है । प्लेटफार्म के दोनों तरह दिवार से दूर नाली बनी होनी चाहिये जिससे प्लेटफार्म की समय-समय पर सफाई की जा सके ।
II. बल्क कक्ष/पीक हीटिंग कक्ष/टनल:
बल्क कक्ष खाद के सामूहिक उपचार के लिए आवश्यक होता है । खुंभी फार्म में बल्क कक्ष की जगह बहुत महत्वपूर्ण होती है ।
इस स्थान के निर्धारण के लिये निम्न बातें प्रभावित करती हैं:
a. संक्रमण का खतरा
b. उत्पादन कक्ष में तुलनात्मक दूरी
c. कार्य स्थल से जुडाव में आसानी
d. खाद का परिवहन
e. भविष्य में बढने की संभावना
बल्क कक्ष का फर्श बनाने के लिए सबसे पहले 15-20 से.मी. मोटी रेत की परत डाली जाती है, फिर 10 से.मी. मोटी ईंट के टुकडे या पत्थर की परत डालते हैं, इसके बाद 5 से.मी. कंक्रीट का फर्श (1:2:6) और इन्सुलेशन के लिए 5 से.मी. मोटा (15 ग्राम/मी2 घनत्व वाला) थर्मोकोल या ग्लास वूल डाला जाता है ।
यह 0.5-0.6 के कैलोरी प्रति वर्ग मीटर प्रति घटे की K वेल्यू देता है । इस इन्सुलेशन को पी.वी.सी. शीट से ढककर फिर 5 से.मी. मोटा कंक्रीट का फर्श डालकर चिकना कर देते है । कंक्रीट के फर्श के ऊपर 22.5 से.मी. मोटी ईंट की दीवार बनायी जाती है । उच्चतम तापक्रम पर निर्माण के बढाव के लिए दिवारों के बीच जगह छोड़ी जाती है । इसके लिए कंक्रीट भरने के पहले दीवार के आधार पर 1 से.मी. चौडी पालीस्टॉरीन की पटरी लगायी जाती है जो कि बाद में जल जाती है बाद में इस जगह को बिटुमेनी सीलेन्ट के द्वारा भर देते हैं ।
बल्क कक्ष की लंबाई-चौड़ाई, 13 फिट की ऊँचाई तक कक्ष में भरने वाले खाद की गुणवत्ता पर निर्भर करता है । पीक हीटिंग के समय 25 प्रतिशत खाद कम हो जाती है । अतः कक्ष में 30 प्रतिशत ज्यादा खाद भरना चाहिये ।
छत 4 इंच मोटी आरसी सी की बनी रहती है । खाद के पाश्चुरीकरण और प्रानुकूलन के समय ताप अवरोधी प्रभाव के लिए दीवार, सीलिंग और प्लेनम के फर्श को 6 से.मी. मोटा ताप अवरोधी पदार्थों से ढकना आवश्यक होता है ।
फर्श बनाते समय अच्छी ढाल के साथ-साथ सफाई के लिए नाली भी बनी होनी चाहिये । बल्क कक्ष में हवा का रिसाव नहीं होना चाहिये । प्लेनम में वेंटिलेशन नालियों के ऊपर ग्रेटेड फर्श बनाया जाता है । जिसमें हवा और भाप के संचरण के लिए फर्श का 25-30 प्रतिशत भाग छोडा जाता है जिससे ग्रेटेड पलोर से हवा प्रवाहित हो सके ।
ग्रेटेड फ्लोर के सहारे के लिए बने प्लेनम के बीचोंबीच ईट की बनी छिद्रदार दीवार (एक या दो) रहती है । ग्रेटिंग के लिए विट्यूमिनस पेंट से ढकी लकडी, एंगल आयरन फ्रेम पर लगी लोहे की ढकी पत्तियाँ या सीमेंट का उपयोग किया जाता है ।
बल्क कक्ष का दरवाजा एंगल आयरन या लकडी के फ्रेम में कसे दो एल्युमिनिमयम की चादरों के बीच 2-3 इंच मोटे तापअवरोधी पदार्थ का बना रहता है । कक्ष में दो निष्कासन निकास होना चाहिये ।
एक से पुन: संचरित हवा का निकास या दूसरी से ताजी हवा प्रवेश कराने के बाद उपयोग की गयी गैस को बाहर निकालने का कार्य होता है । प्रवेश के स्थान पर 2-3μ के कवक छलनी के प्रयोग से रोगजनक कवक व अन्य पीडकों का प्रवेश नहीं हो पाता । छत के शिखर पर ताजी हवा का डम्पर लगाया जाता है जो कि ताजी हवा के प्रवेश कराने के लिए पुन: संचरण नालिका से जुडा रहता है ।
कक्ष में प्लेनम के नीचे ब्लोअर पंखे लगाया जाता है । बल्क कक्ष में भरने वाली खाद की मात्रा के अनुसार ब्लोअर पंखे का आकार निर्भर करता है । बल्क कक्ष में हवा के पुन: संचरण के लिए कक्ष के प्रवेश द्वार पर एक अपकेन्द्री ब्लोअर पंखा लगाया जाता है, जिसकी हवा संवातन क्षमता 10 घन वर्ग प्रति टन खाद रहती है ।
जिससे 80-100 मि.मी. वाटर गाज का दबाव बनता है । यह ब्लोअर 1440 आर पी. एम वाली मशीन से ऊर्जा लेता है और उससे जुडा रहता है । बीस टन क्षमता वाले बल्क कक्ष के लिए 3000 घन मीटर हवा जिसका दबाव 80-100 मि.मी. वाटर गाज हो, प्लेनम के ऊपर रखे 2 मी. मोटी खाद की परत के बीच से प्रवाहित होना चाहिये । प्रवेश बिंदु पर भाप की नालिका भी जुडी रहनी चाहिये ।
दिवार और सीलिंग को नमी रहित बनाने के लिए अंदर की तरफ सीमेंट की सतह के ऊपर विट्यूमिनस पेंट लगाना चाहिये जो कि वाष्प के लिए एक अवरोधक का कार्य करता है । कार्य सुलभता के लिए अंदर का ग्रेटेड फर्श और बाहर का कार्य फर्श एक ऊंचाई का होना चाहिये ।
बल्क कक्ष को मनुष्य अथवा संवाहक पट्टी/मशीन द्वारा भरा या खाली किया जा सकता है । भरने या खाली करने के लिए मशीन के उपयोग से श्रमिक और समय की बचत होती है । बाहर निकालने के बाद खाद को स्पानिंग मशीन में डालकर उपयुक्त मात्रा के स्पान के साथ मिश्रण बनाते है और इस बीजयुक्त खाद को साफ पॉलीथीन थैलियों में भरकर उत्पादन कक्ष में ले जाया जाता है ।
गर्मी के महिनों में जब बाहर का तापक्रम 30-400 से.ग्रे. रहता है तब खाद को ठंडा करने के लिए हवा को नियंत्रित करने वाली युनिट के साथ ठण्डी नलिकायें भी जोड दी जाती है ।
सुरंग (टनल) में खाद को हल्के हाथों से 2 मी. की ऊंचाई तक ही भरा जाता है । खाद को दबाकर भरने से हवा का प्रवाह कठिन हो जाता है । जिसके कारण से तापक्रम में बहुत अतर आ जाता है और ऑक्सीजन की कमी के कारण खराब, बिना उपज देने वाली खाद बनती है । चार मीटर ऊँचाई तक खाद को भरा जा सकता है पर उस स्थिति में तदनुसार आकृति बदलना जरूरी है ।
सुरंग के अन्दर घूमने वाली हवा, खाद के ऊपर स्थित हवा और ब्लोअर द्वारा ग्रेटेड कक्ष के नीचे प्रवेश करायी हवा का मिश्रण रहती है । अंदर केवल थोड़ी ताजी हवा ही प्रवेश करायी जाती है । यह ताजी हवा छनी होना चाहिये ।
III. केसिंग पास्तुरीकरण कक्ष:
भारत के अधिकांश किसान केसिंग मिट्टी को फार्मेल्डीहाइड के द्वारा पाश्चुरीकरण करते हैं । हालांकि आधुनिक खुंभी फार्म जहां पर खाद के भाप पाश्चुरीकरण की सुविधा उपलब्ध है वहां केसिंग मिट्टी के पाश्चुरीकरण के लिए एक पाश्चुरीकरण कक्ष बनाने की आवश्यकता रहती है ।
इसके लिए 15’x9’x12′ आकार का कक्ष उपयुक्त रहता है । इस कक्ष की दीवार और सीलिंग अत्यधिक ताप अवरोधी होना चाहिये । इस कक्ष में लकडी का बना ग्रेटेड फर्श भी होना चाहिये जो कि कंक्रीट के बने फर्श से 25 से.मी. ऊँचा हो ।
केसिंग मिट्टी को ट्रे में भरकर ग्रेटेड फर्श के ऊपर रखकर 4-6 घण्टे तक 60-650 से.ग्रे. तापक्रम पर पाश्चुरीकरण करते हैं । भाप के पुन: संचरण के लिए एक पुन: संचरण पंखा या ब्लोअर लगा देते हैं । यह सिस्टम अच्छा परिणाम देता है ।
भारत में सड़ी गोबर की खाद (एफ बाई एम) और उपयोग में लायी खाद (दोनों 2 वर्ष पुरानी) का उपयोग आवरण माध्यम के रूप में करते है जिससे अच्छे परिणाम मिलते हैं । परंतु इन पदार्थों में नमक के जमा होने से परेशानी आती है । जिसके कारण से उच्च वैद्युतिक कन्डक्टविटी अवस्था आती है ।
इन पदार्थों को भाप पास्तुरीकरण के पहले साफ बहते पानी में घण्टे तक धोने से परिशोधन हो जाता है । अतः उपयोग के पहले आवरण पदार्थों को धोने के लिए सीमेंट की पानी की टकी की आवश्यकता होती है जिसमें ऊपर की तरफ साफ पानी के आने व नीचे से निकलने का उपाय होना चाहिये ।
IV. स्पान इकाई:
एक पूरी स्पान इकाई के लिए 60’x30’x12′ का बना क्षेत्र पर्याप्त रहता है । इस क्षेत्र को आटोक्लेव कक्ष, इनाकुलेशन कक्ष, ऐसी सुविधा वाला इन्क्यूबेशन कक्ष, धोने का स्थान, स्टोर, ऑफिस और स्पान का भण्डारण करने के लिए एक ताप अवरोधी कक्ष में विभाजित किया जा सकता है ।
V. उत्पादन इकाई:
चूंकि खुंभी को अंदर एक विशिष्ट वातावरण में उगाया जाता है जिससे कि खुंभी की वृद्धि हो सके । इस कारण से उत्पादन कक्ष को विशिष्ट प्रकार से बनाया जाता है । दो तरह के उत्पादन कक्ष बनाये जाते है, मौसमी उत्पादन कक्ष और नियंत्रित वातावरण वाला उत्पादन कक्ष ।
a. मौसमी उत्पादन कक्ष:
मौसमी उत्पादन कक्ष साधारण रहते हैं जिसमें कुछ बदलाव किये जाते हैं । उत्पादन कक्ष का फर्श, दिवार और छत सीमेंट की बनी रहती है या झूठी सीलिंग होती है । जिसमें कि ताजी हवा के लिए व्यवस्था हो ।
कम लागत वाले उत्पादन कक्ष, जहाँ घास-फूस की छत या एसबेस्टस की चादरों का उपयोग किया जाता है, वहां शिखर पर सीलिंग प्रभाव लाने के लिए पॉलीथीन की सीलिंग का उपयोग भी अच्छा पाया गया है ।
मौसमी उत्पादन गृह को ताप अवरोधी नहीं बनाना चाहिए क्योंकि अंदर फसल की वृद्धि के लिए उपयुक्त वातावरण को स्थिर रखने में कठिनाई आती है । ऐसे स्थानों में जहाँ मौसम में कुछ समय सबसे कम तापमान पाया जाता है, वहाँ ठंड के दिनों में ईटी की दिवारों के बीच खाली स्थान छोडने से फसल कक्ष की दीवारों पर पानी का जमाव बद हो जाता है ।
दरवाजों को एक तरफ ताप अवरोधी बनाया जाता है और दरवाजे के विपरीत सिरे पर प्रदूषित हवा को बाहर निकालने के लिए खिडकी होना चाहिये । मौसमी उत्पादन गृह में हवा का पुन: संचरण बहुत जरूरी है, इसके लिए दरवाजे के
ऊपर अंदर की तरफ ताजी हवा फेकने वाले पंखे लगाये जाते हैं जो कि छिद्रदार पॉलीथीन की नली से जुडे रहते है । यह नली कमरे की पूरी लम्बाई में लगाई जाती है और इसका दूसरा सिरा कमरे के दूसरे छोर पर कर दिया जाता है । दिवार एवं छत को वायु अवरोधी होना चाहिये, जिससे बलपूर्वक भेजी गयी हवा का प्रभावी रूप से उपयोग हो सके ।
खुंभी को बांस या सरकंडे के तने की बनी शैया पर उगाया जाता है । उत्पादन कक्षों को कम लागत वाले स्टील पाइप के फ्रेम और अधिक घनत्व वाली पालीथीन की चादर द्वारा बाहर से ढककर भी बनाया जा सकता है ।
ग्रामीण इलाकों में कम लागत तकनीक वाले उत्पादन कक्ष बनाने के लिए सरकंडो के तनों की दिवार, छत एवं दरवाजे बनाते है जिसमें बलपूर्वक हवा का प्रदेश नहीं रहता ।
इन कक्षों में हर समय छिद्रदार तनों वाली दिवार से हवा का प्राकृतिक विनिमय होता रहता है पर यह गृह वातावरण की दया पर निर्भर रहते हैं और साधारणतः फसल उत्पादन में कम तापमान अवरोध पैदा करता है ।
b. नियंत्रित वातावरण बाला उत्पादन कक्ष:
उत्पादन कक्ष विशिष्ट प्रकार के बने ताप अवरोधी कक्ष है । इन कक्षों का आकार कक्ष में भरने वाले खाद की मात्रा पर निर्भर करता है । बीस टन खाद के लिए 35’x25’x12′ आकार वाला कक्ष उपयुक्त रहता है और इसके दोनों तरफ कतार में उत्पादन कक्ष बनाने चाहिये । इस आकार के उत्पादन कक्ष में एक के ऊपर एक रखी 3-5 ट्रे का उपयोग किया जाता है । इन उत्पादन गृहों में खुंभी की खेती के लिए पॉलीथीन के थैलों का उपयोग भी किया जाता है ।
उत्पादन कक्षों की नींव सूखी व ठोस जमीन पर रखी जाती है । बल्क कक्ष की तरह इसका फर्श बनाया जाता है । दीवार 9 इंच मोटी ईंटों की बनी रहती है जिस पर सीमेंट का प्लास्टर करने से चिकना अवरोध बन जाये ।
अवरोधी चादरों (5 से.मी. थर्माकोल, ग्लास रूईपालीयूरीथीन) को गर्म कोलतार द्वारा दीवारों पर स्थिर कर दिया जाता है । इसके ऊपर 2 से.मी. मोटा सीमेन्ट का प्लास्टर करके चिकना कर देते हैं । सीमेंट प्लास्टर को वाष्प अवरोधी बनाने के लिए इस पर बाइटयूमिनस पेंट लगा देते है ।
छत 4 इंच मोटी आर.सी.सी. (1:2:4) की बनी रहती है । अवरोध लगाने के लिए (जैसा कि दीवार के लिए बताया गया है) अंदर की सतह सीमेंट प्लास्टर से चिकनी कर दी जाती है । छत को बाहर की तरफ से खुरदरी करके उस पर 10 से.मी. मोटी मिट्टी की तह बिछायी जाती है ।
इसके ऊपर 5 से.मी. मोटी कीचड़ की तह बिछायी जाती है । अंत में टाइल्स लगायी जाती है । इसके कारण से बरसात में छत का बचाव होता है इससे अवरोधक की जिंदगी बढ जाती है, और बरसात के दिनों में नमी अंदर नहीं आ पाती । पहाडों पर जहाँ पानी अधिक गिरता है, वहाँ पर जी आई की चादरें दाल लेकर लगायी जाती हैं । इसमें छत पर गीली मिट्टी की तह और टाइल्स लगाने की आवश्यकता नहीं पडती ।
एल्युमीनियम की चादर या जी आई की चादर से ताप अवरोधी द्वार बनता है । दरवाजे में एक रबर की लाइनिंग लगी रहती है । दरवाजे के विपरीत दीवार पर जमीन से 2-3′ फुट ऊपर दो झरोखे (1.5’x1.5’’) बने रहते हैं । इन झरोंखों पर जाली और इनके बंद करने व खोलने के लिए ताप अवरोधी शटर लगे रहते हैं ।
हवा बदलने के लिए दरवाजे के शिखर पर छिद्रदार पॉलीथीन शीट की बनी नलिका लगा देते है । यह नलिका कमरे में लंबाई में रहती है और 1.5 एच.पी. वाली मोटर से जुडे हवा फेंकने वाले पंखे से संबंधित रहती है । यह पंखा एक बक्से के अंदर रहता है, जिसे कि हवा हेण्डलिंग उपकरण कहते हैं ।
इस उपकरण द्वारा कमरे को ठण्डा, गर्म और सही आर्द्रता वाला बना सकते हैं और प्रत्येक कक्ष में इसे लगाया जाता हे । नलिकाओं द्वारा कमरे में हवा का बहाव नियंत्रित रखा जाता है और पीछे वाले झरोखे से कार्बनडाई ऑक्साइड को बाहर निकाला जाता है । खुंभी को प्रायः 100 कि.ग्रा. खाद के लिए 22.5 मी3 ताजी हवा की जरूरत होती है ।
स्पान के फैलाव व शुरू के फ्लश के समय 20 टन खाद के द्वारा 9000 किलो कैलोरी ऊर्जा निकलती है । प्रत्येक उत्पादन कक्ष में देखने के लिए ट्यूब लाइट व चलायमान तेज प्रकाश होना चाहिये । दीवारों पर ट्यूब लाइट को लंबवत् विभिन्न ऊँचाइयों पर लगाते हैं जिससे सभी शैयाओं को प्रकाश मिल सके । वहाँ पर पानी के पंप से छिडकाव करने के लिए कुछ विद्युत बिन्दु होना चाहिये ।
प्रत्येक कक्ष में छिडकाव के पानी को पहुंचाने के लिये एक साफ पानी का पाइप (1” या 1.25’’) लगा होना चाहिये । भवन बनाने के पहले जमीन के नीचे कमरे की धोअन और वाश बेसिन के पानी के निकास के लिए एक नाली बनाना चाहिये । दो फसल उत्पादन कक्षों की शृंखला के बीच की गली चौड़ी (लगभग 20 फीट) की होना चाहिये जिससे विभिन्न क्रियाएं आसानी से हो सकें ।
खुंभी की स्वस्थ फसल के लिए ताजी हवा, ठंडाई व गर्माहट, पी.एच. ताप, कार्बनडाई ऑक्साइड का निकास और बेड से पानी का वाष्पन आदि को समायोजित तरीके से नियंत्रित रखना चाहिये, क्योंकि एक कारक के बदलाव से दूसरे कारकों पर प्रभाव पडता है ।
मौसमी उत्पादन के लिये उपरोक्त सभी आवश्यकताएं बाहरी मौसम के तापक्रम के साथ फसल वृद्धि की अनेकों अवस्थाओं के समायोजन से पूरी होती है । पहाडी क्षेत्रों में एक साल में केवल सही मौसम से थोडा सा परिवर्तन करके मशरूम की 2-3 फसल उगायी जा सकती है । मैदानी भागों में ठंड के महीनों में खुंभी की मौसमी फसल ली जा सकती है ।
यातायात:
चूंकि खाद सूक्ष्मजीवीय रूप से सक्रिय रहती है और यह ऑक्सीजन को ग्रहण करके लगातार कार्बनडाई ऑक्साइड निकालती रहती है अत: फसल उत्पादन के समय ऑक्सीजन को अंदर लाने और कार्बनडाई ऑक्साइड को बाहर निकालने के लिए हवा संचरण बहुत जरूरी रहता है ।
वातावरण नियंत्रित उत्पादन गृहों में एअर हेण्डलिंग यूनिट (ए.एच.यू.) द्वारा दबावयुक्त हवा को भेजा जाता है । एअर हेण्डलिंग युनिट में ठण्डी नलिका, गर्म नलिका और नमी बनाने के लिए एक नमी कक्ष रहता है । जिसमें सामने की तरफ एक पंखा लगा रहता है जो कि कमरे के बीच में लगी हवा की नलिका से हवा सामने की तरफ फेंकता है ।
वातानुकूलित कस में उपस्थित द्रुतशीतक (चिलर) से ठण्डी नलिकाओं में 5-60 से.ग्रे. ठण्डा पानी भेजा जाता है । ठण्डी नलिकाओं में से गुजारकर हवा 13-140 से.ग्रे. ठण्डी हो जाती है । फिर यह धूमिका (मिस्ट) कक्ष में 13-140 से.ग्रे. पर 100 प्रतिशत नमी वाला बनाकर इसे उत्पादन कक्ष में नलिकाओं द्वारा संचार के लिए भेजा जाता है ।
जब यह हवा क्यारियों तक पहुंचती है तब इसका तापमान बढकर 16-170 से.ग्रे हो जाता है । जिससे नमी स्वतः घटकर 85 प्रतिशत रह जाती है । फसल की क्यारियों पर हवा की धीमी गति के कारण केसिंग से वाष्पन धीमी गति से होता है, जिसके कारण फसल की क्यारी पर से कार्बन डाई ऑक्साइड और गर्मी हट जाती है ।
कार्बन डाई ऑक्साइड हवा के साथ मिलकर हवा को बाहर निकलने वाली खिड़की से बाहर निकल जाती है । ताजी और पुन: संचारित हवा के प्रवेश बिंदु पर उपस्थित डेम्पर के सामंजस्य से ताजी हवा को पुन: संचारित हवा से मिलाया या नियंत्रित किया जाता है ।
डेम्पर का आकार ज्ञात रहता है अत: प्रवेश बिंदु पर हवा की गति नापकर हवा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है । 20 से 25 टन खाद वाले उत्पादन कक्ष में उपस्थित एयर हेण्डलिंग यूनिट की हवा बदलने की क्षमता 4500/5000 मी.3/घंटा होना चाहिये । (कमरे में 225-250 मी. 3/घंटा/टन खाद के लिए)
कमरे को गर्म करने के लिए एयर हेण्डलिंग यूनिट की गर्म नलिका में बायलर से आने वाली भाप को प्रवेश कराया जाता है और बाह्य तापक्रम के अनुसार गर्म नलिका की संख्या का निर्धारण निर्भर करता हे ।
आपेक्षित आर्द्रता वाले कक्ष में पानी की फुहार बनाने के लिए एयर हेण्डलिंग यूनिट के अतिरिक्त कक्ष में बारीक महीन पानी की जेट का उपयोग किया जाता है या हवा प्रवेश नलिका को धुंध बनाने वाली मशीन के साथ जोडा जाता है ।
नलिका को इस प्रकार लगाया जाता है, जिससे क्यारियों की सतह पर हवा का बहाव धीमा रहे । क्यारियों पर धीमी हवा के बहाव से फसल की क्यारियों से नियमित वाष्पन होता रहता है ।
2. आयस्टर खुंभी:
आयस्टर खुंभी वृहत तापक्रम शृंखला 15 से 300 से.ग्रे. पर उगती है, अतः यह शीतोष्ण और ऊष्णकटिबंधीय जलवायु वाले स्थानों के लिए विशिष्ट रूप से उपयोगी है ।
सफेद बटन खुंभी की तुलना में इस खुंभी की उत्पादन तकनीकी सरल होने के बावजूद भारत में केवल इसी खुंभी को उगाने के लिए अधिक क्षमता वाला प्रक्षेत्र अभी तक स्थापित नहीं हुआ है ।
व्यावसायिक रूप से इस खुंभी की खेती के लिए निम्न सुविधाओं की आवश्यकता है:
i. खाद बनाने के लिए क्षेत्र ।
ii. आंशिक निर्जीवीकरण कक्ष ।
iii. स्पान का फैलाव और उत्पादन कक्ष ।
iv. कटाई उपरांत परिरक्षण कक्ष/निर्जलीकरण कक्ष ।
i. खाद बनाने का क्षेत्र:
जर्मनी में जेडरेजिल एवं श्चनेडिरेट ने व्यावसायिक रूप से गुहा तकनीकी अपनाकर क्रियाधार का भाप द्वारा आंशिक निर्जीवीकरण किया । यूरोप में अपनायी जाने वाली तकनीकों में कुछ छोटे-छोटे बदलाव अपनाए गये । अंत: प्रत्येक साल 100-200 तन ताजे खुंभी उत्पादन लक्ष्य वाले फार्म में 40’x40′ को सीमेंट से बने चबूतरे की आवश्यकता होती है ।
ii. क्रियाधार आंशिक निजीर्वीकरण कक्ष:
अधिक मात्रा में भूसे का प्रभावी आशिक निजीर्वीकरण करने के लिए फार्म में एक टनल या बल्क कक्ष बनाने की जरूरत रहती है । टनल का आकार 25’x9’x14′ का होना चाहिये । वृहताकार कक्ष का फर्श दो तल वाला होता है । निचला फर्श जमीन से आधा मीटर नीचा ताप अवरोधी सीमेंट का बना रहता है ।
हवा प्रवेशिका की तरफ फर्श का झुकाव लगभग 2 प्रतिशत रहता है । ऊपर वाला फर्श 1-1.5” मोटी लकड़ी का बना रहता है, जिसके बीच में 25 से 30 प्रतिशत तक खाली स्थान छूटे रहते हैं । प्लेनम का निचला भाग 3” व ऊपरी भाग केवल 6” गहरा रहता है ।
टनल के अंतिम सिरे पर घनीभूत पानी का जमाव और टनल की धुलाई का पानी बाहर निकालने के लिए स्थान होना चाहिये । फर्श, दीवार और छत को ताप अवरोधी बनाने के लिए 5 से.मी. मोटा थर्मोकोल या ग्लासबूल का उपयोग किया जाता है जिसे अंदर की तरफ सीमेंट प्लास्टर से ढक देते है । जिससे उपयुक्त के वेल्यू (0.5 किलो केल/घंटा/मी3) प्राप्त की जा सके ।
टनल की गहराई में ग्रेटेड फर्श के अंदर भाप और हवा की प्रवेशिका लगी रहती है जो बॉयलर और ब्लोअर से जुडी रहती है । टनल के शिखर पर दो वातायन बने रहते हैं इनमें से एक पुन: संचरण नलिका द्वार ब्लोअर से जुडा रहता है और दूसरे से गैसों और पानी की भाप का विनिमय होता है ।
iii. स्मान का बढ़ना और उत्पादन कक्ष:
आयस्टर खुंभी को मौसमी रूप से तापक्रम को नियंत्रित करके वर्ष भर उगाया जा सकता है । भारतीय परिस्थितियों में मौसमी रूप से उगाने के लिये मिट्टी का घर या झोपडी का उपयोग किया जाता है । चूकि यहाँ सभी आवश्यकताओं को मौसमी रूप से प्राप्त किया जाता है, अतः जलवायु के अनुसार विभिन्न जातियों का चयन करना चाहिए ।
यूरोप में साल भर आयस्टर खुंभी को उगाने के लिये पीली हाउस का उपयोग किया जाता है । इनको बनाने की लागत सीमेंट के बने घरों से बहुत कम होती है । यह कक्ष जी आई पाइप के सहारे यू.वी.स्थीरिकरण की उच्च घनत्व वाली पालीथीन का बना 75′ x 15′ x 12′ आकार का रहता है ।
पाली हाउस को 6” मोटे ग्लास बूल के अस्तर द्वारा ताप अवरोधी बनाते हैं । इस आकार के पाली हाउस में 12 टन आशिक निर्जीविकृत खाद को उपयोग में लाया जा सकता है । जिसे बास या लोहे के बने 4 खंडो वाले शेल्फों में रखते हैं जिसका आकार 70 X.X. फीट होना चाहिए । इसकी साधारण छत पर सींचने और ठण्डा करने के लिये जैट वाले पानी के पाइप का उपयोग किया जाता है । इस कार्य के लिये छिद्रदार पालीथीन की नलिका से जुडे भारी परविपर्तित डेजर्ट कूलर का भी उपयोग किया जा सकता है ।
3. पेडी स्ट्रा खुंभी:
भारत में पेडी स्ट्रा खुंभी को मौसमी रूप से कम लागत वाली झोपड़ी या मिट्टी के घरों में उगाया जाता है । आजकल धातु के चौखट पर चढे उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन को चढाकर पॉलीथीन उत्पादन घर बनाकर सफलतापूर्वक उपयोग में आ रहे हैं । इस खुंभी के फार्म परिकल्पना और उत्पादन तकनीक में और सुधार जरूरी है ।